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उत्तराखंडः नैनीताल के वजूद पर संकट

बार-बार हो रहे भूस्खलन से इस शहर पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है, लेकिन राज्य सरकार उदासीन

अमित साह
अमित साह
अपडेटेड 13 जून , 2020

अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर नैनीताल की चारों दिशाओं में सक्रिय भूस्खलन उत्तराखंड के इस पर्यटक स्थल के अस्तित्व पर संकट खड़ा करता दिख रहा है. मॉनसून शुरू होने में कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन नैनीताल की बुनियाद समझा जाने वाला बलिया नाला क्षेत्र हो या उसका शीर्ष माना जाने वाला नैना पीक, भुजा समझी जाने वाली टिफन टॉप पहाड़ी या फिर स्नो-व्यू, सभी क्षेत्रों में लगातार भूस्खलन हो रहे हैं.

26 मई को शहर के किलबरी रोड में स्थितहिमालय दर्शन पॉइंट के पास टांकी बैंक से करीब एक किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे नजर आए. लेकिन, इन सक्रिय भूस्खलनों का कोई उपचार अभी शुरू तक नहीं हो पाया. उत्तराखंड सरकार 13 जिलों में 13 नए पर्यटक केंद्र बनाने का दावा करती है, जबकि नैनीताल के अस्तित्व पर आए संकट को टालने की उसके पास कोई योजना नहीं दिखाई देती. नतीजतन, चौतरफा संकटों से घिरा नैनीताल अपने हाल पर आंसू बहाने को मजबूर है.

दरअसल, नैनीताल की 2,610 मीटर ऊंची चोटी नैना पीक पर लगभग 40 फुट लंबी और आधे से तीन फुट तक चौड़ी दरार नजर आ रही है. इससे पहले इसी साल 29 जनवरी और 2 फरवरी को भी नैना पीक की पहाड़ी दरकी थी, जिसके बाद जिला प्रशासन की टीम ने लोक निर्माण विभाग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ), आपदा प्रबंधन और भू-वैज्ञानिकों के साथ मिलकर टूटी पहाड़ी का निरीक्षण किया था.

उन्होंने पहाड़ी का ट्रीटमेंट किए जाने की बात भी कही थी, लेकिन अब तक कोई काम शुरू नहीं हो पाया है. इस साल 5 अप्रैल को नैना पीक की तलहटी पर बसे सैनिक स्कूल के प्रिंसिपल बी.एस. मेहता ने नैना पीक पर पहाड़ी के धूल और धुएं के गुबार के साथ सरकने का वीडियो बनाया. इस पहाड़ी के सरकने से आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों में हड़कंप मच गया. लोग अब भी डरे हुए हैं. इन दिनों इस पहाड़ी पर पड़ी इस लंबी-चौड़ी दरार को क्षेत्र के लिए गंभीर खतरे के रूप में देखा जा रहा है.

जनवरी और फरवरी में नैना पीक में हुई भूस्खलन की घटना को चेतावनी माना जा रहा था. इन घटनाओं के बाद जिला प्रशासन ने नैना पीक के संरक्षण कार्यों के सुझाव और भूस्खलन के कारणों की जांच के लिए एक हाइपावर कमेटी गठित की थी. इस कमेटी में वाडिया इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ और अन्य भू-वैज्ञानिक शामिल थे. कमेटी को विस्तृत रिपोर्ट देनी थी. लेकिन लॉकडाउन के कारण इस कमेटी का कोई कार्य आगे नहीं बढ़ पाया.

यहां चाइनापीक की तलहटी में हजारों लोग रहते हैं, जहां हाइकोर्ट परिसर समेत मुख्य न्यायाधीश, अन्य न्यायाधीशगण और महाधिवक्ता के आवास, केएमवीएन मुख्यालय, उत्तराखंड प्रशासन अकादमी, भारतीय शहीद सैनिक स्कूल सहित कई महत्वपूर्ण होटल और सैकड़ों आवासीय मकान स्थित हैं. साल 1993 में अतिवृष्टि के कारण चाइनापीक की पहाड़ी दरकी तो पेड़ और मलबा बहकर नीचे इलाकों तक पहुंच गया था. उस भारी भूस्खलन से तत्कालीन ब्रुक हिल हॉस्टल (वर्तमान में हाइकोर्ट का भवन), पंत सदन (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश का आवास), गैस गोदाम, स्विस होटल और शेरवानी होटल से लगे क्षेत्र प्रभावित हुए थे.

