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उत्तराखंड: लो, लौट चले गांव की ओर

कोरोना महामारी के बाद उत्तराखंड के बाहर रह रहे 59,360 लोग वापस लौट आए हैं. फिलहाल जो प्रवासी लौटे हैं उनमें 65 फीसद लोग विभिन्न राज्यों और पांच फीसद लोग विदेश से लौटे हैं.

पहाड़ों में प्रवासियों के लौटने से आबाद हो रहे बंजर खेत
पहाड़ों में प्रवासियों के लौटने से आबाद हो रहे बंजर खेत
अपडेटेड 4 मई , 2020

अखिलेश पांडे

उत्तराखंड के बारे में कहा जाता है कि यहां की बहुत बड़ी आबादी देश और विदेशों में प्रवास पर है. राज्य में पलायन से करीब 17,000 गांव पूरी तरह जन-शून्य हो चुके हैं और यह पलायन लगातार जारी है. लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद इसका उलटा होता नजर आ रहा है. दरअसल, कोरोना वायरस की वजह से उत्तराखंड के गांवों से पलायन रुका है, वहीं इससे रिवर्स पलायन की प्रक्रिया भी शुरू हुई है. उत्तराखंड पलायन आयोग के मुताबिक, कोरोना महामारी के चलते 59,360 से ज्यादा लोग विभिन्न प्रदेशों से उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में अपने गांवों में लौट आए हैं.

राज्य के जिन जिलों में ये प्रवासी लौटे हैं उनमें पौड़ी, अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, टिहरी, उत्तरकाशी, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, नैनीताल और चमोली शामिल हैं. पलायन आयोग वापस लौटी इस मानव संसाधन को प्रदेश में ही रोकने और उनके लिए रोजगार के साधन जुटाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण भी करा रहा है. राज्य सरकार ने आजीविका के संसाधनों में वृद्धि के उपाय सुझाने का जिम्मा पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता में गठित समिति को सौंपा है. समिति की पहली बैठक हो चुकी है. सर्वेक्षण में यह पता लगाया जाएगा कि लोग किन परिस्थितियों में पलायन को मजबूर होते रहे हैं. समिति यह भी सुझाव देगी कि पलायन पर आमादा लोगों को अपने मूल गांवों में खेती-किसानी, पर्यटन व्यवसाय, होटल, होम स्टे समेत रोजगार के नए अवसरों का लाभ देकर प्रदेश में ही अपना योगदान देने के लिए किस तरह प्रेरित किया जा सकता है.

हालांकि जो प्रवासी वापस लौटे हैं, वे राज्य गठन के बाद पलायन कर चुके करीब 15 लाख लोगों की आबादी का महज एक छोटा-सा हिस्सा हैं. ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की ओर से रिवर्स पलायन को लेकर सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी देश के अन्य हिस्सों में रह रहे प्रवासी अपने गांव लौट सकते हैं. फिलहाल जो प्रवासी लौटे हैं उनमें 65 फीसद लोग विभिन्न राज्यों और पांच फीसद लोग विदेश से लौटे हैं. आयोग की रिपोर्ट में दावा है कि इनमें से 30 फीसद ने लॉकडाउन खुलने और स्थिति सामान्य होने के बाद गांव में ही रुकने की इच्छा जताई है.

आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एस.एस. नेगी के मुताबिक, उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुलाकात कर यह रिपोर्ट सौंपी और इसमें शामिल बिंदुओं तथा सुझावों के संबंध में विस्तार से जानकारी देते हुए सचेत भी किया कि रिवर्स पलायन के बाद पहाड़ में प्रतिव्यक्ति आय में कमी आ सकती है. रिवर्स पलायन के बाद स्थितियां बदली हैं. गर्मियों में पर्यटन से होने वाली आय पर असर पड़ेगा तो वेलनेस सेक्टर का भी प्रभावित होना तय है. इसे देखते हुए प्रवासियों के आर्थिक पुनर्वास का अभियान चलाने की जरूरत है.

पर उत्तराखंड सांख्यिकी के पूर्व निदेशक वाइ.एस. पांगती कहते हैं, ''राज्य से बाहर गए लोगों की संख्या के अनुपात में वापस लौटे लोगों की संख्या इतनी कम है कि यह अनुमान गलत है कि राज्य की प्रतिव्यक्ति आय और जीडीपी घट जाएगी.'' हालांकि यह सच है कि राज्य की 30 फीसद से अधिक आर्थिकी मनीऑर्डर पर टिकी है. आजीविका के लिए राज्य से बाहर गए लोग अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने परिजनों को भेजते हैं. वैसे, राज्य में पर्वतीय क्षेत्र की आबादी करीब 45 लाख है, ऐसे में करीब 60 हजार लोगों के आने से कोई विशेष अंतर आएगा, ऐसा कहना जल्दबाजी है. जरूरी नहीं कि माहौल सामान्य होने के बाद ये लोग यहां टिके रहेंगे.

आयोग की रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री ने कहा है कि जो प्रवासी गांव में रहकर कुछ करने के इच्छुक हैं, उन्हें सरकार पूरा सहयोग करने को तैयार है. प्रवासियों से सुझाव लेने के लिए एक फॉर्म भी भरवाया जा रहा है, जो इंटरनेट और सरकारी साइट्स पर उपलब्ध है. वहीं, उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड के चीफ एग्जीक्यूटिव रहे डॉ. कमल सिंह कहते हैं कि अगर सरकार प्रवासियों को भरोसा दिला सके कि सरकार उनको सहयोग करेगी तो गांवों में खाली पड़ी जमीन पर फिर से फसलें लहलहा सकती हैं.

लोगों को औद्योगिकी के साथ ही ग्रामीण पर्यटन, साहसिक पर्यटन, एग्री पर्यटन से भी जोड़ा जा सकता है. इससे आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हुए दुग्ध उत्पादन, पशुपालन और मछलीपालन जैसे कामों में भी तेजी आ सकती है. वे कहते हैं कि इसके लिए कार्ययोजना कार्यस्थल पर जाकर ही बनाई जानी चाहिए.

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