उत्तराखंड में ऐसा लग रहा है मानो हाइकोर्ट की न्यायिक सक्रियता ही सरकार चला रही है. हर मुद्दे पर जहां सरकार नीतिगत तौर पर निष्क्रिय नजर आ रही है, वहीं अदालत बेहद सक्रिय. हाइकोर्ट के लगातार एक के बाद एक आए फैसलों ने सरकार को असहज कर दिया है.
आपदा से बदहाल शहरों का मामला हो, पर्यावरण या अपराध की बढ़ती दस्तक, चाहे जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की सुरक्षा हो या फिर अवैध कब्जों से सिकुड़ते शहर और तालाब-पोखरों के अतिक्रमण का मसला, सभी पर हाइकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई है.
इन दिनों जिम कॉर्बेट पार्क पर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट की सख्त टिप्पणी चर्चा सबसे ज्यादा है. अदालत ने कहा, ''लानत है ऐसे स्टेट और सरकारी कार्यालयों पर, आप सब मिले हुए हो और माफिया की तरह व्यवहार कर रहे हो.''
इस टिप्पणी ने सरकार और अधिकारियों को शर्मसार कर दिया. दरअसल, वन्यजीवों की सुरक्षा के मामले में राज्य सरकार के रवैये को गैर-जिम्मेदार मानते हुए हाइकोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण (एनटीसीए) को अंतरिम रूप से कॉर्बेट पार्क पर कब्जा करने का आदेश दिया है. अदालत ने यह भी पूछा है कि एनटीसीए यह भी बताए कि क्या कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाघों को अन्य पार्कों में शिफ्ट किया जा सकता है?
अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत पर सख्त रुख अपनाते हुए इनकी जांच सीबीआइ से कराने की संस्तुति की है. अदालत ने कॉर्बेट में अब तक तैनात रहे अफसरों की संपत्ति की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जांच कराने को कहा है. उसने रिजर्व के ढिकाला जोन में चार पहिया वाहनों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है और समीपवर्ती अमानगढ़ व धुलवा को भी पार्क में शामिल करने के आदेश दिए हैं.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सीटीआर के बफर जोन से गुर्जरों की बेदखली सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए. अदालत कॉर्बेट और उसके आसपास के क्षेत्रों में पिछले 20 माह में 15 से अधिक बाघों की मौत से भी नाराज दिखी. इनमें सबसे अधिक नौ मौतें जिम कॉर्बेट में हुई हैं.
इनके अलावा, हाइकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य के सभी बुग्यालों और उच्च हिमालय क्षेत्र की घाटियों को 'ईश्वर के आवास' की संज्ञा देते हुए छह माह के भीतर उन्हें राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने के आदेश भी दिए हैं.
अदालत ने तीन माह के अंदर बुग्यालों में बनाए गए स्थायी फाइबर हट्स को हटाने को कहा और बुग्यालों में रात में ठहरने पर भी रोक लगा दी है. इन बुग्यालों से औषधीय वनस्पति सीमित मात्रा में केवल सरकारी या पब्लिक सेक्टर संस्था से ही एकत्र कराने को कहा है.
वहीं छह माह में उसने इन बुग्यालों में पाए जाने वाले पादपों का हरबेरियम रिकॉर्ड तैयार करने के भी निर्देश दिए गए हैं. अल वेदनी बागजी बुग्याल संघर्ष समिति, चमोली की याचिका पर हाइकोर्ट ने सरकार को पर्यावरण के संरक्षण के लिए छह सप्ताह में इको डेवलपमेंट कमेटी बनाने का आदेश दिया.
हालांकि राज्य के पर्यटन कारोबारी कह रहे हैं कि बुग्यालों में रात्रि विश्राम पर पाबंदी से पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल असर पडऩे लगा है. उनके मुताबिक, इस हालिया प्रतिबंध से राज्य में ट्रैकिंग व्यवसाय से जुड़े करीब लगभग एक लाख से अधिक लोग इसकी जद में आ जाएंगे.
