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हथियार खरीद का मौसम

रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि एके-203 परियोजना पटरी पर थी और दोनों पक्ष संयुक्त उद्यम के लिए तौर-तरीके निर्धारित करने पर काम कर रहे थे जिससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग गहरा होगा.

नया सौदा  इंसास राइफलों की जगह अब अमेरिकन राइफल लेंगी
नया सौदा इंसास राइफलों की जगह अब अमेरिकन राइफल लेंगी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हार्ले डेविडसन मोटरसाइकल और अमेरिका में बनी व्हिस्की पर भारत में लगने वाले ऊंचे करों को लेकर कुछ नाक सिकोड़ी होगी. अब उनके लिए एक ऐसी खबर भी है जिससे उन्हें खुशी होगी. भारत के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में भारतीय सेना के लिए अमेरिका के न्यू हैंपशायर स्थित हथियार बनाने वाली एक छोटी-सी कंपनी एसआइजी सोअए की ओर से निर्मित 72,000 बैटल राइफल खरीदने को मंजूरी दी है.

एसआइजी की बोली उन छह वैश्विक कंपनियों में सबसे कम रही, जिन्होंने पिछले साल सेना का फास्ट-ट्रैक खरीद टेंडर भरा था. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस सौदे की अनुमानित कीमत 700 करोड़ रु. है और एक सप्ताह के भीतर इस पर हस्ताक्षर होने की संभावना है. सभी राइफलों का निर्माण अमेरिका में किया जाना है और अगले साल तक इन्हें भारत में भेज दिया जाएगा ताकि अपने सैनिकों को लैस करने के लिए आधुनिक राइफल की सेना की एक दशक पुरानी तलाश पूरी हो सके.

करीब 10 करोड़ डॉलर कीमत वाली एसआइजी 716 बैटल राइफलें, अमेरिका से छोटे हथियारों की भारत की सबसे बड़ी खरीद है. ये राइफलें सेना की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली इंसास और एके-47 असॉल्ट राइफलों की जगह लेंगी. पिछले साल ईशापुर और कानपुर के दो भारतीय आयुध कारखानों में तैयार होने वाली स्वदेशी इंसास राइफलों में न केवल पुलिस बल्कि अर्धसैनिक बलों और पुलिस बलों की भी रुचि न होने के बाद, वहां राइफलों का उत्पादन बंद कर दिया गया था. सेना के पास एक दशक से बेहतरीन राइफलों की जो कमी झेलनी पड़ी है उसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार खुद सेना ही है क्योंकि वह यह तय ही नहीं कर पाती कि वास्तव में उसकी जरूरतें क्या हैं. सेना ने 2011, 2015 और अंत में 2017 में, तीन बार हथियारों को लेकर अपनी जरूरतें बदल दीं.

सरकार की योजना है कि इन संयंत्रों में रूस के कलाश्निकोव कंसर्न से एके-203 राइफलों के लाइसेंस-उत्पादन का अधिकार हासिल करके उत्पादन शुरू किया जाए. एके-203 राइफलें सोवियत जनरल मिखाइल कलाश्निकोव की ओर से आविष्कार की गई प्रतिष्ठित राइफल का एक नवीनतम संस्करण है. हालांकि भारत एके-47 प्रकार की राइफल्स के दुनिया के सबसे बड़े उपयोगकर्ता में शुमार है, लेकिन उसने कभी भी सीधे एके-47 राइफलें सीधे मास्को से नहीं खरीदी हैं. भारत ने वारसा समझौते में शामिल रहे बुल्गारिया जैसे देशों से एके-47 की सस्ती नकल की ही खरीद की है.

रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि एके-203 परियोजना पटरी पर थी और दोनों पक्ष संयुक्त उद्यम के लिए तौर-तरीके निर्धारित करने पर काम कर रहे थे जिससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग गहरा होगा. एक भारत-रूसी संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस, जो 1998 के बाद से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बना रहा है, का एक मॉडल के रूप में अध्ययन किया जा रहा है.

वहीं, 72,000 अमेरिका-निर्मित एसआइजी 716 राइफलों से केवल अग्रिम पंक्ति पर तैनात सैनिकों को लैस किया जाएगा, शेष सेना को लैस करने के लिए लाइसेंस के तहत कम-से-कम 6.5 लाख एके-203 राइफलें बनाई जाएंगी.

94,000 कार्बाइन (छोटी गोलियां दागने वाली एक कॉम्वपैक्ट राइफल) की आपूर्ति के लिए एक अन्य फास्ट ट्रैक खरीद के लिए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)-आधारित एक छोटी हथियार निर्माता कंपनी सबसे आगे चल रही है. फिलहाल, सेना 1960 के दशक की पुरानी 9 मिमी स्टॄलग कार्बाइन का इस्तेमाल कर रही है और उसकी जगह नई कार्बाइन लेंगी. माना जाता है कि रक्षा मंत्रालय के भीतर ही उभरे दो प्रश्न कार्बाइन पर अंतिम निर्णय में देरी की वजह बने हैं. पहला, यूएई की कंपनी कैराकल क्या एक साल के भीतर हथियारों की आपूर्ति करने में सक्षम है. दूसरा, यह कार्बाइन अमेरिका की बनी हुई बैटल राइफलों की तुलना में महंगी क्यों है.

सेना ने इन छोटे हथियारों पर 3,500 करोड़ रु. खर्च करने की योजना बनाई है जिसके लिए उसने पिछले साल फरवरी में 17 वैश्विक हथियार निर्माताओं को आरएफपी (प्रस्तावों के लिए अनुरोध) जारी किए थे. इसने इन हथियारों की खरीद के लिए तत्काल परिचालन आवश्यकताओं का हवाला दिया है जिसे सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी पैदल सेना की 'सर्वोच्च प्राथमिकता' बताते हैं.

भारतीय सेना को अपनी पैदल सेना के आधुनिकीकरण के लिए छोटे हथियारों की सक्चत जरूरत है पर उसे लंबे वक्त से छोटे हथियार नहीं मिले हैं. पिछली फरवरी में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में डीएसी (रक्षा अधिग्रहण काउंसिल) ने राइफल, स्नाइपर राइफल और लाइट मशीन गन खरीदने के लिए सेना के 15,000 करोड़ रु. से ज्यादा के अनुबंधों को मंजूरी दी थी.

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