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देश के सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूल

अब तक के सबसे व्यापक 2020 का इंडिया टुडे ग्रुप-एमडीआरए सर्वेक्षण में पता चला कि देश के बी-स्कूल बुनियादी बदलाव के दौर में हैं, जिसकी एक वजह तो कोविड महामारी के बाद बदली दुनिया से तालमेल बिठाना है, मगर लक्ष्य बुनियादी ढांचे, पढ़ाई के तौर-तरीकों और बेहतर करियर के अनुकूल तैयारियों में सुधार भी

चुनिंदा स्टुडेंट आइआइएम-अहमदाबाद के कैंपस में इक्का-दुक्का छात्र
चुनिंदा स्टुडेंट आइआइएम-अहमदाबाद के कैंपस में इक्का-दुक्का छात्र
अपडेटेड 31 अक्टूबर , 2020
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यकीनन देश के बिजनेस स्कूलों में यह वक्त असामान्य है. कोविड-19 महामारी ने दूसरे शैक्षणिक संस्थानों की तरह इन संस्थानों में भी देश के भावी मैनेजमेंट पेशेवरों की शिक्षा और प्रशिक्षण के वार्षिक चक्र को बाधित कर दिया है. अमूमन जिन परिसरों में भारी गहमागहमी रहा करती थी, जहां कैंपस कक्षाओं और केस स्टडी के लिए आने वाले छात्रों से भरे होते थे—और जहां अक्सर व्यवसाय जगत के नुमाइंदे नए पेशेवरों के लिए नौकरी के प्रस्ताव लेकर आया करते थे—वहां महीनों से सन्नाटा पसरा है. 

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पढ़ाई अब अलग-थलग रहकर हो रही है यानी ऑनलाइन होती है. बाजार के दौरे और ग्राहकों से बातचीत के साथ सीधे साइट पर होने वाली इंटर्नशिप, अब छात्रों को वर्चुअल ट्रेनिंग के जरिए करनी पड़ रही है, और वह भी केवल कुछ औद्योगिक घरानों की ओर से यह सुविधा मुहैया कराई जा रही है.

ऑनलाइन प्रशिक्षण और इंटर्नशिप प्लेटफॉर्म इंटर्नशाला के अनुसार, कोविड-19 से पहले 35 फीसद नियोक्ताओं ने इन-ऑफिस इंटर्न को काम पर रखा था, 39 फीसद ने वर्चुअल इंटर्न को रखा था, जबकि शेष 26 फीसद ने इन-ऑफिस के साथ वर्चुअल इंटर्न को काम पर रखा था. लेकिन महामारी के बाद ये आंकड़े क्रमश: 22 फीसद, 63 फीसद और 15 फीसद पर आ गए हैं. 

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महामारी के कारण सिर्फ छात्रों की परिसर गतिविधियों और उनकी इंटर्नशिप ही बुरी तरह प्रभावित नहीं हुई है. कोविड-19 की वजह से लगी पाबंदियों से आर्थिक गतिविधियों में गंभीर रूप से कमी आई है, इससे नौकरियों, आजीविका और वित्तीय सुरक्षा पर असर पड़ा है, बड़ी संख्या में मैनजमेंट छात्रों का भविष्य अनिश्चय के भंवर में फंस गया है क्योंकि साल खत्म होने को है, कैंपस-प्लेसमेंट का मौसम कुछ महीने दूर है, और वायरस के शांत पडऩे के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं.

इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि महामारी उस समय आई जब देश के बी-स्कूलों ने कुछ अत्यधिक उत्साहजनक रुझान दिखाने शुरू किए थे. प्रतिभा आकलन फर्म व्हीबॉक्स की ओर से प्रकाशित इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2020 के अनुसार, इस साल एमबीए के स्नातकों में रोजगार योग्यता 54 फीसद पर सबसे अधिक है. यह बीई (इंजीनियरिंग स्नातक) और बीटेक (बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी) समेत नौ धाराओं की डिग्री शामिल हैं.

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यह 2019 में एमबीए की 36 फीसदी रेटिंग की तुलना में भारी उछाल है और इसने 2016 में शुरू हुए गिरावट के सिलसिले को भी रोका. भारतीय स्नातकों पर वैश्विक अध्ययनों ने भी हाल में सकारात्मक आकलन पेश किया है, जिससे दुनिया भर में नए अवसर खुल रहे हैं. उदाहरण के लिए, आइएनएसईएडी बिजनेस स्कूल की ओर से प्रकाशित ग्लोबल टैलेंट कॉम्पीटिटिव इंडेक्स 2020 में भारत 2019 के मुकाबले आठ पायदान का सुधार करके 2020 में 72वें स्थान पर रहा. 

