दो हफ्ते पहले पुणे की रहने वाली 23 वर्षीया सौम्या अय्यर को पोकेमॉन गो खेलने का चस्का लग चुका था. उसने अपनी मक्वमी को भी इस मोबाइल गेम को लेकर अपनी दीवानगी के बारे में बता दिया. कुछ दिन बाद उनकी 49 वर्षीया मम्मी मनीषा अय्यर ने इस ऐप को डाउनलोड कर लिया. वे कहती हैं, ''मैंने सिर्फ इसलिए इसे खेलना शुरू किया था ताकि मैं इसके प्रति बढ़ रही दीवानगी के बारे में जान सकूं. बाद में मैं ज्यादा और बेहतर पोकेमॉन हासिल करके सिर्फ सौम्या को हराना और चिढ़ाना चाहती थी.'' मैंने जब सौम्या से बात की तो उन्होंने बताया कि उनकी मम्मी उनके भाई से कह रही थीं कि जब वे दोपहर में सो रही हों तो वह पोकेमॉन जमा करता रहे.
2003 में जापानी एनिमेशन शो पोकेमॉन टीवी देखने वाले उन भारतीय बच्चों के पास पहुंच गया था, जो बड़े ध्यान से हर रोज आधे घंटे के लिए कार्टून नेटवर्क देखते थे. इस शो में 10 वर्ष का उपेक्षित बच्चा था, जो पॉकेट मास्टर्स को इकट्ठा करने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए सफर पर जाता है. वहां दूसरे ट्रेनरों और अपने पोकेमॉन के साथ उसकी पक्की दोस्ती हो जाती है. एक बार जब पोकेमॉन पूरे देश में लोकप्रिय हो गया तो बहुत-से ब्रांडों ने इस मौके का फायदा उठाने में जरा भी देरी नहीं की और उन्होंने अपने बहुत से उत्पादों के साथ मुफ्त में पोकेमॉन के स्टिकर और ऐसी ही दूसरी चीजें देनी शुरू कर दीं. ऐसा ही एक ब्रांड था फ्रिटो-ले (हिंदुस्तान यूनीलीवर के स्वामित्व में पेप्सिको की एक डिविजन), जो चीटोज और अंकल चिप्स के हर पैक में पोकेमॉन ताजो छिपाकर रख देती थी. जाहिर है, इससे बच्चों की मख्मियों को बहुत गुस्सा आता था, क्योंकि उन्हें हर रोज किराने की दुकान पर इन्हें खरीदने के लिए जाना पड़ता था. बाद में इसकी लोकप्रियता धीरे-धीरे कम हो गई, लेकिन तब तक इसने अपने प्रशंसकों की पूरी पीढ़ी तैयार कर ली थी, जो अब 20 साल से ऊपर के हो चुके हैं. पोकेमॉन को लेकर जब भारत में दोबारा दीवानगी पैदा हो गई तो किसी के लिए यह आश्चर्य की बात नहीं थी. इस बार यह दीवानगी लोकेशन-आधारित एआर (ऑगमेंटेड रियलिटी) मोबाइल गेम 'पोकेमोन गो' के रूप में आई है. गेम खेलने वाले के कैमरे और जीपीएस पर निर्भर है. यह आपको अपने एरिया में खोजने का मौका देता है, जिससे आप अपने आसपास के पोकेमॉन पकड़ते हैं और फिर उन्हें ट्रेनिंग देकर दूसरे यूजर्स के पोकेमॉन से लड़ाते हैं.
अमेरिका स्थित सॉफ्टवेयर विकसित करने वाली कंपनी नियानटिक इंक. की ओर से सबसे पहले 7 जुलाई को कुछ देशों में रिलीज किए जाने वाले इस गेम को आधिकारिक रूप से अभी भारत में लॉन्च नहीं किया गया है. एंड्रॉयड का इस्तेमाल करने वालों ने इसे एपीके फाइल, जो गूगल प्लेस्टोर पर उपलब्ध न होने वाले ऐप्स को हासिल करने की सुविधा देता है, के माध्यम से डाउनलोड कर लिया है. इस खेल के साथ जुड़े आंकड़े चौंकाने वाले हैं. ऑनलाइन पत्रिका टेकक्रंच के मुताबिक, ऐपल ने बताया है कि यह गेम अपने पहले हफ्ते में ही ऐप स्टोर के किसी भी दूसरी ऐप के मुकाबले सबसे ज्यादा डाउनलोड हो चुकी थी. सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी सिमिलरवेब पर उपलब्ध डेटा के मुताबिक, सबसे ज्यादा एपीके डाउनलोड किए जाने के मामले में भारत चौथे स्थान पर है. गेम लॉन्च होने के कुछ ही समय बाद निनटेंडो के शेयर आसमान छूने लगे और 1983 में अपनी शुरुआत के बाद से ये सबसे ऊपर थे. लेकिन यह उफान कुछ ही दिन कायम रहा और उसके शेयर फिर से तब नीचे आ गिरे, जब निवेशकों को पता चला कि निनटेंडो तो इस गेम का निर्माता था ही नहीं (उन्होंने घोषणा की कि उनके पास नियानटिक के सहयोग से इस गेम को तैयार करने वाली कंपनी द पोकेमोन कंपनी की 32 प्रतिशत हिस्सेदारी है).
