उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में 2011 में किंग कोबरा की उपस्थिति के बाद अब गढ़वाल के मसूरी वन प्रभाग में पडऩे वाले सहस्रधारा क्षेत्र मंत भी किंग कोबरा का घोंसला मिला है. वन विभाग ने इसकी निगरानी की. घोंसले में मौजूद 29 अंडों में से 24 में से बच्चे निकल आए, जबकि पांच अंडे खराब हो गए. वन विभाग ने इन्हें सफलतापूर्वक राजाजी नेशनल पार्क क्षेत्र के अलग-अलग दो रेंजों में छोड़ दिया है.
वन विभाग बाकायदा जीपीएस के जरिए सैटेलाइट से किंग कोबरा के बच्चों की निगरानी कर रहा था. नए बच्चों को जहां छोड़ा गया, उस जगह की भी निगरानी की जा रही है ताकि पता लग सके कि उनमें से कितने बच्चे जीवित बचे.
सरीसृप विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटेकर के मुताबिक, ''किंग कोबरा घने जंगलों और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाया जाता है. वे पूर्वोत्तर के राज्यों, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और गोवा आदि में पाए जाते हैं. '' व्हिटेकर ने इस सांप के प्राकृतिक वास और स्वभाव का गहरा अध्ययन किया है. इसकी लंबाई 20 फुट तक हो सकती है. मादा कोबरा साल में सिर्फ एक बार ही अंडे देती है. इस दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में से एक माना जाता है और इसकी लंबाई भी सबसे ज्यादा होती है. सांपों की प्रजातियों में एकमात्र किंग कोबरा ही ऐसा सांप है, जो घोंसला बनाता है और दूसरे सांपों को खाता है. चूंकि किंग कोबरा दूसरे सांपों को खाते हैं तो इससे स्थानीय प्रजातियों को खतरा हो सकता है. लेकिन व्हिटेकर ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है, ''वे उन नाग, करैत, वाइपर जैसे सांपों को खाते हैं, जिनके डसने से हजारों मौतें होती हैं. '' उनसे स्थानीय प्रजातियों को कोई खतरा नहीं है क्योंकि यह प्रकृति का हिस्सा है. इस में एक साथ 20 लोगों को मारने लायक विष छोडऩे की क्षमता होती है.
सहस्रधारा क्षेत्र में आबादी के निकट किंग कोबरा का घोंसला मिलने से उसके बदलते प्रवास के भी संकेत मिल रहे हैं. विशेषज्ञ इसका अध्ययन कर रहे हैं. माना जाता था कि ये सांप केवल वर्षावनों में ही पाए जाते हैं लेकिन जैसा कि व्हिटेकर कहते हैं, ''हम मानते थे कि वे वर्षावनों में ही रहते हैं, लेकिन अब हम उन्हें ओडिसा में गारान के जंगलों, काजीरंगा के घास के मैदानों और आंध्र प्रदेश के छोटे जंगलों में भी देख रहे हैं, जो बहुत गर्म और सूखा राज्य है. '' किंग कोबरा की निगाह काफी तेज होती है. वह 100 मीटर दूर से अपने शिकार को देख सकता है.
असल में 9 जुलाई को सहस्रधारा के निकट एक गांव की पगडंडी पर मिले करीब एक वर्गमीटर चौड़े और एक मीटर लंबे घोंसले में मादा किंग कोबरा ने अंडे दिए थे. वन विभाग को इसकी जानकारी इफेक्ट संस्था ने दी. डेंटिस्ट से वन्यजीव प्रेमी बने डॉ. अभिषेक सिंह इस संस्था को चलाते हैं. जानकारी मिलते ही वन विभाग ने घोंसले के चारों ओर तारों की बाड़ बना दी और एक अधिकारी को वहां तैनात कर दिया गया. 22 अगस्त को इन अंडों से किंग कोबरा के बच्चे निकलते ही सभी 24 सांपों को पकड़कर अलग-अलग वन क्षेत्रों में छोड़ दिया गया.
किंग कोबरा के अध्ययन में लगे विशेषज्ञ बताते हैं कि उनके अंडों से बच्चे निकलते ही भागने लगते हैं. इसीलिए वन विभाग ने घोंसले के चारों तरफ जाली लगाई थी. यह सांप घने जंगलों में ही अपने घोंसले बनाता है. लेकिन यह दूसरा मौका है, जब उत्तराखंड में आबादी के आसपास किंग कोबरा का घोंसला मिला है.
वन विभाग के वन्यजीव प्रतिपालक डी.पी.एस. खाती कहते हैं, ''कुछ वर्षों से उत्तराखंड में इस जहरीले सांप की संख्या बढ़ी है. किंग कोबरा के 24 बच्चों में से आधों को वन विभाग ने चीला रेंज में छोड़ा, जबकि उनमें से आधों को राजाजी नेशनल पार्क के ही रानीपुर रेंज में छोड़ दिया गया. ''
सांपों के व्यवहार और स्वभाव की व्यावहारिक जानकारी रखने वाले अभिषेक सिंह कहते हैं, ''हमारा स्थानीय लोगों के साथ संपर्क है और नेटवर्क बना हुआ है. इस कारण हमें वन्यजीवों से संबंधित जानकारियां मिलती रहती हैं. '' अपनी इसी खासियत के चलते वे वन विभाग के 500 से अधिक वनरक्षकों को सांपों के संबंध में प्रशिक्षण भी दे चुके हैं.
वन विभाग के मसूरी प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी धीरज पांडे कहते हैं, ''किंग कोबरा के अंडों से निकले 24 बच्चों को सफलतापूर्वक सहस्रधारा क्षेत्र से दूर जंगल में छोडऩे के बाद भी स्थानीय लोगों ने फिर से उसी क्षेत्र में एक और किंग कोबरा देखने की बात कही है. '' मसूरी वन प्रभाग के चमसारी वनबीट में दूसरा किंग कोबरा दिखने के बाद वन विभाग मानने लगा है कि शायद उसने इस क्षेत्र को अपना पसंदीदा ठिकाना बना लिया है.
उत्तराखंड: किंग कोबरा का नया ठिकाना
राज्य में दूसरी बार मिला सांपों में सबसे जहरीले माने जाने वाले किंग कोबरा का घोंसला.

अपडेटेड 11 सितंबर , 2015
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