यह तकरीबन तीन साल पहले की बात है. पंडित जसराज ने सुनीता बुद्धिराजा के नोएडा स्थित घर में अपने लोकप्रिय भजन तिहारो घर सुबास बसो के साथ बैठक संध्या की शुरुआत की. जाहिर है, मेजबान के लिए यह बहुत खास मौका था. उन्होंने शास्त्रीय संगीत के दिग्गज को अपने नए घर को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया था. पंडितजी ने बुद्धिराजा से कुछ हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि अब यह घर न बदलना. बुद्धिराजा हर कुछ साल पर एक से दूसरे शहर में अपना बसेरा बनाने के लिए जानी जाती हैं. 60 वर्षीया जन संपर्क प्रोफेशनल बुद्धिराजा कहती हैं, "उन्होंने मजाक में कहा था. नए घर को शुभ आशीर्वाद देने के लिए हर घर में उन्हें गाने की शुरुआत एक ही भजन से करनी पड़ती है. सो, अब वे कुछ और गाना चाहते हैं." बुद्धिराजा के घरों के बैठकखाने इतने बड़े होते हैं कि वहां संगीत संध्या का आयोजन किया जा सकता है.
जैसे-जैसे शास्त्रीय संगीत को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, कलाकारों और श्रोताओं के बीच नजदीकियां भी बढ़ रही हैं. सार्वजनिक मंचों की औपचारिकता अब बैठकखानों की सहज अंतरंगता में बदलती जा रही है. सार्वजनिक आयोजनों के बदले निजी संगीत संध्याओं या बैठकों का दौर शुरू हो गया है, जहां श्रोता मुलायम गलीचों पर भारी कांजीवरम साडिय़ों और कलफ लगे हुए कुर्तों में इत्र-फुलेल की खुशबू बिखेर रहे होते हैं. इससे सारा माहौल ही संगीतमय हो उठता है. भोपाल के बाहरी इलाके में ध्रुपद गुरुकुल स्थापित करने वाले गुंदेचा बंधुओं में से एक ध्रुपद गायक रमाकांत गुंदेचा कहते हैं, "लोग भावुक हो उठते हैं. वे जोर-जोर से हंसने, बोलने, नाचने लगते हैं या फिर ध्यान में डूब जाते हैं. एक बैठक में कनाडा के सज्जन ने कहा कि संगीत इतना एकाग्र करने वाला था कि मैं दूसरी दुनिया में पहुंच गया."
पुणे के सितारवादक संदीप कुलकर्णी 2007 की एक बैठक का किस्सा सुनाते हैं. वहां एक अमेरिकी श्रोता ने उनसे चित्त को एकाग्र करने वाला कोई विलंबित राग बजाने का आग्रह किया. वे कहते हैं, "सितार से संगीत का प्रवाह आलाप से जोड़, झाला या द्रुत गति की ओर बढ़ता है. उस सज्जन के आग्रह पर मैंने आखिर 30 मिनट तक विलंबित धुन ही बजाई. वह संगीत के साथ इस तरह एकाकार हो गया कि पूरी तरह अपने में डूब गया."
इन बैठकों में कलाकार भी ज्यादा सहज और स्वतरूस्फूर्त संगीत पेश करने लगते हैं. पुणे के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक पुष्कर लेले को बैठकों में श्रोताओं की फौरी प्रतिक्रिया से बहुत मदद मिली है. वे कहते हैं, "बैठकों में फौरन 'वाह-वाह' और 'क्या बात है' सुनने से बढ़कर उत्साहवर्धक और कुछ नहीं हो सकता."
ध्रुपद-जैज जुगलबंदी से लेकर गजल संध्याओं तक में बैठकों का अनुभव टिकट वाले विशालकाय आयोजनों से बेहतर होता है. बड़े आयोजनों में कलाकार अमूमन शास्त्रीय अंदाज में ही पेश आते हैं. इंदौर के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक गौतम काले कहते हैं, "बैठक में फौरन प्रतिक्रिया मिल जाती है. इसलिए आप अपनी बंदिश की परीक्षा ले सकते हैं. एक ही तरह के स्वर संगम को 25 तरीके से गाया जा सकता है क्योंकि समय की कोई बंदिश नहीं होती." कुछ महीने पहले पुणे में एक बैठक में उन्होंने इलाही जमादार की मराठी गजल साज वेली सोबती ला को तीन रागों के मिश्रण में आजमाया और श्रोता तुरंत वाह-वाह करने लगे. वे कहते हैं, "मैंने गजल की पहली दो लाइनों को पुरिया धनश्री, भैरवी और मार्वा रागों के मिश्रण में गाया, जिसे संभालना आसान नहीं था." लेकिन दूसरी लाइन पूरी होते ही श्रोता वाह-वाह करने लगे. लेले असामान्य तालों को निजी बैठकों में ही आजमाते हैं. वे कहते हैं, "ऐसे आयोजनों में श्रोता ज्यादा समझदार और खुले दिमाग के होते हैं. इसलिए हम शुद्ध शास्त्रीय संगीत में रम सकते हैं."
