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सहारनपुरः कब कैद से छूटेगा किला

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के रोहिला किले का  इतिहास वाकई कैद है उस चारदीवारी में जो 226 बरस पहले बनाई गई थी किले के लिए, लेकिन अंग्रेजों ने उसे जेल में तब्दील कर दिया था.

जेल या धरोहर
जेल या धरोहर
अपडेटेड 7 नवंबर , 2017

इतिहास को भला कौन कैद कर सकता है? यह तो खुद झांकता है किताबों से, झरोखों से, प्राचीरों से और दफन भी हो चुका हो तो धरती की कोख से ही अपने होने की गवाही देता है. लेकिन उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के रोहिला किले का  इतिहास वाकई कैद है उस चारदीवारी में जो 226 बरस पहले बनाई गई थी किले के लिए, लेकिन अंग्रेजों ने उसे जेल में तब्दील कर दिया था. हालांकि 97 बरस पहले इस जिला जेल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया था. मगर फाइलों के जाल में उलझी यह धरोहर जेल से नहीं छूट पा रही है.

दिलचस्प यह भी है कि जेल प्रशासन भी इससे पिंड छुड़ाना चाहता है. इसी चक्कर में जेल अधिकारियों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के बीच खींचतान टकराव के मुकाम पर पहुंच गई है.

दरअसल, एएसआइ ने किले में किसी तरह की मरम्मत या बदलाव पर रोक लगा रखी है. लेकिन इसकी जर्जर हालत से जेल के अधिकारी परेशान हैं. कुछ समय पहले जेल तोडऩे की घटनाएं भी हो चुकी हैं. लिहाजा, जेल प्रशासन जरूरी सुविधाओं और सुरक्षा पुख्ता करने केलिए एक और चारदीवारी बनाना चाहता था. लेकिन एएसआइ सक्चत है और कुछेक महीने पहले उसने वहां नोटिस भी चस्पां कर दिया है कि किसी तरह का निर्माण कानूनन जुर्म है.

जेल अधिकारी जेल को दूसरी जगह स्थानांतरित करने को भी तैयार हैं. मगर राज्य सरकार के पास यह मामला 2014 से लटका हुआ है. उससे भी बड़ा सवाल तो इस ऐतिहासिक इमारत के संरक्षण का है, जो खंडहर होने की तरफ बढ़ रही है.

देहरादून हाइवे पर एसएसपी आवास के ठीक सामने सहारनपुर जिला कारागार है. जेल के सुरक्षा द्वार में प्रवेश करते ही दाहिनी तरफ ऊंची दीवार पर एक शिलालेख है. इतिहास अपना परिचय यहीं से कराता है, ''सहारनपुर नगर की स्थापना तेरहवीं शताब्दी में मोहम्मद तुगलक के शासनकाल में एक संत शाह हारून चिश्ती ने की थी." दरअसल, कारागार एक प्राचीन रोहिल्ला किले में स्थित है जिसका निर्माण राजा इंद्रगिरी गौसाई ने 1781 में कराया था. 1857 में राजा इंद्रगिरी को अंग्रेजों से मोर्चा लेना पड़ा.

राजा हार गए. आखिर अंग्रेजों ने 1868 में 232 बंदियों से इस किले में कारागार की स्थापना की. 1908 में अंग्रेजों ने अंग्रेज बंदियों के लिए यहां अलग से एक यूरोपियन वार्ड बनवाया. फिर, 1922 में इसके भवनों में काफी परिवर्तन किए गए. 1948 में कारागार में अधिक से अधिक 1,107 बंदी तक बंद रहे. जाहिर है, 149 साल पहले इस रोहिला (अभिलेखों में रोहिल्ला) किले को जेल में बदल दिया गया था.  

18 नवंबर, 1920 को यह रोहिला किला प्राचीन स्मारक संरक्षण ऐक्ट, 1904 के तहत संरक्षित घोषित किया गया. आगरा के पूर्व संयुक्त प्रांत और अवध के पीडब्ल्यूडी ने इसका नोटिफिकेशन जारी किया था. 97 साल पुराने इस नोटिफिकेशन में लिखा है, ''इमारत के अंदर चल रही जेल में किसी भी प्रकार का अतिरिक्त ढांचा नहीं बनाया जाएगा. न ही इसकी मरम्मत कराई जाएगी."

लेकिन इतने दिनों बाद भी यह विवाद बना हुआ है तो यह सवाल लाजिमी है कि राष्ट्रीय धरोहर के प्रति एएसआइ और राज्य सरकार कितनी गंभीर है? एएसआइ आगरा सर्कल के पुरातत्वविद् भुवन विक्रम कहते हैं, ''रोहिला किला राष्ट्रीय धरोहर है और हमने जेल प्रशासन से इसमें किसी भी तरह छेड़छाड़ या विस्तार न करने को कह रखा है. एएसआइ लगातार वहां पर सर्वेक्षण करता रहता है. यह जेल प्रशासन पर निर्भर करता है कि वह कितनी जल्दी दूसरे स्थान पर शिफ्ट करता है."

वरिष्ठ जेल अधीक्षक, सहारनपुर वीरेश राज शर्मा भी स्वीकार करते हैं, ''जेल को दूसरी जगह स्थानांतरित करना ही विकल्प है. हमने जिला प्रशासन और जेल डीआइजी के जरिए सरकार से दूसरे स्थान की मांग की है. सरकार को जिला प्रशासन को भूमि की व्यवस्था के लिए निर्देश देना है. तुरंत भूमि मिल जाए तो दो साल तो भवन बनने और शिफ्टिंग करने में लग जाएंगे."

दरअसल, यह मामला 2014 में तब सुर्खियों में आया जब जेल प्रशासन ने शासन से मुख्य दीवार की ऊंचाई बढ़ाने और कुछ सुविधा स्थलों के निर्माण की अनुमति मांगी. मेरठ कैंप के अधीक्षक पुरातत्वविद् ने पत्र लिखकर इस पर आपत्ति जताई. यह भी कहा, ''सांस्कृतिक और पुरातात्विक रूप से समृद्ध इस क्षेत्र का पर्यटन विकास नहीं हो पा रहा है. वहां पर्यटकों की आवाजाही बढ़ेगी तो लोगों को रोजगार भी मिलेंगे." 8 दिसंबर, 2014 को आगरा सर्कल के अधीक्षक पुरातत्वविद् ने किले के जर्जर स्थलों की मरम्मत के लिए पत्र लिखा, लेकिन जेल प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से अनुमति नहीं दी.

हालांकि हाल में बरेली के डीआइजी जेल शशि श्रीवास्तव ने सहारनपुर जेल का दौरा किया और दूसरे स्थान पर जिला जेल बनवाकर यहां से कैदियों को शिफ्ट करने की इजाजत मांगी है. सहारनपुर मंडल के आयुक्त दीपक अग्रवाल बताते हैं, ''हमने शासन से जेल को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है और प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार को पत्र भेजकर प्रक्रिया शुरू कर दी है." हालांकि जिला प्रशासन को अभी कोई जवाब नहीं मिला है. सवाल है कि सहारनपुर जेल के उस परिसर से इतिहास की रिहाई में सरकार की रुचि आखिर कब जगेगी?

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