राजस्थान में वकीलों की हड़ताल को दो माह हो गए. जाहिर है, ऐसे में यहां न्यायिक व्यवस्था चरमरा गई है. मुवक्किलों की लगातार उपेक्षा और न्यायाधीशों के खिलाफ कोई खास भ्रष्टाचार सामने ला पाने में वकीलों की नाकामी ने उनके पेशे को बदनाम किया है. वकीलों और न्यायाधीशों के विवाद में हाइकोर्ट ने अब सरकार को भी घसीट लिया है, जिससे स्थिति और नाटकीय हो गई है.
इससे पहले कि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दोबारा आए, वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने मध्यस्थता की पेशकश की है. बातचीत, अपीलों और दबाव के बावजूद राजस्थान हाइकोर्ट इस गतिरोध को तोड़ पाने में नाकाम रहा है. इस हड़ताल की शुरुआत उस वक्त हुई जब कुछ वकीलों को लगा कि एक जज ने एक वकील के खिलाफ किराए का फ्लैट खाली करने का आदेश गलत तरीके से दिया. इन वकीलों में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी शामिल हैं. आखिरकार उक्त वकील को वह कमरा खाली करना पड़ा है लेकिन बाकी वकील दो जजों के तबादले की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं.
जब हाइकोर्ट ने सरकारी वकीलों को आदेश दिया कि या तो वे काम पर लौट आएं वर्ना अपने लाइसेंस रद्द कराने को तैयार हो जाएं, तो दस अतिरिक्त महाधिवक्ताओं ने अपना इस्तीफा दे दिया. इसके एक दिन पहले ही हाइकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ के न्यायाधीश गोविंद माथुर ने महाधिवक्ताओं को कहा था कि या तो काम पर आना शुरू करें या वे उनके लाइसेंस रद्द कर देंगे. उधर जयपुर में न्यायाधीश अजय रस्तोगी और जे.के. रानका ने मुख्य सचिव को तलब कर के पूछा कि क्या हड़ताली सरकारी वकीलों को उनका वेतन मिल रहा है और आखिर सरकार उनका बचाव क्यों कर रही है?
हाइकोर्ट की इस रणनीति का परिणाम अभी देखा जाना बाकी है. लेकिन हड़ताली वकीलों में सरकारी वकीलों की संख्या काफी कम है और वे अपनी बार एसोसिएशनों के खिलाफ नहीं जाएंगे. सरकार के पास भी कोर्ट के निर्देश पर उनका वेतन रोक देने का विकल्प मौजूद है. सरकार ने पहले ही ऐसे सरकारी वकीलों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है जो हड़ताल में शामिल न हों. पर इसके कारगर होने की उम्मीद कम है. हाइकोर्ट ने इस मामले में बार काउंसिल को अब तक शामिल नहीं किया है. अदालतों के भीतर स्थितियां अजीब हैं. हाल ही में कुछ जज कैदियों को जमानत दिलवाने के लिए जेल गए. कई वकील अपने मुवक्किलों को बता देते हैं कि कोर्ट में अपना मामला कैसे रखना है ताकि उनकी नामौजूदगी में मुकदमा खारिज न होने पाए. कुछ वकील ऐसा नि:शुल्क करते हैं जबकि ज्यादा शुल्क लेने के मामले भी सामने आए हैं.
हाल के वर्षो में हाइकोर्ट ने वैसे ही नाममात्र के बड़े फैसले दिए हैं क्योंकि उसके पास आने वाले मामले कानून से कम, निजी राहत से ज्यादा जुड़े होते हैं. साफ है कि न्यायिक व्यवस्था में विधिक विवेक का कोई निर्माण नहीं हो रहा है. वहीं बार एसोसिएशन आग्रहपूर्ण तर्क रखते हैं या हड़ताल पर चले जाते हैं. अब इस बहाने इन एसोसिएशनों के चुनावों पर भी नजर डालने की जरूरत है.
वकीलों को शायद अंदाजा नहीं है कि न्याय के प्रति उनकी वचनबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस ओर इशारा किया है कि अहं की यह लड़ाई वकील बिरादरी का नुकसान कर रही है. दूसरी ओर जजों को भी खुद को देखना होगा कि आखिर इतने सारे वकील उनके खिलाफ क्यों हैं? कुछ वकीलों ने इंडिया टुडे को बताया कि उनके जरिए जज रिश्वत लेते हैं लेकिन कोई भी वकील खुलकर नहीं कहता कि उसने किस जज या कोर्ट के स्टाफ को कोई रिश्वत दी थी. वे निजी भ्रष्टाचार के छिटपुट मामले बता पाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि यदि अपने पक्ष में फैसला लेने के लिए किसी वकील ने जज को रिश्वत दी है तो खुद वकीलों ने भी इस व्यवस्था को भ्रष्ट बनाने में अपना योगदान दिया है.
अब स्थिति यह है कि कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए सरकारी वकीलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. अब वकील क्या करेंगे? क्या वे हर उस जज के तबादले की मांग करेंगे जो उनके खिलाफ कड़ा न्यायिक पक्ष लेगा? सरकार को भी इस मसले में खींच लिया गया है. वहीं इस हड़ताल के खत्म होने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा. सबसे बढिय़ा समाधान यही हो सकता है कि वकील अपनी हड़ताल खत्म करें और अपने अच्छे वकीलों के जरिए अपनी शिकायतों को कोर्ट के सामने दर्ज करवाएं.
