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निशाने पर तीस्ता सीतलवाड

तीस्ता ने कहा कि सीबीआइ जांच दंगा पीडि़तों के लिए उनके संघर्ष को नहीं डिगा सकती.

तीस्ता सीतलवाड
तीस्ता सीतलवाड
अपडेटेड 11 सितंबर , 2015

अगस्त की 4 तारीख को गुजरात हाइकोर्ट ने जकिया जाफरी की ओर से दाखिल उस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई शुरू की जिसमें 2002 के अहमदाबाद दंगों के संबंध में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को दी गई 'क्लीन चिट' पर सवाल खड़ा किया गया है. 2002 में शहर की गुलबर्ग सोसाइटी में हुए दंगों में उनके पति और पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 68 लोग मारे गए थे. आज 13 साल बाद जाफरी को अगर इस मामले में इंसाफ  की कोई उम्मीद है तो वह मुंबई की मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड के सहयोग की वजह से है. हाल ही में तीस्ता के खिलाफ  हिरासत में लेकर पूछताछ करने संबंधी सीबीआइ के एक वारंट को बॉक्वबे हाइकोर्ट ने 12 अगस्त को खारिज कर दिया था.

इस साल 9 जुलाई को सीबीआइ ने गृह मंत्रालय के विदेश विभाग (एफसीआरए प्रकोष्ठ) की एक शिकायत के आधार पर सीतलवाड और उनके पति जावेद आनंद के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी. इसमें इस दंपती पर एफसीआरए के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था. सीबीआइ के मुताबिक, सबरंग कम्युनिकेशंस ऐंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक की हैसियत से दोनों ने अमेरिका के एक गैर-मुनाफे वाले संगठन फोर्ड फाउंडेशन से 2,90,000 डॉलर का विदेशी अनुदान लिया था, जबकि उनके पास न तो एफसीआरए का कोई खाता था और न ही उन्होंने गृह मंत्रालय से उचित अनुमति ही ली थी.  सबरंग का कहना है कि उसे 5 अप्रैल, 2004 को 90,000 डॉलर और 22 सितंबर, 2006 को 2,00,000 डॉलर का अनुदान 'भारत में सांप्रदायिकता और जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ सक्रिय शोध, वेब आधारित सूचना-प्रसार, सभ्य समाज नेटवर्कों के विकास और मीडिया रणनीतियों' के लिए मिला था. सीतलवाड और आनंद का कहना है कि इस संबंध में समझौते और गतिविधि रिपोर्ट सीबीआइ, एफसीआरए के अधिकारियों और गुजरात पुलिस को सौंपी जा चुकी है. वे कहती हैं, ''सीबीआइ इतने साल बाद हमारे परिसरों पर छापा क्यों मार रही है? आखिर फोर्ड फाउंडेशन से अनुदान की पहली खेप 2004 में और दूसरी 2006 में आई थी. ''

गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सीबीआइ ने गुजरात के गृह मंत्रालय की ओर से किए गए अनुरोध के आधार पर छापा मारा था. मंत्रालय सीतलवाड के अनुदानों के स्रोत की जांच करना चाहता था. ऐसा लगता है कि इसी जांच के बाद सरकार के सामने यह खुलासा हुआ होगा कि फोर्ड फाउंडेशन उसके यहां पंजीकृत नहीं है.

इस दौरान गुजरात पुलिस ने सीतलवाड पर आरोप लगाया कि उन्होंने गुजरात के दंगा पीडि़तों के नाम पर एक स्मारक बनाने के लिए 1.72 करोड़ रु. जुटाए और उसे सौंदर्य प्रसाधन और खाने-पीने जैसी निजी चीजों पर खर्च कर डाला. पुलिस का कहना है कि अपने निजी खर्च के लिए वे क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करती थीं जिसे बाद में ट्रस्ट के फंड से चुका देती थीं.
सीतलवाड कहती हैं, ''मुझे शिकार बनाया जा रहा है क्योंकि मैंने सीजेपी के साथ कम से कम 500 दंगा पीडि़तों के बयान गवाह के तौर पर दर्ज कराने में मदद की थी. '' सीबीआइ ने जिस तरीके से सीतलवाड के घर और दफ्तर में छापा मारकर 22 घंटे तक तलाशी ली, वह अपने आप में बहुत अटपटा था. दिल्ली की वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन पूछती हैं, ''यह मानते हुए कि वारंट में उस चीज का जिक्र नहीं था जो सीबीआइ खोज रही थी, आखिर यह कहने का क्या आधार बनता है कि तीस्ता सहयोग नहीं कर रही हैं? सीबीआइ ने तो उन्हें उन दस्तावेजों की सूची तक नहीं दी जो वह लेकर गई है. ''

अगस्त के हाइकोर्ट के फैसले का एक अहम पहलू यह है कि उसमें सीतलवाड को देश में कहीं भी और कभी भी घूमने की छूट दी गई है. जाहिर है, इसमें मुंबई और अहमदाबाद के बीच 527 किमी की दूरी भी शामिल है और इसी दूरी को तय करके वे सोनिया गोकणी की अदालत में गुजरात हाइकोर्ट आ सकती हैं जहां अब जकिया जाफरी के मामले की सुनवाई चल रही है. दंगा पीडि़तों का मानना है कि जकिया और नरोदा पाटिया के मामलों में सीतलवाड का वहां रहना बहुत जरूरी है.

अहमदाबाद के बाहरी इलाके नरोदा पाटिया में हुए दंगे में 97 लोगों की मौत हुई थी और सीतलवाड के सहयोग से ही 2012 में 32 लोगों को दोषी ठहराया जा सका. कई दोषियों की ओर से इस फैसले को चुनौती दिए जाने के बाद हाइकोर्ट ने नरोदा पाटिया मामले में भी 28 जुलाई को सुनवाई शुरू कर दी है. इस मामले में सीतलवाड की संस्था सिटिजंस फॉर जस्टिस ऐंड पीस (सीजेपी) सह-याचिकाकर्ता है.

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