scorecardresearch

पश्चिम बंगालः आखिर नौकरियां कहां हैं?

अपने दशक भर लंबे कार्यकाल में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन का ममता बनर्जी का दावा निराशाजनक आंकड़ों से रू-ब-रू.

बुरा हाल कोलकाता के एस्प्लेनेड में 27 फरवरी को बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन करते युवा
बुरा हाल कोलकाता के एस्प्लेनेड में 27 फरवरी को बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन करते युवा
अपडेटेड 18 मार्च , 2021

पश्चिम बंगाल जैसे-जैसे मतदान की तारीख की ओर बढ़ रहा है, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दस साल के कार्यकाल में 1.2 करोड़ रोजगार सृजन का अपना दावा बढ़-चढ़कर करने लगी हैं. कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के विज्ञापनों में सूबे में बेरोजगारी कम करने के लिए ममता के कसीदे पढ़े गए गए. हालांकि, यह दावे उन आंकड़ों के सामने हवा हो जाते हैं जिसे ममता के प्रतिस्पर्धी रोजगार और आजीविका सृजन पर उनके रिपोर्ट कार्ड पर सवाल खड़ा करने के लिए पेश कर रहे हैं.

आज की तारीख में राज्य के सेवायोजन कार्यालयों में 35 लाख बेरोजगार पंजीकृत हैं. एक लाख लोग तो 2020 में ही जुड़े हैं. 2,00,000 से अधिक स्थायी पद खाली पड़े हैं. सरकारी स्कूलों में कोई 1,50,000 शिक्षकों के पद भी भरे जाने हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) के मुताबिक, बंगाल में कुल बेरोजगारी दर में पिछले पांच साल में कोई कमी दर्ज नहीं की गई है—यह सितंबर-अक्तूबर 2020 में 8.02 फीसद थी और जनवरी-अप्रैल 2016 में 7.5 फीसद.

ऐसा नहीं कि बंगाल में सरकारी नौकरियों का सृजन नहीं हुआ है लेकिन आलोचकों का तर्क है कि इनमें से ज्यादातर अनुबंध की नौकरियां हैं. राज्य के एक पूर्व नौकरशाह बताते हैं, ‘‘पिछले दशक में स्थायी नियुक्तियों की बजाए, 2,00,000 से ज्यादा लोग संविदा पर सरकारी कर्मचारी बनाए गए हैं.’’ कांग्रेस से जुड़ी कॉन्फेडेरेशन ऑफ स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लॉईज के महासचिव मलय मुखर्जी का दावा है कि अनुबंध या कैजुअल आधार पर 2,25,000 लोगों को नियुक्त करके ममता सरकार ने स्थायी कर्मचारियों पर खर्चे की आधी रकम बचा ली.

पूर्व नौकरशाह जोड़ते हैं, ''संविदाकर्मियों पर खर्च सालाना कोई 2,000 करोड़ रुपए का है जबकि स्थायी कर्मचारियों पर यह खर्च 4,500 करोड़ रुपए का होता.’’ ममता सरकार पर 4,31,000 करोड़ रुपए का कर्ज है और 2019-20 में कर्ज चुकाने में कोई 55,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए, ऐसे में उसके पास दूसरा कोई रास्ता शायद ही बचा था.

बंगाल में सरकारी सेवाओं में मोटे तौर पर तीन तरह के अनुबंध होते हैं. पहले प्रकार में कर्मचारियों का वेतन बहुत कम होता है पर वे नियमित कर्मचारियों जितनी छुट्टियों के हकदार होते हैं, उनकी 3 फीसद सालाना वेतन वृद्धि होती है, सेवा 60 की उम्र तक चलती है और सेवानिवृत्त होने पर उसे 3,00,000 रुपयों का एकमुश्त आवंटन भी मिलता है.

