दक्षिण मुंबई के चर्नी रोड स्टेशन की व्यस्त गलियों में अब भी पहले जैसी रौनक है. ''हीरा महल" या ''ब्लू डायमंड" जैसे नाम वाले ढाबों में परोसे जा रहे ''शुद्ध" शाकाहारी व्यंजनों के बीच यहां चहल-पहल बरकरार है.
यह इलाका कभी भारत के हीरा कारोबारियों का हब था, जहां हीरा व्यापारियों के 5,000 से ज्यादा दफ्तर थे. इनमें से ज्यादातर गुजरात के पालनपुरी जैनों के थे. लेकिन अब ज्यादातर कारोबार उपनगरीय बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के भारत डायमंड बॉर्स (बीडीबी) और गुजरात के सूरत में चला गया है.
सेंट्रल प्लाजा सिनेमा के नजदीक अपने छोटे-से दफ्तर के अंदर बैठे हुए हैं हार्दिक हुंडिया, जो पिछले 25 साल से हीरा कारोबार के बारे में कई पत्र-पत्रिकाएं निकाल रहे हैं. वे हीरा कारोबार की अंदरूनी जानकारी देने वाले सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं.
जिस दिन 12,000 करोड़ रु. से ज्यादा का नीरव मोदी घोटाला सामने आया, उसके बाद से ही हुंडिया इसका सामना बहादुरी से कर रहे हैं. वे लगातार इस बात पर जोर देते हैं कि कुछ सड़ी मछलियां हैं, जिन्होंने इस उद्योग को बदनाम किया जिससे छोटे कारोबारियों का जीवन कठिन हो गया है. उन्होंने कहा, ''हीरा कारोबारियों की प्रतिष्ठा को चोट लगी है."
हुंडिया को इस बात की चिंता है कि बड़ी मछलियां धोखाधड़ी कर रही हैं और बच भी जा रही हैं, जबकि छोटी मछलियां इसका खामियाजा भुगत रही हैं. उनकी चमकदार पत्रिका हीरा माणिक के कवर पर आमतौर पर हीरा कारोबारियों की तस्वीर होती है, लेकिन जब भी कारोबार मंदा होता है, इसे भी नुक्सान होता है.
सूरत यदि दुनिया के 10 में से 9 हीरों की मैन्युफैक्चरिंग, कटिंग और पॉलिशिंग का केंद्र है तो मुंबई इनके कारोबार का. यहां दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से अनगढ़ (रफ) हीरों के आयात और फिर अमेरिका, यूरोप तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बाजारों को तैयार हीरों और हीरे के आभूषणों के निर्यात कारोबार का संचालन होता है.
पिछले एक दशक में कारोबार का बड़ा हिस्सा बीडीबी चला गया और नए ऑफिस कॉम्प्लेक्स का महंगा किराया वहन न कर सकने की वजह से बाकी दुकानें बंद हो गईं. इसके बाद नोटबंदी और जीएसटी आ गया, जिसने एक ऐसे सेक्टर को पूरी तरह से हिला कर रख दिया, जहां काफी कारोबार अनौपचारिक माध्यमों से हो रहा था. इसके बाद नीरव मोदी घोटाला एक और बड़ा झटका साबित हुआ, जिसकी वजह से ज्यादातर कारोबारियों को इस कारोबारी साल की चौथी तिमाही में भारी घाटा होने का अंदेशा है.
सूरत के हीरा व्यापारी और साउथ गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री की जेम्स ऐंड जूलरी कमेटी के चेयरमैन नैनेश पच्छीगर कहते हैं, ''हीरा कारोबार की बिक्री में 20 फीसदी की गिरावट आई है. आयात काफी कम हो गया है, क्योंकि पीएनबी घोटाले के बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों से लोन मिलना लगभग बंद हो गया है.
इसके अलावा, पिछले कुछ हफ्तों में भारत के हीरों की मांग में कमी आई है, क्योंकि अब विदेशी ग्राहक भी भारत से खरीद में काफी सतर्कता बरत रहे हैं. यह असर अस्थायी ही है, लेकिन अल्पकालिक अवधि में तो यह हीरा कारोबार पर असर डाल ही सकता है, जिसने 2016-17 में 23 अरब डॉलर (1.5 लाख करोड़ रु.) मूल्य का निर्यात किया है और जिसने मुंबई के विभिन्न केंद्रों तथा गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, भावनगर और पालनपुर में करीब 35 लाख लोगों को रोजगार दे रखा है.
