सरिस्का अभयारण्य के नजदीक हो रहे खनन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राजस्थान सरकार के पर्यावरण विभाग, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल को नोटिस जारी कर 2 मार्च तक जवाब मांगा है. एनजीटी ने इस अवधि में पर्यावरणीय मंजूरी और प्रदूषण नियंत्रण मंडल तथा खनिज विभाग की अनुमति के बिना वहां खनन पर रोक लगा दी है. अलवर के टहला निवासी खयाली राम की याचिका पर यह नोटिस जारी किया गया है. इसमें आरोप लगाया गया था कि अलवर के राजगढ़ में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति के तहत पर्यावरणीय असर के आंकलन की अधिसूचना (ईआइए नोटिफिकेशन)-2006 के प्रावधानों का उल्लंघन कर खनन किया जा रहा है.
इस आदेश का करीब 123 मार्बल और चेजा पत्थर की खानों पर असर पड़ेगा. इससे हर साल करीब 1,000 करोड़ रु. का कारोबार प्रभावित हो सकता है और सरिस्का के समीप टहला, खोह, दरीबा, तिलवाड़, बलदेव गढ़, कालवाड़, प्रतापगढ़ जगन्नाथ पुरा, निंजर सिलावट सहित 24 से ज्यादा गांवों में चल रही खानें बंद हो जाएंगी.
राजगढ़ का मार्बल जोन सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य से सटा हुआ है और संरक्षित अरावली पर्वतमाला का हिस्सा है. इस लिहाज से यहां ईआइए नोटिफिकेशन-2006 के तहत ईकोसेंसिटव जोन का निर्धारण और खनन के लिए उसके तहत पर्यावरणीय मंजूरी लिया जाना जरूरी है, जबकि खान मालिक इस मंजूरी के बिना खनन कर रहे हैं. अभयारण्य की 10 किमी की परिधि में खनन नहीं होना चाहिए, पर राज्य सरकार की ओर से कभी एक किमी तो कभी 500 मीटर की परिधि तय की जाती रही है. सरिस्का अभयारण्य के फील्ड डायरेक्टर आर.एस. शेखावत कहते हैं, ''इस आदेश से अभयारण्य के 10 किमी के दायरे में आने वाली खानें प्रभावित होंगी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने इको-सेंसेटिव जोन का गठन नहीं किया है. '' मार्बल और चेजा पत्थर की खानों के संचालक अवैध रूप से विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल कर विस्फोट करते हैं, जिससे वन्यजीवों के नैसर्गिक माहौल को नुक्सान पहुंच रहा है और पैंथर सहित अन्य वन्यजीवों पर खतरा आ पहुंचा है. 29 जनवरी, 2013 को अवैध खनन में विस्फोट से पत्थर लगने से एक पैंथर की मौत हो गई थी.
अलवर खनिज विभाग ने 12 अगस्त, 2014 को खान एवं भू विज्ञान विभाग के आदेश के बाद राजगढ़, सरिस्का और थानागाजी की 14 खानों को बंद करवाया था. प्रशासनिक मिलीभगत का अंदाजा इसी मामले से लगाया जा सकता है कि इन्हें बंद करने के आदेश 2010 में जारी किए गए थे लेकिन अलवर खनिज विभाग ने उन्हें बंद नहीं किया. कई खानों को जारी रसीद को भी अवैध घोषित कर दिया गया है. उनके पट्टों का नवीनीकरण अर्से से लंबित था. माइनर ऐंड मेजर मिनरल कंसेशन रूल 'डीम्ड टू रीन्यू' के तहत खनन विभाग के अधिकारी उन्हें संचालित करवा रहे थे. इसके तहत जो खान लीज अवधि पूरी कर चुकी है, उसे बिना नवीनीकरण कराए नवीनीकृत मान लिया गया. यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और पर्यावरण मंत्रालय के अरावली नोटिफिकेशन, 1992 का उल्लंघन है. राज्य सरकार ने भी 19 जून, 2012 को उन खानों को रसीद जारी करने पर रोक लगा दी थी, जिनके पट्टों का नवीनीकरण नहीं हुआ था. लेकिन अधिकारियों ने ऐसे खान संचालकों को 5 जुलाई, 2014 को रसीद जारी कर दी. इन खानों में राज्य के पूर्व मंत्री ब्रज किशोर शर्मा की दो खानें भी हैं, जो उनकी पत्नी के नाम हैं.
साफ है, अवैध खनन सरकारी मिलीभगत के बूते होता है. कार्यकर्ता लोकेश खंडेलवाल कहते हैं, ''सरकार को ईको सेंसिटिव जोन नोटिफाइ कर अभयारण्य के पास खनन रोकनी चाहिए पर उसने कुछ नहीं किया. ''
सरिस्का अभयारण्य के नजदीक खनन के खेल पर रोक
शिकायत के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरिस्का अभयारण्य के नजदीक 2 मार्च तक खनन पर रोक लगा दी और जवाब मांगा.

अपडेटेड 9 फ़रवरी , 2015
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