नतीजतन, राज्य से पलायन रुकने की बजाए बढ़ जाएगा. एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस प्रतिबंध से इस सीजन में करीब 500 करोड़ रुपए के नुक्सान का अनुमान व्यक्त किया है. इससे पहले जून में हाइकोर्ट ने सरकार को रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग और अन्य जल-खेलों के लिए दो सप्ताह में उचित नियम बनाने के निर्देश दिए थे और तब तक के लिए प्रदेश में इन पर रोक लगा दी थी.
आम जनता से सीधे जुड़ी समस्याओं पर भी कोर्ट सक्रिय है. मसलन, हाइकोर्ट के अधिवक्ता पंकज मिगलानी की जनहित याचिका पर अदालत ने रेल विभाग को काठगोदाम से देहरादून के बीच नैनी दून जनशताब्दी एक्सप्रेस की समय सारणी को यात्रियों की सुविधानुसार बदलने के निर्देश दिए हैं.
मिगलानी कहते हैं, ''हाइकोर्ट जनहित के मामले जिस सक्रियता के साथ सुन रहा है, उससे लोगों को राहत मिल रही है.'' वहीं, तीसरे बच्चे के जन्म के लिए अपनी महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश देने से मनाही करने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए हाइकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई.
उधमसिंहनगर में गैर कानूनी ढंग से चल रहे दो निजी चिकित्सालयों की सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने राज्य में गैर-कानूनी तरीके से चलने वाले सभी अस्पतालों और चिकित्सालयों को सील करने का आदेश भी दिया है. अदालत ने सरकार को विभिन्न मेडिकल जांचों और परीक्षणों के दाम तय करने का भी आदेश दिया.
एक मामले में हाइकोर्ट ने सरकार से यह बात पूछी है कि क्या हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर प्रदेश में भी भू-कानून बनाया गया है? हाइकोर्ट में वकील प्रदीप लोहनी कहते हैं, ''छोटा राज्य बनने के बाद उम्मीद थी कि यहां की सरकारें विभिन्न मुद्दों पर विधानसभाओं में मंथन कर लोगों को राहत दिलाएंगी. अफसोस कि वे अपना दायित्व नहीं निभा रही, पर कोर्ट जरूर लोगों को कुछ राहत दे रहा है.''
हाइकोर्ट ने एक फैसले में आदेश दिया कि एससी-एसटी और निक्वन वर्ग के अन्य लोगों को किसी भी मंदिर में पूजा और प्रवेश करने से रोका नहीं जाए. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के क्रम में अदालत ने यह भी कहा कि मंदिरों का पुजारी किसी भी जाति का हो सकता है. हाइकोर्ट के वरिष्ठ वकील महेंद्र सिंह पाल कहते हैं, ''जनता के वोट से चुनी सरकार की असंवेदनशीलता के कारण ही हाइकोर्ट को सभी मसलों पर ऐसे आदेश देने पड़ रहे हैं.''
''सरकार की असंवेदनशीलता के कारण हाइकोर्ट को सभी मसलों पर आदेश देने पड़ रहे हैं.''
डॉ. महेंद्र सिंह पाल, वरिष्ठ वकील
कुछ अहम फैसले
हाइकोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण को अंतरिम रूप से जिम कॉर्बेट पार्क पर कब्जा करने का आदेश दिया
बुग्यालों में रात में ठहरने पर भी रोक लगाते हुए कोर्ट ने सभी बुग्यालों से तीन माह में स्थायी निर्माण हटाने के निर्देश दिए हैं. स्थानीय चरवाहों को छूट प्रदान की गई है.
हाइकोर्ट ने सामाजिक संगठनों व समूहों, धार्मिक समूहों और संस्थाओं, न्याय पंचायतों, ग्राम सभाओं के फरमानों पर रोक लगा दी है. इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया.
हाइकोर्ट ने आदेश दिया कि उच्चकुलीन पुजारी निम्न जाति के श्रद्धालुओं को पूजा कराने से मना नहीं कर सकते.
नैनीताल की लोअर मॉल रोड क्षतिग्रस्त होने का स्वतरू संज्ञान लेते हुए हाइकोर्ट ने जिलाधिकारी नैनीताल को विस्तृत शपथपत्र पेश करने कहा है.
हाइकोर्ट ने देहरादून नगर निगम में 60 गांव शामिल करने का नोटिफिकेशन निरस्त कर दिया.
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