
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में देश में हीरा खदानों के सबसे बड़े इलाके में 1 जनवरी से कामकाज ठप हो गया क्योंकि 31 दिसंबर 2020 को उसकी वन्यजीव क्षेत्र में खनन संबंधी मंजूरी खत्म हो गई. हीरों की खुदाई वाले इस जिले में खनन का कामकाज रुकने से सरकारी अधिकारियों और वन संरक्षणवादियों के बीच ठन गई है.
पन्ना में बेहद अहम बाघ संरक्षण अभयारण्य भी है. पन्ना बाघ संरक्षण के फील्ड डायरेक्टर यू.के. शर्मा के मुताबिक, अभयारण्य प्रबंधन ने केंद्र सरकार के राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) को वन्यजीव संबंधी मंजूरी खत्म होने के फौरन बाद खनन से जुड़ी सारी गतिविधियां रोक देने को लिखा.
हालांकि 3 जनवरी को राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खदान के बंद होने से सार्वजनिक चिंताओं के मद्देनजर ऐलान किया कि पन्ना में मझगवां हीरा खदान बंद नहीं होगी क्योंकि उससे आसपास लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है. संरक्षणवादी तथा राज्य वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य श्यामेंद्र सिंह कहते हैं, ''मझगवां खदान यहां काम करने वालों के स्थानीय स्तर पर खर्च करने और एनएमडीसी के कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) कार्यों के जरिये स्थानीय अर्थव्यवस्था में पांच करोड़ रुपए का योगदान देती है. स्थानीय लोग खदान के समर्थन में हैं और उसे जारी रखने के पक्षधर हैं.''

एनएमडीसी की खदान पन्ना के मझगवां में है. यह देश की इकलौती मैकेनाइज्ड हीरे की खदान है. एनएमडीसी जिले के बाकी हिस्से में संभावित निजी खदान वालों को 8गुणा8 फुट के 700 प्लॉट भी पट्टे पर देती है. इन छोटी खदानों में करीब 6,000 से 7,000 लोग काम करते हैं. अब अपनी ही खदान के बंद होने के कारण एनएमडीसी इन छोटी खदान वालों को पट्टे भी नहीं दे रही है.
भारतीय खान ब्यूरो के मुताबिक, देश में हीरे के भंडार सिर्फ मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही हैं. यह भंडार मध्य प्रदेश में 90 फीसद तक है. एनएमडीसी की वेबसाइट के मुताबिक, मझगवां खदान की क्षमता सालाना 84,000 कैरेट की है. उसमें दावा किया गया है कि इस इलाके से अब तक कुल 10,05,064 कैरेट हीरा निकाला जा चुका है और खदान में प्रति 100 टन मिट्टी में 10 कैरेट हीरा निकलता है.
श्यामेंद्र सिंह कहते हैं, ''हीरे की खदानों ने पन्ना के लोगों को दुनिया भर में पहचान दिलाई है, जिसे वे बनाए रखना चाहेंगे.''
हालांकि नाम न जाहिर करने की शर्त पर वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कुछ और ही कहानी बताते हैं. ''खदान से उत्पादन बेहद थोड़ा है और एनएमडीसी सीएसआर के मद में हिनौता से पन्ना शहर तक एक बस सेवा शुरू करने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं करता. इलाके के नाजुक पर्यावरण संतुलन और बाघों पर खतरे के इतिहास के मद्देनजर कुछ इलाकों को वन्यजीवों के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए.'' संरक्षणवादियों की दलील है कि खनन गतिविधियों की वजह से जंगल के इलाकों में नुक्सान हो रहा है और वे वन्यजीवों के मुक्त विचरण में आड़े आती हैं. पन्ना बाघ संरक्षण क्षेत्र को दिसंबर 2008 में बाघ विहीन घोषित कर दिया गया था. मार्च 2009 में बाघों को यहां फिर आबाद करने का कार्यक्रम शुरू किया गया और फिलहाल पन्ना में बाघों की गिनती करीब 50 बताई जाती है.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर एनएमडीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि राष्ट्रीय अभयारण्य के नियम-कानूनों की वजह से खदान की गतिविधियों पर असर पड़ा है. वे कहते हैं, ''यहां 1,000 करोड़ रु. कीमत के 8.47 लाख कैरेट हीरे का भंडार दबा हुआ है. अगर हम खदान अनिश्चित काल के लिए बंद कर देंगे तो हीरे का क्या होगा? हीरे को सुरक्षित करना होगा? हम राष्ट्रीय उद्यान की वजह से वित्तीय नुक्सान झेल रहे हैं. हम दिन में दो पालियों में काम करते हैं, लेकिन तीसरी पाली में काम नहीं कर सकते क्योंकि रात में बत्तियां नहीं जला सकते.''
जब तक ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में हीरे के भंडार का पता नहीं चला था, तब तक लगभग 3,000 साल से भारत ही दुनिया में इकलौता हीरा उत्पादक देश बना रहा. एशिया में हीरे का एकमात्र स्रोत मझगवां खदान गंगऊ वन अभयारण्य क्षेत्र के 275 हेक्टेयर में फैली है. गंगऊ संरक्षित क्षेत्र पन्ना बाघ अभयारण्य का हिस्सा है. आखिरी बार इसका पट्टा 2005 में 15 साल के लिए इस शर्त के साथ बढ़ाया गया था कि खनन गतिविधियां 2020 तक समेट ली जाएंगी. पन्ना से ही ताल्लुक रखने वाले मध्य प्रदेश के खनन मंत्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह पट्टे की अवधि बढ़ाए जाने के पक्ष में हैं.
पहले खदान को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का समर्थन करने वाला राज्य वन्यजीव बोर्ड भी 16 जनवरी को खदान को 2035 तक वन्यजीव मंजूरी देने के प्रस्ताव पर मुहर लगा चुका है. एनएमडीसी के अधिकारियों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट की अधिकारसंपन्न समिति और 2005 में राज्य वन्यजीव बोर्ड ने ऐसी किसी खास तारीख का जिक्र नहीं किया था कि कब खनन कार्य रोक दिया जाना चाहिए. दिलचस्प यह भी है कि राज्य वन्यजीव बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री चौहान ही हैं.
अब प्रस्ताव राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की मेज पर है और मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है. अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, एनएमडीसी खदान को अतिरिक्त 10 हेक्टेयर में फैलाना चाहता है, जिसमें से 1.8 हेक्टेयर गंगऊ अभयारण्य में पड़ता है. हालांकि मझगवां खदान के सूत्र इससे इनकार करते हैं कि अतिरिक्त इलाके की मांग की गई है. उनका कहना है कि जिस अतिरिक्त इलाके में खनन की मंजूरी मांगी जा रही है, वह उनके पट्टे वाले इलाके का ही हिस्सा है.
बहरहाल, लगता है कि पन्ना के दो बेशकीमती नग हीरों और बाघों को साथ-साथ रहना सीखना होगा.