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हालांकि यह प्रबंधन और व्यावसायिक डिग्री के लिए अध्ययन करने वालों के लिए सकारात्मक खबर है, फिर भी कोविड के बाद की दुनिया में अल्प-से-मध्यम अवधि में रोजगार के कम अवसर दिखाई देंगे. इस कारण, किसी छात्र के लिए डिग्री के लिए संस्थान का चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. छात्रों का दाखिले का निर्णय बहुत ठोक-बजाकर होना चाहिए. इसमें उन्हें इंडिया टुडे ग्रुप-एमडीआरए की वार्षिक रैंकिंग से मदद मिलेगी, जिसमें बिजनेस स्कूलों का बुनियादी ढांचे की स्थिति, शिक्षा की गुणवत्ता, पढ़ाई की लागत कितनी वाजिब जैसे कई अन्य बिंदुओं की कसौटी पर आकलन है.

वर्षों से इस रैंकिंग को छात्रों के लिए अधिक से अधिक महत्व का बनाने के लिए इसके दायरे में इजाफा किया गया है और विश्लेषण अधिक सटीक बनाया गया है. लॉकडाउन के कारण अधिकांश संस्थान बंद होने बावजूद 293 बिजनेस स्कूलों की रैंकिंग के साथ इस वर्ष की रैंकिंग अब तक की सबसे बड़ी कसरत है. 

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यह मूल्यांकन महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में देश के बी-स्कूलों में भले सुधार हुआ है, लेकिन संस्थानों के प्रदर्शन का दायरा काफी विस्तृत है, खासकर उनकी भारी संख्या के मद्देनजर. आखिर देश भर के 3,000 से अधिक बी-स्कूलों से हर साल लगभग 400,000 स्ïनातक निकलते हैं. आइआइएम (भारतीय प्रबंधन संस्थान) और कुछ पुराने प्रतिष्ठित निजी स्कूलों को छोड़कर, देश के कई बी-स्कूल नियमित रूप से विशेषज्ञों की आलोचना के शिकार होते हैं.

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देश में मैनजमेंट संगठनों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रबंधन संघ (एआइएमए) और एसोचैम (एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडिया) जैसे उद्योग निकायों ने बार-बार इस ओर ध्यान दिलाया है कि कई भारतीय बी-स्कूलों में अच्छे बुनियादी ढांचे, मजबूत शिक्षण व्यवस्था और प्लेसमेंट के अवसरों का अभाव है. यह इंडिया टुडे गु्रप-एमडीआरए के रैंकिंग सर्वेक्षण में भी दिखता है. 2019 और 2020 की सर्वेक्षण में पाया गया कि 223 बी-स्कूलों में प्लेसमेंट की दर पिछले साल के 86 फीसद से गिरकर 81 फीसद हो गई है.

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दरअसल इंडिया टुडे ग्रुप-एमडीआरए रैंकिंग की अतिरिक्त अहमियत इस मायने में भी है कि इसमें पेशेवर डिग्री प्राप्त करने की लागत पर मिलने वाले फायदे का भी आकलन है. लागत खर्च पर मिलने वाले फायदे की गणना के लिए संस्थान के कैंपस प्लेसमेंट में पेशकश की जाने वाली औसत शुरुआती तनख्वाह को कोर्स की कुल फीस से भाग दिया जाता है. हालांकि हमारे जैसे विकासशील देश में किसी शिक्षण संस्थान का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर  नहीं हो सकता है कि वहां पढ़ाई की लागत पर क्या फायदा मिलता है.

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क्योंकि शिक्षा ऋण प्राप्त करना आसान नहीं है, इसलिए अभिभावक स्वाभाविक तौर पर छात्रों के डिग्री हासिल करने के बाद होने वाली आमदनी की तुलना करेंगे ही. वैसे, सर्वेक्षण से एक सकारात्मक बात यह निकलकर आई है कि 2020 में स्नातक होने वाले छात्रों के लिए औसत वेतन में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि लागत खर्च में 1.24 की वृद्धि. लागत खर्च पर फायदे के आकलन के अलावा, इस वर्ष के सर्वेक्षण में देश के प्रबंधन शिक्षा क्षेत्र के रुझानों से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां भी दी गई हैं. 

