यह 2000 के दशक के आखिरी सालों की बात है. अभय देओल तब स्वतंत्र सिनेमा के पोस्टर बॉय थे. काले-सफेद से परे ग्रे किरदारों को परदे पर उतारने वाले हीरो. शारीरिक दमखम से ज्यादा अक्लमंदी दिखाने वाले देओल. तभी उनकी पेशेवर जिंदगी में सन्नाटा छा गया. अब कभी-कभार ही बड़े परदे पर दिखाई देने वाले देओल स्ट्रीमिंग के कारवां पर सवार होने वाली ताजातरीन शख्सियत हैं. वे चॉपस्टिक के साथ नेटफ्लिक्स पर पदार्पण कर रहे हैं.
यह मुंबई की एक कॉमेडी है जिसमें एक शर्मीली अनुवादक निरमा (मिथिला पालकर) बकरियों से प्यार करने वाले गैंगस्टर (विजय राज) से अपनी कार छुड़ाने के लिए एक रहस्यमय ठग (देओल) को लेकर आती है. यह नेटफ्लिक्स के दूसरे ओरिजिनल शो की तरह नहीं है जो अन्य स्टूडियो से हासिल किए गए हैं. चॉपस्टिक को कंपनी ने इन-हाउस तैयार किया है.
देओल को लगता है कि मल्टीप्लेक्सों ने जिस तरह सोचा न था (2005), मनोरमा सिक्स फीट अंडर (2007) और देव डी (2009) सरीखी छोटे बजट की फिल्मों को दर्शक दिए थे, उसी तरह नेटफ्लिक्स फिल्मकारों को खुली जगह मुहैया कर सकता है. वे कहते हैं, ''मौलिक होने का एक सबसे अच्छा तरीका उथल-पुथल मचाना है. बॉलीवुड के उलट यहां हमें गाने, डांस और सिक्स-पैक ऐब्ज की जरूरत नहीं है. उस फिल्म उद्योग में वे तय करते हैं कि मुझे कैसा कलाकार होना चाहिए और मुझे उनकी सोच के हिसाब से चलना पड़ता है. यहां मैं फिल्म उद्योग के ताकतवर लोगों की दया का मोहताज रहने के बजाए अपनी अलहदा और मौलिक शख्सियत खोज सकता हूं.''
अपने 14 साल के करियर में देओल बागी रहे हैं जिन्होंने कथ्य के साथ बगावत को ही अपना मकसद बना लिया. उन्होंने जो फिल्में चुनीं—हनीमून ट्रैवल्स प्रा. लि. (2007), ओय लकी! लकी ओय! (2008), और रोड, मूवी (2009)—वे मुश्किल से ही फॉर्मूला फिल्में थीं. यही नहीं, उन्होंने जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011) और रांझना (2013) के साथ व्यावसायिक सफलता का भी स्वाद चखा, मगर आखिरकार अच्छे इंडी रोल मिलने बंद हो गए और उनकी जगह राजकुमार राव सरीखे अदाकारों ने भर दी.
देओल बहुत दो-टूक ढंग से अपने करियर के बारे में सोचते हैं. वे कहते हैं, ''मैं शिकायत नहीं कर सकता क्योंकि मैं जो चाहता था, मुझे मिला. मैं जानता हूं, ज्यादा लोग यह नहीं कह सकते कि अपनी जमीन पर टिके रहकर उन्होंने अपनी मांगें मनवाईं. कभी सब अच्छा हुआ और कई बार नहीं भी हुआ. मैं अपनी गलतियां और खामियां कबूलने को तैयार हूं, साथ ही मैं वही चीजें करता रहूंगा जिन्हें मैं सही समझता हूं.''
तो देओल के लिए आगे क्या? बेशक और ज्यादा इंडी सिनेमा. मानना होगा कि जहां इंडी को देओल से बाहर रख पाना मुश्किल है, वहीं देओल को इंडी से बाहर रखना तो वाकई नामुमकिन है.
''बॉलीवुड में मुझे उन लोगों की सोच से चलना पड़ता था. वेब पर मैं अपनी मौलिकता खोज सकता हूं.''
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