केंद्र सरकार 9 नवंबर को एक गजट अधिसूचना के जरिए 'ऑनलाइन कंटेंट प्रदाताओं की तरफ से उपलब्ध करवाए गए फिल्म और दृश्य-श्रव्य कार्यक्रमों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर न्यूज और समसामयिक विषयों के कार्यक्रमों’ को सूचना और प्रसारण (आइबी) मंत्रालय के दायरे में ले आई. इसका मतलब है कि नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और डिज्नी+ हॉटस्टार सरीखे ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित कोई भी डिजिटल मीडिया जो न्यूज और सामयिक विषयों के कार्यक्रम प्रकाशित या स्ट्रीम करता है, अब आइबी मंत्रालय की निगरानी के दायरे में होगा. अभी तक ये माध्मम सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आते थे.
फिलहाल इस कदम का डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के कामकाज पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, सिवाय इसके कि उनकी देखरेख करने वाला मंत्रालय बदल गया है. लेकिन इस उद्योग के पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसका मीडिया की स्वतंत्रता और उसकी सृजन की आजादी पर दूरगामी असर पड़ सकता है. आशंकाएं तब और बढ़ गईं जब अधिसूचना के एक हफ्ते बाद ही केंद्र ने विस्तृत दिशानिर्देश जारी करके डिजिटल मीडिया संस्थानों से कहा कि वे अपने यहां विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) 26 फीसद तक सीमित करने वाली नीति का अनुपालन पक्का करें.
आइबी मंत्रालय का नोटिस कहता है कि 26 फीसद से कम एफडीआइ वाली डिजिटल न्यूज संस्थाएं-कंपनी के ब्योरे, अपना शेयर होल्डिंग का पैटर्न, डायरेक्टरों और शेयरधारकों के नाम और पते एक महीने के भीतर मंत्रालय को मुहैया करवाएं. 26 फीसद से ज्यादा एफडीआइ वाली फर्म को भी यही ब्योरे मुहैया करवाने होंगे और साथ ही उन्हें 15 अक्तूबर, 2021 तक विदेशी निवेश 26 फीसद पर लाने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.
जवाब में, भारत के 11 केवल डिजिटल समाचार संस्थानों के छत्र संगठन डिजिपब ने बयान जारी कर कहा कि सरकार के निर्देश भारत में डिजिटल मीडिया की वृद्धि की संभावनाओं में गंभीर अड़ंगा लगा सकते हैं और लोगों के 'जानकार बने रहने के अधिकार’ के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं. डिजिपब की चेयरपर्सन धन्या राजेंद्रन और जनरल सेक्रेटरी ऋतु कपूर की तरफ से जारी बयान कहता है, ''प्रतिबंध आयद करने वाली नीतियों के गंभीर नतीजे हो सकते हैं जिनमें नौकरियां जाना भी शामिल है.’’
केंद्र सरकार अलबत्ता ऐसी आशंकाओं को खारिज कर देती है. उसका कहना है कि इस कवायद का मकसद डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर नियम-कायदे लागू करना या उनके कंटेंट को सेंसर करना नहीं है, बल्कि इन सेवा प्रदाताओं के कामकाज को आसान बनाना और उसमें पारदर्शिता लाना है. आइबी मंत्रालय के एक अफसर कहते हैं कि डिजिटल मीडिया संस्थानों से ये ब्योरे देने के लिए इसलिए कहा गया है क्योंकि वे अभी प्रिंट और टीवी मीडिया की तरह सरकार के साथ रजिस्टर नहीं हैं.
यह अफसर बताते हैं कि डिजिटल मीडिया के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया रजिस्ट्रेशन ऑफ प्रेस ऐंड पीरियॉडिकल्स बिल 2019 में पहले ही प्रस्तावित कर दी गई है. वे कहते हैं, ''विचार नियम-कायदे लागू करने का नहीं है; बल्कि इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले किसी भी व्यक्ति को समाचार प्रदाता का छद्मभेष धारण करने और फेक न्यूज फैलाने से रोकना है. इस कदम से जवाबदेही आएगी. न्यूज और कंटेंट के माध्यमों को एक ही प्लेटफॉर्म के तहत लाना स्वाभाविक ही है.’’
