लगभग चार दशकों से केरलवासी बारी-बारी से वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) को केरल की सत्ता पर बिठाते आए हैं. लेकिन 2021 का विधानसभा चुनाव हैरान कर सकता है. माना जा रहा था कि सोना तस्करी कांड के उजागर होने और फिर प्रवर्तन निदेशालय की जांच के बाद सरकार की छवि बहुत खराब हुई है और उसके लिए जीत मुश्किल होगी. लेकिन बीते दिसंबर में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में सत्तारूढ़ एलडीएफ का आश्चर्यजनक प्रदर्शन इस साल मई में होने वाले विधानसभा चुनावों में अलग पटकथा लिख सकता है.
एलडीएफ की चिंताएं दूर हो गई हैं और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन उत्साह से भरपूर हैं. उन्हें विश्वास है कि उनकी पार्टी सीपीएम के नेतृत्व वाला एलडीएफ, स्थानीय निकाय चुनावों में मिले अपने 40.2 फीसद वोटों को मजबूती से अपने साथ बनाए रखेगा. निकाय चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को 37.9 फीसद जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 19 फीसद वोट मिले हैं.
साल 2016 में सत्ता संभालने के पहले दिन से ही 75 वर्षीय पिनाराई ने एलडीएफ के जनाधार को बढ़ाने, सरकारी सेवाओं की डिलीवरी में सुधार के लिए नई तकनीक को अपनाने और विशेषज्ञों को सरकार के सलाहकार (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ सहित) के रूप में तैनात करने का काम शुरू कर दिया था. राज्य के विकास को पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ बनाने के लिए 'हरित केरलम' मिशन, गरीबों के लिए घर मुहैया कराने वाला लाइफ मिशन, सरकारी अस्पतालों में बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए 'आरद्रम' और सरकारी स्कूलों की कक्षाओं को उच्च तकनीकी सुविधाओं से लैस करने के लिए शिक्षा मिशन—ये चार ऐसे विशेष मिशन हैं जो उनकी सबसे बड़ी सफलताएं हैं.
राज्य पर आई आपदाओं के दौरान अपने कामकाज से जनता का जीता गया भरोसा ही वह चीज है जो पिनाराई सरकार को एक दूसरे कार्यकाल का मौका दे सकती है. संकटों की शुरुआत निपाह वायरस के प्रकोप के साथ हुई थी. फिर 2018 और 2019 में लगातार बाढ़ और उसके बाद कोविड-19.
आपदाओं के दौरान मुख्यमंत्री के खुद आगे बढ़कर राहत कार्य का मोर्चा संभालने के दृष्टिकोण ने केरलवासियों के मन में उनके लिए गहरी जगह बनाई. एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी बताते हैं, ''बाढ़ के बाद की अवधि में मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में दान के रूप में 4,912 करोड़ रुपये मिले; कोविड-19 के दौरान 523 करोड़ रु. मिले. लेकिन इनसे भी अधिक प्रभावी रही है बेघरों के लिए घरों का निर्माण करने के लिए भूमिदान की पिनाराई की अपील, जो बताती है कि जनता के बीच उनकी गहरी पैठ है. हमें जनता से दान के रूप में लगभग 100 एकड़ जमीन मिली.''
दूसरी पारी की कवायद
निकाय चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री ने चुनाव घोषणापत्र तैयार करने के लिए जिलों के अहम लोगों के साथ गहन विमर्श किया, सरकार के वार्षिक प्रगति कार्ड को प्रसारित किया जा रहा है और पार्टी कॉडर में फिर से उत्साह है. इस बीच सीपीएम नेतृत्व समुदायिक वोटबैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है और उसके एजेंडे में सबसे ऊपर सवर्ण हिंदू नायर वोटरों (जो सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर पार्टी से दूर हो गए थे) को वापस लाने के अलावा अल्पसंख्यक समुदाय के ज्यादा वोटों को खींचना है.
एक बड़ा लाभ केरल कांग्रेस-मणि या केसी (एम) गुट के एलडीएफ में शामिल होने से मिला है. इससे मध्य केरल में पार्टी की संभावनाओं में काफी सुधार होगा; यूडीएफ के खाते से 2.5 फीसद वोटों के खिसकने से खेल बदल सकता है. वोटों में सेंधमारी से ज्यादा बड़ी बात यह है कि पिनाराई को केसी (एम) के नेता जोस के. मणि के रूप में ऐसा शख्स मिला है जो इस क्षेत्र में सीरो-मालाबार कैथोलिक समुदाय से जुड़ने में मददगार होगा. वे उत्तर में मालाबार में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आइयूएमएल) के प्रभुत्व को रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय के नेताओं से जुड़ने की कोशिश भी कर रहे हैं. पिनाराई के अन्य फोकस समूह युवा और महिला मतदाता हैं.
