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सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को कैसे फिर से दें रफ्तार

राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन से मांग में सुस्ती का माहौल खत्म होगा.

इलस्ट्रेशनः तन्मय चक्रवत्री
इलस्ट्रेशनः तन्मय चक्रवत्री

भारत के नीति निर्माताओं की आशंकाएं सच साबित होती नजर आ रही हैं. भारत की अर्थव्यवस्था पिछले पांच साल की सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ी है. निजी निवेश में सुस्ती तारी है और कृषि, उद्योग और निर्यात में गिरावट बनी हुई है. वित्तीय साल 2018-19 की जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.8 फीसद पर आ गई. यह दो साल में पहली बार चीन की वृद्धि दर से नीचे आ गई है.

पूरे साल की वृद्धि दर 6.8 फीसदी है, जो 2017-18 की 7.2 फीसद वृद्धि दर से कम है. जीडीपी की वृद्धि दर का धीमा पडऩा इस बात की तस्दीक करता है कि देश अब केवल सरकारी खर्च के बलबूते फलता-फूलता नहीं रह सकता; उसे बड़े पैमाने पर निजी निवेश की जरूरत है. निजी निवेश मार्च में खत्म हुई तिमाही में 7.2 फीसद की दर से बढ़ा, जो उससे पिछली तिमाही की 8.4 फीसद की वृद्धि दर के मुकाबले कम है. सरकारी खर्च हालांकि आम चुनाव से पहले 6.5 फीसद से बढ़कर 13 फीसद पर पहुंच गया, जिससे पिछले वित्तीय साल में राजकोषीय घाटा में इजाफा हुआ है.

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) का डेटा बताता है कि भारत की बेरोजगारी दर 2017-18 में बढ़कर 6.1 फीसद पर पहुंच गई. सरकार ने इस डेटा को रोक रखा था पर कुछ वक्त पहले यह 'लीक' हो गया था, जिससे पता चला कि बेरोजगारी दर बीते 45 वर्षों में सबसे अधिक है.

ज्यादातर अहम क्षेत्रों—मैन्युफैक्चरिंग, निर्माण और व्यापार—में सुस्ती आई है. उत्पादन और खपत में गिरावट के चलते मैन्युफैक्चरिंग को खास तौर पर धक्का पहुंचा है. इस्पात और सीमेंट के क्षेत्रों में सुस्ती की शुरुआत हो चुकी है. वहीं, शहरी उपभोक्ता आइएलऐंडएफएस के संकट के बाद मनी-सप्लाई में भारी कटौती से जूझ रहे हैं, जबकि ग्रामीण उपभोक्ता मेहनताने में कम वृद्धि के शिकार हैं. एचएसबीसी के एक रिसर्च नोट में कहा गया है कि 'नर्म' वृद्धि के डेटा की स्थिति अगली तिमाही (अप्रैल-जून 2019) में बनी रह सकती है, जिसके बाद वृद्धि फिर उछाल भर कर 7 फीसदी पर लौट सकती है. एचएसबीसी इंडिया के चीफ इकोनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी कहते हैं, ''इसकी तीन वजहें हैं. एक, चुनाव से जुड़ी अनिश्चितताओं के मंद पडऩे के साथ गतिविधियों में तेजी आएगी. दो, बैंकिंग क्षेत्र की तरलता में सुधार होगा. जून से अगस्त के महीनों के दौरान तरलता की स्थिति में आम तौर पर सुधार आता है. तीन, हमें उम्मीद है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) मदद करता रहेगा.''

कमजोर अर्थव्यवस्था का तकाजा है कि आरबीआइ अपनी अगली बैठक में ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की और कटौती करे और रेपो रेट (जिस ब्याज दर पर आरबीआइ बैंकों को उधार देता है) को 5.7 फीसदी पर ले आए. आरबीआइ रेपो रेट पहले ही दो बार 25-25 आधार अंक कम कर चुका है. इस बीच, रेटिंग एजेंसी मूडीज की भारतीय शाखा आइसीआरए ने 300 से ज्यादा कंपनियों के नमूने के आधार पर कहा है कि जनवरी-मार्च के दौरान कॉर्पोरेट आमदनियों की वृद्धि दर घटकर छह माह के निचले स्तर 10.7 फीसदी पर आ गई.

ईवाइ इंडिया के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डी.के. श्रीवास्तव के अनुसार, अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए सरकार के पास एक विकल्प यह है कि उसने 2019-20 में जिन खर्चों की योजना बनाई है, उनका बड़ा हिस्सा शुरू में ही मुहैया कर दे. इसके लिए सरकार को मौजूदा वित्तीय वर्ष के सालाना बजट को जल्दी से जल्दी लाना चाहिए. वे कहते हैं, ''संकट के लगातार जारी रहने और राहत की जरूरत को देखते हुए संभावना यही है कि जोर ग्रामीण और कृषि क्षेत्र पर होगा.

राजकोषीय कोशिशों की कसर को पूरा करने के लिए रेपो रेट में एक और कटौती की जा सकती है, जो इस वित्तीय साल में जल्दी होनी चाहिए.'' वे यह भी कहते हैं कि इससे महंगाई के नजरिए पर कोई असर पडऩे की संभावना नहीं है, क्योंकि सीपीआइ (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) पर आधारित महंगाई की दर अप्रैल 2019 में 2.9 फीसदी रही है, जो सीपीआइ महंगाई की 4 फीसदी की औसत दर के लक्ष्य से अब भी कम है. वे कहते हैं कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए तालमेल के साथ राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन से मांग में सुस्ती के दौर को खत्म करने में मदद मिलेगी.

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