इटावा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर उत्तर में बसे सैफई में हवाई पट्टी पर साफ-सफाई का काम शुरू है. सैफई की सबसे पॉपुलर पहचान यह है कि यह समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का पैतृक गांव है. यहां दीवारों पर रंग-रोगन हो रहा है. दर्जन भर कर्मचारी हवाई पट्टी को नेताओं के चुनावी उडऩ खटोले की अगवानी के लिए तैयार कर रहे हैं. इसी सैफई गांव को अपने में समेटे मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र इस बार मुलायम सिंह यादव परिवार की तीसरी पीढ़ी को देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचाने के लिए ‘‘लॉन्चिंग पैड’’ की भूमिका में है.
मुलायम सिंह ने अपने भतीजे दिवंगत रणवीर सिंह के पुत्र 26 वर्षीय तेज प्रताप सिंह यादव उर्फ तेजू को अपने त्यागपत्र से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट से सपा का उम्मीदवार बनाया है. इस तरह यहां से उनके सियासी कुनबे की तीसरी पीढ़ी ने राजनीति में कदम रख दिया है.
तेज प्रताप पूरे उत्साह से मुलायम की विरासत संभालने में जुट गए हैं. 31 अगस्त की दोपहर दो बजे मैनपुरी के पूर्व में स्थित भोगांव विधानसभा के गंगरवाला गांव के मंदिर प्रांगण में तेज प्रताप का इंतजार हो रहा था. गांव वाले सैकड़ों की तादाद में वहां जमा थे और स्थानीय गायक प्रेम यादव अपनी मंडली के साथ समा बांध रहे थे- सुनी तेजू की टेर शारदा मैया मठी छोड़कर आईं, सिर पर रख दिया हाथ कि बेटा एमपी बन जाईं. थोड़ी देर में तेज प्रताप का काफिला मंदिर परिसर में दाखिल होता है. यहां सबका हालचाल लेने के बाद वे सीधे गांव का रुख करते हैं और वहां की समस्याओं से रू-ब-रू होते हैं. मई में हुए लोकसभा चुनाव में भोगांव विधानसभा सीट ही ऐसी थी, जहां मुलायम सिंह को 1,100 वोटों से पिछडऩा पड़ा था. लोकसभा उपचुनाव में यह सीट सपा की राह में रोड़ा अटका सकती है. यूपी की 11 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट के लिए 13 सितंबर को होने वाले उपचुनाव में भाग न लेने की बीएसपी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की घोषणा ने चुनावी परिदृश्य को बीजेपी और सपा के बीच केंद्रित कर दिया है.
यहां से 1957 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सोशलिस्ट पार्टी ने विजय पताका फहराई थी. उसके बाद से लगातार यह क्षेत्र समाजवादी विचारधारा का गढ़ रहा है. 1996 में मुलायम सिंह पहली बार यहां से चुनाव लड़े और जीते थे. उसके बाद 2004 में उन्होंने अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव को चुनाव जिताकर संसद भेजा. अब तेज प्रताप की बारी है. यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव, बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यादव और राज्यसभा सांसद अरविंद सिंह जैसे पार्टी के बड़े नेताओं को मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव का प्रभारी बनाकर मुलायम ने अपनी मंशा साफ कर दी है.
बीजेपी का ‘‘शाक्य’’ दांव
बीजेपी ने मैनपुरी सीट से प्रेम सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाकर जातिगत गणित का दांव चला है. मैनपुरी के तकरीबन 17 लाख मतदाताओं में सबसे ज्यादा 25 फीसदी यादव हैं. इसके बाद 18 से 20 फीसदी शाक्य और 15 फीसदी ठाकुर हैं. इसके अलावा लोध राजपूत, बघेल, जाटव और ब्राह्मण वोटरों की संख्या पांच से दस फीसदी है. मुसलमान तीन से पांच फीसदी के बीच हैं. इस सीट के लिए मैनपुरी से पूर्व विधायक अशोक चौहान और बीते लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे एस.एस. चौहान का नाम भी प्रमुखता से चल रहा था लेकिन शाक्य मतों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने प्रेम सिंह को उतारा है, जो पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं. मैनपुरी जिला बीजपी अध्यक्ष शिवदत्त भदौरिया कहते हैं, ‘‘मुलायम सिंह मैनपुरी से एकतरफा चुनाव जीतते आ रहे थे, इसलिए किसी हारे हुए उम्मीदवार की जगह पार्टी ने नए चेहरे पर भरोसा जताया है.’’
