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ख्वाबों की दुनिया में खेल और तमन्नाएं

खास पलों और भावनाओं को जीने के इच्छुक एकाकी लोगों के लिए ऑनलाइन रोल-प्लेइंग गेमिंग नया शगल है, खासकर उनके लिए जो असल जिंदगी के अनुभव लेने में हिचकते हैं.

अपडेटेड 28 जनवरी , 2015

यह शोर-शराबे वाली पार्टी थी जिसमें जोड़े एक-दूसरे को चूमने और डांस फ्लोर पर सटकर डांस करने में मशगूल थे. उसकी निगाहें कमरे के कोने में खड़ी हसीना पर टिकी थीं. उससे थोड़ी देर बात करने के बाद उसने अपने साथ डांस करने का अनुरोध किया. वह अनुरोध स्वीकार कर लेती है, धीरे-धीरे उसके हाथ लड़की की कमर पर होते हैं और वह उससे सट जाती है. उस शख्स ने इससे पहले किसी लड़की को अपनी बांहों में नहीं भरा था. उसकी खुशी की सीमा नहीं. वे फिर मिलने का वादा करते हैं, अगले दिन, दफ्तर के बाद. अगले दिन रात 9 बजे वह लड़की का इंतजार करता है. लड़की सेक्सी ड्रेस और लुभावने हेयर स्टाइल में उसके सामने आती है तो उसका दिल जोर से धड़कने लगता है. वे डांस करने लगते हैं, इस बार वह लड़की को चूमता भी है.

2009 में उस दिन के बाद से ही वे हर रोज मिलते रहे. उन्होंने समुद्र के किनारे डेटिंग की, क्लब गए, थिएटर गए. धीरे-धीरे उनका लगाव गहराता गया. 32 साल का राहुल (बदला हुआ नाम) भारतीय है और वह लड़की श्रीलंका से. लेकिन वे रोज मिलते रहे—3डी वर्चुअल वल्र्ड में.

जब राहुल नौकरी के सिलसिले में जयपुर से दिल्ली आया तो उसे अंदाज नहीं था कि वह इस शहर में अकेलापन महसूस करेगा. उसने एक लैप टॉप खरीदा तो उसके सामने एक नई ही दुनिया थी. असल जीवन में राहुल शर्मीला था. ऑनलाइन वह वह सब कुछ कर सकता था जो करना चाहता. एक बार चैटिंग करते समय एक अजनबी ने उसे इस 3डी वर्चुअल वल्र्ड के बारे में बताया—इसका नाम था मैसिवली मल्टी प्लेयर ऑनलाइन रोल प्लेइंग गेम यानी एमएमओआरपीजी

असल जिंदगी के विपरीत, इस वैकल्पिक दुनिया में हर किसी का स्वागत है, यहां फिल्म थिएटर हैं, नाइट क्लब हैं, होटल हैं, बुकस्टोर हैं, कैफे हैं, शॉपिंग मॉल हैं, लाइव म्यूजिक के साथ मीटिंग रूम हैं, समुद्र तट हैं और सामाजिक समारोह यानी शहर की हर चीज मौजूद है. और लगभग पांच करोड़ लोग (खिलाड़ी या अवतार) इस वैकल्पिक दुनिया में रहते हैं, इसमें से 2,75,000 भारत से हैं.
राहुल कहते हैं, “वर्चुअल वल्र्ड में नकार दिए जाने का डर नहीं रहता, असल जिंदगी जैसे गम यहां नहीं होते. आपको फार्मविल याद है? वह वर्चुअल, डुबा देने वाला गेम था. यूदवर्स का सोशल सेंटर इसके अलावा भी बहुत कुछ है.” यहां पार्टी में जा सकते हैं, नए लोगों से मिल सकते हैं, डांस कर सकते हैं और मौज-मस्ती कर सकते हैं. साइट पर वीआइपी मेंबर बनने के लिए उसने कभी पैसा नहीं दिया. उसे इतनी बार लॉग इन किया गया कि मुफ्त सदस्यता मिल गई. दूसरे 3डी अवतारों को हाथ से पकडऩे और डांस करने के लिए आमंत्रित करने के अलावा वीआइपी सदस्य उन्हें यौन संबंधों के लिए भी बुला सकते हैं यानी साइबर सेक्स के लिए. एडल्ट 3डी वर्चुअल वल्र्ड की जबरदस्त बिक्री की यह वजह है.