जब आप पोकेमॉन गो की शुरुआती लोकप्रियता देखेंगे तो ये आंकड़े कहीं से भी अतिरंजित नहीं लगेंगे. पुरस्कार आधारित इस गेम की सरलता ही कुछ हद तक इसकी जबरदस्त लोकप्रियता को बयान करती है. इस गेम को समझने के लिए जरूरी नहीं है कि आप पोकेमॉन सीरीज से परिचित हों. यह पहली बार है जब देश ने सामूहिक रूप से इतने बड़े स्तर पर एआर गेमिंग को देखा है. इस गेम ने 'स्क्रीन की आदी' पूरी पीढ़ी को अपने आगोश में ले लिया है. अगर आप यह सुनें कि किसी गेम को खेलने से आपके स्वास्थ्य को फायदा होता है तो एकबारगी इस पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है. आपको कुछ लोग अपनी बाइकों और कारों पर आराम से सवारी करते हुए कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा पोकेमॉन जुटाते हुए दिख जाएंगे.
इसके फीचर में पोकेस्टॉप्स और पोकेमॉन जिम्स शामिल हैं. पोकेस्टॉप्स पर खिलाड़ी पोकेबॉल्स और पेयवस्तुओं सरीखी अपनी निजी चीजें इकट्ठा करते हैं, जबकि पोकेमॉन जिम्स वे जगहें हैं जहां अलग-अलग टीमों के खिलाड़ी एक्सपीरियंस पॉइंट्स हासिल करने के लिए गैंग-वार के अंदाज में मुकाबला करते हैं और जिम्स को फतह करने में अपनी टीमों की मदद करते हैं. पोकेस्टॉप्स और जिम्स आम तौर पर प्लेसेज ऑफ इंटेरेस्ट में स्थित होते हैं (जिसका खाका नियानटिक के पहले वाले एआर के रिलीज किए गए इन्ग्रेस में खिलाडिय़ों ने बनाया था और पोकेमॉन गो में जिसका मकसद नए सिरे से तय किया गया). वहां से ये इन्हें हैरान-परेशान तमाशबीनों या दर्शकों तक ले जाते हैं जो मंदिरों और कब्रिस्तानों में हर घंटे जमा हो रही खिलाडिय़ों की भीड़ को देख रहे हैं. मगर इसकी सुलभता में भी गैर-बराबरी है क्योंकि मुंबई और दिल्ली सरीखे टायर-1 शहरों के इलाकों में हरेक 500 मीटर पर पोकेस्टॉप्स और जिम्स हैं, जबकि इंदौर कुल तीन जिम्स के साथ जद्दोजहद कर रहा है.
मुंबई में रहने वाली 24 वर्षीया निहा पाटील बताती हैं कि किस तरह इस खेल ने उन्हें अपने इलाके की छानबीन करने में मदद की. वे कहती हैं, ''मुझे अपने पहले पोकेवॉक पर जापानी रेस्तरां मिला और बाद में मैंने पाया कि मेरे इलाके में म्युजिकल फाउंटेन है.'' यह खेल आपको नया नजरिया तो दे ही सकता है, इसके अलावा इसने खिलाडिय़ों को एक-दूसरे के साथ घुलने-मिलने का भी मौका दिया है. इधर-उधर भागते हुए या पोकेस्टॉप्स पर ठहरे हुए और अपने साथी खिलाडिय़ों की ओर खीसें निपोरते हुए अपने फोन के वाइब्रेट (इशारा कि पोकेमॉन को ढूंढ लिया गया है) होने का इंतजार करते हुए खिलाडिय़ों को देखना अब आम बात हो गई है. मुंबई में रहने वाले 27 साल के लेखक नाहिम अब्दुल्ला वाकया बताते हैं, ''पोकेमॉन की हंटिंग करते-करते बीच रास्ते बारिश में फंस जाने पर मैं एक रेस्तरां में ठहर गया. नतीजा यह हुआ कि पोकेमॉन गो के बारे में बतियाने के बाद बगल की मेज पर बैठे कुछ लोगों से मेरी दोस्ती हो गई.''