क्रिसिल का अनुमान है कि भारत का समूचा रत्न और आभूषण बाजार 3.9 लाख करोड़ रु. का है, जिसका केवल 30 फीसदी हिस्सा औपचारिक खुदरा क्षेत्र में है. घोटाले के बाद जूलरी की बिक्री में 16 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है.
इस घोटाले में गीतांजलि जेम्स के प्रमोटर मेहुल चोकसी भी शामिल थे. घोटाले में शामिल दोनों कंपनियों के 3,000 स्थायी और करीब 8,000 अस्थायी कर्मचारी भी बेरोजगार हो गए हैं क्योंकि मोदी और चोकसी के रिटेल आउटलेट और कारखाने बंद या सील हो चुके हैं.
मोदी और चोकसी की धोखाधड़ी के अलावा विनसम डायमंड मामले में प्रमोटर जतिन मेहता ने कथित रूप से भारतीय बैंकों के 6,800 करोड़ रु. दबा लिए. पीएनबी सरीखे मामलों ने भारतीय हीरा कारोबार के काले हिस्से को उजागर कर दिया है, लेकिन सच यह है कि इसकी सड़न अनुमान से कहीं ज्यादा गहराई तक है.
हाल के खुलासों, फर्जी लेन-देन की बात से इस उद्योग के ज्यादा लोगों को अचरज नहीं हुआ है, क्योंकि लोगों का मानना है कि यह सब कई साल से चल रहा है. मोदी पर जहां यह आरोप है कि वह पंजाब नेशनल बैंक से बिना किसी जमानत के लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) हासिल कर रहा था, ताकि दूसरे बैंकों की विदेशी शाखाओं से कर्ज ले सके, तो दूसरी तरफ यह पूरा उद्योग कई अन्य बीमारियों से ग्रस्त है.
मसलन श्राउंड ट्रिपिंग्य जिसमें फर्जी बिलों के सहारे लोन लिया जाता है या ''ओवर इनवाइसिंग" जिसमें खरीद बिल को बढ़ाकर दिखाया जाता है और इसके आधार पर बैंकों से कर्ज लिया जाता है. ये दस्तूर कई तरह के कारोबार में पनप रहे हैं, लेकिन हीरा कारोबार में जिस तरह से ये खुलेआम किए जाते हैं, वह स्तब्ध करता है.
नाम जाहिर न करने की शर्त पर इस उद्योग के एक जानकार ने बताया, ''पिछले एक दशक में इस तरह की गतिविधियां बड़े पैमाने पर देखी जा रही हैं." मसलन एक कारोबारी कुछ हीरों का ''पार्सल" दिखाकर एक बैंक से लेटर ऑफ क्रेडिट (एलओसी) हासिल कर लेता है.
जब वह भारत में अपने बैंक से मिले एलओसी से विदेश में स्थित बैंक से धन हासिल कर लेता है, तो फिर वह इसी पार्सल का इस्तेमाल करते हुए दूसरे बैंक से भी कर्ज हासिल कर लेता है. इसके लिए वह अलग-अलग आयात कों का इनवाइस जमा करता है.
तथ्य यह है कि वे सभी आयातक वास्तव में उसकी अपनी ही कंपनियां होती हैं और उनका इनवाइस फर्जी होता है.
इंडिया टुडे टीवी के हाल में हुए एक स्टिंग ऑपरेशन में यह खुलासा हुआ कि किस तरह से इस कारोबार के कुछ एजेंट उन बैंकरों से अपने ''संपर्क" की डींग हांक रहे थे जिनकी मदद से वे फर्जी इनवाइस के सहारे धन जुटा लेते हैं.
एक एजेंट ने कहा, ''हमारे पास वास्तव में कोई हीरा नहीं है, बस कुछ कागजी कंपनियां और कुछ बिल हैं."
भारत के हीरा कारोबार का एक विचित्र पहलू यह है कि यहां कट और पॉलिश्ड डायमंड का बड़े पैमाने पर आयात होता है, जबकि भारत खुद ऐसे मूल्यवर्धित उत्पादों का एक बड़ा निर्माता देश है.
इस चलन को बढ़ावा मिला पी. चिदंबरम के एक कदम से जिन्होंने वित्त मंत्री रहने के दौरान 2007 में कट और पॉलिश्ड डायमंड पर इंपोर्ट ड्यूटी को खत्म कर दिया, यह बताते हुए कि इससे घरेलू आभूषण निर्माण सेक्टर को मदद मिलेगी.
लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि 2010-11 में पॉलिश्ड डायमंड के आयात में भारी बढ़ोतरी हुई और यह 21 अरब डॉलर (1.4 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच गया, जो कि उस साल भारत के कुल आयात का करीब छह फीसदी था.
इसके अगले साल आयात गिरकर 14 अरब डॉलर (91,000 करोड़ रु.) तक पहुंच गया, लेकिन तब भी लोगों के लिए यह अचरज की बात थी कि आखिर आयात इतना ज्यादा क्यों हुआ, उस साल हुए 15 अरब डॉलर (97,000 करोड़) के रफ डायमंड के आयात से बस थोड़ा ही कम.
साल 2012 में, यूपीए सरकार ने फिर से पॉलिश्ड डायमंड पर दो फीसदी की ड्यूटी लगा दी, जिसकी वजह से आयात धीरे-धीरे फिर गिरने लगा. 2015-16 के शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने जहां रफ डायमंड का 17 अरब डॉलर (1.1 लाख करोड़ रु.) तक का आयात किया, वहीं कट और पॉलिश्ड डायमंड का आयात गिरकर महज 2.6 अरब डॉलर (16,900 करोड़ रु.) रह गया.
2018 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पॉलिश्ड डायमंड पर आयात कर बढ़ाकर 5 फीसदी कर दिया है. इस पर बीडीबी के अध्यक्ष अनूप मेहता ने कहा, ''पॉलिश्ड स्टोन की खपत और कारोबार बहुत मामूली है, लेकिन पांच फीसदी का कर थोड़ा सख्त कदम कहा जाएगा. खुले हीरे का काफी हिस्सा अमेरिका से आयात किया जाता है, जो वहां जड़ित आभूषणों को पिघलाने से मिलते हैं. इसका आयात पर बुरा असर पड़ सकता है."
एक कपट भरा रास्ता
तो क्या हीरों के आयात में तेजी ज्यादातर कागजी थी और अनैतिक व्यापार का नतीजा थी, जिसको शून्य आयात शुल्क की वजह से बढ़ावा मिला? हीरा उद्योग में जिस पैमाने की जालसाजी सामने आ रही है, उसे देखते हुए इससे पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता. बि
ल्कुल इसकी वजह से ही तमाम लोग भारत में हीरे की इस पाइपलाइन से काफी चकित हैं, जो उनके मुताबिक बिल्कुल ''सीधा" नहीं है. एक सीधे रास्ते या पाइपलाइन में, सबसे पहले एंटवर्प, बेल्जियम जैसे वैश्विक हीरा व्यापार केंद्र के नीलामी केंद्रों में अनगढ़ हीरे पहुंचते हैं, जहां से उन्हें इज्राएल, भारत या चीन जैसे देशों में आयात किया जाता है.
इसके बाद ये देश इन हीरों को कट और पॉलिश्ड डायमंड जैसे मूल्यवर्धित उत्पादों या डायमंड जूलरी के रूप में एक्सपोर्ट करते हैं. लेकिन जैसा कि पहले हमने बताया है, ऐसा लगता है कि भारत को तैयार हीरों का आयात ज्यादा पसंद है, क्योंकि यह अनगढ़ हीरों का निर्यात कर रहा है, जबकि यहां इनका उत्पादन बिल्कुल नहीं होता.
रत्न और आभूषण निर्यात प्रोत्साहन परिषद (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2016-17 में करीब 1.5 अरब डॉलर (9,750 करोड़ रु.) के रफ डायमंड का निर्यात किया. और जो सभी रफ डायमंड आयात किए जा रहे हैं, उनका भी मामला इतना ''साफ" नहीं है.
हीरे मुख्य तौर पर रूस, बोत्सवाना, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में खदानों से निकाले जाते हैं. दुनिया में हीरे का 75 फीसदी उत्पादन एलरोसा, डि बीयर्स, डोमिनियन डायमंड, जेम डायमंड्स, लुकारा डायमंड, पेट्रा डायमंड और रियो टिंटो जैसी ग्लोबल कंपनियां करती हैं.
बताया जाता है कि यह सस्ते ''ब्लड डायमंड" के आयात का एक तरीका है, जिसका इस्तेमाल विद्रोही संगठन या उनके सहयोगी अफ्रीका की वैधानिक सरकारों को कमजोर करने के लिए चलाए जा रहे सशस्त्र संघर्ष की फंडिंग के लिए करते हैं.
