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ओंकारेश्वर भगदड़ कांड: 21 साल में भी जांच रिपोर्ट का अता-पता नहीं

21 साल बीत जाने के बाद भी ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर में हुए हादसे की जांच रिपोर्ट का कोई अता-पता नहीं. ऐसे में भला कैसे रुकेंगे हादसे?

omkareshwar
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अपडेटेड 8 अक्टूबर , 2014

जब भी कोई बड़ी दुर्घटना या आपदा होती है जिसमे कई लोगों की जान चली जाये तो शासन-प्रशासन के पास सिर्फ दो ही काम होते है एक तो मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजे की राशि का एलान और हादसे की जांच की घोषणा. नियत अवधि में जांच रिपोर्ट आते ही तत्काल कार्यवाही का दावा शासन-प्रशासन द्वारा इस दमखम के साथ किया जाता है कि एकबारगी तो सभी को गफलत हो जाती है कि वाकई वे घटना के प्रति बेहद गंभीर है और हादसे की पुनरावृत्ति ना होने देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध. अब जरा सुप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्‍वर में 21 वर्ष पूर्व हुए भगदड़ कांड की उच्चस्तरीय समिति की जांच रिपोर्ट की स्थिति देखें तो शासन-प्रशासन की गंभीरता और प्रतिबद्धता पर स्वतः ही सवाल उठेंगे.

बारह ज्योतिर्लिंगों में से चतुर्थ स्थान का ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में आता है. यहाँ 19 जुलाई 1993 को सोमवती अमावस्या पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु यहाँ नर्मदा स्नान और भोलेनाथ के दर्शन के लिए कतार में इंतज़ार कर रहे थे. इस बीच झूला पुल पर करंट फैलने की अफवाह फैली और भगदड़ मच गई, गैर सरकारी सूत्रों ने 20 लोगों के मरने की बात कही लेकिन प्रशासन ने सिर्फ 6 महिलाओं के मरने और 28 लोगों के घायल होने की पुष्टि की. लोगों के आक्रोश के साथ मामला गरमाया तो शासन ने घटना की उच्च स्तरीय जांच की घोषणा की और प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को मात्र 20,000-20,000 रु. बांटकर मामले को ठंडा कर दिया. तत्कालीन राज्यपाल डॉ. मोहम्मद शफी कुरैशी (उस समय प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था) द्वारा योजना,आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग के प्रमुख सचिव के एस शर्मा को 15 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करने को आदेशित किया गया. आज 21 वर्ष बाद भी किसी को नहीं पता कि उस जांच रिपोर्ट के क्या निष्कर्ष थे? घटना के लिए कौन दोषी था ? इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए क्या निर्देश थे?