कारोबारियों को इस जुनून में छिपी संभावनाओं को पहचानने में देर नहीं लगी. अमेरिका के रेस्तरांओं और स्टोरों ने ग्राहकों को लुभाकर अपने यहां लाने के लिए ल्यूर मॉड्यूल का भरपूर फायदा उठाया. (ल्यूर मॉड्यूल नाम की यह डिवाइस पोकेमॉन की फौज को एक पोकेस्टॉप में आने के लिए लुभाती है और फिर अपने नजदीक मौजूद हरेक खिलाड़ी को कुछेक पोकेकॉइंस के बदले में 30 मिनट या उससे ज्यादा वक्त के लिए उन्हें पकडऩे का मौका देती है). बेंगलूरू स्थित स्टार्ट-अप भुक्कड़ ने उसके इलाके के तमाम पोकेस्टॉप्स और जिम्स के नक्शे तैयार किए ही, साथ ही फेसबुक इवेंट भी तैयार किया, जिसमें खिलाडिय़ों को उनके भुक्कड़ पोकेकॉर्नर पर आने का न्योता दिया गया. भुक्कड़ के संस्थापक 26 वर्षीय अनुज गर्ग ने बताया, ''हमने भुक्कड़ के नजदीक एक पोकेस्टॉप पर छह घंटों के लिए ल्यूर मॉड्यूल क्रिएट किया. पोकेमॉन को पकडऩे वाले हरेक ग्राहक को डिस्काउंट दिया गया. हरेक खरीद पर उन्हें एक टीम को वोट करने के लिए कहा गया. जिस टीम ने सबसे ज्यादा वोट हासिल किए, उसे बाकी हफ्ते के लिए भी डिस्काउंट दिए गए.'' इस मार्केटिंग रणनीति का अच्छा-खासा फायदा हुआ. भुक्कड़ ने इस कवायद में जितनी रकम निवेश की, बदले में उससे 10 गुना रकम हासिल कर ली.
मगर पोकेमॉन गो की नीली-हरी दुनिया में सब कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं है. हिंदुस्तानी खिलाडिय़ों ने चूंकि अनाधिकारिक फाइलें डाउनलोड की हैं, इसलिए मौजूदा सर्वरों पर बहुत ज्यादा दबाव आ गया है. नतीजतन ऐप कुछ घंटों में क्रैश कर जाती है. कुछ खिलाडिय़ों ने तो आलोचना की है कि इस खेल में पेचीदगी नहीं है. उधर, अधिकारियों को शिकायत है कि उन्हें खिलाड़ी की निजी संपत्तियों में घुसने, प्रतिबंधित इलाकों में जाने, बीच रात में 'मटरगश्ती' करने और यहां तक कि लापरवाही से गाड़ी चलाने सरीखी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है. लेकिन जब वे उनसे पार नहीं पा सकते, तो कभी-कभी उनमें शामिल हो जाते हैं. अहमदाबाद में रहने वाले वेब डेवलपर 24 वर्षीय मीत भट्ट हाल ही का एक किस्सा बताते हैं. उनका सामना बदहवास भागते पुलिसकर्मिंयों के जत्थे से हुआ. उन्होंने मान लिया कि जरूर कहीं न कहीं कोई आफत आ पड़ी है. वे हंसते हुए आगे बताते हैं, ''वे यह कहते हुए लौट आए कि 'हम एक भी पकड़ नहीं पाए'—जाहिर है, वे पोकेमॉनों को पकडऩे की कोशिश कर रहे थे!''
कह पाना मुश्किल है कि यह जुनून ज्यादा समय तक टिकेगा या नहीं, मगर भारत में इसके आधिकारिक तौर पर लॉन्च होने तक गतिविधियों में ठहराव आने के संकेत मिल रहे हैं. यह ठहराव पता नहीं कितना लंबा होगा, क्योंकि भारत में इसके लॉन्च होने की तारीख का भी अभी ऐलान नहीं हुआ है. 22 जुलाई को ट्विटर और फेसबुक पर खलबली मच गई, जब चेन्नै, कोलकाता और बेंगलूरू के खिलाड़ी बहुत बेताबी से हैरान और परेशान थे कि गेम की तमाम चीजें आखिर कहां गायब हो गईं. यही हालत आज तक कायम है, जिससे ज्यादातर लोगों का मानना है कि जिओ-ब्लॉक यानी इलाकाई पाबंदी लगा दी गई है. जापान में भी गेम को आधिकारिक तौर पर जारी करने से पहले ऐसा ही किया गया था. कई लोगों को शक है कि अगर इसकी रिलीज की तारीख ज्यादा ही लंबी टली तो इस खेल को लेकर जो जुनून पैदा हुआ है, वह टिकेगा भी या नहीं. मगर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पोकेमॉन गो ने भारत में और भारत के ऊपर जबरदस्त असर डाला है. यह बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई हकीकत और गेमिंग के एक नए दौर का आगाज है. अगर समझदारी से खेला जाए, तो इसके कई अच्छे असर भी हो सकते हैं. इसके बारे में यही बात किसी न किसी रूप में बहुत आशाजनक ख्याल की तरह जान पड़ती है.
पोकेमॉन का चस्का
एक मोबाइल गेम की दुनियाभर में फैली दीवानगी, भारत में आधिकारिक लॉन्च के बिना ही सिर चढ़ा पोकेमॉन का जुनून.

अपडेटेड 3 अगस्त , 2016
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