अमिताभ श्रीवास्तव
फरवरी की 9 तारीख को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करके एक स्पष्ट संदेश दे दिया है. यह विस्तार पिछले साल 16 नवंबर को सरकार के गठन के पूरे 84 दिनों के बाद हुआ है. विपक्ष के लोग सत्तारूढ़ गठबंधन में अस्थिरता की कहानियां फैला रहे थे और कह रहे थे कि इसी वजह से विस्तार में देरी हो रही है. अब जद (यू) के एक नेता के मुताबिक, मंत्रिमंडल विस्तार ने इस बात की तस्दीक कर दी है कि थोड़े-बहुत 'मतभेदों' के बावजूद गठबंधन में सब कुछ अच्छा-भला है.
मुख्यमंत्री ने 17 मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया. इनमें 9 भाजपा और 8 जद (यू) के कोटे (एक निर्दलीय सहित) से मंत्री बनाए गए हैं. इसके साथ ही मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या मुख्यमंत्री को मिलाकर 31 हो गई है. बिहार विधानसभा के 243 सदस्यों के 15 फीसद के हिसाब से 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं.
इसका अर्थ है कि नीतीश मंत्रिमंडल में अभी पांच और मंत्रियों को शामिल किया जा सकता है. सियासी पर्यवेक्षक मानते हैं कि ये मंत्री पद पाला बदलने की ताक में बैठे कुछ और विधायकों को मौका देने की गरज से खाली छोड़ दिए गए हैं. जद (यू) के कोटे से बने आठ मंत्रियों में बसपा से पाला बदलकर जद (यू) में आए विधायक जमा खान और निर्दलीय विधायक सुमीत सिंह भी हैं. अभी बिहार विधानसभा में भाजपा के 74 विधायक हैं. वहीं, जमा खान को मिलाकर जद (यू) के विधायकों की कुल तादाद 44 हो गई है.
इस विस्तार के बाद नीतीश सरकार में भाजपा के 16 और जद (यू) के 13 (निर्दलीय सुमीत सिंह को मिलाकर) मंत्री हैं. अन्य दो वीआइपी पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी और हम पार्टी के संतोष मांझी हैं.
मंत्रिमंडल में पार्टी के मंत्रियों की संख्या चाहे जितनी हो, नए मंत्रिमंडल पर अब भी जद (यू) की ही छाप है, क्योंकि गृह, ऊर्जा, जल संसाधन और शिक्षा सरीखे भारी-भरकम मंत्रालय नीतीश कुमार की पार्टी के पास हैं, जबकि भाजपा के पास स्वास्थ्य और सड़क निर्माण जैसे अहम विभाग हैं.
नए मंत्रियों में जो एक नाम अलग से दिखाई देता है, वह हैं सैयद शाहनवाज हुसैन. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके शाहनवाज भाजपा के अकेले मुस्लिम सदस्य भी हैं. उन्हें उद्योग जैसा हल्का-फुल्का महकमा दिया गया है पर माना जा रहा है कि शाहनवाज को मंत्री बनाकर भाजपा ने अपना उदार चेहरा सामने रखा है.
बिहार में मुसलमान और यादव राजद का मूल समर्थन आधार हैं. वहीं भाजपा तेजस्वी यादव की राजद की मुख्य विरोधी पार्टी के तौर पर उभरने का मनसूबा बना रही है. इसीलिए वह तमाम सामाजिक स्तरों पर पहुंचना चाहती है और पारंपरिक तौर पर राजद का समर्थक आधार माने जाने वाले तबकों के वोट हड़पने का लक्ष्य लेकर चल रही है. अगर भाजपा राज्य के मतदाताओं में 17 फीसद से ज्यादा की हिस्सेदारी रखने वाले मुस्लिम वोटों को रिझाने की कोशिश करती है, तो शाहनवाज इसमें भूमिका अदा कर सकते हैं.
सूत्र बताते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में देरी इसलिए हुई क्योंकि जद (यू) को भाजपा के ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की मांग से जूझना पड़ रहा था. भाजपा ने विधानसभा में अपनी ताकत—जद (यू) के 44 के मुकाबले 74 विधायक—का फायदा उठाकर नीतीश से अच्छे कामकाजी रिश्ते रखने वाले वजनदार नेता सुशील मोदी की जगह उपमुख्यमंत्री के दो पद पहले ही ले लिए हैं. दोनों दलों के बीच रिश्ते कुछ वक्त के लिए असहज रहे, पर जद (यू) के नेता मानते हैं कि नीतीश ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.
जद (यू) के सूत्र दावा करते हैं कि पार्टी इस विस्तार में लगभग बराबर तादाद में मंत्री पद पाने में सफल रही क्योंकि बिहार में नीतीश के समर्थन के बगैर कोई सरकार मुमकिन नहीं है. विधानसभा में 75 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी राजद को विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर किया जा सका तो इसीलिए कि नीतीश और उनके 44 विधायक उसके खिलाफ हैं. इसी तरह, अगर भाजपा सरकार में है तो इसलिए कि जद (यू) उसके साथ है. चूंकि भाजपा और राजद आपस में हाथ नहीं मिला सकते क्योंकि इससे उनके मूल वोट बैंक तिरोहित हो जाएंगे, लिहाजा जद (यू) का दबदबा आगे भी बना रहेगा.