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मणिपुर: संख्या बल के बिना भी सत्ता का जुगाड़

पूर्वोत्तर राज्य में भाजपा गठजोड़ के जरिए सत्ता में तो पहुंची लेकिन पर्याप्त संख्या बल हासिल करने के लिए उसे अरुणाचल प्रदेश जैसी किसी तोड़फोड़ की दरकार.

मिली कुर्सी नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह बीजेपी नेताओं के साथ
मिली कुर्सी नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह बीजेपी नेताओं के साथ
अपडेटेड 27 मार्च , 2017
नतीजों के दो दिन पहले 9 मार्च को मणिपुर विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के प्रचार प्रमुख असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने इंडिया टुडे से कहा, ''हमें अगर 15 सीटें मिलती हैं तब भी सरकार हमारी ही बनेगी." आखिरकार बीजेपी को 21 सीटें हासिल हुईं यानी बहुमत के जादुई आंकड़े से 9 कम. इस सीमावर्ती राज्य में 2012 में एक भी सीट न पाने वाली भाजपा के लिए यह वाकई मार्के की उपलब्धि थी. इस तरह सरमा का सरकार बनाने का भरोसा समझ के परे था. इसमें दो राय नहीं कि असम में बीजेपी की जीत के सूत्रधार को यह बखूबी मालूम है कि प्रचार कैसे चलाना है और क्या रणनीति बनानी है.

भाजपा का नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) के साथ चुनाव-पूर्व अनौपचारिक तालमेल पहले से ही था. एनपीएफ को पहाड़ों में चार सीटें मिली हैं. भाजपा ने एनपीएफ के साथ औपचारिक गठजोड़ इस आशंका से नहीं किया था कि स्थानीय माइती लोगों में इसका उलटा असर हो सकता है. माइती लोगों की नगा लोगों से हमेशा ठनी रहती है. पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने यह कहकर माइती लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश की कि मोदी सरकार ने नेशनल सोसलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आइएम) के इसाक-मुइवा गुट से जो शांति समझौता किया है, वह माइती लोगों के खिलाफ जा सकता है.

इबोबी सिंह ने केंद्र को चुनौती भी दी कि समझौते की शर्तों का खुलासा किया जाए. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी सभाओं में लोगों को आश्वस्त किया कि समझौते से मणिपुर की क्षेत्रीय स्वायत्तता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा. इसका असर भी हुआ और भाजपा घाटी में कुल 40 सीटों में से 16 जीत गई. इसके अलावा, उसे पांच सीटें पहाड़ों से मिलीं.

लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत पी.ए. संगमा की बनाई नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के नेता अब उनके बेटे कोनार्ड संगमा हैं. यह पार्टी पूर्वोत्तर में गैर-कांग्रेस पार्टियों के गठजोड़ पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठजोड़ (एनईडीए) की सदस्य है. सरमा इस फोरम के संयोजक हैं. इस तरह भाजपा को एनपीपी और एनपीएफ का समर्थन हासिल हो गया. अब उसे सरकार बनाने का दावा करने के लिए सिर्फ दो और विधायकों की दरकार थी. सरमा पहले टीएमसी के विधायक रोबिंद्रो सिंह और फिर एलजेपी के करण श्याम तथा एक निर्दलीय विधायक को अपने पाले में ले आए. लेकिन सियासी हलकों में हलचल तो कांग्रेस के विधायक श्याम कुमार के पाला बदलने से हुई. इस तरह भाजपा के समर्थन में विधायकों की संख्या 33 हो गई. कुल 60 सीटों की विधानसभा के लिए यह आंकड़ा बहुमत के पार पहुंच गया. सरमा ने 12 मार्च को राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला के सामने विधायकों को पेश कर दिया.

असल में श्याम कुमार उन कांग्रेसी विधायकों में पहले हैं जो भाजपा की ओर जा सकते हैं. इसी से पता चलता है कि सरमा 15 विधायकों के साथ भी सरकार बनाने को लेकर क्यों इतने आश्वस्त थे. पूर्वोत्तर में तो भाजपा की यही रणनीति शुरू से है. वह कांग्रेस को तोड़कर ही अपना आधार व्यापक कर रही है. उसने अरुणाचल प्रदेश में इसे अपनाया है. वहां पिछले महीने 44 में से 43 कांग्रेसी विधायक भाजपा में चले गए. आखिरकार भाजपा को यह एहसास भी है कि एनपीएफ पर भरोसा नहीं किया जा सकता, खासकर वृहत्तर नगालैंड के सवाल पर वह बिदक सकता है.

राज्य में मंत्रिमंडल के आकार को लेकर सीमाओं के कारण मणिपुर में मुख्यमंत्री समेत 12 मंत्री ही बन सकते हैं. यह तीन सहयोगी दलों और कुछ अन्य को खुश करने के लिए कम ही होगा. एनपीएफ तो शायद पाला न बदले लेकिन एनपीपी अच्छे पद न मिलने पर कांग्रेस के साथ जाने की धमकी दे सकती है. इसी वजह से भाजपा कांग्रेस में तोडफ़ोड़ कराने की सोचेगी. पूर्व कांग्रेसी एन. बीरेन सिंह कभी इबोबी सिंह के वफादार हुआ करते थे. अब वे राज्य में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं. संभव है, इस पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी के कुछ साथी पाला बदलकर उनकी राह आसान कर दें.
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