इस तर्क में कुछ दम है. रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की 2019 की इंडिया डिजिटल न्यूज रिपोर्ट ने पाया कि उनके अध्ययन में शामिल 57 फीसद लोग 'चिंतित थे कि वे जो ऑनलॉइन न्यूज देखते-पढ़ते हैं वह असल है या फर्जी.’ सर्वे में 50 फीसद से ज्यादा लोग 'अत्यधिक पक्षपाती विषयसामग्री’, ‘खराब पत्रकारिता’ और 'झूठी खबरों’ को लेकर चिंतित थे.
केंद्र सरकार ने अभी तक डिजिटल न्यूज को सेंसर करने के किसी कदम का कोई संकेत नहीं दिया है, लेकिन आइबी मंत्री प्रकाश जावडेकर ने चिंता जाहिर की है कि भारतीय प्रेस परिषद की तरह डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्मों की कोई नियामक संस्था नहीं है. राष्ट्रीय प्रेस दिवस (16 नवंबर) पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री जावडेकर ने कहा कि सरकार डिजिटल प्लेटफॉर्म सहित समूचे न्यूज मीडिया के लिए नियामकीय तंत्र को मजबूत बनाने पर विचार कर रही है.
साथ ही उन्होंने मीडिया कंपनियों से और ज्यादा आत्म-नियमन की मांग की. उन्होंने कहा, ''सरकार दखल देना और किसी भी आजादी में कतरब्यौंत नहीं करना चाहती, लेकिन यह आपकी जिम्मेदारी है. जब सरकार आपमें भरोसा जाहिर कर रही है, ऐसे में आपको जिम्मेदार पत्रकारिता और जिम्मेदार आजादी की मिसाल कायम करनी चाहिए.’’
ऐसे आश्वसनों के बावजूद, उड़ती चर्चा यही है कि सरकार एक ऐसी नीति लाने का मंसूबा बना रही है जिसमें ओटीटी कंटेंट के लिए सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य बना दिया जाएगा, जैसे फिल्मों को सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने से पहले लेना होता है. सरकारी दिशानिर्देशों के दायर में आने वाले प्रिंट, टीवी और रेडियो के विपरीत, भारत में अभी तक ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए कोई कानून नहीं है. हाल में ओटीटी कंटेंट सेंसर करने की मांग उठती रही है, जो सरकारी हलकों में भी देखी गई है.
आइबी मंत्रालय और फिल्म प्रमाणन अपीलीय प्राधिकरण की तरफ से अक्तूबर में मुंबई में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में वकील और भाजपा प्रवक्ता हितेश जैन ने ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर नियम-कायदे लागू करने की मांग की. दो याचिकाकर्ताओं अपूर्व अर्हतिया और शशांक शेखर झा ने अक्तूबर में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और एक स्वायत्त 'सेंट्रल बोर्ड फॉर रेग्युलेशन ऐंड मॉनिटरिंग ऑफ ऑनलाइन वीडियो कंटेंट्स’ बनाने की मांग की. उनकी याचिका में दलील दी गई है कि ऑनलाइन शो 'ऐंटी-इंडियन’ कंटेंट दिखाते हैं और भारतीयों की 'धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को ध्यान में रखे बगैर’ पैसा बनाते हैं.
ऑनलाइन स्ट्रीम किए गए कई शो, बहुत कुछ फिल्मों की तरह ही, विवादों में घिर चुके हैं. मसलन, लीला (नेटफ्लिक्स), आश्रम (एमएक्स प्लेयर) और गॉडमैन (जी5 पर तमिल सीरीज) को कथित हिंदू-भीति से ग्रसित होने की वजह से धार्मिक संगठनों की नाराजगी झेलनी पड़ी. आश्रम के डायरेक्टर प्रकाश झा ने यह खुलासा किया कि उनकी वेब सीरीज 'सभी गुरुओं और उनके प्रतिष्ठानों’ और 'सभी धर्मों’ का सम्मान करती है, वहीं जी5 ने गॉडमैन को पूरी तरह बंद करने का फैसला किया.
