अक्सर सूखे की चपेट में रहने वाले कर्नाटक के गडग जिले के निवासी अयप्पा मसागी, जो अब 62 साल के हो चुके हैं, बचपन में अपनी मां के साथ घर से दूर बने एक कुएं से पानी लाने जाया करते थे. वर्ष 2000 के बाद से मसागी गरीब किसानों को उनके पानी का प्रबंधन करने के गुर सीखने में मदद कर रहे हैं.
जल प्रबंधन के लिए भौतिक संरचनाओं के निर्माण के साथ-साथ उनके तरीकों ने किसानों को सूखे के प्रभाव को कम करने और स्थायी जल स्रोतों को सुरक्षित करने में मदद की है.
वर्ष 2000 में गडग में जल साक्षरता आंदोलन के रूप में शुरू हुआ अभियान आज वाटर लिटरेसी फाउंडेशन (डब्ल्यूएलएफ) है, जो 14 राज्यों में वर्षा जल संचयन और भूजल स्रोतों को रिचार्ज करके जल की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार के लिए काम कर रहा है.
मसागी कहते हैं, पानी की कमी, 80 करोड़ से अधिक भारतीयों के लिए गंभीर खतरा है जो खेती के माध्यम से जीवनयापन करते हैं. वे बताते हैं, ''अनुमान है कि कर्नाटक में होने वाली वर्षा का आधे से अधिक वर्षाजल समुद्र में चला जाता है. कुल वार्षिक वर्षा का बमुश्किल सात प्रतिशत ही, भूजल के स्तर को बढ़ाने के लिए पहुंच पाता है. अपर्याप्त जल प्रबंधन के साथ-साथ जल प्रदूषण और बढ़ी हुई खपत ने स्वच्छ जल को भारत में एक दुर्लभ संसाधन बना दिया है.''
इन वर्षों में, डब्ल्यूएलएफ ने 4,200 से अधिक स्थानों पर वर्षाजल संरक्षण की तैयार परियोजनाओं को लागू किया है. मसागी के काम ने इतने ज्यादा लोगों के जीवन को सुगम बनाया है कि कई लोग उन्हें जल गांधी भी कहते हैं. मसागी कहते हैं, ''असली मिशन पानी की दरिद्रता को मिटाना है. एक जल-जिम्मेदार राष्ट्र बनने के लिए हमें एक लंबी यात्रा करनी होगी.''
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