पुराचि तलैवि (क्रांतिकारी नेता), जे. जयललिता का निधन दिसंबर 2016 में हुआ था, उससे बमुश्किल सात महीने पहले उनकी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) ने तमिलनाडु में लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीता था. उनकी मृत्यु के बाद पार्टी और राज्य में खासी उथल-पुथल हुई. इनमें जयललिता की सहेली और विश्वासपात्र वी.के. शशिकला के उत्तराधिकारी के रूप में उभरने और फिर दशकों पुराने आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल जाने, पार्टी से टूटकर अलग हुए ओ. पन्नीरसेल्वम गुट और आधिकारिक एडप्पडी के. पलानीस्वामी गुट के फिर से साथ आने (कुछ का कहना है कि यह मेल भाजपा ने कराया) और पलानीस्वामी के मुख्यमंत्री बनने जैसी घटनाएं प्रमुख हैं.
लेकिन इस सब के बीच एक बात स्पष्ट है कि प्यार से अम्मा के नाम से बुलाई जाने वालीं जयललिता मृत्यु के बाद भी प्रदेश की राजनीति में खासा असर रखती हैं. एक और विधानसभा चुनाव (अप्रैल 2021) नजदीक आ रहा है और अन्नाद्रमुक को एक बार फिर अम्मा के नाम का ही आसरा है. पार्टी मुख्यमंत्री पलानीस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार के प्रदर्शन, अम्मा की कल्याणकारी योजनाओं और 'अम्मा की विरासत' को आगे रखकर सत्ता में लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल करने की उम्मीद में है.
और उनकी विरासत के प्रति श्रद्धाभाव दर्शाने के लिए चेन्नै के पोएस गार्डन स्थित वेद निलयम से बेहतर जगह दूसरी क्या हो सकती है, जो लगभग आधी सदी तक अम्मा का दफ्तर और घर रहा है. तमिलनाडु के लोगों के लिए यह घर जयललिता का पता मात्र नहीं रहा है बल्कि उनकी नजर में अम्मा की आत्मा यहीं बसती है. राज्य सरकार ने अब वेद निलयम के अधिग्रहण के लिए एक कानून पारित किया है और इसे अन्नाद्रमुक की उस आदर्श शख्सियत के स्मारक में बदला जाएगा.
पिछले पांच महीनों में एक चतुराई भरा कदम उठाते हुए सरकार ने उचित प्रक्रियाओं के पालन का दावा करते हुए घर का नियंत्रण लेने संबंधी अध्यादेश पारित किया. सरकार ने घर की सारी सामग्री को नियंत्रण में ले लिया और भूमि तथा राजस्व कानूनों को लागू करते हुए घर पर पूरी तरह से वैध नियंत्रण प्राप्त करने के लिए 16 सितंबर को विधानसभा से इसकी मंजूरी भी ले ली. इस सारी कवायद के बीच सरकार ने जयललिता के उत्तराधिकारियों और उनके भाई जे. जयकुमार के बच्चों जे. दीपा और जे. दीपक के दावों को अनदेखा कर दिया.
अपनी बुआ की मौत के बाद से ही दोनों राज्य सरकार से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. जब वे जीवित थीं, तब एक दशक से अधिक समय तक उनका अपनी बुआ से कोई संपर्क नहीं था क्योंकि वे अन्नाद्रमुक प्रमुख के आसपास बनाए गए शशिकला के षड्यंत्रों के घेरे को कभी भेद नहीं पाए. दोनों ने वापसी की है. हालांकि दीपक ने उनका अंतिम संस्कार किया था और खुद को जयललिता की संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने की कोशिश की जबकि दीपा खुद को अम्मा की राजनैतिक उत्तराधिकारी बताती हैं.