आल्टबालाजी को एक्स.एक्स.एक्स. अनसेंसर्ड से एक दृश्य निकालना पड़ा जिसे कथित तौर पर भारतीय सेना का निरादर करने के लिए उग्र प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा था. इसी तरह, नेटफ्लिक्स की सीरीज बैड बॉय बिलियनेयर्स इंडिया और सैक्रेड गेम्स तथा अमेजन प्राइम के मिर्जापुर के खिलाफ मामले दर्ज किए गए.
दबाव पडऩे पर इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइएएमएआइ) 2019 में ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट प्रोवाइडर्स (ओसीसीपी) के लिए 'सार्वभौम आत्म-नियमन संहिता’ लेकर आई. तब से इस संहिता के कम से कम तीन संस्करण आ चुके हैं. सितंबर में जारी नवीनतम संस्करण में कम से कम 17 स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल कंटेंट प्रदाता एक सलाहकार समिति की नियुक्ति के जरिए अपने कंटेंट की निगरानी के लिए राजी हो गए. इस समिति में एक बाहरी प्रतिनिधि और दो इन-हाउस सदस्य होंगे. संहिता के मूल उद्देश्यों में एक 'रचनात्मकता को पोषित करना, नवाचार को बढ़ाना और व्यक्ति की वाणी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पालन करना’ है. यह संहिता अलबत्ता आइबी मंत्रालय में किसी को रास नहीं आई.
असल में, जावडेकर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि इन प्लेटफॉर्म ने कुछ 'बहुत ही खराब फिल्में’ स्ट्रीम की हैं और सरकार ओटीटी कंटेंट को सरल और कारगर बनाने के लिए मिले सुझावों पर विचार कर रही है. जावडेकर ने कहा, ''वे (ओटीटी प्लेटफॉर्म) आइटी कानून के (दायरे के) तहत आते हैं लेकिन उनके लिए कोई सरकारी या खुद के बनाए नियम-कायदे नहीं हैं. ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता है.’’
किसी भी अफसर ने ओटीटी कंटेंट को सेंसर करने के किसी कदम की तस्दीक नहीं की, वहीं प्लेटफॉर्म सरकार के कदमों का सतर्क तरीके से जवाब दे रहे हैं. एमएक्स प्लेयर के चीफ कंटेंट ऑफिसर गौतम तलवार ने कहा, ''हमें नहीं पता कि (कोई) सर्टिफिकेशन होगा या नहीं. देखना होगा कि हम जिस तरह अपनी कहानियां कहते आ रहे हैं वैसे ही कहते रह सकते हैं या नहीं या यह बदल जाएगा.’’
कंटेंट बनाने वाले लोग माध्यम के भविष्य को लेकर आशंकित हैं उस माध्यम के भविष्य को लेकर जो सिनेमाघरों में दिखाई जाने वाली फिल्मों और टीवी शो की मजबूरियों से आजाद करने वाले विकल्प के तौर पर देखा जाता है. कई वेब शो के एक लेखक गुमनामी की शर्त पर कहते हैं, ''मैं पढ़ रहा हूं कि मंत्रालय हमें सेंसर करने नहीं जा रहा है लेकिन (वे) हमारी अपनी आजादी के प्रति जिम्मेदार नहीं होने को लेकर चिंतित हैं. जब वे कहते हैं जिम्मेदार, तब यह बिल्कुल साफ है कि यह स्त्री-द्वेष, बलात्कार की संस्कृति और गाली-गलौज की भाषा प्रचारित करने को लेकर नहीं है; यह राजनैतिक तौर पर भड़काऊ सामग्री ही है जो जांच-पड़ताल के दायरे में आने जा रही है.’’
लेखिक-निर्देशिका अलंकृता श्रीवास्तव, जिनकी सीरीज बॉम्बे बेगम्स नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी, इस घटनाक्रम से हैरान नहीं हैं. वे कहती हैं, ''वह देश जहां सेंसरशिप को आजादी के बाद से ही इतने जज्बे के साथ पाला-पोसा गया है और जो सामग्री (कंटेंट) की निगरानी करने की कोशिश करता रहा है, यह तय ही है कि वह किसी भी क्षेत्र को आजाद नहीं रहने देने वाला है.’’ श्रीवास्तव मेड इन हेवन की सह-लेखिका और सह-निर्देशिका भी हैं जो मानती हैं कि यह वेब सीरीज टीवी पर कामयाब नहीं हो सकती थी.
