लखनऊ के रायबरेली रोड पर स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआइ) में पीएमएसएसवाइ (प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना) भवन है. इसमें दाखिल होते ही गर्भवती महिलाएं अल्ट्रासाउंड के इंतजार में खड़ी दिख जाती हैं. ठीक 10 बजे ''डिपार्टमेंट ऑफ मैटरनल हेल्थ" विभाग की प्रमुख 50 वर्षीया डॉ. मंदाकिनी प्रधान अल्ट्रासाउंड कक्ष में आती हैं और शुरू हो जाता है जांच का सिलसिला. डॉ. प्रधान के इलाज से ही कानपुर के शिवराजपुर की रहने वाली 30 वर्षीया निधि कुमारी के घर का सूना आंगन किलकारियों से गूंज रहा है. 2006 में शादी के बाद निधि चार बार गर्भवती हुईं और हर बार बच्चे ने कोख में ही दम तोड़ दिया. 2012 में जब वे फिर गर्भवती हुईं तो पीजीआइ में डॉ. प्रधान से मिलीं. जांच में पता चला कि निधि के गर्भ में पल रहा भ्रूण पीलिया का शिकार है. गर्भस्थ शिशु का वजन महज 250 ग्राम था. डॉ. प्रधान ने एक खास तरीके से अल्ट्रासाउंड और सुई के जरिए गर्भ में भू्रण को रक्त चढ़ाया और बच्चे की जान बचाई. इतने कम वजन के भ्रूण में ''ब्लड ट्रांसफ्यूजन" किए जाने का यह देश में पहला मामला था. बाद में निधि ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया.
डॉ. प्रधान के प्रयास से विभाग ने 2012 में ''मैटरनल ऐंड फीटल मेडिसिन" में एक साल का डिप्लोमा कोर्स शुरू किया जो देश में इकलौता है. डॉ. प्रधान की देखरेख में यह विभाग भ्रूण में बीमारी की पहचान और उसके इलाज में पारंगत 16 डॉक्टरों को अब तक तैयार कर चुका है जो देश के अलग-अलग अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं. डॉ. प्रधान ने भ्रूण में घेंघा जैसी बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज करके पीजीआइ को देश में अलग पहचान दिलाई है. उन्होंने ही एक खास विधि से भू्रण को गोली खिलाकर इलाज करने की तकनीक विकसित की है.
बाराबंकी की चांदनी को रक्त कैंसर था. डॉ. प्रधान ने उनके गर्भस्थ शिशु को ''ब्लड ट्रांसफ्यूजन" और इलाज के जरिए मां की बीमारी का प्रभाव उस पर न होने दिया और सुरक्षित प्रसव करा अपने विभाग की उपलब्धियों में एक नया मील का पत्थर जोड़ा. 2008 में विभाग की शुरुआत के बाद से अब तक यहां गंभीर बीमारियों से पीड़ित 1,000 से अधिक गर्भस्थ शिशुओं का सफलतापूर्वक इलाज कर सुरक्षित प्रसव कराया जा चुका है. डॉ. प्रधान कहती हैं, ''हमारे विभाग की टीम एक साथ दो जिंदगियां बचाती हैं." उनका इशारा जच्चा-बच्चा, दोनों की ओर है. उनके पति डॉ. पी.के. प्रधान पीजीआइ में न्यूक्लियर मेडिसिन के प्रोफेसर हैं. जाहिर है, दोनों लोग दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं. डॉ. मंदाकिनी प्रधान के विभाग की कामयाबी से उत्साहित पीजीआइ लखनऊ के निदेशक डॉ. राकेश कपूर कहते हैं, ''डॉ. मंदाकिनी प्रधान का प्रयास दूसरों को प्रेरणा देने वाला है. उनका प्रयास है कि जो बच्चा इस दुनिया में आए वह पूरी तरह से स्वस्थ हो." यानी वे असली हीरो हैं.
गर्भस्थ शिशुओं की जिंदगी बचाती डॉ. मंदाकिनी प्रधान
लखनऊ की एक डॉक्टर जो गर्भस्थ शिशुओं की जिंदगी सुरक्षित करने में जुटी है.

अपडेटेड 5 अक्टूबर , 2016
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