उनकी और साथ ही साथ अन्नाद्रमुक की भी चुनौती इस तथ्य से जटिल हो जाती है कि अम्मा कोई वसीयत छोड़कर नहीं गई हैं. उस समय उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का घेरा भी था. उनकी मृत्यु के बमुश्किल 10 हफ्ते बाद 14 फरवरी 2017 को अदालत ने फैसला सुनाया. न्यायाधीशों ने फैसले में उन्हें (मरणोपरांत) और शशिकला समेत तीन अन्य सह-अभियुक्तों पर गलत तरीके से धन अर्जित करने और एक दूसरे की संपत्ति हड़पने के लिए एक आपराधिक साजिश रचने का भी दोषी माना. इसमें 'दूसरों के नाम' का उपयोग करके भारी पैमाने पर संपत्तियों की खरीद शामिल थी. शीर्ष अदालत की टिप्पणी थी कि जयललिता स्वयं को इन अपराधों के प्रति 'अनजान' होने का दिखावा करते हुए सार्वजनिक पद का दुरुपयोग कर रही थीं जबकि वे स्वयं इसकी मुख्य साजिशकर्ता थीं. अदालत ने शशिकला को चार साल के लिए जेल भेज दिया.
इस बीच सरकार ने दीपक और दीपा को कानूनी रूपी से जयललिता का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद विरासत की लड़ाई अदालत में पहुंच गई. 2018 में दीपक ने वसीयत के अभाव में प्रशासनिक आदेश जारी करने के अनुरोध के साथ मद्रास हाइकोर्ट में याचिका दायर की. अदालत में बयान दर्ज होने के बाद और दलीलें शुरू होने से पहले अन्नाद्रमुक के दो कार्यकर्ताओं—के. पुगजेंती और पी. जानकीराम ने भी पार्टी के फोरम अम्मा पेरवै के पदाधिकारियों के रूप में हाइकोर्ट में याचिका दायर कर दी.
इसमें अपील की गई थी कि 913.41 करोड़ रुपए अनुमानित मूल्य वाली जयललिता की संपत्ति का प्रबंधन राज्य सरकार की ओर से होना चाहिए. दीपक ने इसे चुनौती दी और कहा कि यह विरासत उनकी है और संपत्ति का अनुमानित मूल्य जैसा कि कोर्ट को बताया गया था, उससे काफी कम 188.48 करोड़ रुपए है.
आखिरकार इस साल 27 मई को दो न्यायाधीशों की पीठ ने अन्नाद्रमुक के दावे को खारिज कर दिया. अपने आदेश में न्यायधीशों ने दीपक और दीपा को इसका कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया. उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए, जिसमें वेद निलयम की संपत्ति के एक हिस्से को स्मारक में बदलने के बाद मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास-सह-कार्यालय बनाया जा सकता है. उन्होंने राज्य को भाई-बहनों को (उनके खर्चे पर) सुरक्षा प्रदान करने को कहा क्योंकि उनकी सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है. न्यायाधीशों ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार वारिसों की सहमति से वेद निलयम का अधिग्रहण कर सकती है.
अन्नाद्रमुक सरकार ने हालांकि फैसले पर ध्यान नहीं दिया और घर को अपने कब्जे में ले लिया. वारिसों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई. सरकार की इस हरकत को भाई-बहनों ने अदालत में चुनौती दी है, दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा है. इस बीच एक रिट याचिका के लंबित होने के बावजूद राज्य सरकार ने अध्यादेश की मदद से अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू करा दी. यह अध्यादेश विचित्र रूप से बताता है कि संपत्ति का कोई कानूनी उत्तराधिकारी मौजूद नहीं हैं. अधिग्रहण को चुनौती देने के लिए दायर दीपा और दीपक की रिट याचिका को डिविजन बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना अभी बाकी है. उनका तर्क है कि इसमें कोई जनहित नहीं है जैसा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के बारे में कहा गया है.
सरकार ने वेद निलयम का नाम बदलकर इसे पुराचि तलैवि जे. जयललिता मेमोरियल कर दिया है. हालांकि इसकी सामग्री को क्यूरेट करना एक चुनौतीपूर्ण काम है पर सरकार विधानसभा चुनाव से पहले इसके भव्य उद्घाटन की उम्मीद कर रही है. अन्नाद्रमुक की योजना लोगों को यह दिखाने की है कि आखिर अम्मा कैसे रहती थीं और राज्य में द्रविड़ शासन के एक असाधारण युग में लोगों के कल्याण के लिए कैसे काम करती थीं. मद्रास विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और सार्वजनिक प्रशासन विभाग के मुखिया प्रो. रामू मणिवन्नन कहते हैं, ''सरकार अपनी सत्ता जाने से पहले जयललिता के घर के बारे में लोगों की लोकप्रिय कल्पना को स्मारक के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है, जिससे दीपा या शशिकला भी प्रत्यक्ष/परोक्ष प्रभाव का उपयोग करके संपत्ति पर अधिकार प्राप्त न कर सकें. सरकार को यह उम्मीद भी है कि एक 'स्मारक' के रूप में अम्मा की विरासत को दर्शाने से उसे चुनाव में भी लाभ होगा. जहां तक राजनैतिक विरासत की बात है, भाई-बहन कहीं नहीं टिकते. दीपा अपनी महत्वाकांक्षाओं के बावजूद, मामूली मोहरा ही हैं और दीपक ने पहले से ही घोषणा कर दी है कि राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं.'' विश्लेषकों का कहना है कि दोनों की सारी रुचि बस जया की दौलत पाने तक ही सीमित रहने वाली है.