एक अन्य श्रेणी सरकारी एजेंसी वेबेल (वेस्ट बंगाल इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड) के जरिए ठेके के कर्मचारियों की होती है जिसके तहत अधिकतक नियुक्तियां चपरासी जैसे निचले वर्ग के कर्मचारियों की होती है. नौकरियों का तीसरा वर्ग काम नहीं तो वेतन नहीं के आधार पर होता है और इसमें अधिकतर होमगार्ड और चपरासियों की भर्ती होती है.

इसके अलावा, ‘डेटा एंट्री ऑपरेटर्स’ भी नियुक्त किया जाते हैं, और इनकी नियुक्तियां टुकड़ों में और अधिकतर राजनेताओं की सिफारिश पर होती है. राज्य वित्त विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, नौकरी की खोज में एक बड़ी जटिलता है कि अनुबंध या नैमित्तिक पदों के लिए शायद ही प्रमुख दैनिकों में कोई विज्ञापन दिया जाता है और इन विज्ञापनों में अधिकतर इस बात का उल्लेख नहीं होता कि यह नियुक्तियां सरकार के लिए की जा रही हैं.

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नकदी की कमी से जूझ रही राज्य सरकार जिस तरह से बेरोजगारी की समस्या के निबट रही है उसकी तारीफ की जानी चाहिए. कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अभिरूप सरकार कहते हैं, ''सरकार ने संविदाकर्मियों की सेवा की निरंतरता पक्की की है, जो स्थायी नौकरी जैसा ही है. सीमित वित्तीय संसाधनों और बेरोजगारों की बड़ी संख्या के मद्देनजर सरकार ने अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने की रणनीति अपनाई है और एक पद की जगह वह तीन लोगों को नौकरी दे रही है.’’

बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं कि संविदाकर्मियों के साथ काम की शर्तें ठीक नहीं हैं. ''हमारी सरकार ने नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की तनख्वाह तीन गुना बढ़ाकर 9,000 रुपए कर दिया है और उनके लिए स्वास्थ्य साथी हेल्थ कवर जैसे कई लाभ भी उपलब्ध कराए हैं. अनुबंध के कर्मचारी (आइटी विभाग में) 25,000 रुपए महीना पाते हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की तरह उन्हें दुर्गा पूजा पर बोनस और रिटायरमेंट के बाद 3 लाख रुपए ग्रांट भी दी जाती है.’’

हालांकि, चटर्जी के शिक्षा विभाग ने ग्रुप डी (सबसे जूनियर) पदों के लिए बड़ी संख्या में अनुबंध की नौकरियां सृजित की हैं, पर स्कूल शिक्षकों के हजारों पद खाली पड़े हैं. पिछले साल नवंबर में, ममता ने घोषणा की थी कि 16,500 प्राइमरी/ अपर प्राइमरी शिक्षकों के खाली पद उन 20,000 लोगों में से भरे जाएंगे जिन्होंने टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट पास कर लिए हैं. लेकिन चुनावों से पहले हाइकोर्ट में दाखिल एक याचिका ने रास्ता रोक दिया.

इसके अलावा, करीब 30,000 एम.फिल और डॉक्टरेट नौजवान वेस्ट बंगाल कॉलेज सर्विस कमिशन के जरिए कॉलेज प्राध्यापकों के रूप में पैनल में शामिल होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं. पश्चिमी मिदनापुर के दसपुर के एक ऐसे ही प्रतियोगी, जिनके इंतजार का समय चार साल लंबा हो चुका है, आरोप लगाते हैं कि इस प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार है. ''मेरे गांव में सत्ताधारी पार्टी के नेता पैनल में नाम शामिल करने के एवज में भारी घूस मांगते हैं. यह प्राइमरी या अपर प्राइमरी के शिक्षक पद के लिए 10-15 लाख रुपए है और कॉलेज शिक्षक के लिए 25-40 लाख रुपए.’’

