
फरवरी की 25 तारीख को केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया, डिजिटल न्यूज मीडिया और ओटीटी (ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म के लिए दिशानिर्देश जारी किए. सरकार ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नीति संहिता) नियम 2021 ''साधारण उपयोगकर्ताओं को अपने अधिकारों का उल्लंघन होने की स्थिति में शिकायतों का निवारण करवाने और जवाबदेही की मांग करने के लिए ताकतवर'' बनाएंगे.
इन दिशानिर्देशों पर वैसे तो पिछले तीन साल से ज्यादा वक्त से काम चल रहा था, पर इनकी तत्काल जरूरत तब पड़ी जब विवादित केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों की ट्रैक्टर रैली के दौरान गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हिंसा हुई. कुछ अकाउंट को ब्लॉक करने के एक सरकारी फरमान को लेकर केंद्र सरकार और ट्विटर रस्साकशी में उलझ गए. अधिकारियों के मुताबिक, ये ट्विटर अकाउंट किसानों के आंदोलन के बारे में भ्रामक जानकारियां फैला रहे थे या खालिस्तानी भावनाएं भड़का रहे थे. नए दिशानिर्देशों को टेक्नोलॉजी से जुड़ी उन वैश्विक दिग्गज कंपनियों को काबू में लाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा जो कथित तौर पर अपने कामकाज में पारदर्शी नहीं हैं.

इन नियमों का एक गेम चेंजर प्रावधान वह है जिसमें 'सेफ हार्बर' या सुरक्षित आश्रय की हिफाजत को हल्का कर दिया गया है. यह हिफाजत व्हाट्सऐप, सिग्नल और टेलीग्राम सरीखी मेसेजिंग से जुड़ी मध्यस्थ कंपनियों और फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर सरीखे सोशल मीडिया मध्यस्थों, दोनों को हासिल थी. सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 79 उपयोगकर्ताओं की सामग्री की मेजबानी करने वाले मध्यस्थों को 'सेफ हार्बर' प्रदान करती है और अगर वे सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करते हैं तो उन्हें उपयोगकर्ताओं की कारगुजारियों की जवाबदेही से छूट देती है. नए नियम कहते हैं कि मध्यस्थों को कुछ जरूरी सोच-समझ से काम लेना होगा, ऐसा नहीं करने पर 'सेफ हार्बर' का प्रावधान खत्म हो जाएगा और उस प्लेटफॉर्म को भारतीय कानूनों के तहत कार्रवाई का सामना करना होगा.
डिजिटल मीडिया नीति संहिता में ऐसी सामग्रियों की 10 श्रेणियां बताई गई हैं जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को स्वीकार नहीं करनी चाहिए. इनमें ऐसी सामग्री शामिल है जो 'भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता तथा विदेशी सरकारों के साथ अनुकूल रिश्तों या जन व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है, अपराध के लिए उकसाती है, किसी अपराध की जांच को रोकती है, मानहानिकारक, अश्लील, पोर्नोग्राफिक, पीडोफिलिक, दूसरों की निजता का अतिक्रमण करने वाली, अपमानजनक, नस्ली या जातीय तौर पर आपत्तिजनक है, धन शोधन या जुए को बढ़ावा देती है और अन्यथा भारत के कानूनों के साथ असंगत या विपरीत है.''
प्लेटफॉर्म को न्यायिक अदालत या उपयुक्त सरकारी एजेंसी से ऐसी निषिद्ध सामग्री डाले जाने के बारे में सूचना मिलने के 36 घंटे के भीतर इसे हटाना होगा. जिन मामलों में 'जरा भी देरी स्वीकार्य' नहीं है, उनमें सूचना और प्रसारण मंत्रालय आइटी कानून की धारा 69ए की शक्तियों के तहत ऐसी सामग्री को ब्लॉक कर सकता है.