खण्डवा कलेक्टर महेश अग्रवाल कहते हैं, 'ओम्कारेश्वर भगदड़ कांड की जाँच रिपोर्ट और उसके कोई निर्देश खण्डवा जिला प्रशासन को कभी मिले ही नहीं. अमूमन यदि जिले का कोई अधिकारी इसकी जाँच करता तो उसकी रिपोर्ट जरूर जिले में रहती चूँकि वह जाँच प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी ने की थी इसलिए वह भोपाल में ही शासन को प्रस्तुत की होगी." कलेक्टर अग्रवाल ऐसे पहले अधिकारी नहीं है जिनका यह जवाब है ,इस घटना के बाद से अब तक 21 वर्षों में यहाँ 13 कलेक्टर इस गंभीर मामले की जाँच रिपोर्ट से अनभिज्ञ ही रहे. इस घटना के दौरान यहाँ कलेक्टर रहे डी पी दुबे ( अब सेवानिवृत ) उस घटना को स्मरण करते हुए उसे " ट्रैफिक एक्सीडेंट" बताते है. हादसे की जाँच रिपोर्ट में क्या तथ्य थे उससे वे भी अनभिज्ञ रहे. खण्डवा के पुलिस अधीक्षक मनोज शर्मा का भी कहना है कि  "यदि उस घटना की जाँच रिपोर्ट के निर्देश उपलब्ध होते तो निश्चित रूप से इसका लाभ उन कमियों को दूर करने में मिलता." ओम्कारेश्वर की व्यवस्थाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ओम्कारेश्वर नगर पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जगदीश गुहा ने भी वही जवाब दिया कि उनके कार्यालय में इस सम्बन्ध में कोई दस्तावेज़ नहीं है और ना ही इतने वर्षों में कभी उस रिपोर्ट के निर्देशों का कभी किसी ने कोई जिक्र ही नहीं किया.
ओंकारेश्वर मंदिर
इंडिया टुडे ने जब अपने स्तर पर इस गंभीर मामले की पड़ताल की तो कलेक्ट्रेट के ही रिकॉर्ड रूम में इसके पत्राचार की करीब 1200 से ज्यादा पन्ने की मोटी फ़ाइल मिली. वहां के बाबू भी हैरान है कि यह फ़ाइल अभी तक यहाँ सुरक्षित कैसे है ? चूँकि यहाँ 10 वर्ष पुराना नष्ट कर दिया जाता है और यह तो 21 वर्ष पुरानी फ़ाइल है. इस फ़ाइल में उस घटना के प्रत्यक्षदर्शियों सहित अनेक महत्वपूर्ण लोगों के बयान दर्ज़ है. ओम्कारेश्वर मंदिर ट्रस्ट के तत्कालीन ट्रस्टी राव शिवचरण सिंह ने अपने बयान में 20 लोगों के मरने की जानकारी होने की बात कही थी वहीं घटना के प्रत्यक्षदर्शी सत्यनारायण शर्मा ने भी जाँच अधिकारी को 20 लोगों के ही मरने की जानकारी दी थी. प्रशासन ने सिर्फ 6 महिलाओं के ही मरने की पुष्टि की. इस क्षेत्र के पूर्व विधायक ठाकुर राजनारायण सिंह कहते है कि "इस घटना में कई लोगो को लापता बता दिया गया और इस तरह मौत के आंकड़ों में भी गड़बड़ी हुई. इनमें अधिकांश लापता लोग ना तो अपने घर पहुँच सके और ना उनकी मौत का कोई मुआवजा ही परिजनों को मिला." उस घटना के लिए कौन दोषी था इसका भी कभी ना तो पता चला और ना ही कोई दण्डित ही हुआ. सिर्फ तत्कालीन कलेक्टर-एसपी सहित दर्ज़न भर शीर्ष अधिकारीयों का स्थानांतरण भर हुआ.

सवाल यह कि क्या घटना के जाँच अधिकारी तत्कालीन प्रमुख सचिव के एस शर्मा ने तय समयसीमा में अपनी जाँच रिपोर्ट शासन को सौंपी? शासन ने इस रिपोर्ट का क्या किया? यदि इस जाँच रिपोर्ट के निष्कर्षों से खण्डवा जिला प्रशासन और ओम्कारेश्वर प्रशासन ही अवगत नहीं तो ऐसी रिपोर्ट के क्या मायने है ? कलेक्टर महेश अग्रवाल यह कहकर शासन की घोर लापरवाही पर पर्दा डालने का प्रयास करते है कि "ऐसी जाँच रिपोर्ट गोपनीय होती है." क्या ऐसी गोपनीयता जनहित में है ? दो दशक पहले जब यह हादसा हुआ था तब यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या हज़ारों में होती थी वहीं अब लाखों में है. हिन्दुओ के इस प्रमुख तीर्थस्थल  में वैसे तो वर्षभर ही खासी भीड़ रहती है लेकिन श्रावण मास के साथ ही 40 मौको पर यहाँ दबाव काफी बढ़ जाता है. पुलिस अधीक्षक मनोज शर्मा बताते है कि महाशिवरात्रि , नर्मदा जयंती, सोमवती अमावस्या के मौके पर यहाँ ढाई से तीन लाख श्रद्धालु पहुँचते है. इनकी सुरक्षा के लिए पहले की तुलना में पुलिस बल काफी बढ़ा दिया गया है लेकिन यहाँ के आधारभूत ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं होने से भीड़ का प्रबंधन काफी चुनौतीपूर्ण है. अब जबकि वर्ष 2016 में उज्जैन में सिंहस्थ है जिसकी 25 प्रतिशत भीड़ ओम्कारेश्वर पहुँचती ही है जिसे सम्हालना मौजूदा हालात में आसान नहीं होगा. यदि यहाँ हादसे नहीं हुए तो यह भोलेनाथ की ही कृपा वरना शासन-प्रशासन ने तो कोई कसर छोड़ी नहीं है.

(सभी फोटो - जय नागड़ा)

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