इससे पहले कि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दोबारा आए, वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने मध्यस्थता की पेशकश की है. बातचीत, अपीलों और दबाव के बावजूद राजस्थान हाइकोर्ट इस गतिरोध को तोड़ पाने में नाकाम रहा है. इस हड़ताल की शुरुआत उस वक्त हुई जब कुछ वकीलों को लगा कि एक जज ने एक वकील के खिलाफ किराए का फ्लैट खाली करने का आदेश गलत तरीके से दिया. इन वकीलों में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी शामिल हैं. आखिरकार उक्त वकील को वह कमरा खाली करना पड़ा है लेकिन बाकी वकील दो जजों के तबादले की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं.
जब हाइकोर्ट ने सरकारी वकीलों को आदेश दिया कि या तो वे काम पर लौट आएं वर्ना अपने लाइसेंस रद्द कराने को तैयार हो जाएं, तो दस अतिरिक्त महाधिवक्ताओं ने अपना इस्तीफा दे दिया. इसके एक दिन पहले ही हाइकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ के न्यायाधीश गोविंद माथुर ने महाधिवक्ताओं को कहा था कि या तो काम पर आना शुरू करें या वे उनके लाइसेंस रद्द कर देंगे. उधर जयपुर में न्यायाधीश अजय रस्तोगी और जे.के. रानका ने मुख्य सचिव को तलब कर के पूछा कि क्या हड़ताली सरकारी वकीलों को उनका वेतन मिल रहा है और आखिर सरकार उनका बचाव क्यों कर रही है?
हाइकोर्ट की इस रणनीति का परिणाम अभी देखा जाना बाकी है. लेकिन हड़ताली वकीलों में सरकारी वकीलों की संख्या काफी कम है और वे अपनी बार एसोसिएशनों के खिलाफ नहीं जाएंगे. सरकार के पास भी कोर्ट के निर्देश पर उनका वेतन रोक देने का विकल्प मौजूद है. सरकार ने पहले ही ऐसे सरकारी वकीलों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है जो हड़ताल में शामिल न हों. पर इसके कारगर होने की उम्मीद कम है. हाइकोर्ट ने इस मामले में बार काउंसिल को अब तक शामिल नहीं किया है. अदालतों के भीतर स्थितियां अजीब हैं. हाल ही में कुछ जज कैदियों को जमानत दिलवाने के लिए जेल गए. कई वकील अपने मुवक्किलों को बता देते हैं कि कोर्ट में अपना मामला कैसे रखना है ताकि उनकी नामौजूदगी में मुकदमा खारिज न होने पाए. कुछ वकील ऐसा नि:शुल्क करते हैं जबकि ज्यादा शुल्क लेने के मामले भी सामने आए हैं.
हाल के वर्षो में हाइकोर्ट ने वैसे ही नाममात्र के बड़े फैसले दिए हैं क्योंकि उसके पास आने वाले मामले कानून से कम, निजी राहत से ज्यादा जुड़े होते हैं. साफ है कि न्यायिक व्यवस्था में विधिक विवेक का कोई निर्माण नहीं हो रहा है. वहीं बार एसोसिएशन आग्रहपूर्ण तर्क रखते हैं या हड़ताल पर चले जाते हैं. अब इस बहाने इन एसोसिएशनों के चुनावों पर भी नजर डालने की जरूरत है.
वकीलों को शायद अंदाजा नहीं है कि न्याय के प्रति उनकी वचनबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस ओर इशारा किया है कि अहं की यह लड़ाई वकील बिरादरी का नुकसान कर रही है. दूसरी ओर जजों को भी खुद को देखना होगा कि आखिर इतने सारे वकील उनके खिलाफ क्यों हैं? कुछ वकीलों ने इंडिया टुडे को बताया कि उनके जरिए जज रिश्वत लेते हैं लेकिन कोई भी वकील खुलकर नहीं कहता कि उसने किस जज या कोर्ट के स्टाफ को कोई रिश्वत दी थी. वे निजी भ्रष्टाचार के छिटपुट मामले बता पाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि यदि अपने पक्ष में फैसला लेने के लिए किसी वकील ने जज को रिश्वत दी है तो खुद वकीलों ने भी इस व्यवस्था को भ्रष्ट बनाने में अपना योगदान दिया है.
अब स्थिति यह है कि कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए सरकारी वकीलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. अब वकील क्या करेंगे? क्या वे हर उस जज के तबादले की मांग करेंगे जो उनके खिलाफ कड़ा न्यायिक पक्ष लेगा? सरकार को भी इस मसले में खींच लिया गया है. वहीं इस हड़ताल के खत्म होने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा. सबसे बढिय़ा समाधान यही हो सकता है कि वकील अपनी हड़ताल खत्म करें और अपने अच्छे वकीलों के जरिए अपनी शिकायतों को कोर्ट के सामने दर्ज करवाएं.