वैसे तो हीरा उद्योग के लोग इसे सिरे से खारिज करते हैं, लेकिन कई लोग यह बताते हैं कि तस्करी और वर्जित उत्पादों की खरीद बड़े पैमाने पर होती है. यह तस्करी अफ्रीकी देशों जैसे कांगो, जिम्बाब्वे और सिएरा लियोन से बिना अनिवार्य किंबरली प्रोसेस (केपी) सर्टिफिकेट के होती है.
ब्लड डायमंड के व्यापार पर अंकुश के लिए 2003 में इस अंतरराष्ट्रीय शासकीय सर्टिफिकेशन को शुरू किया गया था. बिना ''केपी" टैग वाला हीरा 30 फीसदी सस्ता होता है. बताया जाता है कि भारत में ऐसे हीरे दुबई के पश्चिमी समुद्र तट से होकर आते हैं.
यह उद्योग असल हीरों में सिंथेटिक या कैमिकल वेपर डिपॉजिशन (सीवीडी) से बनने वाले हीरों की मिलावट की समस्या से भी जूझ रहा है. बिल्कुल असली हीरे जैसे दिखने वाले ये नकली उत्पाद 75 फीसदी सस्ते होते हैं.
हालांकि बीडीबी ने ऐसे हीरों के कारोबार पर रोक लगाई है, लेकिन खुदरा कारोबार में अब भी इनकी पैठ हो जाती है.
मुंबई डायमंड मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र गांधी कहते हैं, ''यदि मैनमेड डायमंड इस टैग के साथ बेचे जाते हैं कि वे मैन-मेड हैं, तो यह ठीक रहता है.
इसमें ग्राहकों से ठगी नहीं हो पाएगी." हुंडिया कहते हैं कि बीडीबी में बेचे जा रहे काफी हीरे प्राकृतिक ही होते हैं. बैंकों के दरवाजे पर जाकर कुछ ही लोग इस तरह से बड़े पैमाने पर गलत काम करते हैं.
आसानी से कर्ज मिल जाने से बड़े खिलाड़ियों में एक तरह की लापरवाही को बढ़ावा मिला.
बैंकों ने इस सेक्टर में करीब 11 अरब डॉलर (71,500 करोड़ रु.) का कर्ज दे रखा है. हीरा कारोबार में बैंकों की नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बहुत ज्यादा है.
क्रिसिल का कहना है कि सितंबर 2017 तक हीरा कारोबार में एनपीए का अनुपात 11.7 फीसदी के दोगुने से भी ज्यादा करीब 30 फीसदी तक पहुंच गया है.
वैसे दुनिया भर में कंपनियों की डायमंड की पॉलिशिंग और ट्रेडिंग, रफ स्टोन खरीदने के लिए मिलने वाले शॉर्ट टर्म कर्ज पर निर्भर करती है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, बहुत कम बैंक ये सेवा देने के इच्छुक होते हैं.
इस उद्योग को कर्ज देने वाले दो प्रमुख बैंकों में से एक स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने 2016 में कहा कि वह अपने 2 अरब डॉलर (13,000 करोड़ रु.) के डायमंड फाइनेंसिंग कारोबार से बाहर निकल रहा है. दूसरी तरफ, केबीसी समूह का एनवी एंटवर्प डायमंड बैंक, जो कि अपने शीर्ष दौर में फाइनेंसिंग मार्केट का करीब 10 फीसदी हिस्सा रखता था और जिसने इस उद्योग में करीब 80 साल तक सेवा दी है, वह भी बंद हो रहा है.
इस सेक्टर में इस समूचे कोलाहल के बीच बैंकों ने फंड देने में सख्ती बरतनी शुरू कर दी है. पच्छीगर कहते हैं, ''अब काफी क्रॉस चेकिंग की जा रही है, जिससे इस कारोबार के लिए नकदी की समस्या हो गई है.
लोन के लिए पूरे आवेदन के करीब 5 से 10 फीसदी हिस्से की ही मंजूरी हो पा रही है." उन्होंने अंदेशा जताया कि इस सेक्टर पर होने वाली सख्ती से वैध कारोबार करने वाली कंपनियों को भी मुश्किल हो सकती है.
