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पंजाब में राहत की सांस!

राज्य सरकार ने चेन्नै की सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट फर्म नीवे इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता किया है जो 'शून्य अवशेष टेक्नोलॉजी' का इस्तेमाल कर समस्या पैदा करने वाली पराली या भूसे को ज्यादा ऊर्जा वाले कार्बन से भरपूर ईंधन (सीईएफ), ईटों और पेवर ब्लॉक में बदल देगा.

राजधानी दिल्ली के राजपथ पर 15 नवंबर को मास्क पहने बच्चे
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अपडेटेड 7 दिसंबर , 2017

यह समाधान हो सकता है. पंजाब में पराली जलाने से पैदा होने वाले स्मॉग के बादल हर साल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और उत्तर भारत के बड़े हिस्से में लोगों का सांस लेना दूभर करते हैं. अब पंजाब ने एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का सहारा लिया है, ताकि हर साल धान की फसल से बचने वाली करीब 2 करोड़ टन पराली को सुरक्षित तरीके से खपाया जा सके.

राज्य सरकार ने चेन्नै की सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट फर्म नीवे इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता किया है जो 'शून्य अवशेष टेक्नोलॉजी' का इस्तेमाल कर समस्या पैदा करने वाली पराली या भूसे को ज्यादा ऊर्जा वाले कार्बन से भरपूर ईंधन (सीईएफ), ईटों और पेवर ब्लॉक में बदल देगा. यदि कंपनी और पंजाब के निवेश प्रोत्साहन ब्यूरो के बीच हुए एमओयू के मुताबिक काम हुआ, तो राज्य के किसानों को खेत तैयार करने के लिए धान की पराली को जलाने की जरूरत नहीं होगी. किसान रबी की फसल के लिए पराली जलाते हैं.

नीवे में सीनियर डायरेक्टर एस.के. शिवकुमार कहते हैं, ''कंपनी ऐसी 100 इकाइयों का निर्माण करेगी जहां पूरे राज्य से इकट्ठा की गई धान की पराली की प्रोसेसिंग की जाएगी और इसे राज्य में बने करीब 400 केंद्रों में रखा जाएगा.'' वे बताते हैं, ''हम एक नई कार्बनाइजेशन-डेवोलेटाइजिंग प्रोसेस का इस्तेमाल करेंगे, जिसके लिए भारत, यूरोपीय संघ और उत्तर अमेरिका सहित 148 देशों में पेटेंट के लिए आवेदन किया गया है.'' शिवकुमार ने कहा कि नीवे पहले से ही सफलतापूर्वक इस तकनीक का इस्तेमाल चेन्नै में नगर निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) को सीईएफ ईंधन में बदलने में कर रही है.

पंजाब निवेश ब्यूरो के प्रमुख राकेश कुमार वर्मा कहते हैं कि नीवे ने अपने अनूठे एग्री-रेजिड्यू मैनेजमेंट सिस्टम को शुरू करने के लिए 10,000 करोड़ रु. के निवेश का वचन दिया है. यह सिस्टम अब से 10 महीने बाद काम करने लगेगा. शिवकुमार और उनके सहयोगियों के मुताबिक, अक्तूबर 2018 की फसल से पहले हर किसान और किसान संगठन इससे जुड़ जाएं, यह योजना है. नीवे चौबीस घंटे और सातों दिन चलने वाली किसान हॉटलाइन स्थापित करेगी और मालवा, दोआबा तथा माझा इलाके के फसल चक्र के मुताबिक, तिथि तय कर पराली की खरीद करेगी.

