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देश की धरोहरों को मिले 'मॉन्यूमेंट मित्र' और उठने लगे सवाल !

मॉन्यूमेंट मित्र स्मारकों की देखभाल और रखरखाव से ज्यादा कुछ नहीं कर सकतीं. बदले में उन्हें कुछ साइन बोर्ड मिलेंगे और उन्हें मुनाफा भी भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण को देना होगा.

राष्ट्रीय धरोहर
राष्ट्रीय धरोहर

वी रिजॉट्र्स की 39 वर्षीया बहादुर और महत्वाकांक्षी संस्थापक और सीईओ अदिति बलबीर को भरोसा नहीं हो सका कि उनके स्टार्ट-अप रिजॉर्ट मैनेजमेंट कंपनी ने जीएमआर ग्रुप सरीखी दिग्गज कॉर्पोरेट कंपनी के खिलाफ मुकाबले में खड़े होकर बहुत सारी संरक्षित इमारतों के रखरखाव के करार हासिल कर लिए हैं.

इनमें जयपुर का आमेर का किला और नाहरगढ़ का किला, उदयपुर के नजदीक कुंभलगढ़ किला, फरीदाबाद में 10वीं सदी का जलाशय सूरजकुंड और दिल्ली में अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना का मकबरा शामिल है.

वे बताती हैं कि उन्होंने एक विजन दस्तावेज पेश किया और उसमें देशभर के कई धरोहर स्थलों को रखरखाव के लिए अपनाने का खाका सामने रखा और बस उन्हें तथाकथित 'मॉन्यूमेंट मित्र' यानी स्मारकों का दोस्त चुन लिया गया.

मॉन्यूमेंट मित्रों की इस फेहरिस्त में मिला-जुलाकर स्टार्ट-अप, बैंक, बुनियादी ढांचे की कंपनियां, हॉस्पिटैलिटी और ट्रैवल कंपनियां और यहां तक कि दिल्ली का एक स्कूल भी शामिल है. इनमें से हरेक ने अलग-अलग अहमियत के राष्ट्रीय स्मारकों की साज-संभाल के लिए कामयाब बोली लगाई थी. इसमें वे बुनियादी आरामदायक स्थितियों का निर्माण करेंगे और इन्हें देखने आने वालों के तजुर्बे में इजाफा करेंगे.

डालमिया ग्रुप के लाल किले को 'अपनाए जाने' के सुर्खियों में आते ही एक किस्म का हंगामा बरपा हो गया. कुछ आलोचना तो बेजा मालूम दी—योजना में स्मारकों को कॉर्पोरेट कंपनियों को 'बेचा' नहीं गया है.

हकीकत यह है कि कॉर्पोरेट कंपनियां इन स्मारकों की देखभाल और रखरखाव से ज्यादा कुछ नहीं कर सकतीं. बदले में उन्हें कुछ साइन बोर्ड मिलेंगे और उन्हें मुनाफा भी भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण को देना होगा. पर्यटन मंत्रालय के मुताबिक कोई 31 मॉन्यूमेंट मित्रों को ''अब तक देश भर के 95 स्मारकों/पर्यटन स्थलों को अपनाने की मंजूरी दी गई है.''

दुनिया भर के कई देशों में सरकार और सार्वजनिक तथा निजी संस्थाओं के बीच इस किस्म का सहयोग होता रहा है. खासकर इटली में निजी कॉर्पोरेट कंपनियों ने धरोहर स्थलों की मरम्मत और रखरखाव के कामों में कामयाबी के साथ रकम लगाई है.

इसका असर दिखा भी है. विपक्षी सियासी पार्टियों और उनके सोशल मीडिया पर सक्रिय घाघ कार्यकर्ताओं ने बगैर सोचे-समझे जो आलोचना की, उसके अलावा भी ज्यादा विचारशील आलोचना ने जवाबदेही को लेकर कुछ वाजिब सवाल उठाए.

मसलन, मॉन्यूमेंट मित्र राष्ट्रीय धरोहर पर किस किस्म के अधिकार का दावा कर सकते हैं, इसके प्रायोजन से उन्हें क्या फायदे हासिल हो सकते हैं. जवाब के लिए हमें इंतजार करना होगा.

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