अहमदाबाद
अहमदाबाद के युवाओं के लिए अच्छे दिन आ गए हैं क्योंकि उन्हें अब आंखें चार करने के लिए नवरात्र तक इंतजार नहीं करना पड़ता
अभी दो साल पहले तक 19 वर्षीया पनेरी पटेल के लिए रात 8 बजे मानो कर्फ्यू लग जाया करता था. लेकिन गुजरात लॉ सोसाइटी की कॉमर्स की छात्रा अब जिमीज किंगडम ऑफ डांस में हिप-हॉप सीखती हैं, मुंबई होकर आई हैं और कई लड़कों सहित दोस्तों के साथ मनाली में ट्रैकिंग के लिए गईं और कई बार आधी रात के बाद भी घर लौटती हैं.
उन्हीं की तरह, सेंटर फॉर एन्वायर्नमेंटल प्लानिंग ऐंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में इंटीरियर डिजाइनिंग के छात्र 21 वर्षीय हर्ष व्यास ने भी अपने मां-बाप को ज्यादा छूट देते देखा है. उनके ब्राह्मण मां-बाप ने यह मंजूर कर लिया कि वे अपना प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए कैंपस में लड़कियों के साथ रहेंगे और हर सोमवार को मंदिर जाने की परंपरा से मुक्त हो जाएंगे. वे कहते हैं, ‘‘वे मेरे दोस्त बनने की कोशिश कर रहे हैं.’’
पटेल और व्यास उस अमदावाडी युवा पीढ़ी के प्रतीक हैं, जो नरेंद्र मोदी के ‘‘वायब्रेंट गुजरात’’ में जिंदगी का मजा ले रही है, जहां आर्थिक विकास ने जिंदगी को अधिक आजाद और सक्रिय बना दिया है. यहां, देर रात एक बजे भी, आइआइएम रोड पर अनेक किटलिस (चाय की दुकानों) में से किसी एक पर कोई लड़का गिटार बजाते हुए ‘‘पिया ओ रे पिया’’ का राग छेड़ सकता है या बसों के लिए सुरक्षित बीआरटी लेन में आधी रात के बाद लड़के अपनी मोटरसाइकिल पर करतब दिखाते मिल सकते हैं.
लड़कियां दुपहिया वाहनों पर, अक्सर एक स्कूटर पर तीन-तीन आधी बांह के कुर्तों या स्कर्ट वगैरह में नजर आ जाती हैं और अल्फा वन या गुलमोहर मॉल में ठिठोली करती टहलती दिखती हैं. लोग भले उन्हें घूरते रहें लेकिन वे तनिक भी परवाह नहीं करतीं.
सभी रेस्तरां रात 11 बजे बंद हो जाते हैं लेकिन लॉ गार्डन और मानेक चौक पर लाहिरी (खोमचे और खोखे)पर रात 2 बजे तक दोस्तों का अड्डा जमा रहता है. इन्हें कई उद्यमी युवा चला रहे हैं. मसलन, 19 वर्षीय सेतु गोयल का आइआइएम रोड पर बस्कर्स कॉर्नर बिना अंडे वाले पैनकेक के लिए मशहूर है और फिर गोयल की गिटार की धुनें भी अतिरिक्त आकर्षण पैदा करती हैं.
वे दिन लद गए, जब अहमदाबाद में सिर्फ नवरात्र के नौ दिन ही गुलजार हुआ करते थे. सिर्फ उसी दौरान युवा आजादी का एहसास कर पाते थे और तड़के 3-4 बजे तक घर से बाहर मौज-मस्ती करने का मजा ले सकते थे. एक दशक पहले तक मां-बाप पुराने विचारों के हुआ करते थे और एक प्रमुख स्कूल की काउंसलर एकता (पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिया गया है) के मुताबिक, लड़कियों को रात बाहर बिताने की इजाजत नहीं देते थे.
आज, किशोर भी मां-बाप की दखलअंदाजी की शिकायत करते हैं और परीक्षा के दौरान घबराहट से निजात पाने के लिए सलाह लेने आते हैं. वे एकता से ऐसे पूछते हैं, ‘‘क्या मैं मां-बाप की रजामंदी के बगैर किसी लड़के को दोस्त बनाऊं?’’ एकता युवाओं की सेक्स को लेकर दिलचस्पी के बारे में बताती हैं, ‘‘अगर छठी-सातवीं क्लास में उनका कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड है तो वे नौवीं या दसवीं कक्षा में पहुंचते-पहुंचते दूसरे से दोस्ती बनाने की संभावना तलाशने लगते हैं.’’