तो रोल प्लेइंग गेम क्या है? यह 3डी ऑनलाइन गेम हैं जहां यूजर एक कैरेक्टर का रोल ले लेता है और यह कैरेक्टर समय के साथ विकसित होता रहता है. यह 3डी एडल्ट वर्चुअल वल्र्ड की शुरुआत ही नहीं बल्कि एमएमओआरपीजी का विकास भी है, खासकर भारत में तो यह गेम खेलने वाले यूदवर्स, वल्र्ड ऑफ वारक्राफ्ट और गिल्ड वार्स के दीवाने हो गए हैं. कॉमेडियन होने के साथ-साथ गेम समीक्षक और लेखक अजीम बनातवाला कहते हैं, “ईमानदारी से कहूं तो यह 1990 और 2000 के दशकों के चैट रूम जैसा है, आप हर रोज किसी से काफी समय तक बात करते हैं तो आपके मन में उसके लिए जज्बे जरूर जाग जाते हैं.”

गेमिंग एकाकी लोगों का मन बहलाने या समय बिताने का जरिया भर नहीं है. देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़ रही है, तो इस इंडस्ट्री से जुड़े दांव भी बढ़ रहे हैं. भारत में 25 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर हैं, अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट यूजर है, आने वाले पांच साल में इस संख्या के दोगुना होने का अनुमान है. 2014 की फिक्की-केपीएमजी रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत में 2013 में 2012 के मुकाबले गेमिंग इंडस्ट्री ने रिकॉर्ड 16 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की और इसकी नेटवर्थ 277 अरब डॉलर तक पहुंच गई. यूदवर्स के सीईओ और क्रिएटर ब्रायन शूस्टर भारत में अपनी कंपनी की योजनाओं का खुलासा करते हैं, इंडिया टुडे को ई-मेल में उन्होंने बताया, “भारत के बाजार के प्रति हम बहुत उत्साहित हैं. हाल ही में कंपनी ने भारतीय वर्चुअल वल्र्ड का स्थानीय नेटवर्क स्थापित करने के लिए बात की है. इससे यूजर्स को स्थानीय मेलजोल के विकल्प उपलब्ध होंगे और अधिक संख्या में मौके मिलेंगे. हम ऐसी कोशिश ब्राजील, जर्मनी और रूस में कर चुके हैं.” चीन और कोरिया जैसे देशों ने एमएमओआरपीजी का स्वागत किया है, भारत भी पीछे नहीं है. नैसकॉम गेमिंग फोरम के अध्यक्ष राजेश राव कहते हैं, “हमारे पास अधिक गेमर्स होंगे तो निश्चित रूप से अधिक एमएमओआरपीजी यूजर भी होंगे.”

इसके शुरुआती प्रशंसक ऐसा ही मानते हैं. दिल्ली के गेमर अभिषेक दीक्षित हैलो नाम के गेम में रोल प्लेइंग के बारे में बताते हैं, “यह आपको दैत्य की तरह लडऩा सिखाता है.” और स्काइरिम आपको ड्रैगनबार्न की तरह एडवेंचर की दुनिया में ले जाता है, “जहां वह ड्रैगन से टक्कर लेता है.” दीक्षित पूछते हैं, “बताइए, कौन एक बार ऐसा आश्चर्यजनक काम नहीं करना चाहेगा?” तो दूसरे गेमर भी रोल प्लेइंग गेमिंग के सकारात्मक पहलू के पैरोकार हैं. खुद को गेमर चैंपियन कहने वाले एक गेमर पूछते हैं, “काउंटर स्ट्राइक और डॉटएट आपको टीमवर्क, रणनीति, चुस्ती और स्किल की शिक्षा देते हैं.”