दिशानिर्देश यह भी कहते हैं कि मध्यस्थों को शिकायतों के समयबद्ध निवारण तंत्र का पालन करना होगा. केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं, ''सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं को, जो करोड़ों में है, उनकी शिकायतों के समयबद्ध समाधान के लिए उचित मंच भी दिया जाना चाहिए.'' उन्हें कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ चौबीसों घंटे और सातों दिन तालमेल करने के लिए एक नोडल संपर्क व्यक्ति नियुक्त करना होगा और हर माह अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी.
कम से कम पचास लाख पंजीकृत यूजर्स वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को 'महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ' के रूप में परिभाषित किया जाएगा और उन्हें अतिरिक्त नियमों का पालन करना होगा. मसलन, इन मध्यस्थों को सक्षम न्यायाधिकार की अदालत या सक्षम प्राधिकारी से मांगे जाने की स्थिति में अपने प्लेटफॉर्म पर विवादित जानकारी डालने वाले मूल व्यक्ति का पता लगाने में समर्थ होना चाहिए. सरकार फेसबुक की मिल्कियत वाले व्हाट्सऐप से भीड़ के हाथों पीट-पीटकर हत्या की घटनाओं के बाद विवादास्पद पोस्ट डालने वालों का पता लगाने की मांग करती रही है, लेकिन इसमें उसे कामयाबी नहीं मिली है.
सरकार का दावा है कि नए दिशानिर्देश फेक न्यूज से लड़ने की दिशा में उठाया गए कदम हैं. वहीं विशेषज्ञों ने निजता के उल्लंघन को लेकर चिंताएं जाहिर की हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में बुनियादी अधिकार घोषित किया था. नई दिल्ली स्थित इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आइएफएफ) के मुताबिक, सरकार के मूल पोस्ट डालने वालों का पता लगाने पर जोर देने से एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन यानी एक से दूसरे सिरे तक संदेशों को गोपनीय तरीके से भेजने की व्यवस्था को तोड़ना होगा, जबकि यह इंस्टैंट मेसेंजर प्लेटफॉर्म से उपयोगकर्ताओं को मिली निजता की सुरक्षा का आधार है. नियमों में साफ किया गया है कि मूल पोस्ट डालने वाले का पता लगाने का आदेश सिर्फ गंभीर अपराधों के मामलों में दिया जाएगा पर विशेषज्ञों को लगता है कि 'जन व्यवस्था' जैसी श्रेणियों का दायरा बहुत बड़ा है और इसका दुरुपयोग हो सकता है.
आइएफएफ ने ट्वीट किया, ''नियमों में बहुत ज्यादा अस्पष्टता के कारण पूरी संभावना है कि सोशल मीडिया कंपनियां जिम्मेदारी से बचने के लिए बढ़-चढ़कर पालन करेंगी. यहां नागरिकों की बोलने की आजादी और निजता का भी नुक्सान होगा, इसके नतीजतन असंवैधानिक रुकावट आएगी.''
मूल पोस्ट डालने वालों का पता लगाने की मांग सिर्फ भारतीय एजेंसियां नहीं कर रही हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की एजेंसियों ने भी फेसबुक को लिखा है और यह इशारा किया है कि अपने मेसेजिंग प्लेटफॉर्म पर एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन मुहैया करने की सोशल मीडिया कंपनियों की योजना से सामग्री तक कानूनन पहुंच के तरीकों को बाहर नहीं रखा जाना चाहिए. ब्राजील ने एक कानून बनाने की पेशकश की है ताकि कंपनियों को लोगों के भेजे वाले निजी संदेशों पर स्थायी पहचान का ठप्पा लगाने के लिए मजबूर किया जा सके. सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और रूस ने सोशल मीडिया पर गैरकानूनी सामग्री को ब्लॉक करने के कानून तय किए हैं.