हाल ही में एक सरकारी अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ उल्का मेहता (नाम बदला हुआ) के पास एक 17 साल की लड़की स्कूल पोशाक में इलाज के लिए पहुंची. उसे अपने बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स संबंध के बाद कोई समस्या हो गई थी. मेहता कहती हैं, ‘‘मैं यह देखकर हैरान थी कि वह हंस रही थी और उसे कोई पछतावा नहीं था.’’ मेहता का बेटा भी किशोर है. वे कहती हैं, ‘‘आज का युवा पहले के मुकाबले अधिक आजाद ख्याल है.’’
लोकमान्य कॉलेज के प्रिंसिपल प्रकाश खुनम कहते हैं कि अनेक गुजराती अमेरिका में काम करके लौट रहे हैं और अपने साथ आधुनिक मूल्य ला रहे हैं. इसलिए अहमदाबाद बदल रहा है. कॉलेज के छात्र अपनी क्लास के बाद कॉल सेंटर्स में काम करके अपनी पसंद की जिंदगी जी रहे हैं. खुनम कहते हैं, ‘‘आज का युवा रुपए-पैसे के मामले में आजाद है. वे हर महीने 8,000 से 12,000 रु. तक कमा रहे हैं.’’
ज्यादातर के पास अपना वाहन होने से भी एक तरह की आजादी मिल जाती है. बकौल खुनम, ‘‘लाइसेंस बनने के पहले ही उनके पास दुपहिया वाहन होता है.’’ शहर के एक सबसे बिंदास कॉलेज एच.एल. कॉलेज ऑफ कॉमर्स में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग पार्किंग स्थान हैं.
गुजरात में देशभर से और विदेशी संस्थाओं से छात्र पहुंच रहे हैं इसलिए यहां का युवा गुजराती की बजाए अंग्रेजी को ज्यादा तरजीह देने लगा है. एच.एल. कॉलेज में दोस्तों को आपस में हिंदी और अंग्रेजी में गप्प करते सुना जा सकता है. 22 वर्षीया हेमाक्षी बताती हैं कि पहले आपको अंग्रेजी बोलने पर तंज सहना पड़ता था कि ‘‘स्टाइल न मार’’ लेकिन अब अंग्रेजी न बोलने पर आपकी खिंचाई हो जाती है. लोकमान्य कॉलेज के ट्रस्टी और राज्य पर्यटन बोर्ड के मुखिया, बीजेपी नेता अमित ठक्कर कहते हैं, ‘‘गुजराती माध्यम के स्कूलों को अब मुश्किल हो रही है.’’
वे भले प्रधानमंत्री को ‘‘आपरो मोदी’’ कहकर संबोधित करें और कई लड़कियां अच्छे पति के लिए उपवास रखें तथा कुछ लड़के शनिवार को मांसाहार न करें, लेकिन ड्राइव इन सिनेमा या लॉ गार्डन में मौज-मस्ती करने से नहीं चूकेंगे. लॉ गार्डन को लोग लव गार्डन भी कहते हैं. साबरमती के सुंदर तट पर कोई सार्वजनिक तौर पर अपनी प्रेम भावनाओं का इजहार न करने लगे, इसके लिए वहां गार्ड और कैमरे लगे हो सकते हैं लेकिन शहर के किशोर विकल्प तो तलाश ही लेते हैं. एच.एल. कॉलेज ऑफ कॉमर्स में चार्टर्ड एकाउंटेंसी पढ़ रहीं 17 साल की दो लड़कियां कहती हैं, ‘‘हमें मौज-मस्ती के लिए शराब की जरूरत नहीं पड़ती.’’
मद्यनिषेध वाले इस राज्य में शराब की कोई कमी नहीं है. जहां खोजिए, मिल सकती है. नोमैड्स बेकर नामक पित्जा हट चलाने वाली 21 वर्षीया रेगिना डागा कहती हैं, ‘‘यहां के लोगों को शराब के सुरूर का मजा लेना नहीं आता. वे तब तक पीते रहते हैं जब तक नशे में धुत नहीं हो जाते.’’ शहर में भी इसकी कमी खलती है, जैसा कि नए खुले कैफे एक्वा बार में सजावटी बोतलों में सजे जूस को देखकर अंदाजा लगता है. हालांकि मद्यनिषेध भी एक वजह है जिससे लड़कियां अहमदाबाद को सुरक्षित समझती हैं. डोगा कहती हैं, ‘‘हमें मनचले और बदतमीज लोगों की टेंशन नहीं रहती.’’
पटना
किशोर बदल रहे हैं प्राचीन शहर की संस्कृति, जीवन-शैली और सोच भी
आइए उन्हें मिस बी कहते हैं. उनकी उम्र 18 साल है और मानो अपने नए सैमसंग गैलेक्सी नोट-4 के प्रेम में दीवानी हैं. वह उन्हें इतना पसंद है कि उन्होंने अपने व्हाट्सऐप पर एक ही तस्वीर हफ्तों तक लगाए रखी, जिसमें मिस बी अपने 58,300 रु. के फोन को ट्रॉफी की तरह लिए हुए हैं.
