राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 31 अक्तूबर और 1 नवंबर के बीच मध्य रात्रि के कुछ ही देर बाद 1989 बैच के अधिकारी 58 वर्षीय निरंजन कुमार आर्य को अपना नया मुख्य सचिव नियुक्त किया. इस तरह इस पद के लिए बना हुआ रहस्य भी खत्म हुआ जिसके लिए आर्य के आधे दर्जन से अधिक वरिष्ठ अधिकारी सपने सजा रहे थे. आर्य ऐसे पहले अनुसूचित जाति के अधिकारी हैं जिन्होंने राजस्थान के प्रशासनिक मुखिया का पदभार संभाला है. इससे पहले वे अशोक गहलोत के दिसंबर, 2018 में तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद से अतिरिक्त मुख्य सचिव, वित्त के पद पर थे. आर्य गहलोत के पसंदीदा रहे हैं और उनसे निकटता के लिए जाने जाते हैं. गहलोत ने उन्हें दस अधिकारियों पर तरजीह दी है, जिनमें से चार केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं और छह राज्य में तैनात हैं, जिनको अब परंपरा के मुताबिक, सिविल सचिवालय से बाहर विभिन्न बोर्डों, निगमों और आयोगों में तैनात किया गया है.
गहलोत राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के तौर पर एम.एल. लाठर को भी ले आए हैं. लाठर को राज्य पुलिस के कामकाज में सुधार को लेकर स्पष्टवादी रवैए के लिए जाना जाता है. वे जाट हैं और उन्हें पुलिस महकमे में आला कुर्सी देकर गहलोत ने एक बार फिर जाटों की भावनाओं का ख्याल रखा क्योंकि इससे पहले प्रदेश कांग्रेस की कुर्सी भी गोविंद सिंह डोटासरा को सौंपी गई. लाठर को लाने का गहलोत का तरीका अलहदा रहा क्योंकि उन्होंने लाठर के पूर्ववर्ती भूपेंद्र सिंह यादव को विस्तारित कार्यकाल के बीच में सेवानिवृत्ति लेने दिया.
डीजीपी और मुख्य सचिव तो आते-जाते रहते हैं लेकिन आर्य के आगमन में असहज परिस्थितियों की भूमिका रही. राज्य में कांग्रेस सरकार के साथ सीधी भिड़ंत की स्थिति में भाजपा शासित केंद्र ने उनके पूर्ववर्ती राजीव स्वरूप के तीन महीने के कार्यकाल विस्तार को नामंजूर कर दिया. स्वरूप 1985 बैच के अधिकारी थे और गहलोत उनका सेवा विस्तार चाहते थे. स्वरूप 31 अक्तूबर की शाम तक, केंद्र की मंजूरी का इंतजार करते रहे. शनिवार का दिन छुट्टी का था फिर भी दफ्तर देर तक खुले रहे ताकि उनकी औपचारिक विदाई की जा सके, पर आखिरकार यह भी नहीं हो पाया.
इस सेवा विस्तार की नामंजूरी से केंद्र ने साफ तौर पर अपना पूर्वाग्रह दिखा दिया क्योंकि वह स्वरूप के बैचमेट के. षणमुगम को जुलाई से सितंबर और फिर नवंबर से जनवरी 2021 तक, दो सेवा विस्तार दे चुका है. गहलोत ने कोरोना महामारी के परिप्रेक्ष्य में इस सेवा विस्तार की मांग की थी. विडंबना है कि मोदी 1978 बैच के अधिकारी सी.एस. राजन को 2016 में दो बार तीन महीने का सेवा विस्तार दे चुके हैं और उसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार ने कोई मजबूत दलील भी नहीं दी थी.
मोदी ने गहलोत के सामान्य अनुरोध को ठुकरा कर एक अतिरेकी कदम उठाया है और इसके बीज राजस्थान में भाजपा के सियासी खेल में छिपे हैं. तब के अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह, स्वरूप को इस साल जुलाई में अचानक लाया गया था और तब भाजपा सरकार के समय अधिकारी रहे डी.बी. गुप्ता के कार्यकाल को तीन महीने संक्षिप्त कर दिया गया था. वैसे, गुप्ता को लंबे समय तक पद पर रखकर गहलोत पहले ही उपकृत कर चुके थे. सूत्र बताते हैं कि गहलोत स्वरूप को, जो गुप्ता के एक महीने बाद पद पर आ ही जाते, प्रदर्शन के लिए पर्याप्त वक्त देना चाहते थे.
गहलोत सरकार को अस्थिर करने में पायलट कैंप और भाजपा ने सक्रिय भूमिका निभाई थी और उन्हें यकीन है कि स्वरूप ने ही टेलीफोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग गहलोत को मुहैया कराई थी. उसमें कथित रूप से यह स्थापित किया गया था कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत इस साजिश के पीछे मुख्य भूमिका में थे और कुछ बातचीत में पायलट के सहयोगियों का नाम भी आया, जिसमें पैसे के लेन-देन के आरोप हैं. कई लोगों को लगता है कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार शेखावत ने सुनिश्चित किया कि सबसे संक्षिप्त कार्यकाल वाले मुख्य सचिव के रूप में रहकर स्वरूप इसकी कीमत चुकाएं. कुछ लोगों का मानना है कि स्वरूप के प्रतिद्वंद्वी और पायलट के मददगारों ने भी इसमें भूमिका निभाई. शेखावत ने इस साजिश और रिकॉर्डेड बातचीत में अपनी आवाज होने से इनकार किया है. ऐसा माना जा रहा है कि उन्हें इसलिए पुरस्कृत किया गया क्योंकि उन्होंने गहलोत सरकार बचाने में मदद की हालांकि स्वरूप इससे पूरी तरह इनकार करते हैं.