कांग्रेस की रणनीति
निकाय चुनावों में हार के बाद कांग्रेस निराश नजर आ रही है. पार्टी के नेताओं को सोने की तस्करी प्रकरण और जीवन मिशन में भ्रष्टाचार के आरोपों पर बहुत भरोसा था, लेकिन उसके मुखर अभियान का कोई खास असर नहीं रहा. और जैसा कि एक मीडिया समीक्षक कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे वोट डालने के लिए लाइन में खड़े मतदाताओं के दिमाग पर बस महामारी के दौरान मिली फैमिली किट, सरकार के दिए गए 2,50,000 घर और 55 लाख गरीबों को हर महीने मिलने वाली 1,600 रुपए की पेंशन जैसी सहूलियतें हावी रहीं.
कांग्रेस की सारी उम्मीदें अब सबरीमाला मुद्दे को पुनर्जीवित करने पर टिकी हैं और रजस्वला महिलाओं को इस तीर्थस्थल में प्रवेश से रोकने के लिए वह एक नए कानून का मसौदा तैयार कर रही है जिसके उल्लंघन पर दो साल की जेल की सजा का प्रावधान होगा. पार्टी का कहना है कि अगर वह चुनाव जीतती है तो वह नए नियम लागू करेगी. यह कदम, खासकर उस वक्त जब मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के विचाराधीन है, एक निरर्थक कवायद मात्र लगता है.
एलडीएफ के संयोजक और सीपीएम के राज्य सचिव ए. विजयराघवन आगाह करते हैं कि कांग्रेस सांप्रदायिक वायरस फैलाकर एक ऐसा खतरनाक खेल खेल रही है, जो आने वाले दिनों में कोविड से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है. वे कहते हैं, ''कांग्रेस केरल में एक ऐसी बाजी खेलने को उतर रही है जो वह पहले ही हार चुकी है. राजनीतिक लाभ के लिए वे एक लोकतांत्रिक प्रणाली में जाति और धर्म जैसे वायरस फैला रहे हैं.''
क्या भाजपा बनेगी 'सुपर विजेता'?
कांग्रेस की तरह, भाजपा भी राज्य में अपनी मौजूदा सियासी स्थिति से चिंतित है. सबरीमाला और सोना तस्करी कांड जैसे जिन मुद्दों पर भाजपा ने लंबे समय तक काम किया, उनमें बहुत दम बचा नहीं है. लेकिन 2016 के बाद से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने अपने वोट शेयर में सुधार किया है. 2016 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को 15 फीसद वोट मिला और इसने 2020 के स्थानीय निकाय चुनावों में इसे 19 फीसद तक पहुंचा दिया. दिग्गज पत्रकार और केरल प्रेस अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एन.पी. राजेंद्रन के मुताबिक, अगर भाजपा अपने वोट शेयर में 3 फीसद का भी इजाफा कर लेती है, तो इससे राज्य से कांग्रेस के पांव उखड़ सकते हैं.
फिलहाल यही भाजपा का उद्देश्य प्रतीत होता है. पार्टी के सबसे बड़े चुनाव प्रबंधक और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चाहते हैं कि पार्टी 25 निर्वाचन क्षेत्रों (140 सीटों वाले सदन) में जीत पर ध्यान केंद्रित करे. अगर वह नेमोम सहित सात सीटें जीतती है तो भी भाजपा नेतृत्व गदगद होगा. भाजपा ने केरल में पहली बार 2016 में नेमोम सीट जीतकर अपना खाता खोला था. आने वाले चुनाव में सात निर्वाचन क्षेत्रों में जीत और 23 फीसद वोट शेयर, भाजपा को केरल में 'सुपर विजेता' बना देगा. फिलहाल भाजपा का एजेंडा राज्य में कांग्रेस को हाशिए पर धकेलना है. कांग्रेस के कमजोर होने से भाजपा को आगे चलकर अपने पांव पसारने और मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरने का मौका मिलेगा. भाजपा की यह योजना अन्य राज्यों में तो कारगर साबित हुई है, लेकिन केरल में क्या वे ऐसा कर पाएंगे?