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वेब सीरीज-हैप्पी एंडिंग का जुगाड़

जोया अख्तर और रीमा कागती के हाथों रची गई अमेजन प्राइम की पांचवीं इंडियन ओरिजिनल सिरीज मेड इन हैवन अमेरिकी टीवी के उतने ही नजदीक है जितनी कोई भारतीय सिरीज हो सकती है

हैप्पी एंडिंग
हैप्पी एंडिंग

कहते हैं, शादियां जन्नत में होती हैं, मगर अमेजन प्राइम की पांचवीं इंडियन ओरिजिनल सिरीज मेड इन हैवन बनाने वाली फिल्मकार जोया अख्तर, रीमा कागती और अलंकृता श्रीवास्तव इस बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. यह शो आज की उन हकीकतों को बेनकाब करता है जिन्हें ज्यादातर परदे पर बहुत बढ़ा-चढ़ाकर और धूमधाम से दिखाया जाता है. हर शादी दहेज, पितृसत्तात्मक अवरोधों, हैसियत में ऊंच-नीच सरीखे मुद्दों से निबटती है और उन पर सामाजिक टिप्पणी करती है, जिसे हर शादी में मौजूद रहने वाले वेडिंग फोटोग्राफर (शशांक अरोड़ा) के जरिए बयान किया जाता है.

इसके मुख्य किरदार हैं तारा (शोभिता धूलिपाल) और करण (अर्जुन माथुर), जो दिल्ली में वेडिंग प्लानिंग उद्यम चलाते हैं. मामूली पृष्ठभूमि से आई तारा एक अमीर उद्योगपति (जिम सरभ) से शादी करके जिंदगी में खासी ऊपर आ जाती है; दूसरी तरफ करण कर्जों में गहरे डूबा है और उसकी उलट-पुलट हो चुकी रोमानी जिंदगी शराबघरों में मिलने वाले आदमियों के साथ वन नाइट स्टैंड का सिलसिला भर है. शो उनके पीछे-पीछे चलता है और दिखाता है कि वे किस तरह पेशेवर और निजी रुकावटों को पार करते हैं और अपने अतीत के प्रेतों से पीछा छुड़ाते हैं. हरेक किरदार की शख्सियत में जो धूसर-अंधेरी छायाएं हैं, वे हरेक एपिसोड के साथ बेहतर और दिलचस्प होते जा रहे इस शो को देखना लाजिमी बना देती हैं.

तमाम सहायक किरदारों के बीच निखरकर आती है सितारों की चकाचौंध से भौचक जैज (शिवानी रघुवंशी). यह लड़की वेडिंग प्लानिंग टीम से जुड़ जाती है. तारा और जैज के किरदारों के जरिए लेखक राजधानी में तबकाई गैरबराबरी के अंधेरे बंद कमरों को खंगालते हैं, वहीं करण की कहानी एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति लोगों के रवैए को उजागर करती है.

मेड इन हैवन अमेरिकी टीवी के उतनी ही करीब है जितनी कोई भारतीय सीरीज हो सकती है, खासकर यौन संबंधों (दोनों जेंडरों की) के सुरुचिपूर्ण चित्रण के मामले में. मगर अंग्रेजी जबान के बहुत ज्यादा इस्तेमाल की वजह से इसे बहुत ज्यादा लोग नहीं देख पाएंगे. हालांकि यह शो इन शादियों में दिखाई देने वाली बेहूदा मांगों और छल-प्रपंचों पर कोई तंज भरी टिप्पणियां नहीं करता, पर फिर भी इस लायक है कि एक बैठक में इसके कई सारे एपिसोड एक साथ देख लिए जाएं, जिसमें तारा की शादी की मुश्किलें और उसका पहचान का संकट सबसे ताकतवर और असरदार टकराव पैदा करता है. धूलिपाल ने अदाकारी से किरदार की बारीकियों को बखूबी उभारा है, उसके भीतर छिपी असुरक्षाओं और आक्रोश को भी. शो खत्म होता है बड़ी चुनौतियों और ज्यादा शादियों का मंच तैयार करने के साथ. आखिरकार शादियों का ही तो कारोबार है, जिसके बंद होने की कोई संभावना नहीं.

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