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इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2015:भारत के दमखम दिखाने का वक्त

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकास का नजरिया साकार होता है तो वह भारत को दुनिया में नेतृत्वकारी स्थिति में ला खड़ा करेगा.

(बाएं से) रिचर्ड वर्मा, जेम्स बेवन, ली युचेंग, पैट्रिक सैकलिंग, नादिर पटेल, ताकेशी यागी और माइकल स्ट
(बाएं से) रिचर्ड वर्मा, जेम्स बेवन, ली युचेंग, पैट्रिक सैकलिंग, नादिर पटेल, ताकेशी यागी और माइकल स्ट
अपडेटेड 23 मार्च , 2015
अगर आप निर्णय प्रक्रिया में नहीं हैं तो आप छूट जाएंगे. '' अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बारे में इस कड़वी कहावत को बार-बार दोहराया जाता है. इंडिया टुडे कॉनक्लेव में अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन के राजनयिकों ने एक स्वर में इस बात की ताकीद की कि भारत अब दुनिया के मंच पर अहम स्थिति में उभर कर आ रहा है और वैश्विक मामलों में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका बन रही है. 

ब्रिटेन के उच्चायुक्त जेक्वस बेवन ने कहा, ''मजबूत भारत की विश्व मंच पर सक्रियता सभी के हित में है.'' दूसरों ने भी यही राय जाहिर की. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के साथ वैश्विक ताकत की दुनिया के प्रति जिम्मेदारी भी काफी बढ़ जाती है.

मंच पर जिन देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे, उनके भारत के साथ विशिष्ट रिश्ते हैं. उनकी बातों को सुनकर ऐसा लग रहा था, जैसे वे एक हाथी के अलग-अलग अंगों का विवरण दे रहे हों. अमेरिका ने भारत के साथ जहां ''रणनीतिक से आगे'' के रिश्ते पर जोर दिया वहीं कनाडा ने आर्थिक संलग्नता बढ़ाने की बात कही. जर्मन राजदूत माइकल स्टीनर ने कहा कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता कैसे समग्र आर्थिक प्रभाव, स्थायी सरकार और जिम्मेदारियां स्वीकार करने की इच्छा पर निर्भर है और भारत को इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ''न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन'' के नजरिया पर खरा उतरना होगा. इसका आशय यह है कि नागरिकों के उद्यम पर भरोसा किया जाए और ''अविश्वास और नियंत्रण के आवरण'' को हटा दिया जाए. चीन के राजदूत ली युचेंग ने ''मेक इन इंडिया'' और ''स्मार्ट शहरों'' की परियोजना में चीन की विशेष दिलचस्पी पर अपनी बात रखी. ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त पैट्रिक सकलिंग ने कहा कि वैश्विक सत्ता संतुलन अब भारत-प्रशांत क्षेत्र की ओर झुक रहा है और इस गतिशील आॢथक क्षेत्र को जोड़ते हुए रणनीतिक प्रतिस्पर्धाओं का भी प्रबंधन करना होगा. जापान के राजदूत ताकेशी यागी ने कहा कि जापान के उद्योग भारत को सबसे विश्वसनीय निवेश स्थल मानते हैं और ''मोदीनॉमिक्स और एबेनॉमिक्स'' के बीच सहयोग से भारी फर्क लाया जा सकता है. उन्होंने 2011 के भयावह भूकंप के बाद जापान में पुनर्निर्माण के प्रयासों के संदर्भ में भारत के साथ आपदा प्रबंधन पर मिलकर काम करने की बात कही. 

हर राजनयिक ने भारत में अपने देश के निवेश की प्रकृति के बारे में बात की और उनके नफा-नुक्सान की भी चर्चा की. भारत के स्कूलों में जर्मन भाषा पढ़ाए जाने को लेकर हुए विवाद पर सरकार के साथ मनमुटाव झेल चुके जर्मन राजदूत ने भारत की असली ताकत यहां के ''परिश्रमी, तेजी से सीखने वाले और खुले दिमाग के.'' बच्चों को बताया. जापानी राजदूत ने निवेश का रास्ता सहज बनाकर भारत की महत्वाकांक्षी योजनाओं को मूर्त रूप दिए जाने पर अपनी बात रखी. 