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उदाहरण के लिए, पिछले पांच वर्षों में, बी-स्कूलों में दाखिला लेने वाले गैर-इंजीनियरिंग छात्रों का प्रतिशत शीर्ष 25 संस्थानों में लगभग दोगुना हो गया है. 2015 में यह आंकड़ा 16 प्रतिशत था, जो 2020 में बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया. इसके अलावा, शीर्ष 25 संस्थानों में औसत बैच आकार में पिछले साल से 13.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं शीर्ष 100 संस्थानों में 3 प्रतिशत की कमी आई है, जो मुख्य रूप से निजी संस्थानों में कम दाखिले के कारण है. शीर्ष 100 बी-स्कूलों में से सरकारी संस्थानों ने बैच साइज में 23 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई, जबकि निजी संस्थानों में 10 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. 

सरकारी संस्थानों ने इस वर्ष निजी संस्थानों से बेहतर प्रदर्शन भी किया है. सरकारी संस्थानों से स्नातक होने वाले छात्रों को मिलने वाले औसत घरेलू वार्षिक वेतन के लिहाज से देखें तो शीर्ष 100 में स्थान पाने वालों में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि निजी बी-स्कूलों में यह वृद्धि 5 प्रतिशत रही.  देश भर के बी-स्कूलों ने औसत प्लेसमेंट वेतन प्रस्तावों में लगातार वृद्धि दिखाई है, अन्य तीन क्षेत्रों की तुलना में कम बी-स्कूल होने के बावजूद, पूर्वी क्षेत्र के संस्थानों ने सबसे अधिक औसत वेतन दर्ज किया है.

हालांकि, अगले साल, ऐसे सकारात्मक परिणाम दिखने की उम्मीद नहीं है, जैसे पिछले कुछ वर्षों में दर्ज किए गए. एआइमए के अनुसार, कई प्रबंधन संस्थानों को 2020 में अपनी प्लेसमेंट प्रक्रियाओं को रोकना पड़ा क्योंकि इसे आम तौर पर दिसंबर और अप्रैल के बीच आयोजित किया जाता है लेकिन तब महामारी का प्रकोप शुरू हो चुका था. टीयर II और टीयर III के बी-स्कूल अपने स्नातकों के लिए नौकरी दिलाने में जूझते दिखे.

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प्लेसमेंट के अगले दौर में भी गिरावट रहने की आशंका है क्योंकि ज्यादातर कंपनियों ने कोविड-19 के असर को कम से कम करने के लिए लागत-कटौती के कदम उठाए हैं. इस संबंध में कुछ अशुभ संकेत मिले हैं, जिसमें इस वर्ष प्री-प्लेसमेंट ऑफर में पर्याप्त गिरावट के संकेत शामिल हैं. यहां तक कि आइआइएम जैसे शीर्ष संस्थानों में भी 30-40 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. कुछ इसे दूसरे नजरिए से देखते हैं.

उनका मानना है कि इससे देश में उद्यमशीलता में वृद्धि हो सकती है, जिसमें पिछले कुछ वर्षों में सकारात्मक वृद्धि देखी गई है. वहीं कुछ का कहना है कि किसी व्यक्ति में उद्यमी बनने की सोच उसके अपने मन की आवाज होनी चाहिए, कोई विवशता नहीं. 2020 इंडिया टुडे ग्रुप-एमडीआरए सर्वेक्षण में पाया गया है, उद्यमी बनने का फैसला करने वाले छात्रों के प्रतिशत में अचानक गिरावट आई है.

हालांकि यह कोविड-19 के आर्थिक असर की वजह से भी हो सकती है और अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो उद्यमशीलता का वैश्विक केंद्र बनने के भारत के उस राष्ट्रीय लक्ष्य के लिए बड़ा झटका हो सकता है, जिसे केंद्र सरकार ने स्टार्ट अप इंडिया जैसी विभिन्न पहलों के माध्यम से आगे बढ़ाया है. 

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अन्य चिंताजनक संकेत भी हैं. देश में सक्रिय बी-स्कूलों की संख्या कई वर्षों से गिर रही है. 2015-16 में 3,450 से घटकर 2019-20 में 3,037 हो गई और गिरावट का रुझान जारी है. वित्त वर्ष 2021 के लिए एआइसीटीई (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन) ने बी—स्कूलों को बंद करने के 197 आवेदन स्वीकार किए हैं जबकि वित्त वर्ष 2020 में यह संक्चया 59 थी.