झील को जाने वाले सभी नालों के मलबे से भर जाने से शहर में हाहाकार मच गया था. तब इन क्षेत्रों से बड़ी आबादी को विस्थापित कर अन्यत्र शिफ्ट किया गया था. चाइनापीक पहाड़ी का ट्रीटमेंट किया गया था. सैनिक स्कूल से लेकर हंस निवास तक और सत्यनारायण मंदिर तक सुरक्षा दीवार बनाई गई थी. इसके बाद तत्कालीन यूपी सरकार ने इस पहाड़ी की सुरक्षार्थ कदम उठाते हुए यहां से आने वाले मलबे को आबादी क्षेत्र में आने से रोकने के लिए कैच पिट बनाए थे. ये कैच पिट इस पहाड़ी के दरकने से आने वाले मलबे को संभालते रहे. बाद में इन कैच पिट में भरे मलबे ने वनस्पतियों के उग आने से स्थायित्व पाकर पहाड़ी को कुछ हद तक स्थायित्व भी प्रदान कर दिया. इसने तीन दशक के लगभग इस पहाड़ी को स्थायित्व प्रदान करने में महती भूमिका निभाई. लेकिन अब एक बार फिर नैनीताल के इस क्षेत्र में ही नहीं बल्कि शहर के विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन हो रहा है.

शहर का वक्ष स्थल समझे जाने वाले लोवर मॉल रोड के धंसने के कारण अपर मॉल रोड भी खतरे की जद में है. दरअसल, मॉल रोड के ठीक ऊपर की पहाड़ी के भीतर भारी मात्रा में पानी रिसकर पहुंच रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि पहाडिय़ों में जल-रिसाव रोकने के लिए नालों की मरम्मत बेहद जरूरी है. लेकिन, चिंता की बात यह है कि रिसाव के पानी को झील तक पहुंचाने वाले 12 नाले लुप्त हो चुके हैं. ये सभी नाले संवेदनशील क्षेत्रों में थे. वर्ष 1880 में शेर का डांडा पहाड़ी में भूस्खलन हुआ था जिसने नैनीताल को भारी नुक्सान पहुंचाया था. नैनीताल की लोवर मॉल रोड का बड़ा हिस्सा नैनी झील में धंस गया था. शहर की बुनियाद बलिया नाला की पहाडिय़ों का दरकना भी निरंतर जारी है. बलिया नाला पर स्थित रईस होटल, हरिनगर और जीआइसी क्षेत्र में इसके बढ़ते खतरे के मद्देनजर वहां बसे अधिकतर परिवारों को बरसात में शिफ्ट किया जाता है.

शहर केनए भूस्खलन क्षेत्र बारापत्थर किलबरी रोड में 26 मई को टांकी बैंक के पास सड़क पर गड्ढे दिखना भी नैनीताल के लिए एक और खतरे की घंटी है. इन्हीं गड्ढों के पास लंबी दरार भी खुलती दिखाई दे रही है, जिसके कारण सड़क कभी भी धंस सकती है. कुमाऊं विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर राजीव उपाध्याय का कहना है, ''नैनीताल की नैनी झील ही एक दरार में बनी है जिसे नैनी लेक फॉल्ट कहा जाता है. इस फॉल्ट का विस्तार नैना पीक से भी आगे तक है.

इसके अलावा टिफिन टॉप और स्नो-व्यू की ओर भी इसकी ब्रांच हैं. इनके समय-समय पर सक्रिय होने से ही ऐसी दरारें आ रही हैं. वैसे पक्के तौर पर अभी हुआ क्या है, इसका पता तो स्थलीय निरीक्षण से चल सकेगा. लेकिन यह तय है कि बरसात से पहले इस तरह की घटनाओं का स्थलीय निरीक्षण कराकर, विशेषज्ञों के साथ मिलकर विभागीय अधिकारियों को बचाव के लिए कार्रवाई करनी चाहिए, वरना बरसात में यह शहर के लिए घातक साबित हो सकता है.''

लेकिन, सरकार भूस्खलन से बचाव के उपायों से आंखें फेरे हुए है. उसकी उदासीनता शहर और वहां के लोगों पर भारी पड़ सकती है. पिछले साल मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बलिया नाला भूस्खलन क्षेत्र का मुआयना किया था. उन्होंने बताया था कि भूस्खलन क्षेत्रों का स्थायी उपचार करने में एक्सपर्ट जापानी कंपनी जायका को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं. नैनीताल के जिलाधिकारी सविन बंसल ने बलिया नाला के प्रभावित क्षेत्र का भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की टीम से ड्रोन मैपिंग, कोन्टूर मैपिंग और जीएसआइ से सर्वे कराया था, ताकि उसकी भौगोलिक स्थिति प्रशासन को पता रहे.

वहीं, उत्तराखंड हाइकोर्ट बार के पूर्व अध्यक्ष सैयद नदीम खुर्शीद की जनहित याचिका पर हाइकोर्ट ने सितंबर, 2018 में एक हाइपावर कमेटी बनाई थी. कोर्ट ने कमेटी को अधिकार दिया था कि वह विश्व की किसी भी संस्था से मदद ले सकती है. पर खुर्शीद के मुताबिक, सभी आदेश सरकारी फाइलों में फंसकर रह गए. वहीं, इसरो की टीम ने जुलाई 2019 में बलिया नाला के क्षेत्र का हाइ-रिजॉल्यूशन ड्रोन सर्वे और जीपीएस सर्वे किया था. इन सबके बावजूद अब तक नतीजा सिफर ही रहा और नैनीताल के लोग दहशत में जीने को मजबूर हैं.

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