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सामाजिक सरोकारः सामाजिक योद्धा

प्रोजेक्ट डोर अक्तूबर, 2016 में शुरू हुआ और बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की प्रवासी महिलाओं के साथ मिलकर काम करता है. वे निओ-एथनिक डिजाइनों में दस्तकारी के रूमाल, दुपट्टे और तकिए कवर आदि बनाते हैं.

कला के लिए स्तुति राय (बाएं) और अक्षिता शर्मा प्रोजेक्ट डोर की सदस्यों के साथ
कला के लिए स्तुति राय (बाएं) और अक्षिता शर्मा प्रोजेक्ट डोर की सदस्यों के साथ
अपडेटेड 18 मार्च , 2020

दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र सामाजिक आर्थिक उत्थान की दिशा में एक सघन अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. इसमें वे गैर-मुनाफा अंतरराष्ट्रीय संस्था एनैक्टस के जरिए टाई ऐंड डाई की भारतीय शिल्पकला को फिर से जिंदा कर रहे हैं. प्रोजेक्ट डोर अक्तूबर, 2016 में शुरू हुआ और बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की प्रवासी महिलाओं के साथ मिलकर काम करता है. वे निओ-एथनिक डिजाइनों में दस्तकारी के रूमाल, दुपट्टे और तकिए कवर आदि बनाते हैं. प्रोजेक्ट के साथ दिल्ली का एक एनजीओ दीपालय भी जुड़ा है.

सही-सही बनाना

दानिका कुमार की अगुआई में इस प्रोजेक्ट में 30 लोग हैं जो वित्त, उत्पादन, परिचालन, मार्केटिंग, जनसंपर्क और सामुदायिक विकास के साथ प्रशिक्षण जैसे पहलुओं पर काम करते हैं. खर्च प्रोजेक्ट से ही निकाला जाता है और डोर की कमाई इस पहल को बढ़ाने में लगा दी जाती है. फेस्टिवल, होटलों में स्टॉल, प्रदर्शनियों, ई-कॉमर्स वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए ग्राहकों तक पहुंचा जाता है.

एनैक्टस की सदस्य अक्षिता शर्मा कहती हैं, ''डोर के अलाबा हम स्याही प्रोजेक्ट के लिए भी काम कर रहे हैं. यह प्लास्टिक के पेन का विकल्प मुहैया करवाकर सिंगल-यूज प्लास्टिक के प्रयोग को कम करता है. हम रिसाइकल किए गए कागज से पेन बनाते हैं जिसके पिछले सिरे पर उगाया जा सकने वाला बीज होता है. इसकी शुरुआत सितंबर, 2019 में की, जब एक सर्वे से हमें एहसास हुआ कि लोग खरीदे गए 90 फीसद पेन खो देते हैं.'' फिलहाल मैत्रेयी जोशी स्याही प्रोजेक्ट की प्रमुख हैं.

लंबे कदम

डोर प्रोजेक्ट ने हाल में भारतीय पर्यटन विकास निगम का ध्यान खींचा, जबकि स्याही प्रोजेक्ट को आइबीएम, एम्स, सीएनबीसी तथा इंदिरापुरम और कानपुर के डीपीएस स्कूलों से ऑर्डर मिले हैं.

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