पार्टी को सबसे बड़ी चुनौती शशिकला से मिल सकती है, जिन्हें जनवरी 2021 में जेल से रिहा किया जा सकता है. विश्लेषकों का मानना है कि वे राजनैतिक रूप से अपना अस्तित्व बनाए रखने और अपने वित्तीय साम्राज्य की रक्षा करने के लिए जयललिता की विरासत पर दावा करने में बहुत चौकन्ना रहेंगी. मणिवन्नन कहते हैं, ''वे जानती हैं कि विरासत पर दावा करने में अगर कोई जल्दबाजी दिखाई तो लोग उन्हें खारिज कर देंगे. तमिलनाडु अभी भी जयललिता की सारी परेशानियों, उनके जीवन की सारी अशांति और दुखद मौत के लिए शशिकला को ही जिम्मेदार मानता है.'' पोएस गार्डन में शशिकला का नया घर, वेद निलयम के बहुत पास है और आकार में लगभग उतना ही बड़ा है. यह घर शशिकला के स्वामित्व वाली 65 बेनामी संपत्तियों में से एक है, जिसके लिए आयकर (आइटी) अफसरों ने सितंबर की शुरुआत से कुर्की का नोटिस दिया था. यह घर श्री हरि चंदन एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के नाम से खरीदा गया था. यह उनके एक रिश्तेदार के स्वामित्व वाली लिमिटेड कंपनी है. 65 संपत्तियों का संयुक्त मूल्य 300 करोड़ रुपए से अधिक है. पिछले साल आइटी अफसरों ने नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद उनके हाथों कथित तौर पर खरीदी गई 1,500 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क की थी. इसमें चेन्नै का एक मॉल और पुदुच्चेरी का एक रिजॉर्ट शामिल था.
शशिकला और 'मन्नारगुडी माफिया' का पलानीस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार और पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाली पार्टी में भी काफी प्रभाव है. मणिवन्नन कहते हैं, ''अगर शशिकला अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश करती हैं तो यह नाजुक संतुलन गड़बड़ा जाएगा. अगर दोनों नेताओं के बीच की खींचतान बढ़ जाती है तो वह दो लड़ती बिल्लियों के बीच मध्यस्थता करने वाले बंदर की भूमिका निभाने को सामने आ सकती हैं.'' मुख्यमंत्री और उनके डिप्टी दोनों भी इस बात को लेकर सचेत हैं. उन्हें प्रतिद्वंद्वी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) को सत्ता से बाहर रखने के लिए एकजुट होकर चुनाव में उतरना पड़ेगा.
पार्टी के लिए एक और संकट 'दो पत्तियों' वाले चुनाव चिह्न को खोने का मंडरा रहा है. चुनाव विश्लेषक एन. सत्यमूर्ति बताते हैं, ''पार्टी के संस्थापक एम.जी. रामचंद्रन के निधन के बाद 1989 के गुटीय चुनावों ने दिखाया था कि कैसे अन्नाद्रमुक कार्यकर्ता और पारंपरिक मतदाता 'दो पत्तियों' वाले चुनाव चिह्न के न होने से निराश हो गए थे. अन्नाद्रमुक के भीतर के झगड़े के कारण चुनाव आयोग उस चुनाव चिह्न को जब्त कर सकता है और अदालतों के माध्यम से विवाद के निबटारे में समय लग सकता है... हो सकता है कि फैसला विधानसभा चुनाव के बाद आए.'' इन सारी बाधाओं को देखते हुए उम्मीद की जाती है कि पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम अपने राजनैतिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए कुछ विवेकपूर्ण फैसले लेंगे.