सत्तर रुपए किलो प्याज और 52 रुपए किलो आलू खरीदकर लौट रहे गाजियाबाद निवासी अजय कुमार इसी गुणा गणित में लगे हैं कि त्योहारों के बीचोबीच फल, सब्जियों की महंगाई कहीं बजट न बिगाड़ दे. फल सब्जी के दाम पर बात करते-करते वे फट पड़े, ''भिंडी, अरबी, फूल गोभी, मेथी कोई सब्जी ले लीजिए 60 रुपए किलो से नीचे किसी का भाव नहीं. चार लोगों के परिवार में हर हफ्ते 500 रुपए से ज्यादा की सब्जी लग जाती है.'' फल-सब्जियों की इसी महंगाई के चलते सितंबर में खुदरा महंगाई दर आठ महीने के उच्चतम स्तर (7.34 प्रतिशत) पर पहुंच गई. सब्जियों की महंगाई दर सितंबर में बढ़कर 20.73 प्रतिशत रही जो अगस्त में 11.41 प्रतिशत थी. फलों की मुद्रास्फीति भी अगस्त के मुकाबले सितंबर में बढ़ी.
क्यों बढ़ रहीं कीमतें?
आगरा देश की बड़ी आलू मंडी है. यहां के बड़े व्यापारी अनुज गुप्ता कहते हैं, ''आलू की कीमतों में इस तेजी की दो बड़ी वजह हैं. पहली, गर्मी देर तक रहने की वजह से पंजाब में आलू की बुआई देरी से शुरू हुई है. ऐसे में दिल्ली की मंडी में इस साल आलू के देरी से पहुंचने की आशंका है. दूसरी वजह, इस साल कोल्ड स्टोरेज में आलू का पर्याप्त भंडारण नहीं हो पाया था.'' इस साल जब आलू खेतों से उखड़ के बाजार में आ रहा था तब लॉकडाउन के कारण कुल क्षमता का 60 से 65 फीसद ही भंडारण हो पाया. वे कहते हैं,
''अब कोल्ड स्टोरेज में 20 फीसद ही स्टॉक बचा है, जिसमें से 10 से 12 फीसद बीज में इस्तेमाल होने के लिए रोका जाएगा.'' इस बात की गहरी आशंका है कि अगर पंजाब से आलू की आवक में देरी हुई तो दिवाली के बाद भाव और ताव मार सकते हैं. सरकार की ओर से 31 अक्तूबर तक सभी कोल्ड स्टोरेज की मशीनों को बंद करने के आदेश भी दे दिए गए हैं, जिससे दिवाली के मौके पर किसान अपना आलू बाहर निकालें और कीमतों को कुछ राहत मिल सके. हालांकि किसान इसके पक्ष में नहीं हैं.
प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी पर टिप्पणी करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष किसन गुर्जर कहते हैं, ''बाढ़ में इस साल किसानों की काफी फसल खराब हो गई. नए प्याज की आवक में इसी कारण देरी हो रही है. इसी वजह से दामों में तेजी है.'' नासिक देश की सबसे बड़ी प्याज की मंडी है. वे बताते हैं, ''मार्च से मई के दौरान आने वाला प्याज लंबे समय तक स्टॉक में रखा जा सकता है. प्याज के भाव भी उस समय कम होते हैं. सरकार चाहे तो उस समय खरीदकर किसानों को भी अच्छा पैसा दे सकती है और हर साल इन महीनों में बढ़ने वाली कीमतों को भी काबू कर सकती है.'' लेकिन ऐसा नहीं होता है.
जब कीमतें कम होती है तो सरकार हरकत में नहीं आती लेकिन कीमतों के बढ़ते ही इन्हें काबू करने में लग जाती है. गौरतलब कि सरकार ने प्याज की आपूर्ति बढ़ाने के मकसद से इसके आयात को सुगम करने के लिए नियमों में ढील दी है. यह ढील 15 दिसंबर तक जारी रहेगी. साथ ही केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने एक बयान में यह भी कहा कि कीमतों पर अंकुश के लिए खुले बाजार में बफर स्टॉक से और अधिक मात्रा में प्याज उतारी जाएगी. सितंबर में, सरकार ने खरीफ प्याज के आने से पहले कम उत्पादन वाले मौसम के दौरान घरेलू उपभोक्ताओं को उचित दरों पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था.
नेशलन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस ऐंड पॉलिसी की अर्थशास्त्री राधिका पांडे कहती हैं, ''अनुकूल मॉनसून और कृषि उत्पादन बेहतर रहने के बावजूद आपूर्ति संबंधी बाधाएं बनी हुई हैं. इसकी वजह से पिछली फसल का भंडारण और नई की आवक दोनों प्रभावित हुई. यही फल और सब्जियों की कीमतों में तेजी का बड़ा कारण है.''
भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समिति की बैठक के जारी ब्योरे में कहा कि ''मुद्रास्फीति परिदृश्य की बात की जाए तो खरीफ फसल और रबी मौसम बेहतर रहने से आने वाले समय में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर नरम रहनी चाहिए.'' ब्याज दरों में और कटौती की उम्मीद महंगाई कम होने के बाद ही पुख्ता होगी.
लॉकडाउन के बाद टूटी आय की वजह से त्योहारी मौसम में भी लोगों का उत्साह पहले से ही कम रहने की आशंका थी. इस बीच खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने एक और झटका दे दिया है.