नौकरी की तलाश दूसरे कई लोगों के लिए उतनी ही मुश्किल साबित हो रही है. सरकारी किरानी के पद के लिए करीब 13 लाख आवेदकों को 2018 के बाद बुलावा नहीं आया है. पुलिस कॉन्स्टेबल और सब-इंस्पेक्टर पदों के लिए अर्जी देने वाले 60,000 लोगों की किस्मत भी खराब ही रही है. सिमटते अवसरों ने अच्छी शिक्षा हासिल किए लोगों को भी गैरपारंपरिक नौकरियों के लिए अर्जी डालने पर मजबूर कर दिया है.

इसकी मिसाल 2017 में मालदा मेडिकल कॉलेज में पोस्टमॉर्टम विंग में शवों की देखरेख करने की नौकरी का है. वहां के प्रिंसिपल पी. कुंडू कहते हैं, ''दो पदों के लिए करीब 300 लोगों ने अर्जी दी थी. इनमें से हरेक ग्रेजुएट और हर चौथा आवेदक उच्च शिक्षाप्राप्त था.’’

बंगाल की 10 करोड़ की आबादी में युवाओं (18-35 की उम्र) की संख्या तकरीबन आधी है. उनकी उम्मीद, युवाश्री सहायता जिसके तहत सूबे के 1,81,000 बेरोजगार लोगों को 1,500 रुपए मासिक भत्ता दिया जाता है जैसे सरकारी भत्तों और खैरात की बजाए नौकरियों और विश्वसनीय आजीविका विकल्पों से अधिक है. ममता सरकार की घोषित 1,000 रुपए की एकमुश्त सहायता से कोविड लॉकडाउन में बंगाल लौटे 2,23,000 प्रवासी मजदूरों को बेशक फायदा मिला जबकि 22 करोड़ रुपए योजनाओं पर खर्च किया गया. मोटे सरकारी अनुमानों के मुताबिक, प्रवासी परिवारों की संख्या 12 लाख बताई जाती है.

लेकिन श्रम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि प्रवासियों की संक्चया 30-40 लाख हो सकती है. ममता सरकार बेरोजगार युवकों के लिए आजीविका योजनाएं भी चलाती है और इसने बेरोजगार महिलाओं के लिए छोटे उद्यम स्थापित करने के लिए 3,50,000 रुपए के कर्ज का प्रावधान किया है. ममता का जोर उत्तरी 24 परगना जिले के राजरहाट में आइटी हब विकसित करने का है. उन्होंने 3,000 करोड़ रुपए का निवेश लाने और 40,000 आइटी क्षेत्र की नौकरियों के सृजन का वादा किया  है.

इसके उलट, भाजपा बंगाल के युवाओ के सामने असली आर्थिक सशक्तिकरण और विकास का वादा कर रही है जो बजरिए ‘डबल इंजन की सरकार’ आएगा (यानी भाजपाशासित राज्य सरकार और केंद्र सरकार, जैसा कि असम, बिहार और त्रिपुरा में है). 7 मार्च की कोलकाता की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि असोल पोरिबोर्तोन (असली परिवर्तन) बंगाल में तभी आएगा जब युवाओं के लिए अवसर पैदा होंगे और औद्योगिक पुनरोत्थान होगा.

मोदी ने घोषणा की कि निवेशकों को लाकर नौकरियां और आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा. भाजपा नेता दीप्तांशु चौधरी कहते हैं, ''अमित शाह ने पहले ही बंगाल को भरोसा दिया है कि सत्ता में आने पर रोजगार भाजपा की सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी. सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण दिया जाएगा. करीब 4,00,000 मछुआरों को किसानों की तर्ज पर 6,000 रु. सालाना दिए जाएंगे.’’

ममता भाजपा के इस वादे की काट में दावा करती हैं कि त्रिपुरा सरकार ने भारी संख्या में नौकरियों में कटौती की है लेकिन जब बंगाल का आम युवा यह सवाल पूछता है कि ‘नौकरियां कहां हैं’ तो ममता को निरुत्तर रह जाना होता है.

Advertisement
Advertisement