सेंसरशिप के खिलाफ वकालत करते हुए आइएएमएआइ की आत्म-नियमन संहिता कहती है कि ऑनलाइन कंटेंट उपभोक्ताओं को ''मांग पर और आकर्षण के आधार पर’’ पेश किया जाता है और इसलिए यह ''कंटेंट के सार्वजनिक प्रदर्शन की श्रेणी में नहीं आता, और निजी प्रदर्शन माना जाता है.’’ ओटीटी प्लेटफॉर्मों का मानना है कि सामग्री के बारे में सेक्स और हिंसा का प्रदर्शन सरीखी एडवाइजरी और पेरेंटल एक्सेस कंट्रोल पहले ही दर्शकों को जानकार फैसले लेने में मदद कर रहे हैं.
दिलचस्प यह है कि ओटीटी कंटेंट पर किसी सेंसरशिप को मोदी के सरकार के उस दावे के खिलाफ जाते देखा जाएगा जो उसने सुप्रीम कोर्ट में 2015 में पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध से जुड़ी एक सुनवाई के दौरान किया था. तब एटॉर्नी जनरल मुकुल रस्तोगी ने बताया था कि सरकार किस तरह निजी शो देखने पर नियम-कायदे थोपने के खिलाफ है और कहा था कि ‘‘हम नैतिक पुलिस व्यवस्था नहीं चाहते.’’
जवाबदेही पर सरकार के जोर देने को जहां मुश्किल से ही गलत ठहराया जा सकता, वहीं यह दिलचस्पी से देखा जाएगा कि वह औचित्य की अपनी समझ (ओटीटी कंटेंट में) का पालन पक्का करने के लिए किस हद तक जाती है और न्यूज संस्थानों पर मानक कितनी बराबरी से लागू करती है. जरूरत इसकी है कि वह हितधारकों की चिंताओं को समझे और उन्हें नीति बनाने में शामिल करे. राजेंद्रन और कपूर कहती हैं, ''हम आइबी मंत्रालय से हमें सुनवाई का मौका देने का आग्रह करते हैं. हम मिलकर एक ढांचा बना सकते हैं जो डिजिटल मीडिया की अर्थव्यवस्था को पोषित करेगा और साथ ही पत्रकारिता के ऊंचे मानक कायम करेगा, जबकि अन्य चिंताओं को भी संबोधित करेगा.’’
ओटीटी की दुनिया
2.9 अरब डॉलर
(करीब 21,598 करोड़ रुपए) होगा भारत का अनुमानित ओटीटी राजस्व 2024 तक, जो इसे दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाजार बना देता है
>300%
ओटीटी के सब्स्क्रिप्शन में संभावित वृद्धि, पांच साल के दौरान, 2019 में 70.8 करोड़ डॉलर से बढ़कर, जो भारत को सबसे तेज बढ़ता ओटीटी बाजार बना देगा
93%
वीडियो-ऑन-डिमांड सब्स्क्रिप्शन हैं भारत के ओटीटी बाजार में, जो इस वृद्धि का सबसे प्रमुख कारक होगा
1 करोड़
ग्राहकों ने 2.1 करोड़ वीडियो का ग्राहक शुल्क अदा किया 2019 में
40+
वीडियो ओटीटी खिलाड़ी हैं भारत में
1,600
घंटे का मौलिक कंटेंट भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए रचा गया 2019 में
स्रोत: इंक42 डॉट कॉम की इंडियाज ओटीटी मार्केट लैंडस्कैप रिपोर्ट; डेटा, इनसाइट और कंसल्टिंग कंपनी कैंटर; प्राइसवाटरहाउसकूपर्स की रिपोर्ट एंटरटेनमेंट ऐंड मीडिया आउटलुक 2020