कूटनीति की भाषा में अक्सर इतना सरलीकरण होता है कि उसकी सराहना या आलोचना करना बहुत मुश्किल होता है. राजनयिकों ने जब आतंकवाद, व्यापार, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन, गैर-बराबरी और खाद्य सुरक्षा की वैश्विक चुनौतियों, इन्हें संबोधित करने में भारत की भूमिका और प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि के बारे में अपनी बात रखी तो ऐसा ही अनुभव रहा, हालांकि संवाद संचालन कर रहे करन थापर ने बिल्कुल सीधे और सधे सवाल पूछे जो उन्हें असहज करने के उद्देश्य से थे. उन्होंने बेवन से बीबीसी की हालिया डॉक्युमेंट्री पर प्रतिबंध के बारे में सवाल किया जिसका जवाब उन्होंने यह दिया कि बलात्कार को लेकर न तो भारत और न ही ब्रिटेन उदासीन है और इसका पूरी मजबूती से मुकाबला किया जाएगा. ग्रीनपीस की एक्टिविस्ट प्रिया पिल्लै को विमान पर चढ़ने से रोके जाने संबंधी सवाल पूछे जाने पर कनाडा के उच्चायुक्त नादिर पटेल ने कुछ अचकचाते हुए कहा कि वे ''सभी मसलों पर भारत के साथ सहयोग कायम करने की दिशा में बढ़ेंगे.'' चीन के राजदूत ली युचेंग से दक्षिण चीन सागर का संदर्भ देते हुए भारत और अमेरिका के बारे में राय मांगी गई तो उन्होंने कहा कि किसी और के मुकाबले चीन को ज्यादा चिंता है कि उस क्षेत्र में अमन कायम रहे क्योंकि उसका 70 फीसदी आयात उसी रास्ते आता है. ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त ने लव जिहाद पर एक सवाल से बचते हुए भारतीय छात्रों पर हुई हिंसा के बारे में कहा कि 2009 से ही ऑस्ट्रेलिया ने उनकी समस्याओं का सर्वेक्षण किया है और औसत से कम दर्जे के विश्वविद्यालयों पर कार्रवाई की है. अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा से बराक ओबामा के सीरीफोर्ट में दिए भाषण तथा राजनैतिक असहिष्णुता पर मोदी सरकार पर जाहिर की गई राय के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह टिप्पणी वास्तव में हमारी साझा चुनौतियों के बारे में थी. जापानी राजदूत से भारत में 35 अरब डॉलर के निवेश के वादे की पहली किस्त के बारे में पूछा गया कि वह कब आएगी, तो उन्होंने बताया कि प्रक्रिया जारी है. 

कॉनक्लेव में व्यापक तस्वीर और हर द्विपक्षीय रिश्ते के विशिष्ट विवरण भी खुलकर सामने आए और सबने भारत के भविष्य का इस बहाने आकलन किया. 

रिश्ते सुधारने के लिए सधी हुई पारी खेलने की जरूरत
पिछले साल मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ  के आने से रुकी हुई संवाद प्रक्रिया के ताजादम होने की जो संभावना बनी थी, वह तीन माह भी नहीं बीते थे कि खत्म हो गई जब भारत ने पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता को रोक दिया. यह रिश्ता समय के साथ और खराब होता गया और शत्रुतापूर्ण स्थितियां बनती गईं, जब तक कि विदेश सचिव जयशंकर 3 मार्च को इस्लामाबाद नहीं गए. पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते में संवाद के रुकने और चालू होने की यह रवायत हमेशा से ही मौजूद रही है. 
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा, ''हम एक साथ छोटे-छोटे कदम उठाते हैं, जिसके बाद भारी उत्साह देखने को मिलता है और फिर अचानक ही इसमें जबरदस्त गतिरोध आ जाता है. अचानक करगिल जैसा या कोई आतंकी हमला होता है और सब कुछ पीछे चला जाता है. फिर आपको नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है. यह एक भयावह परिपाटी है जो हम शिमला समझौते के बाद से ही दोहराते आए हैं.'' 

