सोनाली आचार्जी
माइलैब के शोध और विकास प्रमुख विषाणु विज्ञानी मीनल दाखवे भोसले ने 18 मार्च को दो अहम प्रस्ताव रखे—पहला पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान के और दूसरा केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के सामने—ताकि नई आरटी-पीसीआर कोविड जांच किट को मंजूरी मिल सके. उस समय भारत में रोजाना 1,000 टेस्ट ही हो पा रहे थे जो अब रोजाना 15 लाख के मुकाबले कुछ भी न था.
इसकी एक प्रमुख वजह टेस्ट किट का अभाव था. माइलैब की किट कोविड की जांच के लिए देश में बनी पहली किट थी. इसने न केवल गलती की संभावना को बहुत कम किया बल्कि यह पक्का किया कि जांच के स्तर में तेजी लाई जा सके.
माइलैब के एमडी हंसमुख रावल कहते हैं, ''मार्च अंत में जब हमने अपना किट पेश किया तो बाजार में उपलब्ध किट काफी महंगे थे. हमारी किट उस समय आइसीएमआर की निर्धारित दर की एक-चौथाई कीमत पर मिल रही थी.'' माइलैब किट के कारण गलत नेगेटिव आने की संभावना भी काफी कम हो गई है.
रावल बताते हैं, ''इसकी जांच डिजाइन ऐसी है कि वायरस में से कई जीन पहचाने जा सकते हैं. खास है होम जीन जो हल्का-सा भी संक्रमित होने पर केस पकड़ सकता है.''
क्यों जीता भारत की पहली आरटी-पीसीआर टेस्ट किट विकसित की किट ने 12 लाख लोगों को लाभ पहुंचाया इसकी कॉम्पैक्ट एक्सल मशीन की मदद से आरटी-पीसीआर टेस्ट ऑटोमैटिक हो जाता है जिससे मानवश्रम की लागत घटी