इसे दूर करने के लिए उन्होंने कई दूसरे पदाधिकारियों के साथ मिलकर वाणिज्य मंत्रालय के साथ कई बैठकें की हैं. वे कहते हैं, ''हम सभी जरूरी गारंटी को समुचित तरीके से जमा कर रहे हैं. मंत्रालय ने हमें आश्वासन दिया है कि जल्दी ही चीजें सामान्य हो जाएंगी."
गांधी कहते हैं कि अब कारोबार तब ही हो पा रहा है, जब आप बैंकों से लोन हासिल करने के लिए उनके पास 100 फीसदी जमानत (पूरी लोन राशि के बराबर मूल्य का सामान) जमा करें. उनके शब्दों में, ''हमने अपने सभी सदस्यों को बता दिया है कि अब वे सावधानी बरतें और सभी ग्राहकों का केवाइसी विवरण हासिल करें, ताकि हमें यह पता रहे कि हम किसके साथ कारोबार कर रहे हैं."
वैसे जीएसटी के आने से यह कारोबार काफी हद तक औपचारिक हो चुका है. लेकिन शुरुआती दौर में रफ डायमंड पर 0.25 फीसदी और कट और पॉलिश्ड डायमंड पर तीन फीसदी जीएसटी लिया जाता था.
इसकी वजह से प्रोसेस्ड हीरा कारोबार को मुश्किल होने लगी और उद्योग के प्रतिनिधियों के तमाम तरह के आवेदन के बाद अब दोनों के लिए जीएसटी 0.25 फीसदी निर्धारित कर दी गई है. पच्छीगर कहते हैं, ''यह एक वरदान की तरह है.
अब केवल एक अड़चन ई-वे बिल है. उद्योग के अगुआ लोगों को लगता है कि 50,000 रु. या उससे अधिक के कारोबार के लिए अनिवार्य ई-वे बिल असुरक्षित है. बदमाश लोग जीएसटी पोर्टल को हैक कर सकते हैं और कीमती सामान की आवाजाही जोखिम में पड़ सकती है.
फिलहाल होता यह है कि कारोबारी हीरों को अंगड़िया या कोरियर के माध्यम से मुंबई या सूरत के विभिन्न केंद्रों को भेजते हैं. छोटे-छोटे पैकेटों में लाखों या करोड़ों के हीरे लिए ये अंगड़िया आम यात्रियों के बीच ट्रेन में यात्रा करते हैं.
उद्योग के लोगों का तर्क है कि ई-वे बिल लागू होने के बाद उनकी और हीरे को भेजने या हासिल करने वाले की पहचान जाहिर हो सकती है.
आश्चर्यजनक रूप से विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात सरकार ने रत्न और आभूषण डीलर्स के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग के तहत रिपोर्ट करने की अनिवार्यता खत्म कर दी.
इस ऐक्ट के तहत रिपोर्टिंग करने वाले हर निकाय को 10 लाख रु. से ज्यादा मूल्य के सभी लेन-देन, 5 लाख रु. से ज्यादा के सीमा पार सभी वायर ट्रांसफर और 50 लाख रुपए से ज्यादा की अचल संपत्ति की बिक्री का रिकॉर्ड रखना होता था. जानकारों का कहना है कि घोटाले को देखते हुए अब सरकार शायद निर्णय पर दोबारा सोचे. डायमंड सेक्टर के लिए 2018 मिला-जुला होने वाला साल है.
डायमंड एनालिस्ट पॉल जिमिनस्की ने इन्वेस्टिंग न्यूज से कहा कि डायमंड मैन्युफैक्चरिंग में लगे मिड सेगमेंट के पास पॉलिश्ड डायमंड का जरूरत से ज्यादा माल है, जिसका लघु से मध्यम अवधि में रफ डायमंड की मांग पर असर पड़ सकता है.
हीरे की उपभोक्ता मांग इस समय ''स्थिर और अच्छी है, चीन में सुधार, अमेरिका में मजबूत शेयर बाजार और रोजगार की स्थिति से माहौल सकारात्मक है."
यह भारत में हीरा कारोबार के लिए सुखद खबर हो सकती है, बशर्ते कि इंडस्ट्री कर्जदाताओं के साथ मिलकर काम करे और वैध कारोबार की ओर उन्मुख हो. इस तंत्र में पर्याप्त निगरानी की व्यवस्था कायम हो, ताकि कुछ लोगों की हरकतों से समूचे कारोबार की प्रतिष्ठा पर धब्बा न लगे.
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