जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मध्य प्रदेश क्षेत्र प्रमुख अशोक सोनी ने 20 मार्च को सरकार्यवाह पद के लिए सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले का नाम प्रस्तावित किया तो साफ हो गया कि संघ एक पीढ़ीगत बदलाव की राह पर है. बेंगलूरू में संघ की शीर्ष निर्णायक अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अन्य क्षेत्रीय प्रमुखों ने सोनी के प्रस्ताव का समर्थन किया और इस तरह होसबले के लिए सरसंघचालक मोहन भागवत के बाद संगठन में सर्वोच्च पद तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हुआ.
इससे, 2009 के बाद से चार बार से यह दायित्व संभाल रहे सुरेश 'भैयाजी' जोशी को राहत मिली. उन्होंने 2018 में स्वास्थ्य कारणों से पद से मुक्त करने का अनुरोध किया था. देशभर में 34,596 स्थानों पर संघ की शाखाएं हैं और 5,505 विकासखंडों में इसकी उपस्थिति है. पिछले एक दशक में यह आकार में दोगुना हो गया है और अगले चार वर्षों में देश के हर मंडल तक पहुंचने की योजना है. संघ में अंतिम बार बड़ा बदलाव 2009 में हुआ था जब सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन स्वास्थ्य के आधार पर सेवानिवृत्त हुए थे.
अपने साथियों के बीच 'दत्ताजी' के रूप में लोकप्रिय उदारवादी, 64 वर्षीय होसबले आरएसएस की मूल विचारधारा के साथ बने रहते हुए एक प्रगतिशील दृष्टिकोण रखते हैं. अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर, बहुभाषी और मृदुभाषी इस नेता को टेक्नॉलोजी की गहरी समझ है. 2016 में उन्होंने कहा था कि आरएसएस समलैंगिकता को अपराध नहीं मानता. होसबले ही थे जिनके हस्तक्षेप पर नरेंद्र मोदी सरकार ने अक्तूबर 2018 में यौन उत्पीड़न के आरोपों के कारण विदेश राज्यमंत्री एम.जे. अकबर से इस्तीफा लिया.
सरकार्यवाह के रूप में होसबले से अपेक्षा है कि वे संघ की विचारधारा को युवा भारतीयों के लिए अधिक आकर्षक बनाने की दिशा में काम करेंगे. सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य बताते हैं कि संघ के लिए यह अहम क्षेत्र है क्योंकि इसकी लगभग 90 प्रतिशत इकाइयों में 40 वर्ष से कम उम्र के लोग हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके एक साल बाद आरएसएस के शताब्दी समारोह जैसे प्रमुख कार्यक्रम उनकी देखरेख में होंगे. सब कुछ ठीक रहा तो वे 71 वर्षीय मोहन भागवत के रिटायर होने के बाद आरएसएस प्रमुख भी बन सकते हैं. (संघ अब अपने पदाधिकारियों को 75 की उम्र में सेवानिवृत्त करता है या बोझ हल्का कर देता है.)
होसबले संघ के सहयोगी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से उभरकर सरकार्यवाह के पद तक पहुंचने वाले पहले नेता हैं. परिषद से 1972 में जुड़े होसबले ने अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में युवाओं के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मंच वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन ऑफ स्टूडेंट्स ऐंड यूथ की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी. 2009 में उन्हें विदेशों में संघ के नेटवर्क के विस्तार की जिम्मेदारी दी गई थी. उन्होंने सेवा इंटरनेशनल, हिंदू स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद को भी मजबूत किया.
संघ में दो अन्य सह सरकार्यवाह वी. भागैय्या और सुरेश सोनी सेवानिवृत्त हुए और उनके स्थान पर अरुण कुमार और झारखंड के क्षेत्रीय प्रमुख रामदत्त चक्रधर को लाया गया. सोनी पीएम पद के लिए मोदी के नाम का प्रस्ताव करने वाले पहले लोगों में थे. अरुण कुमार को जम्मू-कश्मीर का विशेषज्ञ माना जाता है और अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. उनकी ही सिफारिश पर भाजपा ने जून 2018 में महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन तोड़ दिया था. संघ ने छह सह सरकार्यवाहों की टीम को घटाकर पांच कर दिया है.
आर्थिक मुद्दों को देखने के अलावा सोनी भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर संघ के आयोजनों की तैयारियों में अरुण कुमार की मदद करेंगे. भागैय्या ग्रामीण विकास, कृषि और पंचायती राज से जुड़े मुद्दों से निबटेंगे. नई टीम के अधिकांश सदस्य 65 वर्ष से कम उम्र के हैं और उम्मीद है कि ये अगले एक दशक तक संगठन को चलाएंगे. अरुण कुमार कहते हैं, ''आरएसएस एक गतिशील संगठन है जो समाज के अनुरूप परिवर्तनों से गुजरता है. नए बदलाव इस बात को दर्शाते हैं.''
दो अन्य नियुक्तियों ने भी ध्यान खींचा है. एबीवीपी के पूर्व राष्ट्रीय संगठन सचिव सुनील अंबेकर अब संघ में प्रचार प्रमुख हैं. वे अब हैदराबाद से बाहर भी सक्रिय होंगे. भाजपा के पूर्व महासचिव (संगठन) रामलाल नए संपर्क प्रमुख हैं और संघ के बाहर के संगठनों के साथ संवाद बनाएंगे. 1,500 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा की तीन साल में एक बार बैठक होती है. बेंगलूरू की बैठक नागपुर में संघ के मुख्यालय के बाहर हुई पहली बैठक थी. ऐसा महामारी को देखते हुए ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से किया गया. 550 सदस्य बेंगलूरू पहुंचे, सहयोगी संगठनों के करीब 150 सदस्य वीडियो लिंक से चर्चा में शामिल हुए.
बहरहाल, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान होसबले ने संघ नेतृत्व को गैर-राजनैतिक रहने के पुराने संकल्प पर पुनर्विचार करने के लिए राजी किया और स्थानीय शाखाओं को चुनावों के दौरान भाजपा के प्रचार में लगाया गया. होसबोले भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा और महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष के भी करीबी हैं. उनके कद में वृद्धि संघ को भाजपा के और करीब ला सकती है.
वैसे संघ मोदी के आत्मनिर्भर भारत मुद्दे का तो समर्थन करता है पर उसके कार्यान्वयन को लेकर भारी मतभिन्नता है. मसलन, भारतीय मजदूर संघ ने भाजपा शासित राज्यों में श्रम कानूनों को निलंबित करने के सरकार के फैसले का विरोध किया है और निजीकरण के सख्त खिलाफ है. 2015 में होसबोले ने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के लिए संघ के सहयोगी संगठनों के विरोध का नेतृत्व किया था और सरकार को इससे पीछे हटने के लिए मजबूर किया था.