scorecardresearch

चाबी भरिए और काम पर चलिए

स्मार्ट घडिय़ां और पारंपरिक घडिय़ां, दोनों ही एक ही तरह की उत्पाद की श्रेणी में, एक जैसी डिजाइन और कलाई पर भले सजती हों, लेकिन उनके ग्राहक एकदम पीतल और सोने की तरह अलग हैं.

सदा के लिए हॉलीवुड अभिनेता पॉल न्यूमैन की 1968 मॉडल की रोलेक्स डेटोना 1.78 करोड़ डॉलर में नीलाम हुई
सदा के लिए हॉलीवुड अभिनेता पॉल न्यूमैन की 1968 मॉडल की रोलेक्स डेटोना 1.78 करोड़ डॉलर में नीलाम हुई
अपडेटेड 15 अक्टूबर , 2019

तुषार सेठी

तकनीक हमेशा नई होती रहती है और हमें एक से दूसरे जादुई संसार में पहुंचाती रहती है. ऐसा ही एक बदलावकारी दौर 1970 के दशक में क्वाटर्ज घडिय़ों का आगमन था. उससे मशीनी घड़ी उद्योग का भट्ठा ही बैठता लगा. लेकिन शानो-शौकत वाली घडिय़ों का बाजार बना रहा और स्मार्ट घडिय़ों तथा स्मार्ट फोन के दौर में भी वह कायम है. स्मार्ट घडिय़ां और पारंपरिक घडिय़ां, दोनों ही एक ही तरह की उत्पाद की श्रेणी में, एक जैसी डिजाइन और कलाई पर भले सजती हों, लेकिन उनके ग्राहक एकदम पीतल और सोने की तरह अलग हैं.

घडिय़ों में बदलाव के सफर में कई बड़े मील के पत्थरों को याद किया जा सकता है. घड़ीसाज या घड़ी बनाने की सबसे पुरानी परंपरा चाबी भर के घड़ी चलाने से शुरू होती है. जेब घडिय़ां, मेज घडिय़ां, हाथ में लेकर चलने या टांगने वाली घडिय़ां और सजने वाली कलाई घडिय़ां, सभी चाबी से ही चलती थीं. हालांकि वह पेचीदी प्रक्रिया थी जिससे घडिय़ां एकदम ठीक-ठीक चक्र पूरा करें.

इससे पैदा हुई सोच और मशीन को अधिक चुस्त बनाने की प्रक्रिया में आदमी लगभग परमाणु जैसा सूक्ष्म तत्व भी बनाने के काबिल हो गया है. बेहद छोटे आकार की कलाई घडिय़ां बनाना चुनौतीपूर्ण था, फिर भी उसे बना लिया गया. उसके बाद क्वाटर्ज और ऑटोमेटिक घडिय़ों के आविष्कार ने समय मापने के मशीनी व्यापार को पीछे धकेल दिया. क्वाटर्ज बैट्री से चलता इसलिए घडिय़ां सस्ती हो गईं और सभी को उपलब्ध होने लगीं जबकि ऑटोमेटिक घडिय़ां हाथ हिलने-डुलने से मिलने वाली काइनेटिक ऊर्जा पर निर्भर थीं.

मौजूदा दौर में डिजिटल क्रांति अपने चरम पर है, कलाई घड़ी अब बहुत कुछ बताने लगी है, यह जान लीजिए कि आपने कितनी कैलोरी खर्च की, या यह फोन कॉल का जवाब देने के काम भी आ सकती है. यानी कलाई पर सजी बहुउपयोगी चीज हो सकती है.

सबके बावजूद आप घड़ी-संग्राहकों और जानकारों से पूछें तो यही बताएंगे कि सबसे पसंदीदा तो चाबी भरने वाली कलाई घड़ी ही है. कई अध्ययनों के बाद ही अष्टगुरु ने 2008 में सबसे अलग 'एक्सेप्शनल टाइमपीसेज' नीलामी शुरू की. आंकड़े बताते हैं कि नीलामी में अब तक सबसे महंगी बिकी कलाई घड़ी चाबी से चलने वाली रोलेक्स डेटोना थी जो पहले हॉलीवुड स्टार पॉल न्यूमैन की हुआ करती थी. 1968 की बनी वह कलाई घड़ी हॉलीवुड अभिनेता को अपनी पत्नी जोएन वुडवार्ड से उपहार में मिली थी.

इसे 2017 में न्यूयॉर्क में नीलामी के लिए रखा गया और यह 1.78 करोड़ डॉलर में बिकी (जिसमें नीलामी घर का हिस्सा/खरीदार का प्रीमियम वगैरह शामिल था). निजी तौर पर मैं इस प्रचलित धारणा से रजामंद हूं कि हाथ से संचालित चीजों का महत्व स्वचालित गतिविधियों से अधिक है क्योंकि उसमें आदमी के कौशल की परीक्षा होती है. चाबी से चलने वाली घड़ी के कई काम रोमांच पैदा कर सकते हैं और विचारों को एकाग्र भी कर सकते हैं

फिर, आज के भागमभाग वाले जीवन में तो घड़ी में चाबी भरना ध्यान लगाने जैसा भी हो सकता है. दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इनका उत्पादन थोक भाव में नहीं होता इसलिए ये मुश्किल से मिलती हैं और मांग भी खास होती है. देखने में भी चाबी भरने वाली कलाई घडिय़ां ज्यादा आकर्षक लगती हैं क्योंकि ये पतली और छोटी होती हैं जबकि ऑटोमेटिक घडिय़ां कलाई पर भारी होती हैं.

अपने खास पहलुओं के अलावा चाबी भरने वाली घडिय़ों में लगा मानव-श्रम उसे बाकियों की तुलना में अधिक मानवीय बना देता है. अंत में, हाथ से बनी घडिय़ां इस मामले में भी ऑटोमेटिक घडिय़ों से महत्व की हैं कि ये मानव सभ्यता में उस छलांग का प्रतीक हैं जब हम दिक्काल में एक हो पाए और आगे का रास्ता तय करने लगे. काल या समय का पहलू सबसे प्रासंगिक है, यह इससे भी साबित होता है कि अमेजन के जेफ बेजोस ने '10,000 साला घड़ी' बनाने का अभिक्रम शुरू किया है.

यह घड़ी दस सहस्राब्दियों तक काम करेगी और मकसद यह बताना है कि हमारी प्रजाति की विरासत कितनी लंबी है. कुल मिलाकर असली बात यह है कि हमारी जो हकीकत है, उसका बयान समय ही करेगा. इस मायने में हाथ से संचालित घड़ी हमारे सफर को ज्यादा विस्तार से बताती है.

—तुषार सेठी, सीईओ, अष्टगुरु डॉटकॉम.

***

Advertisement
Advertisement