दो साल, दो माह और 10 दिनों के बाद, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) ने आखिरकार भारतीय नागरिक कुलभूषण सुधीर जाधव के विवादास्पद मामले पर फैसला सुना दिया. पाकिस्तान ने उन्हें 2016 में बंदी बनाया था और उन पर जासूसी तथा आतंकवाद फैलाने के आरोप लगाकर मौत की सजा सुनाई थी.
नीदरलैंड के हेग में ग्रेट हॉल ऑफ जस्टिस से जब अधिकारी बाहर निकल गए तो भारत ने पीस पैलेस के प्रांगण में जीत की घोषणा की. विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव पीएआइ (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान) और इस मामले के लिए आइसीजे के एजेंट दीपक मित्तल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल को भरोसा था कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के उल्लंघन के मुद्दों पर भारत मजबूत स्थिति में है.
'दूतावास से संपर्क' के मामलों में आइसीजे के पूर्व निर्धारित नियमों का खुला उल्लंघन हुआ था और इसके आधार पर भारत 'मजबूत स्थिति' में था. भारत ने जिन दो मामलों का हवाला दिया था—लाग्रैंड (जर्मनी बनाम अमेरिका) और एवेना (मेक्सिको बनाम अमेरिका)—उनमें अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने उन देशों के पक्ष में निर्णय लिया था, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुपालन का अनुरोध किया था जिनमें वियना कन्वेंशन ऑन कंसुलर रिलेशंस (वीसीआरसी) भी शामिल हैं.
हालांकि आइसीजे ने अपने अधिकार क्षेत्र को नहीं लांघा पर भारत के मामले की निष्पक्ष सुनवाई हो गई. आइसीजे ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया और अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पाकिस्तान ने जाधव को दूतावास से संपर्क की अनुमति न देकर वीसीसीआर के अनुच्छेद 36 का उल्लंघन किया था. फैसले में कहा गया है, ''पाकिस्तान को कुलभूषण सुधीर जाधव को उनके अधिकारों की सूचना बिना किसी और देरी के देनी होगी तथा वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के अनुसार भारतीय वाणिज्य दूतावास अधिकारियों को उन तक पहुंचने की सुविधा देनी होगी.''
फैसले की 'समीक्षा' और सजा के दंड पर 'पुनर्विचार' का आइसीजे का आदेश भारत की बड़ी जीत है, क्योंकि भारत की ओर से प्राथमिक अनुरोध निष्पक्ष जांच और कानूनी सहायता तथा दूतावास तक पहुंच प्रदान करने का ही किया गया था. लेकिन अदालत ने कहा कि पाकिस्तान को जाधव पर चलाए गए मुकदमे की प्रभावी समीक्षा और उसे दी गई सजा पर अपने हिसाब से पुनर्विचार की व्यवस्था करनी होगी.
आइसीजे के फैसले का यही वह पहलू है जिसको लेकर पाकिस्तान अपनी जीत का दावा कर रहा है क्योंकि उसे जाधव को रिहा करने को नहीं कहा गया है और उसे अपनी इच्छानुसार फैसला करने का अधिकार मिला है. कोर्ट की इस टिप्पणी की पाकिस्तान किस प्रकार व्याख्या करता है, उसके लिए भारत को इंतजार करना पड़ेगा लेकिन यह तो तय है कि वह चाहे जो भी रास्ता अख्तियार करे, दूतावास को जाधव से संपर्क की सुविधा देनी होगी.
पाकिस्तान, भारत और पाकिस्तान के बीच 2008 के द्विपक्षीय समझौते का हवाला देकर जासूसी के मामलों पर विचार करने के लिए एक अलग रास्ता निकालने की फिराक में था, लेकिन अदालत ने माना कि राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय समझौते बड़ी संधियों से ऊपर नहीं हो सकते. आइसीजे न्यायाधीश अब्दुलकवी अहमद यूसुफ ने फैसले में कहा ''वियना समझौते का अनुच्छेद 36 साफ कहता है कि नागरिक जिस भी देश का हो, उसे उस देश के दूतावास से संपर्क और संवाद का अधिकार है और जासूसी के मामले इसके अपवाद नहीं हैं.''
फैसले का अंतिम और बहुत महत्वपूर्ण पहलू रहा मौत की सजा पर आइसीजे का फैसला. इसने घोषणा की कि ''श्री कुलभूषण सुधीर जाधव के मामले की जब तक प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब उन्हें कोई सजा नहीं दी जा सकती.'' इसका प्रभावी अर्थ है कि पाकिस्तान में जब तक मामले की निष्पक्ष सुनवाई पूरी नहीं होती, तब तक जाधव को फांसी नहीं दी जा सकती.
आइसीजे का निर्णय अंतिम है और इसकी समीक्षा किए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के दोनों स्थायी सदस्य अमेरिका और चीन सहित कुछ अन्य देशों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन करने के लिए जाना जाता है. यूएनएससी ही एकमात्र अन्य निकाय है जहां इस तरह के उल्लंघन के मामले उसके स्थायी सदस्य उठा सकते हैं. लेकिन चूंकि पाकिस्तान और भारत दोनों ही इसके सदस्य नहीं हैं, इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वे आइसीजे के किसी भी फैसले का पालन करेंगे.
आइसीजे इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पाकिस्तान ने वियना समझौते के अनुच्छेद 36 में लिखे दूतावास से संपर्क के प्रावधानों का उल्लंघन किया है
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