सोनाली आचार्जी
जब डॉ. दिनेश कपाडिय़ा ने नई दिल्ली में कोविड टीकाकरण के लिए पंजीकरण करने का फैसला किया तो उनकी पत्नी और दो बच्चों ने इसका सख्त विरोध किया. इसकी वजह थी उनकी 72 साल की उम्र. परिजनों को लगता था कि इस उम्र में डॉ. कपाडिय़ा को टीके के संभावित दुष्प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) का जोखिम नहीं लेना चाहिए. घरवालों को समझाने में असमर्थ डॉ. कपाडिय़ा ने बिना बताए टीका लगवा लिया. परिवार को इसकी जानकारी उन्होंने दो हफ्ते बाद दी.
डॉ. कपाडिय़ा कहते हैं, ''मैं बिल्कुल ठीक था. टीकाकरण केंद्र में भीड़ के कारण इंतजार में जो परेशानी हुई उसके अलावा कोई परेशानी मैंने अनुभव नहीं की. टीका लगवाने के बाद कोई लक्षण नहीं उभरे, न ही जहां इंजेक्शन लगने वाली जगह पर कोई सूजन हुई.’’ उनका मानना है कि उम्र ऐसा कोई पहलू नहीं है जिससे आप बहुत घबराएं. वे कहते हैं, ‘‘उम्र एक गिनती भर है. टीका लगवाना है या नहीं, इसका फैसला उम्र से नहीं बल्कि एलर्जी, स्वास्थ्य की स्थिति और मानसिक स्थिति और एलर्जी के इतिहास के आधार पर करना चाहिए.’’
मार्च की शुरुआत से भारत 50 साल से ऊपर के लोगों का कोविड के लिए टीकाकरण शुरू करने की तैयारी कर रहा है—1.1 करोड़ स्वास्थ्य और फ्रंटलाइन वर्कर्स पहले चरण में टीका लगवा भी चुके हैं—फिर भी लोगों में डर और भ्रम बना हुआ है. अंदेशे या भ्रम केवल टीके के दुष्प्रभावों को लेकर नहीं, बल्कि इसे लगवाने की प्रक्रिया को लेकर भी पैदा हुए हैं. मिसाल के तौर पर, बेंगलूरू के कोरमंगला में रहने वाली 75 वर्षीया सेवानिवृत्त बैंकर आशा सिंह का कहना है कि उन्हें सोशल मीडिया में तैरती कम से कम 12 पोस्ट मिली हैं जिनमें बताया गया है कि टीके के लिए पंजीकरण कैसे किया जाता है और ये सभी भ्रामक हैं.
सिंह के पास तो एक कॉल भी आई जिसमें उनसे टीका लगावाने के लिए आवश्यक पंजीकरण के लिए उनका विवरण पूछा गया था लेकिन वह एक स्पैम था. उनकी शिकायत है कि सरकार का आधिकारिक वैक्सीन पंजीकरण पोर्टल कोविन, उनके आइफोन पर काम नहीं करता है. वे कहती हैं, ‘‘पहले मुझे यह समझना था कि क्या यह वैक्सीन लेने के लिए सुरक्षित है, फिर यह पता लगाना था कि दोनों में से कौन-सा टीका मुझे लगे, क्या मैं यह तय कर सकती हूं? और अब, मैं रजिस्ट्रेशन के लिए जूझ रही हूं.’’ सिंह कहती हैं कि वे टीका लगवाने के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन अगर यह अत्यधिक भ्रामक हो जाता है, तो फिर वे सामाजिक दूरी के जरिए ही कोविड को दूर रखना पसंद करेंगी.
मधुमेह पीडि़त दिल्ली की 55 वर्षीय पूनम खन्ना टीके के संभावित दुष्प्रभावों से अनजान हैं और उन्हें यह भी नहीं पता कि अगर उनके जैसे लोग जिनकी सेहत पहले से ही बहुत अच्छी न हो तो टीका लगवाने का उन पर क्या असर हो सकता है. भ्रम की ऐसी स्थितियों को दूर करके ही पर्याप्त संख्या में लोगों को कोविड टीकाकरण के अगले चरण में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन कहते हैं, ‘‘मेरे पास कई रोगी हैं जो लगातार इस बारे में पूछताछ कर रहे हैं कि उनके लिए टीका कब उपलब्ध होगा. हालांकि कुछ को संदेह है और उनका यह संदेह तथ्य बताकर और इससे जुड़े आंकड़े मुहैया कर मिटाया जा सकता है.’’
मार्च वाले चरण के लिए तैयारियां जोरों पर हैं पर कई विशेषज्ञों का मानना है कि टीका पंजीकरण, कोल्ड चेन स्टोरेज आदि में खामियों को दूर करने का सबसे प्रभावी तरीका निजी क्षेत्र को इस काम में लगाना होगा. दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर के चिकित्सा निदेशक डॉ. संदीप बुद्धिराजा कहते हैं, ‘‘महामारी में हमने देखा कि लोगों ने कैसे इलाज के लिए निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में भरोसा जताया. मैं इस कल्पना से ही सिहर उठता हूं कि अगर प्राइवेट सेक्टर से मदद न मिली होती तो महामारी में क्या स्थिति हुई होती.’’