वर्चुअल वल्डर्स डेवलपमेंट ऐंड कंसल्टेंसी कंपनी इंडसगीक्स की सीओओ आशिमा मिश्रा इसके फायदों के बारे में बताती हैं, “माता-पिता अपने बच्चों को वर्चुअल टूर पर ले जा सकते हैं, जैसे प्राचीन रोम में.” वर्चुअल वल्र्ड में बिजनेस सौदे भी हो सकते हैं. असल में बॉलीवुड ने कुछ साल पहले 3डी वल्र्ड में फिल्मों का प्रोमोशन शुरू किया था. गोदरेज का बाजार में उतारा गया 3डी वर्चुअल वल्र्ड Gojiyo फिल्म प्रोमोशन का मंच था. ब्रिटेन और अमेरिका में वर्चुअल क्लासरूम और अस्पताल भी हैं.

बनातवाला बताते हैं कि भारत में एमएमआरपीजी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि लगातार खेलते रहने के लिए लोगों के पास अच्छा इंटरनेट कनेक्शन नहीं है. इसके अलावा, “भारत गेमिंग ट्रेंड्स के मामले में थोड़ा पीछे है. भारतीय अब भी ऑनलाइन दुनिया में रहने के आदी नहीं हैं. इसकी वजह शायद यह है कि हम जहां भी जाएं, हमारे आसपास ढेर सारे लोग होते हैं. गेम्स में भावनात्मक स्तर पर लोगों के साथ बातचीत न करने पर काफी शांति मिलती है.”

ये गेम हमारे संबंधों पर क्या असर डाल रहे हैं? मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सोशल स्टडीज ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर और अलोन टुगेदरः व्हाइ एक्सपेक्ट मोर फ्रॉम टेक्नोलॉजी ऐंड लेस फ्रॉम ईच अदर की लेखिका शेरी टर्कल कहती हैं कि टेक्नोलॉजी लोगों को तब अपनी ओर सबसे ज्यादा खींचती है जब हम इसके सहज शिकार बनने की स्थिति में होते हैं. वे कहती हैं, “हम अकेले होते हैं, पर आत्मीयता से डरते हैं. हम ऐसी टेक्नोलॉजी रच रहे हैं जो किसी का साथ होने का एहसास कराती है. ऐसी दोस्ती जो बदले में कुछ मांगती नहीं.”

शूस्टर ने मई 2013 में वेबसाइट  rdigitalife.com में कहा था, “हमें असल जिंदगी से पूर्णता मिलती है तो ऐसे अनुभव हासिल करने के लिए ऑनलाइन स्पेस क्यों नहीं डिजाइन करें?” कई बार ये स्थितियां जरूरत से ज्यादा वास्तविक हो जाती हैं, राहुल के साथ तो ऐसा ही अनुभव हुआ. जब वह यूदवर्स में तय की जगह पर गया तो श्रीलंकाई दोस्त उसे नहीं मिली. उसका अनुमान था कि रिजेक्शन यानी छोड़ दिए जाने का जोखिम वर्चुअल वल्र्ड में नहीं होता. उसे बहुत बुरा लग रहा था. लेकिन उसने किसी और लड़की को बुलाने का फैसला किया, ताकि वह बेहतर महसूस करे. यह वर्चुअल वल्र्ड ही था. इसे वह ‘मनोरंजन’ मान रहा था. उसने ‘स्ट्रोक हेयर’ पर क्लिक करके नई लड़की के बाल सहलाने शुरू कर दिए. वह आगे बढऩे की तैयारी कर ही रहा था कि उसकी पहली दोस्त आई और उसे पकड़ लिया. उम्मीद के मुताबिक, उसने राहुल से गाली-गलौज की और चली गई. उसका कहना है कि उसे वाकई दुख हुआ. 3डी वर्चुअल वल्र्ड का यह एक अन्य आयाम है, जिसके लिए यूजर को तैयार रहना होगा.

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