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दस चेहरे अमीश के

अमीश की नई किताब रावण आ गई है और वे सोशल मीडिया पर लोगों को खासा प्रभावित कर रहे हैं लेकिन इस प्रभाव को वे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं

मंदार देवधर
मंदार देवधर
अपडेटेड 24 जुलाई , 2019

एक बार मैं एक एयरपोर्ट पर शौचालय की ओर लपक रहा था. एक लड़का दौड़ता हुआ करीब आया और पूछा, 'आप अमीश हैं? ' मैंने कहा, 'हां'. उसने कहा, 'आपके साथ एक सेल्फी लेना चाहता हूं.' मैंने कहा, 'मुझे लू जाना है.' उसने कहा, 'मेरी फ्लाइट उडऩे ही वाली है.' मैंने कहा, 'डूड, प्लीज!' उसने कहा, 'लिसन, प्लीज!' तो हमने सेल्फी ली. फिर वह भागा और मैं भागा. अलग-अलग दिशाओं में.'' हिंदुस्तान के पौराणिक कथाओं के सुपरस्टार लेखक अमीश जिन खूबियों के लिए जाने जाते हैं, उनमें हास्य नहीं है. तो भी यह उनकी बहुआयामी शख्सियत का उतना ही हिस्सा है जितना उन्होंने अपनी ताजातरीन किताब रावण: एनिमी ऑफ आर्यावर्त में रावण का कई परतों में ढला किरदार पेश किया है.

इधर के वर्षों में अमीश ऐसे शख्स बनकर उभरे हैं जो आज लाखों नौजवानों के आदर्श हैं. पर वे ऐसे तमगों को उतनी संजीदगी से नहीं लेते जितना सोशल मीडिया लेता है. वे कहते हैं, ''आप जो करते और कहते हैं, या आप जो नहीं करते और नहीं कहते, उसे लेकर सचेत होना शुरू कर दें तो फिर आप वह नहीं रह जाते जो आप असल में हैं.'' अमीश चकाचौंध से जान-बूझकर दूर रहते हैं और तभी सामने आते हैं, जब उनकी किताब लॉन्च हो रही होती है.

प्रकाशन के कारोबार में कुछ लोगों का करियर उनकी किताबों की बिक्री पर निर्भर है, यह जानते हुए वे बताते हैं, ''एक लेखक के लिए यह कहना कि 'कोई अपनी नौकरी गंवा सकता है, मुझे परवाह नहीं, क्योंकि मुझे तो अपने ककून में रहना है', यह अधर्म है! ''मगर क्या उन्हें सितारों से भरी महफिलें आयोजित करने का हथकंडा अपनाने की जरूरत पड़ती है, खासकर जब उनकी पहली किताब यानी शिव पर लिखी तीन किताबों की शृंखला की पहली कड़ी—दि इमॉर्टल्स ऑफ मेलुहा—बेस्टसेलर बनी थी, बावजूद इसके कि इसे उन्होंने खुद प्रकाशित किया था. वे कहते हैं, ''जिस पल आप अपने काम को हल्के में लेना शुरू कर देते हैं, उसी पल नाकामी शुरू हो जाती है.''

अमीश ने नास्तिक से अपने आस्तिक बनने के बारे में शुरुआत से ही, जब वे दि इमॉर्टल्स ऑफ मेलुहा लिख रहे थे, खुलकर बात की है और आज भी वे अपनी किताबों को शिव का आशीर्वाद करार देते हैं. मत-मतांतरों से भरी आज की दुनिया में यह हैरत की ही बात है कि वे चौकन्ने रहकर विवादों से बच निकलते हैं. अमीश इतना ही कहते हैं, ''सच बोलें, पर विनम्रता से, तो आप विवाद पैदा नहीं करते.'' पर अगर वे नास्तिक ही बने रहते या किसी दूसरे धर्म के अनुयायी होते, तब भी क्या उनकी किताबों का इतना ही जोरदार स्वागत होता? वे कहते हैं, ''मुझे नहीं पता, पर मुझे लगता है कि सहअस्तित्व को लेकर हिंदुस्तान के पास बाकी दुनिया के लिए जवाब है; यह केवल सहिष्णुता नहीं, सकारात्मक सम्मान है.''