टीकाकरण के पहले दो चरणों में सरकार ने 1 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों और 2 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स को लक्षित किया था. 1 करोड़ लोगों का टीकाकरण करने में 34 दिन लगे. निजी क्षेत्र का मानना है कि वह इस काम को बहुत तेजी से कर सकता है. विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी के अनुसार, 400 रुपए की प्रति खुराक की लागत से निजी क्षेत्र दो महीने में 50 करोड़ लोगों को टीका लगाने की क्षमता रखता है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेड़कर कहते हैं, ''निजी क्षेत्र लगभग 70 प्रतिशत आबादी को कवर करता है. यह पोलियो समेत ज्यादातर टीकाकरण अभियानों में शामिल रहा है तो कोविड के खिलाफ आखिर क्यों नहीं?’’
इस बात की संभावना कम ही है कि सरकार टीकों की खरीद और वितरण पर अपना नियंत्रण छोड़ेगी. 'लागत’, शायद इसकी प्रमुख वजहों में से एक है. नाम न छापने की शर्त पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं, ''क्या आप भूल गईं कि महामारी के दौरान क्या हुआ था? कोविड मरीजों को निजी अस्पतालों में 11-15 लाख रुपये के बिल मिल रहे थे और कुछ ने कोविड परीक्षणों के निर्धारित मूल्य से भी अधिक वसूला था और मरीजों के अंतिम बिल में परिवहन और पीपीई लागत भी जोड़ दी थी.’’
सरकार के लिए कुछ दूसरी चिंताओं में नकली टीके और दोषपूर्ण तरीके से टीकाकरण का जोखिम भी शामिल है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कहते हैं, ''रातोंरात रेमडेसिविर और अन्य कोविड दवाओं की कालाबाजारी बढ़ गई. हम नहीं चाहते कि वैक्सीन के साथ भी ऐसा हो.’’ स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण कहते हैं, ‘‘केंद्र निजी क्षेत्र की क्षमता वृद्धि भूमिका को पहचानता है और उसका उपयोग करता रहा है. अगले कुछ दिनों में टीकाकरण अभियान की गति और कवरेज को बढ़ाने के लिए निजी अस्पतालों को बड़ी संख्या में उपयोग किया जाएगा.’’
अब तक भारत में टीकों के कारण मौत की कोई सूचना नहीं मिली है और टीकाकरण के ‘प्रतिकूल प्रभाव’ मसलन, जीवन के लिए खतरा बन सकने वाले एलर्जिक रिएक्शन की दर 0.5 प्रतिशत से कम रही है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के कोच्चि विंग की ओर से 5,396 हेल्थकेयर वर्कर्स के एक ऑनलाइन ऑब्जर्वेशनल स्टडी से पता चलता है कि उम्र के साथ टीके के बाद के दुष्प्रभावों की संभावना कम हो गई. . टीका लेने वालों में से लगभग 80 प्रतिशत ने कहा कि वे अगले दिन तक बिल्कुल ठीक थे; 66 प्रतिशत ने कम से कम एक साइड-इफेक्ट की सूचना दी जिनमें इंजेक्शन लेने वाली जगह पर सूजन, थकान के बाद बुखार, सिरदर्द सबसे आम शिकायत थी. डब्ल्यूएचओ 65 साल से ऊपर के लोगों को कोविशील्ड लगाने की सिफारिश करता है.
नीति आयोग के सदस्य और कोविड-19 के लिए टीकाकरण पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष डॉ. वी.के. पॉल कहते हैं, ‘‘नए टीके विकसित किए जा रहे हैं. मौजूदा दो टीकों ने कोविड के प्रति प्रतिरक्षा को बेहतर बनाने में मदद की है.’’ भले ही कोविशील्ड वैक्सीन, कोविड के दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट में कोविड के हल्के या मध्यम लक्षणों को रोकने में प्रभावी नहीं रहा है, लेकिन इसने गंभीर बीमारी और मृत्यु को रोकने में प्रभावी भूमिका निभाई है. एम्स-दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया कहते हैं, ''किसी भी दवा या टीके से एलर्जी हो सकती है.
लेकिन अब तक कोविड के टीके के बहुत ही कम गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए हैं. यहां तक कि पूर्व में किसी रोग से ग्रस्त लोग भी वैक्सीन ले सकते हैं. वास्तव में जो सबसे अधिक जोखिम में हैं उन्हें आगे आना चाहिए और इसे लेना चाहिए. लेकिन टीकाकरण के लिए पंजीकरण करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करना सबसे अच्छा है.’’ ठ्ठ
कोविड के टीके के बहुत ही कम गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए हैं. यहां तक कि पूर्व में किसी रोग से ग्रस्त लोग भी डॉक्टर की सलाह से वैक्सीन ले सकते हैं’’
डॉ रणदीप गुलेरिया, निदेशक, एम्स, दिल्ली
स्रोत: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन और ourworldindata.org