प्रबंधन संस्थानों के एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम में कम दाखिला दिख सकता है जो कमाई का एक महत्वपूर्ण स्रोत है क्योंकि जब नौकरियों में कटौती चल रही हो, उस दौर में कम अधिकारी ही महंगी डिग्री लेने में रुचि दिखाएंगे. यहां तक कि कैट (कॉमन एडमिशन टेस्ट) के लिए रजिस्ट्रेशन भी पिछले साल से 5.7 फीसद कम हुए हैं, जो 2015 के बाद सबसे कम संख्या है.

हालांकि, महामारी का संकट बी-स्कूलों को बुनियादी ढांचे, शिक्षण और अनुसंधान के मामले में नवाचार करने का अवसर भी प्रदान करता है. यहां तक कि शीर्ष कंपनियां कोविड के बाद के विश्व में फिट होने के लिए नए व्यापार मॉडल खोजने में मशगूल हैं, और यह वह मौका है जहां बी-स्कूल शोध और समाधान के साथ योगदान कर सकते हैं. तो, मामला सीधा-सा है—नतीजा दिखाओ या मिट जाओ. 

नए और तेजी से विकसित होने वाले कारोबारी माहौल के लिए नए पाठ्यक्रम शुरू करने के अलावा, बी-स्कूलों को प्रौद्योगिकी को शामिल करके महामारी के बाद की कक्षाओं को संरचनात्मक रूप से बदलना होगा. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कक्षा के अनुभव के प्रसारण को बेहतर बनाने के लिए एयर-माइक, विशेष रोशनी और स्टेज के साथ क्लासरूम तेजी से किसी स्टूडियो में तब्दील हो जाएंगे.

मैनेजमेंट प्रोग्राम के लिए दूरस्थ कक्षाओं में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या 30-35 प्रतिशत है जो आगे बढ़ेगी ही. संस्थानों के लिए, इस बदलाव के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करना आसान होगा लेकिन पहले जैसे बौद्धिक और भावनात्मक अनुभव प्रदान करना वास्तविक चुनौती होगी. शिक्षक खुद को इन परिवर्तनों के अनुकूल कितनी तेजी से ढाल लेते हैं, बी-स्कूलों की सफलता के लिए बिलाशक यह बात बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है. 

बहरहाल, एआइएमए की कल्पना 2025 तक प्रबंधन शिक्षा के लिए देश को दूसरा सबसे अच्छा ग्लोबल हब बनाने की है. उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, विशेष रूप से कोविड-19 से प्रभावित और बदली हुई दुनिया में, देश के बी-स्कूलों को एक मूलभूत परिवर्तन के दौर से गुजरना होगा. 

2013 में एक एसोचैम की रिपोर्ट में प्रबंधन संस्थानों को बुनियादी ढांचे में सुधार करने, अपने संकाय को प्रशिक्षित करने, उद्योग लिंकेज पर काम करने, अनुसंधान और ज्ञान सृजन पर पैसा खर्च करने के साथ अच्छे शिक्षकों को आकर्षित करने के लिए अपने संकाय को अच्छा भुगतान करने की सलाह दी गई थी.

इन सबके अलावा, उन्हें अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए भविष्य की योजनाओं के साथ तैयार होना चाहिए और देश की युवा आबादी की वास्तविक संभावनाओं को उभारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यकीनन तभी तस्वीर बदलेगी, वरना कोविड-19 के बाद वजूद को बचाए रखना आसान नहीं हो सकता. 

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टॉप-10 बिजनेस स्कूल में औसत प्लेसमेंट 13 प्रतिशत बढ़ा जबकि टॉप 25 बिजनेस स्कूल में यह 10 प्रतिशत और टॉप 100 बिजनेस स्कूल में 8 प्रतिशत रहा

साल 2020 में टॉप 10 बिजनेस स्कूल में से 8 में इंटरनेशनल प्लेसमेंट दिखा जबकि 2019 में यह संख्या 7 थी
टॉप 100 में शुमार बिजनेस स्कूल में घरेलू औसत सालाना वेतन 2019 से 2020 के बीच सरकारी सरकारी बी-स्कूल में 13 प्रतिशत बढ़ा और निजी बी-स्कूल में 5 प्रतिशत

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टॉप 25 बिजनेस स्कूलों में औसत बैच क्षमता पिछले साल के मुकाबले हालांकि 13.3 प्रतिशत बढ़ी है लेकिन टॉप 100 संस्थानों में इसमें 3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है 

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टॉप 100 संस्थानों में सरकारी बी-स्कूलों में बैच साइज पिछले साल के मुकाबले 23 प्रतिशत बढ़ा लेकिन निजी बी-स्कूलों में यह 10 प्रतिशत घट गया
 

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