इस उपक्रम से करीब 30,000 लोगों को रोजगार मिलेगा, क्योंकि नीवे के कामकाज में मशीनी निकासी, कटाई, सुखाने और पराली का ग-र बना उसे क्लस्टर बिंदुओं तक पहुंचाने के लिए श्रमिक चाहिए होंगे. हर क्लस्टर पॉइंट में करीब 50,000 टन पराली रखने की क्षमता होगी. ऐसे प्रत्येक केंद्र का निर्माण सात एकड़ जमीन में किया जाएगा और इसके लिए जमीन स्थानीय पंचायत या लोगों से लीज पर ली जाएगी. हालांकि यह बड़ी चुनौती होगी क्योंकि नीवे को सारी 2 करोड़ टन पराली खेतों से हटाने के लिए बमुश्किल एक महीने का ही समय मिलेगा, ताकि समय से रबी की फसल के लिए बुवाई हो सके. इसके लिए कंपनी प्रति एकड़ मामूली 'यूजर चार्ज' लेगी. राज्य प्रशासन के सूत्रों के मुताबिक, यह चार्ज 100 से 500 रु. प्रति एकड़ हो सकता है.

सवाल उठता है कि निवेश के लिए इतनी बड़ी रकम (10,000 करोड़ रु.) कहां से आएगी? इस पर शिवकुमार कहते हैं, ''सिंगापुर और हांगकांग के निजी निवेशकों के एक कंसोर्शियम की तरफ से पैसा आएगा, जो तीसरी दुनिया की हरित योजनाओं में निवेश करने के इच्छुक हैं.'' नीवे ने 50 फीसदी हिस्सेदारी ऐसे ही निवेशकों को देने का प्रस्ताव रखा है और कंपनी के एक प्रतिनिधि का मानना है कि ''पैसा कोई बड़ी समस्या नहीं है.''

फिलहाल जिन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है, उनमें शहरों के ठोस कचरे को लो कैलोरिफिक वैल्यू वाले आरडीएफ (रीफ्यूज-डीराइव्ड फ्यूल) में बदला जाता है और इसका बड़ा हिस्सा कचरे के ढेर में बदल जाता है. लेकिन नीवे की प्रोप्राइटरी टेक्नोलॉजी 4,000 से 5,000 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम के कैलोरिफिक वैल्यू वाले सीईएफ का उत्पादन का करती है. अगर तुलनात्मक रूप से देखें तो ज्यादातर थर्मल पावर प्लांट में जिस कोयले का इस्तेमाल होता है उसकी कैलोरिफिक वैल्यू सिर्फ 2,500 होती है और उसका 40 फीसदी हिस्सा राख के रूप में बाहर आता है.

आरडीएफ का इस्तेमाल तो सीमेंट प्लांट भी अनिच्छा से ही करते हैं, जबकि कार्बन से समृद्ध ईंधन की काफी मांग रहती है, क्योंकि इसका इस्तेमाल सीमेंट, आयरन और स्टील, गन्ना, कागज, थर्मल पावर प्लांट और मीथेनॉल या ईथेनॉल उत्पादन जैसे तमाम क्षेत्रों में होता है. मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी इसे अनूठा हरित विकल्प मानते हुए इस वेंचर का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन राज्य के प्रशासनिक हलके में इसे लेकर अभी भी कुछ संदेह है. कई लोग इतने बड़े पैमाने पर कामकाज कर पाने की नीवे की क्षमता पर संदेह जता रहे हैं, क्योंकि उसकी मौजूदा एसेट वैल्यू महज 32 करोड़ रु. है और वह पंजाब में विशालकाय 10,000 करोड़ के उपक्रम पर काम करने की बात कर रही है.

राज्य का निवेश ब्यूरो कह रहा है कि वह इस मामले में पूरी तरह से सतर्क है, लेकिन वर्मा कहते हैं कि राज्य सरकार के लिए इसका कोई वित्तीय निहितार्थ नहीं है, क्योंकि वह सिर्फ कंपनी को पंजाब में कामकाज शुरू करने की सहूलियत दे रही है. उन्होंने कहा कि ''प्रोजेक्ट से जो नौकरियां पैदा होंगी, वह एक खुशी देने वाले बोनस की तरह होंगी.'' अगर सब कुछ सही रहा तो अगले सीजन तक दिल्ली में स्मॉग के बादल तैयार करने में पंजाब का योगदान शून्य हो सकता है.

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