एक मायने में यह ट्रॉफी है भी. कॉलेज जाने वाले लड़के-लड़कियां अपनी मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि की वजह से ऐसे स्टाइलिश फोन की कल्पना नहीं कर सकते. मिस बी को यह तोहफा उनके बॉयफ्रेंड की ओर से मिला है. बॉयफ्रेंड मोबाइल बेचने वाली दुकान का मालिक है और रिचार्ज कराते-कराते दोनों की दोस्ती हुई. लड़के ने उससे कोई फोन चुन लेने को कहा तो मिस बी ने सबसे ऊंचे दाम वाला फोन चुना.
वे कहती हैं कि यह तो ‘‘एक हाथ ले और एक हाथ दे’’ वाली बात है.
वे बताती हैं कि उन्हें एक रात उसके साथ होटल में बितानी पड़ी जबकि उसके मां-बाप समझ रहे थे कि वह अपने किसी दोस्त के घर गई है. दो हफ्ते बाद मिस बी फोन पर तो लट्टू हैं मगर उन्होंने अपने बॉयफ्रेंड का नंबर ब्लॉक कर दिया है. वे कहती हैं, हममें कुछ भी एक जैसा नहीं था. दोनों ने ही एक-दूसरे से कुछ न कुछ पाया. और कोई पछतावा भी नहीं है. वे बेझिझक कहती हैं, ‘‘मेरा क्या घट गया? वैसे भी वह बहुत बोरिंग था.’’
नैतिकतावादी नाक-भौंह सिकोड़ सकते हैं लेकिन मिस बी को फिक्र कहां है? वह तो शहर में युवाओं की नई पीढ़ी का एक चेहरा भर है जो हर फैशनेबल चीज और मौज-मस्ती के दीवाने हैं. मैककिंजी की रिपोर्ट द इंडियाज इकोनॉमिक ज्योग्राफी इन 2025: स्टेट्स क्लस्टर्स ऐंड सिटीज के मुताबिक, लोग और आधुनिक रंग-ढंग में ढलेंगे क्योंकि पटना उन 21 क्लस्टर में है जो 2025 तक अधिक संपन्न हो जाएगा और राष्ट्रीय औसत से तेज गति से विकास करेगा.
मिस बी शायद कुछ ज्यादा ही आधुनिकता की मिसाल हो सकती है पर इंडिया टुडे ग्रुप सेक्स सर्वेक्षण से पता चलता है कि पटना में स्कूल और कॉलेज में सेक्स संबंध बनाने वाले किशोरों की तादाद 40 प्रतिशत है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत सिर्फ 12 प्रतिशत ही है. सो, आश्चर्य नहीं कि पटना के 38 फीसदी किशोर युवाओं का पहला सेक्स संबंध कैंपस में ही बनता है जबकि इस मामले में भी राष्ट्रीय औसत सिर्फ 9 प्रतिशत है.
फिर, पटना में स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई के घंटों के दौरान 29 प्रतिशत का पहला सेक्स संसर्ग होता है जबकि राष्ट्रीय औसत 17 प्रतिशत का है. इसके अलावा, पटना में 65 प्रतिशत युवा अपने पहले सेक्स अनुभव को श्वाकई अपनी चाहत्य बताते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 45 प्रतिशत ही है.
पटना में पब्लिक अवेयरनेस फॉर हेल्थफुल अप्रोच फॉर लिविंग के डायरेक्टर और कंसल्टेंट डॉक्टर डॉ. दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि असुरक्षित सेक्स के बाद कई युवा नियमित मेडिकल मदद के लिए आते हैं. वे एनजीओ संवाद में कंसल्टेंट हैं, वहां हेल्पलाइन पर मेडिकल सलाह लेने वाले युवाओं की तादाद बढ़ती जा रही है.
वे कहते हैं, ‘‘यह तो ठीक है कि युवा गर्भधारण के खतरे और संबंधित बीमारियों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन वे सेक्स के प्रयोगों को लेकर ज्यादा ही खुले हैं जिसके लिए वे परिपक्व नहीं होते.’’ उनकी चेतावनी बेजा भी नहीं है. पटना में करीब 5 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि उनको गर्भ ठहर चुका है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 0.6 प्रतिशत का ही है.
यानी शहर की जानी-पहचानी प्रवृत्ति बदल रही है. मां-बाप अधिक सहनशील और खुले दिमाग के हो गए हैं. किशोरों के बीच सर्वेक्षण के मुताबिक महज 20 प्रतिशत मां-बाप ही बड़ों से दुर्व्यवहार करने पर नाराजगी जाहिर करते हैं जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 30 प्रतिशत है. हालांकि 50 प्रतिशत का मानना है कि अगर उन्होंने परीक्षाओं में बेहतर नहीं किया तो उनके अभिभावक बुरी तरह झल्ला जाएंगे. तेजस्वी कहते हैं, ‘‘पेरेंटिंग चक्र टूट गया है. अब तो सिविल सोसाइटी को ही बदलाव की कोशिश करनी होगी.’’