युवा कलाकार भी बैठकों में कुछ नया आजमाने को उत्साहित होते हैं क्योंकि श्रोता अधिक संगीत रसिक होते हैं. कुछ माह पहले पुणे में कुलकर्णी ने एक अंग्रेजी पॉप गीत ट्विस्टेड फॉच्र्यून सितार पर बजाया और श्रोता गद्गद हो उठे. वे कहते हैं, "यह इटावा घराने की सितार बजाने की शैली और पश्चिमी पॉप शैली का मिश्रण था, जो नौजवानों को खूब पसंद आया."
जापान में जन्मे इनोयू सोउ पांच साल पहले एक निजी बैठक में गुंदेचा बंधुओं से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके भोपाल गुरुकुल में दाखिला ही ले लिया. अब वे मंजे हुए गायक हैं.
देश के शहरों में संगीतकारों और बैठक आयोजकों ने महसूस किया है कि नई पीढ़ी में शास्त्रीय संगीत के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. युवाओं को आकर्षित करने के लिए काले कोई राग गाते-गाते उस पर आधारित कोई फिल्मी गीत गाने लगते हैं. वे कहते हैं, "राग अहीर भैरव गाते हुए मैं लोकप्रिय गीत नैना ठग लेंगे या राग किरवानी पेश करते हुए फिल्मी गीत हम तेरे बिन की कुछ पंक्तियां गाने लगता हूं. यह युवाओं को अच्छा लगता है और वे शास्त्रीय संगीत सीखने की इच्छा जाहिर करने लगते हैं." मुंबई के मशहूर संतूर वादक सतीश व्यास का कहना है कि ईडीएम और पॉप के जमाने में इन बैठकों ने शास्त्रीय संगीत को जीवंत बना दिया है. वे कहते हैं, "बैठक के अंतरंग अनुभवों के कारण बड़ी संख्या में श्रोता शास्त्रीय संगीत में रस लेने लगे हैं." पिछले साल काले की एक बैठक में जाने के बाद 28 वर्षीया आर्किटेक्ट प्रियंका गांधी ने मुंबई के शारदा संगीत विद्यालय में गायन की कक्षा में दाखिला ले लिया. वे कहती हैं, "उन्होंने हरकत और मुकरियों पर जोर दिया और रागों को आसान शब्दों में समझाया, जो बड़े आयोजनों में जानने को नहीं मिलता. इससे शास्त्रीय संगीत में रस आने लगा है." दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित एटिक में बैठक को समसायिक 'लुक' देने के लिए लाउंज में नए किस्म के इत्र के साथ कुल्हड़ में सूप परोसा जाता है.
पंडित जसराज और राजन-साजन मिश्र जैसे बड़े कलाकार सिर्फ अपने दोस्तों की बैठक के आमंत्रण को ही स्वीकार करते हैं. लेकिन ऐसे पेशेवर आयोजक भी हैं, जो कुछ पारितोषिक के बदले किसी कलाकार को आपके घर कार्यक्रम पेश करने के लिए बुला सकते हैं. हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक आनंद ठाकुर और अन्य कलाकारों के समूह ने 'क्षितिज' की स्थापना की है, जो मुंबई के घरों में बैठक का आयोजन करता है. हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक संजीव चिम्माल्गी ने मंथन नाम से एक महफिल की शुरुआत की है. इसके ज्यादातर सदस्य परिवार वाले लोग हैं. यहां अश्विनी भिडे-देशपांडे और उल्हास बापट जैसे बड़े कलाकार भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं. घरों में नए कलाकारों की बैठक आयोजित करने वाले समूह स्वरसुधा की सह-संस्थापक सितारवादक सहाना बनर्जी कहती हैं, "सार्वजनिक कार्यक्रमों का आनंद तो टीवी पर भी उठाया जा सकता है. इसलिए लोग घरों के आयोजन को पसंद कर रहे हैं." अक्सर ये बैठकें नए कलाकारों के लिए लॉन्चिंग का मंच भी साबित हो रही हैं. मुंबई में एक बैठक 'गुनीजन' के संस्थापक व्यास बताते हैं कि जयतीर्थ मेवुंदी और ओंकार दंडारकर जैसे प्रतिभावान गायकों को इन बैठकों से आगे आने का मौका मिला.
इन बैठकों में कलाकारों और श्रोताओं के बीच की दूरियां कम हो जाती हैं. बुद्धिराजा दशक भर पहले पाकिस्तान में हुई एक बैठक का किस्सा कुछ यूं सुनाती हैं. वहां पंडित जसराज गा रहे थे. जैसे ही उन्होंने ओम नमो भगवते वासुदेवाय का गायन समाप्त किया तो "एक मौलवी उठकर पंडित जी के पास आए और बोले कि आपने तो अपने संगीत से मुझे अल्लाह का एहसास करा दिया."
अब घरों में सजने लगी शास्त्रीय संगीत की महफिल
शहरों में कलाकारों की बैठक से शास्त्रीय संगीत की सुरीली धुनों, इत्र-फुलेल की खुशबू और तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंजने लगे घर.

अपडेटेड 27 अप्रैल , 2015
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