अमीश की किताबों का अव्वल मकसद फलसफे पेश करना है. शिव पर तीन किताबों की शृंखला में वे उन लोगों की प्यास बुझाते हैं जो बुढ़ापे और अमरता को समझना चाहते हैं और ऐसा वे पाठक को दैवीय अमृत सोमरस की खुराक देकर करते हैं. ज्यादातर लोगों को नहीं पता कि अमीश के पिता डॉ वी.के. त्रिपाठी नैनोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 'वंडर' (अद्भुत) अणु की खोज की थी, जो बूढ़े होने की प्रक्रिया को धीमा और उससे जुड़ी परेशानियों का निदान कर सकता है.

शृंखला की तीन किताबों के नजरिए को दोहराते हुए अमीश बताते हैं, ''सोमरस की वैज्ञानिक व्याख्याएं उन चीजों से आईं जो मैंने अपने भाई आशीष और अपने पिता से सीखी थीं. फोन बहुत अच्छी ईजाद है पर अगर आप इसे दिन में 15 घंटे से ज्यादा इस्तेमाल करें तो यह बुरा है. नई ईजाद बुरी नहीं पर किसी भी चीज की अति से बचना चाहिए.''

हालांकि वे दिलचस्प अवधारणाओं का तानाबाना बुनते हैं, पर कुछ पाठक मानते हैं कि महागाथाओं के फलसफों की नए सिरे से व्याख्या करते हुए उनकी पुनर्रचना पारंपरिक आख्यान से दूर ले जाती है. इस पर अमीश की दलील है कि हिंदुस्तान पर बार-बार हुए हमलों ने जब लोगों के आत्मविश्वास को खोखला कर दिया तो ''हमने अपनी कहानियों की नए सिरे से व्याख्या करना बंद कर दिया और उन्हीं गाथाओं से जुड़े रहे जो हमें सौंपी गई थीं. मेरी राय में हमें अपनी असली आजादी 1991 में आर्थिक सुधारों के साथ मिली. हैरानी नहीं कि यही वह वक्त था जब फिर से हमारी कहानियों की नए ढंग से व्याख्याएं की जाने लगीं.''

उनके खांटी मुरीद उन्हें सही साबित कर रहे हैं. देखें कैसे: ''अपनी किताबों के इर्द-गिर्द प्रतीक रखना मुझे अच्छा लगता है, पर मैं उनके बारे में बात नहीं करता.'' वे रावण के आवरण के कलेवर में बेतरतीब चीजों की तरफ इशारा करते हैं, ''यह ब्राह्मी लिपि में लिखा गया 'रावण' है. ये '3' और '7' की संख्याएं हैं—जो (शृंखला की) पांचवीं पुस्तक का सूत्र है.'' पुराने जमाने की जबान में नए जमाने के पाठकों से बात करने वाली इस हर जगह मौजूद प्रतीकविद्या से ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि इस नौजवान पाठकवर्ग की दिलचस्पी अब देश की ''सबसे पुरानी गूढ़ संकेतों से समझी गई लिपि'' में है, फिर भले ही उसके सूत्रों को समझना भर हो. वे बताते हैं, ''उनमें से कुछ ब्राह्मी लिपि सीख रहे हैं और इसे मेरे नए फेसबुक पेज 'अमीश ऐंड दि इमॉर्टल्स' पर लिख रहे हैं.''

गुप्त प्रतीकशास्त्री, जिज्ञासु, दार्शनिक, लेखक, असर डालने वाला, स्मार्ट मार्केटर, अभिव्यक्ति की आजादी का पैरोकार, संस्कृति का संरक्षक, ''गर्वीला हिंदुस्तानी'' और ''शिव भक्त''—ये अमीश के 10 नए चेहरे हैं. पर जब वे कहते हैं कि उनके पास अगले 25-30 साल के लिए किताबों के आइडिया तैयार हैं, तब लगता है कि मानो उनके भी रावण की तरह 10 सिर हैं. अट्टहास करते हुए वे अदब के साथ कहते हैं, ''मैं सीधा-सादा लड़का हूं.'' वे शायद विनम्रता से सच बोलते हैं.

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