इस बीच मिस बी ने अपने ‘‘रेगुलर’’ बॉयफ्रेंड के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया है. उसे लगता है कि उसके सारे दोस्त मौका मिलने पर ऐसा ही करते हैं. वह एक लड़की को जानती है जिसके तीन लड़कों से संबंध हैं और वह खुद को उस्ताद समझती है. वह हंसती है, ‘‘हमें अपनी अलग-अलग जरूरतों के लिए अलग-अलग पार्टनर की दरकार है. एक कपड़े के लिए, दूसरा फोन वगैरह के लिए तो तीसरा बाहर घूमने जाने के लिए.’’
मिस बी का भविष्य क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो उसका फैंसी फोन जब घनघनाता है तो उसके मन में लड्डू फूटने लगते हैं.
जयपुर
पुरातनपंथी शहर की टूट रही हैं बंदिशें
जयपुर में आ रहे बदलाव को भांपना हो तो उसके 15 बड़े मॉल में से किसी एक में हो आइए. पर्यटन केंद्र होने के बावजूद जयपुर का परंपरागत समाज अपने रंग-ढंग को वर्षों से संजोए रहा है. लेकिन अब शहर में खुल रहे लकदक बुटीक और कैफे में शहर के धनाढ्य खिंचे चले आते हैं और उसी के साथ छोटी स्कर्ट में लड़कियों और रंगे बालों तथा टैटू गुदवाए युवकों की कतारें भी दिखने लगी हैं. वे सिर्फ महंगे रेस्तरां, या सी-स्कीम इलाकों के डांस फ्लोर पर ही नहीं दिखते, बल्कि बापूनगर के जनता स्टोर या लाल कोठी में भी दिखते हैं जहां किसी समय घूंघट का प्रचलन हुआ करता था.
समय बदलने का नजारा एक उदाहरण से भी साफ है. 2012 में जब एक बीजेपी विधायक ने लड़कियों को ‘‘बुरी नजर से बचाने के लिए’’ राज्य सरकार से मांग की कि प्राइवेट स्कूलों में लड़कियों को स्कर्ट बतौर यूनिफॉर्म पहनाने पर प्रतिबंध लगाया जाए तो स्कूली छात्राओं ने उनके घर के बाहर प्रदर्शन किया और विरोध में उन्हें एक स्कर्ट भी थमा दी.
शहर अब और आगे निकल चुका है. एक बदलाव तो यही है कि अब युवा जोड़े खुलकर सेक्स की बातें करते हैं. इसी के मद्देनजर कई स्कूलों ने अपने छात्रों की काउंसलिंग शुरू कर दी है. पिछले साल जयपुर के एक नए महंगे स्कूल में 10वीं क्लास के एक छात्र को शिक्षकों से इसलिए डांट खानी पड़ी कि उसने अपनी एक सहपाठी से पूछ लिया कि क्या वह हस्तमैथुन करती है या पोर्न फिल्में देखती है?
बदलाव की यह बयार एक मायने में यहां बाहर से आई है. जयपुर में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं कोचिंग के लिए आती हैं. सो, आश्चर्य नहीं कि सेक्स सर्वे में जयपुर के 36 प्रतिशत युवाओं में ‘‘अच्छा दिखना’’ अपने भावी पार्टनर के लिए अहम है तो बहुतों के लिए ‘‘अच्छे अंक’’ भी जरूरी हैं. हालांकि सांस्कृतिक रुझानों में बदलाव स्थानीय है. 2004 से 2007 के बीच ऊंचे दाम पर जमीन बेच कर अमीर हुई बिरादरी अब पश्चिमी जीवन-शैली अपना रही है.
बदलते समय को ही ध्यान में रखकर महाराजा सवाई मान सिंह स्कूल ने नवंबर में अपने स्कूल प्रांगण में शाहरुख खान को अपनी फिल्म हैप्पी न्यू ईयर के प्रमोशन की इजाजत दी. वरना शाही परिवार संचालित इस स्कूल में ‘‘पुरानी संस्कृति’’ का ही बोलबाला रहता है. स्कूल में लड़कों के वाशरूम में आईना फिर से लगा दिया गया, जो उन्हें अपना चेहरा देखने के बदले पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए हटा लिया गया था.
हालांकि अभी लंबी दूरी तय करनी है और पीढिय़ों के बीच बातचीत में खुलापन अब भी काफी कम है. सर्वेक्षण के मुताबिक महज 1.5 प्रतिशत युवा ही अपने मम्मी-पापा से सेक्स के बारे में बात कर पाते हैं जबकि मुंबई में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत है.