इस्लामाबाद में उच्चायुक्त और विदेश सचिव रह चुके मेनन ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि पाकिस्तान के साथ संबंध भारत की विदेश नीति की नाकामियों में एक है. बहस में उनके साथ अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हुसैन हञ्चकानी थे. दोनों ने रिश्ते की जटिलताओं का ब्यौरा विस्तार से पेश किया जिन्हें ये लोग दशकों तक संभालते रहे हैं. 
इस उलटफेर की एक वजह तो यह है कि दोनों ही पक्षों में उम्मीद का स्तर बहुत ज्यादा होता है जबकि दीर्घकालिक संभावनाएं कम रहती हैं. मेनन ने कहा, ''दिक्कत यह है कि हम इसे ट्वेंटी-20 के मैच की तरह देखते हैं जहां हर बॉल पर या तो छक्का लगना है या कोई विकेट गिरना है. हम टेस्ट मैच खेलने को तैयार नहीं हैं. यही असली समस्या है.'' 
भारत को जो दूसरी समस्या दरपेश आती है वह पाकिस्तान में मौजूद एकाधिक समूह हैं- नागरिक समाज, कारोबारी तबका, लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेता, अति-दक्षिणपंथी कट्टर तत्व और फौज, और इन सब के अपने-अपने हित हैं. मेनन ने कहा, ''एक सुसंगत नीति का होना मुश्किल है. होता यह है कि आप हर एक से अलग-अलग तरीके से निबटने में लग जाते हैं.'' 
हक्कानी ने बताया कि पाकिस्तान में भारत को लेकर असुरक्षा का बोध क्यों है. उन्होंने कहा, ''आजाद पाकिस्तान के अस्तित्व को लेकर भारतीयों ने खुद को तो समझा लिया है लेकिन वे पर्याप्त पाकिस्तानियों को राजी नहीं कर पाए हैं कि वे सहज हैं और विभाजन पर उनके मन में जो खेद है वह इसे उलटने की हद तक नहीं जाता.'' हक्कानी ने इन पड़ोसियों के लिए दो ऐतिहासिक रोडमैप गिनाए-एक जर्मनी और फ्रांस का है जो आपस में चार सदी तक लड़ते रहे लेकिन 20वीं सदी में जिन्होंने अपनी सीमाएं खोल दीं और दूसरा रोडमैप कनाडा और अमेरिका का है जिसमें अमेरिका इस बात को बहुत पहले समझ गया था कि प्रतिस्पर्धा करने की कोई जरूरत नहीं है. 

हक्कानी ने कहा, ''भारत तरक्की कर रहा है, हममें से कई लोग इसकी सराहना करते हैं लेकिन अपने पड़ोसी के साथ अमन कायम किए बगैर वह पूरी तरह आराम से नहीं रह सकता.'' 
पाकिस्तान की घरेलू सियासत में फौज की अत्यधिक भूमिका का हक्कानी बचाव नहीं करते बल्कि उन्होंने अफगानिस्तान के साथ बातचीत करने के लिए फौज को मंजूरी देने के मामले में शरीफ  की आलोचना की. उन्होंने कहा कि भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने के लिए पाकिस्तान के पास करने के लिए बहुत कुछ है. उसे जेहाद का कारोबार पूरी तरह बंद करना होगा. उन्होंने कहा, ''इस जेहाद के कारोबार ने पाकिस्तान में हर चीज को कब्जा रखा है. हमारा आत्मविश्वास, हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी युवा पीढ़ी, सब को इसने नष्ट कर दिया. इसने लड़ाकू जत्थे कायम कर दिए हैं. आप गौर करें कि हमने इस देश को कैसा आतंकी राज्य बनाकर छोड़ा है. यह पाकिस्तान के लिए एक बहुत बड़ा झटका है.'' 

हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान को शिमला समझौते में की गई वचनबद्धताओं को पूरा करना है जिसके लिए उसे राज्य, मीडिया और स्कूलों के माध्यम से फैलाए जा रहे विद्वेष को कम करना होगा. पाकिस्तान एक ऐसे शख्स की तरह है जिसने एक बाजू यानी फौज को तो बना लिया है लेकिन दूसरे बाजू यानी शिक्षा को नजरअंदाज कर डाला है. नतीजतन, यहां का शिक्षा तंत्र पूरी तरह बिखर चुका है और आर्थिक रूप से भी बहुत पीछे छूट चुका है. मेनन ने 1996 के अपने इस्लामाबाद दौरे के दौरान चीन के राष्ट्रपति जियांग झेमिन की दी सलाह का जिक्र किया. उन्होंने पाकिस्तान को सलाह दी कि वह भारत के साथ वही करे जो चीन ने किया हैरू मतभेदों पर बात करे लेकिन रिश्ते को बढऩे दे. दोनों पक्षों के लिए यह चीनी सलाह काफी कारगर हो सकती है.
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