सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की 30 दिसंबर को भारत के पहले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) के रूप में नियुक्ति, अंग्रेजों की बनाई गई भारत की रक्षा व्यवस्था का आजादी के बाद एक क्रांतिकारी बदलाव है. मंत्रालय चलाने वाली नौकरशाही ने सेना के तीनों अंगों को रक्षा से जुड़ी निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखा था और हरेक के लिए योजना, प्रशिक्षण और खरीद अलग-अलग हुआ करती थी. रक्षा मंत्रालय का संचालन करने वाली नौकरशाही के साथ सैन्य संबंध तनावपूर्ण और कभी-कभी शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं. जनरल रावत के रूप में, सशस्त्र बलों को अब एक सेवारत सैन्य अधिकारी मिल गए हैं जो तेजी से प्रस्तावों को आगे बढ़ाने की शक्ति से लैस हैं.
31 दिसंबर को सेना प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त होने से कुछ घंटे पहले तक उनकी नियुक्ति का फैसला लंबित था जिसकी प्रक्रिया पर कम से कम चार महीने से काम चल रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 15 अगस्त को सीडीएस की नियुक्ति की घोषणा की थी. 1 जनवरी, 2020 को जनरल ने पदभार ग्रहण किया है. इस पद के साथ उन्हें बहुत-सी महत्वपूर्ण शक्तियां मिली हैं तो साथ-साथ बड़ी जिम्मेदारियां भी होंगी. वे उस चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओसीएस) के स्थायी अध्यक्ष भी होंगे जिसके सदस्य तीनों सैन्य सेवा प्रमुख होते हैं.
वे सैन्य मामलों के एक महत्वपूर्ण नए विभाग (डीएमए) के भी प्रमुख होंगे, जिसे नौकरशाही के साथ सेना को एकीकृत करने के लिए रक्षा मंत्रालय के भीतर पांचवें विभाग के रूप में स्थापित किया जाएगा. हालांकि वे सैन्यबलों की कमान नहीं संभालेंगे फिर भी अपनी दुर्जेय जिम्मेदारियों के आधार पर, वह स्वतंत्र भारत में सबसे महत्वपूर्ण वर्दीधारी रक्षा अधिकारी बन जाएंगे. स्वतंत्र भारत में किसी भी सैन्य अधिकारी ने कभी किसी सरकारी विभाग का नेतृत्व नहीं किया है.
सेना प्रमुख के रूप में, जनरल रावत ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े रक्षा बल का आकार उचित करने के साथ शुरुआत करते हुए इसे युद्ध के लिए और अधिक योग्य बनाने तथा संसाधनों की बचत करके उसका इस्तेमाल नई चुनौतियों से निपटने के लिए करके कई बड़े बदलावों की शुरुआत की थी. इनमें सबसे महत्वपूर्ण था एकीकृत बैटल ग्रुप्स (आइबीजी) का निर्माण, जो बहुत तेज गति से सीमापार करके उचित आक्रामक कार्रवाई कर सकता है.
सेना की तैयारियों में बदलाव को लेकर उनकी नई सोच तब भी सामने आई जब उन्होंने अपने सैन्य कमांडरों को ऐसे युद्धों के लिए तैयारी को प्रेरित किया जो कम समय के नोटिस पर और परमाणु युद्ध की आशंका के बीच लड़े जाएंगे. यह पाकिस्तान के खिलाफ भारत सरकार की रणनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू था जिसके जरिए दुश्मन को यह संकेत दिया जा रहा था कि वह हर तरह की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कठोर कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार है.
30 मार्च, 2023 को जब वे 65 वर्ष के हो जाएंगे, जो कि सेवानिवृति की तय उम्र है, उससे पहले उन्हें तीन साल मिलेंगे. इस दौरान जनरल रावत को डीएमए को व्यवस्थित करना और चलाना है, सशस्त्र बलों को रक्षा मंत्रालय के साथ एकीकृत करने की प्रक्रिया शुरू करनी है और इसे निर्णय लेने वाली प्रक्रिया में लेकर आना है.
परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मनों की ओर से एकसाथ आक्रमण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. सशस्त्र बलों की अरबों डॉलर के साजोसामान की खरीद की लिस्ट लंबित है लेकिन रक्षा बजट की वृद्धि पर एक तरह से अनौपचारिक अंकुश लगा हुआ है और बजट की देखते हुए सशस्त्र बलों की यह लंबित खरीद पूरी होती नहीं दिखती. इस अंकुश के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि रक्षा बजट (पेंशन सहित) जीडीपी के 2.2 फीसद से ऊपर है और केंद्र सरकार के कुल व्यय का 15 फीसद है जो ऋणों के एवज में होने वाली अदायगी के बाद दूसरा सबसे बड़ा खर्च है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 1 फरवरी के बजट में भी रक्षा के लिए बजट में बहुत मामूली बढ़ोतरी की ही संभावना है. जनरल रावत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उपलब्ध रक्षा बजट के साथ भारत की रक्षा शक्ति बढ़े. इसके लिए उन्हें सशस्त्र बलों से अपने बजटीय खर्च की प्राथमिकताएं निर्धारित करानी होंगी.
वे सशस्त्र बलों को भी एकीकृत करेंगे और उन्हें एक प्रभावी, सामंजस्यपूर्ण संपूर्ण, या जिसे सैन्यबल 'ज्वॉइंटमैनशिप या संयुक्त कौशल' कहता है, की भावना के साथ संयुक्त रूप से युद्ध की योजना बनाने को प्रोत्साहित करेंगे. वे सशस्त्र बलों को नए दौर के खतरे हाइब्रिड युद्ध का भी डटकर मुकाबला करने को तैयार करेंगे जिसमें दुश्मन पारंपरिक युद्ध कौशल के साथ अनियमित और राजनैतिक युद्ध, साइबर युद्ध और सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के माध्यम से भी एक मानसिक युद्ध लड़ता है. वर्तमान में सेना के पास इन नए, जटिल खतरों से जूझने के लिए कोई विशिष्ट बल नहीं है.
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