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परिपक्व सोरेन की 'नरम रुख' नीति

सोरेन ने 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में, उन हजारों लोगों के खिलाफ सरकार की ओर से दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने का फैसला लिया, जिन्होंने पिछली भाजपा सरकार के काश्तकारी कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ आंदोलन किया था

एकता का प्रदर्शन रांची में हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में जुटे विपक्षी दलों के नेता
एकता का प्रदर्शन रांची में हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में जुटे विपक्षी दलों के नेता
अपडेटेड 6 जनवरी , 2020

अमिताभ श्रीवास्तव.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में 81 में से 47 सीटों के साथ एक निर्णायक जीत हासिल की. चुनाव परिणाम आने के एक दिन बाद हेमंत सोरेन झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के प्रमुख बाबूलाल मरांडी के घर पहुंचे.

सोरेन को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करने को अनिच्छुक रहे मरांडी नवंबर में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन से अलग हो गए थे और उन्होंने अकेले विधानसभा चुनाव लड़ा. चुनाव नतीजों ने साबित किया कि उनका फैसला नासमझी भरा था. तीन सीट के साथ मरांडी के जेवीएम की राज्य में कुछ खास अहमियत नहीं दिखती फिर भी मरांडी से मिलने और 'सलाह लेने' के लिए सोरेन उनके पास गए. उनके इस शिष्टाचार से मरांडी गद्गद हो गए और नई सरकार को 'बिना शर्त समर्थन' देने की घोषणा कर दी.

इसके बाद, सोरेन ने एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एक मामला वापस ले लिया जो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता रघुबर दास के विरुद्ध दर्ज कराया था. सोरेन ने दास की आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर 19 दिसंबर को शिकायत दर्ज कराई थी. जुलाई, 2013 से दिसंबर 2014 तक अपने पहले कार्यकाल में राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सोरेन टकराने पर आमादा शख्स के रूप में देखे जाते थे. उनकी सरकार मामूली बहुमत पर टिकी थी फिर भी उन्होंने अपने मंत्रिमंडल से तीन मंत्रियों को निकाल दिया था. लेकिन अपनी नई पारी में उन्होंने मैत्रीपूर्ण बर्ताव का विकल्प चुना है.

लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को गठबंधन का नेतृत्व करने दिया और झामुमो के कम सीटों पर लडऩे पर मान गए थे. बदले में, उन्हें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के समर्थन का आश्वासन दिया गया था.

सोरेन ने 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में, उन हजारों लोगों के खिलाफ सरकार की ओर से दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने का फैसला लिया, जिन्होंने पिछली भाजपा सरकार के काश्तकारी कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ आंदोलन किया था. अधिकतर मामले 2017 में दायर किए गए थे. दास सरकार ने दावा किया था कि छोटानागपुर काश्तकारी कानून और संताल परगना काश्तकारी कानून में प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य पुराने कानूनों की खामियों को दूर करना था, पर उन्हें भूमि पर आदिवासी नियंत्रण को कम करने की चाल के रूप में देखा गया. आदिवासियों का गुस्सा चुनाव में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण साबित हुआ.

पत्थलगड़ी आंदोलन ने भी राज्य के खुंटी जिले, उससे सटे रांची और इसके सीमावर्ती क्षेत्रों को हिलाकर रख दिया था और 2017-2018 में हिंसक हो गया था. सोरेन सरकार ने उसमें शामिल कई आदिवासी कार्यकर्ताओं के खिलाफ लगे देशद्रोह के आरोपों को भी हटाने का फैसला लिया. दोनों फैसलों को जनजातीय समुदाय को आश्वस्त करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है—जो कि प्रदेश के कुल मतदाताओं का 26.3 प्रतिशत हैं और वे ही झामुमो का मूल आधार हैं. सोरेन ने यह संकेत भी दिया है कि उनकी सरकार टकराव मोल लेने या प्रतिशोध लेने का इरादा नहीं रखती. वैसे मुख्यमंत्री ने इंडिया टुडे को यह स्पष्ट कर दिया कि जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, उन्हें बिल्कुल नहीं बख्शा जाएगा (देखें बातचीत).

छह महीने पहले हुए आम चुनाव में भाजपा-आजसू गठबंधन ने राज्य की 14 में से 12 लोकसभा सीटें जीत ली थीं. सोरेन ने विपक्षी गठबंधन को साथ रखने में अहम भूमिका निभाई और विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा तथा आजसू के गठबंधन के टूट जाने का पूरा लाभ उठाया. सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में देशभर के विपक्षी दलों के नेताओं का जमावड़ा बताता है कि झारखंड की जीत ने विपक्ष का ध्यान राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होने के फायदों की ओर जरूर आकृष्ट किया होगा. ठ्ठ

सोरेन का शपथ ग्रहण समारोह विपक्षी दलों के शक्ति प्रदर्शन का राष्ट्रीय शो बन गया

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