प्रसाद ने कहा कि लोगों के संदेशों की छानबीन की गरज से यह प्रावधान नहीं लाया जा रहा है. सोशल मीडिया मध्यस्थों को टेक्नोलॉजी पर आधारित ऐसा तंत्र भी बनाना और काम में लाना होगा जिससे बलात्कार या बाल यौन दुर्व्यवहार का चित्रण करने या उभारने वाली सामग्री की पहचान हो सके. मगर आइटी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे स्वचालित तंत्र गुमराह कर सकते हैं और नतीजतन निर्दोष लोग भी परेशान हो सकते हैं.
जांच की मकसद से मध्यस्थों को सूचना के 180 दिनों तक संभालकर रखने की जरूरत के प्रावधान की भी आलोचना हो रही है. यूजर के अकाउंट को डिलीट करने के बाद भी डेटा संभालकर रखना है. साइबर कानून विशेषज्ञों का कहना है कि डेटा सुरक्षा कानून नहीं होने से यह जरूरत यूजर्स की निजता का उल्लंघन कर सकती है. उनका कहना है कि जब संसद की संयुक्त समिति निजी डेटा सुरक्षा से जुड़े विधेयक की पड़ताल कर ही रही है, ऐसे में यह संहिता जारी करने में जल्दबाजी क्यों की गई.
ये नियम ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तीन स्तरीय नियामकीय तंत्र बनाने की मांग भी करते हैं और कहते हैं कि वे उम्र के मुताबिक उपयुक्तता के आधार पर अपनी सामग्री को पांच श्रेणियों में खुद वर्गीकृत करें. इस तंत्र में प्रकाशक की ओर से स्व-नियमन, सरकार की सूची में दर्ज एक सेवानिवृत्त जज की अगुआई में स्व-नियामकीय निकाय और एक अंतर-मंत्रालय समिति शामिल होंगे. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति ओटीटी प्लेटफॉर्म के खिलाफ शिकायतें सुन सकती है और उसे जन व्यवस्था से जुड़े संज्ञेय अपराध के उकसावे को रोकने के लिए सामग्री को डिलीट करने या उसका रूप बदलने का अधिकार होगा. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार उत्पल बोरपुजारी कहते हैं, ''तीसरे स्तर का नियमन एक सांविधिक निकाय के हाथ में होना चाहिए जिसमें जरूरी साख रखने वाले स्वतंत्र सदस्य हों. कार्यपालिका को अधिकार देने का अर्थ है कि किसी वैध परिप्रेक्ष्य से कहीं ज्यादा सियासी आधारों पर कुछ भी और सब कुछ सेंसर किया जा सकता है.''
संहिता यह भी आदेश देती है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म भारत के बहुजातीय और बहुधार्मिक फलक का ध्यान रखें और ''उचित सावधानी तथा विवेक का प्रयोग'' करें. उद्योग के अंदरूनी लोगों का मानना है कि इससे रचनात्मक स्वतंत्रता बाधित होगी, खासकर अमेजन प्राइम की वेब सीरीज तांडव पर हुए विवाद की रोशनी में. सीरीज के निर्माताओं को एक दृश्य को लेकर एफआइआर झेलना पड़ा, जिसे हिंदुओं के प्रति मानहानिकारक कहा जा रहा है. इस मामले को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उठाया और सीरीज के निर्माता विवादित दृश्य हटाने पर राजी हो गए.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नए नियम डिजिटल प्लेटफॉर्मों को जवाबदेह बनाने की दिशा में जरूरी कदम हैं. मसलन, डिजिटल न्यूज मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपनी मिल्कियत के ब्योरे देने होंगे ताकि गुमनामी के मुखौटे के पीछे से फेक न्यूज नहीं फैलाई जा सके. डिजिटल न्यूज वेबसाइटों को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) कानून और भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारीय आचरण के नियमों के तहत प्रोग्राम संहिता का पालन करना होगा. लेकिन आइटी उद्योग की संस्था नैसकॉम ने कहा है कि नियमों को पारदर्शी तरीकेसे लागू करने की जरूरत है ताकि प्लेटफॉर्मों के लिए इन्हें बोझिल और तकलीफदेह होने से बचाया जा सके.