गहलोत, स्वरूप को किसी संवैधानिक पद पर लाएं या न लाएं, लेकिन मुख्यमंत्री ने स्वरूप के सेवा विस्तार में केंद्र की इस अप्रत्याशित अस्वीकृति का इस्तेमाल अपने लाभ के लिए किया और उन्होंने कांग्रेस के दलित वोट बैंक को एकजुट करने के लिए आर्य को इस पद पर चुना. आर्य को नौकरशाही ने अमूमन परदे के पीछे धकेला है और शायद इसके पीछे जाति और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि रही है, लेकिन उनके पास उम्दा प्रशासनिक कौशल है और वे यथास्थितिवादी होने की बजाए निर्णायक साबित होंगे. वे शिकायतों पर कार्रवाई करने वाले शख्स हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि अगले विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं क्योंकि उनकी पत्नी संगीता ने 2013 में सोजत सीट से चुनाव लड़ा था. पिछले महीने गहलोत ने संगीता को राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) का सदस्य नियुक्त किया है. कुछ लोगों ने इसका गलत मतलब निकाला कि आर्य अब मुख्य सचिव नहीं बनेंगे.
गहलोत को अब तेजतर्रार और युवा अधिकारियों को चुनने की बड़ी चुनौती का सामना करना होगा क्योंकि तजुर्बेकार अधिकारी अचानक ही सचिवालय से बाहर होंगे और उनकी जगह नए लोग आएंगे. वित्त विभाग में वे आर्य की जगह 1993 बैच के अधिकारी 51 वर्षीय अखिल अरोड़ा को लेकर आए हैं. वहीं, आरएसआरडीसीएल के चेयरपर्सन और पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव के तौर पर 1996 बैच के 47 वर्षीय राजेश कुमार यादव लाए गए हैं जो 1987 बैच की वीनू की जगह लेंगे. वीनू पूर्व मुख्य सचिव डी.बी. गुप्ता की पत्नी हैं. 2003 बैच के 44 वर्षीय सिद्धार्थ महाजन को चिकित्सा और स्वास्थ्य सचिव के तौर पर लाया गया, जो अरोड़ा की जगह लेंगे. काफी वक्त से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला महाजन को अपना सचिव बनाना चाहते थे.
गहलोत ने आर्य को एक मौका दिया है ताकि वे अलग तरीके से काम कर सकें क्योंकि पिछले कुछ दशकों में मुख्य सचिवों ने शायद ही कोई उल्लेखनीय काम किया हो. लेकिन, उन सबकी नियुक्ति अमूमन विवादों में घिरी रही. पहले सेवा विस्तार की वजह से सी.एस. राजन के बैचमेट और अनुसूचित जाति के अधिकारी उमराव सालोदिया ने 31 दिसंबर, 2015 को वीआरएस ले लिया और यह आरोप लगाते हुए उन्होंने धर्मपरिवर्तन करके इस्लाम कुबूल कर लिया था कि भाजपा ने भेदभावपूर्ण तरीके से एक दलित को राज्य का पहला मुख्य सचिव बनने से रोक दिया. राजन पहली बार 2013 में मुख्य सचिव बने जब उन्होंने गहलोत की ओर से नियुक्त सी.के. मैथ्यू की जगह ली. मैथ्यू विधानसभा चुनाव के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के पास अपनी शिकायत के मद्देनजर छुट्टी पर चले गए थे. बाद में, मुख्यमंत्री बनने के बाद राजे ने राजीव महर्षि को बतौर मुख्य सचिव नियुक्त किया जिन्होंने अपने बैचमेट राजन की जगह ली.
दोबारा राजन की बारी 2015 में आई जब महर्षि केंद्र में दिल्ली चले आए. राजे तब के अल्पसंख्यक मामलों के सचिव ललित के. पवार को केंद्र से लाना चाहती थीं पर उनके खिलाफ हुई लामबंदी की वजह से मोदी ने उन्हें उसी समय पर्यटन के लिए चुन लिया और इस तरह राजे के पास सीमित विकल्प के तौर पर बस राजन ही बचे रह गए. लेकिन राजे ने उन्हें कुछ दिनों तक इंतजार कराया और इस दौरान राज्य का प्रशासन बगैर मुखिया के चलता रहा.
मुख्य सचिव आर्य जनवरी 2022 में सेवानिवृत्ति हो जाएंगे. ऐसे में क्या उन नौकारशाहों में से कोई मुख्य सचिव बन पाएगा जिन्हें पारकर आर्य इस पद पर पहुंचे हैं क्योंकि कई अफसरों का कार्यकाल अभी और बचा होगा.
लेकिन गहलोत ने प्रतिभा और नए चेहरों के आधार पर ये फैसले लिए हैं जिसमें जाति का गणित भी है. यह उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए एक आख्यान देता है, भले ही यह अभी तीन साल दूर क्यों न हो. वहीं, स्वरूप के सेवा विस्तार को मोदी की नामंजूरी यह बताती है कि भाजपा ने गहलोत सरकार पर अपनी भृकुटियां अभी तक टेढ़ी ही रखी हैं.