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पश्चिम बंगालः जाति जोड़ने की जुगत

भाजपा धर्म के मामले में लोगों को एक व्यापक मंच पर लाने की कोशिश करेगी जैसा कि उत्तर प्रदेश में हुआ. दलितों को उनकी धार्मिक पहचान का एहसास कराया गया—कि वे पहले हिंदू हैं

चुनावी पैतरा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बंगाल दौरे के दौरान 5 नवंबर को बांकुड़ा में भाजपा के आदिवासी कार्यकर्ताओं के साथ
चुनावी पैतरा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बंगाल दौरे के दौरान 5 नवंबर को बांकुड़ा में भाजपा के आदिवासी कार्यकर्ताओं के साथ
अपडेटेड 13 दिसंबर , 2020

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 23 नवंबर को बांकुड़ा जिले के खत्रा में एक रैली को संबोधित करने जा रही थीं तभी रास्ते में अनुसूचित जाति और जनजाति के करीब 116 परिवारों वाले एक गांव बेंकिया में रुक गईं. एक घर के आंगन में चारपाई पर बैठकर ममता ने महिलाओं से पूछा कि सरकार की ओर से गरीबों को दिया जाने वाला मुफ्त राशन लोगों तक पहुंच रहा है या नहीं? कुछ ही घंटों के भीतर सोशल मीडिया पर गांव में ममता के पहुंचने की तस्वीरों की बाढ़-सी आ गई. कुछ ही दिन पहले 5 नवंबर को बांकुड़ा जिले के चतुर्थी गांव में अनुसूचित जाति के करीब 350 लोगों के बीच एक अन्य वीवीआइपी भी इसी तरह पहुंचे थे. गृह मंत्री अमित शाह ने एक दलित परिवार के यहां न केवल दिन का भोजन किया बल्कि परिवार के साथ फोटो भी खिंचवाई थी. ट्विटर पर उनके धन्यवाद संदेश में लिखा था, ''विविशान हंसदाजी के घर लाजवाब बंगाली भोजन किया. उनकी गर्मजोशी और खातिरदारी को बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं.''

बंगाल के दो दिन के अपने दौरे के समय शाह ने उत्तर 24 परगना में भी एक मतुआ परिवार के साथ भोजन किया था. मतुआ एक प्रभावशाली हिंदू दलित जाति है जो करीब 50 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखती है. यह जाति मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान की रहने वाली थी जो देश विभाजन के समय यहां आकर बस गई थी. पश्चिम बंगाल की 10 करोड़ की आबादी में इनका हिस्सा 17.4 प्रतिशत है. इसीलिए तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों की नजर इस दलित जाति के वोटों पर है. 

जाति जोड़ने की जुगत
जाति जोड़ने की जुगत

ममता ने शाह के दौरे को तुरंत नाटक बताकर खारिज कर दिया था. उनका कहना था, ''उनके भोजन में बासमती और पोस्तो बोर्रा (पोस्ता के पकौड़े) एक पांच सितारा होटल से मंगाए गए थे.'' तृणमूल की पहुंच अनुसूचित और जनजाति की 60 उप-जातियों और 37 उप-जनजातियों तक है. 2012-13 में ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग, तराई और दोआर के नेपाली-भाषी गोरखा समुदाय के बीच यही फॉर्मूला आजमाया था.

गोरखा समुदाय को खुश करने के लिए तृणमूल प्रमुख ने तमांग, लिंबू, राय, मागर, लेपचा और भूटिया सरीखे उनके उप-समूहों के लोगों के लिए विकास परिषदों की घोषणा करते हुए हरेक के लिए कुछ करोड़ रु. की राशि भी आवंटित की थी. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के नेता बिमल गुरुंग ने इसे गोरखा एकता को तोड़ने का प्रयास बताया था. हालांकि ममता को इस चाल का खास फायदा नहीं मिला था. जीजेएम का समर्थन पाकर भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में दार्जिलिंग में तृणमूल को हरा दिया था.

विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में ममता बांकुड़ा, पश्चिम मिदनापुर, झारग्राम, पुरुलिया और वीरभूम में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में बिल्कुल वही रणनीति अपना रही हैं. इन क्षेत्रों में अगर 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजों को देखें तो 56 में से 35 सीटों पर भाजपा को बढ़त थी. शाह के बंगाल दौरे से एक दिन पहले ममता ने मतुआ समुदाय के लिए 10 करोड़ रु. के एक विकास बोर्ड की घोषणा की थी. उन्होंने बौरी और बागड़ी दलित जातियों के सांस्कृतिक और भाषाई विकास के लिए 5-5 करोड़ रु. के अलग विकास बोर्ड भी बना दिए. कुछ महीने पहले लोधा और साबर जनजातियों के लिए भी इसी तरह के बोर्ड बनाए गए थे.

ममता सरकार ने 2020-21 के बजट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के वृद्धों को पेंशन के लिए 3,000 करोड़ रु. की राशि तय कर दी थी. इन कार्यक्रमों से अनुसूचित जाति के करीब 20 लाख और जनजाति के 4 लाख लोगों को 1,000 रु. मासिक पेंशन मिलेगी. इस बजट में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए रोजगार पैदा करने, विकास का ढांचा खड़ा करने और सांस्कृतिक तथा भाषाई पहचान को बढ़ावा देने पर 150 करोड़ रु. के अतिरिक्त पैकेज की घोषणा की गई थी.

पिछले महीने 11 नवंबर को ममता ने तीन पुलिस बटालियनों—नारायणी (कूच बिहार के लिए), गोरखा (पहाड़ों के लिए) और जंगलमहल (जनजातीय क्षेत्र के लिए) की घोषणा करके सभी को चौंका दिया था. नारायणी बटालियन की घोषणा को कोच-राजबंशी की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के तौर पर देखा जा रहा है. कूच बिहार की 25 लाख की आबादी में इनकी जनसंख्या करीब 40 प्रतिशत है. भाजपा इन उपायों को खारिज करती है. उत्तरी बंगाल के 54 विधानसभा सीटों के लिए भाजपा के प्रभारी दीप्तिमान सेनगुप्ता कहते हैं, ''नारायणी बटालियन की घोषणा देशी गौरव को हवा देने के लिए की गई थी पर इससे स्थानीय लोगों में असंतोष ही बढ़ेगा क्योंकि केवल सियासी रसूख रखने वाले इसका फायदा उठा ले जाएंगे. यह एक तरह की नगरीय पुलिस बनकर रह जाएगी और वेतन भी बहुत मामूली होगा.''

कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के एसोसिएट प्रोफेसर इमानकल्याण लाहिड़ी कहते हैं कि बंगाल में जातियों को खुश करने की राजनीति 34 साल के वाम मोर्चा शासन के समय ही शुरू हो गई थी जब तत्कालीन सरकार 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद सरहद पार करके बंगाल में आने वाले मतुआ समुदाय को खुश करने में लग गई थी. लाहिड़ी के मुताबिक, ''तृणमूल ने न केवल वाम मोर्चा सरकार की विरासत को जारी रखा बल्कि मतुआ समुदाय के लोगों को मंत्री बनाकर और उनके विकास के लिए अलग से बजट तय करके एक कदम आगे निकल गई है.

अब भाजपा भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चल रही है.'' मार्च 2019 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर 24 परगना में ठाकुरनगर के मतुआ महासंघ के मुख्यालय में समुदाय की कुलमाता बीणापाणि ठाकुर से मिलने पहुंच गए थे. वे बंगाल के प्रतीकों का जिक्र करते समय अक्सर मतुआ के आध्यात्मिक नेता हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का नाम लेना नहीं भूलते.

उधर, ममता ने अधिकारियों से आदिवासी देवी-देवताओं के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाने और उन्हें तीर्थ केंद्र के तौर पर विकसित करवाने को कहा है. तृणमूल के मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, ''ममता की सरकार का एक मानवीय चेहरा है. वे जाति, वर्ग और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करतीं. पिछड़े इलाकों को सहायता पहुंचाने का रास्ता बनाया जा रहा है क्योंकि वहां रहने वाले लोगों को आर्थिक सहायता की जरूरत है.'' लाहिड़ी को लगता है कि भाजपा का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जाति की राजनीति को पीछे छोड़ देगा. ''भाजपा धर्म के मामले में लोगों को एक व्यापक मंच पर लाने की कोशिश करेगी जैसा कि उत्तर प्रदेश में हुआ. दलितों को उनकी धार्मिक पहचान का एहसास कराया गया—कि वे पहले हिंदू हैं.''

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