सपा को घेरने के लिए बीजेपी ने बड़ी चतुराई से अपनी रणनीति बनाई है. मैनपुरी से सटे आगरा संसदीय क्षेत्र से बीजेपी सांसद और दलित जाति के रामशंकर कठेरिया, हाथरस के बीजेपी सांसद और धोबी जाति के राजेश दिवाकर, इटावा से सांसद और दलित नेता अशोक दोहरे, फर्रुखाबाद से सांसद और लोध राजपूत जाति के मुकेश राजपूत को एक साथ मैनपुरी के चुनाव प्रचार में उतारकर बीजेपी ने तेज प्रताप की जातीय घेराबंदी की कोशिश की है.
(मैनपुरी में चुनाव प्रचार करते सपा उम्मीदवार तेज प्रताप यादव)
सैफई बनाम मैनपुरी
बीजेपी के जातीय चक्रव्यूह को तोडऩे के लिए सपा ने मैनपुरी में किए विकास कार्यों को चुनावी मुद्दा बनाया है. सपा अपने कार्यकाल में हुए विकास कार्यों की जानकारी देने वाला एक पर्चा बांट रही है. मैनपुरी विधानसभा सीट से पूर्व बीजेपी विधायक अशोक चौहान कहते हैं, ‘‘विकास कार्यों का 90 फीसदी हिस्सा सैफई तक सिमट गया है. मैनपुरी आज भी विकास से कोसों दूर है.’’ यहां बीजेपी की गाडिय़ां मैनपुरी की बदहाली, केवल सैफई की खुशहाली जैसे नारे लगाती घूम रही हैं. बीजेपी ने सपा के मजबूत यादव वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भी जाति कार्ड खेला है.
इटावा से मैनपुरी को जाने वाली सड़क से पूर्व के इलाके में कंवरिया जाति के यादव बहुसंख्यक हैं जिनका रोल मॉडल मुलायम सिंह का परिवार है. पश्चिम में घोसी जाति के यादवों का बोलबाला है. यहां कंवरिया और घोसी जाति का प्रतिनिधित्व क्रमशः 20 और 80 फीसदी के बीच है. बीजेपी की कोशिश घोसी जाति के यादव नेताओं के जरिए मुलायम के कोर वोट बैंक में दरार डालने की है. घोसी यादवों के बीच जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी का प्रचार कर रहे कुचेला ग्राम पंचायत के पूर्व प्रधान चंद्रपाल सिंह यादव कहते हैं, ‘‘मुलायम सिंह ने मैनपुरी को अपनी जागीर समझ लिया है. उनके परिवारवाद के कारण ही यहां पर बहुसंख्यक घोसी यादव हाशिए पर हैं.’’
मैनपुरी की राजनीति पर 50 साल से नजर रख रहे वयोवृद्घ वकील प्रभात चतुर्वेदी कहते हैं, ‘‘मैनपुरी में बीजेपी वैसे करिश्मे की उम्मीद कर रही है, जैसा 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर ने डिंपल यादव को हराकर किया था.’’ तीन माह पहले मुलायम सिंह को जिताने वाले मैनपुरी में उनका जलवा कायम है. तेज प्रताप की सभाओं की भीड़ और गगनभेदी नारे बिगुल बज रहा है मैनपुरी में नेताजी की अगवानी का, सभी भरोसा करने लगे हैं मुलायम सिंह की वाणी का तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं.
(लखनऊ पूर्व विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार आशुतोष टंडन)
लखनऊ पूर्व बनी हाइप्रोफाइल सीट
26 अगस्त को बीजेपी नेता लालजी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन ‘‘गोपाल’’ के लखनऊ पूर्व विधानसभा सीट से पार्टी का उम्मीदवार घोषित होते ही यहां की चुनावी जंग हाइप्रोफाइल हो गई. कलराज मिश्र के देवरिया से सांसद बनने के बाद खाली हुई यह विधानसभा सीट भगवा दल का गढ़ मानी जाती है. 2012 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ पूर्व ही इकलौती सीट थी, जहां सपा की आंधी के बीच कमल खिला था. 2012 में मिश्र से हारने वाली, आइएएस अधिकारी की बेटी जूही सिंह इस उपचुनाव में सपा की उम्मीदवार हैं तो कांग्रेस ने भी अपने पुराने प्रत्याशी रमेश श्रीवास्तव पर दांव खेला है.
कसौटी पर अखिलेश और मोदी
लोकसभा चुनाव के बाद भी सूबे में बिगड़ी कानून व्यवस्था, दंगों और सांप्रदायिक तनाव के बीच होने जा रहा यह उपचुनाव अखिलेश यादव सरकार का रिपोर्ट कार्ड होगा. इस चुनाव के नतीजे ही ये बताएंगे कि मौजूदा सरकार के बारे में जनता की राय क्या है. गोविंद वल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद के प्रो. बद्रीनारायण कहते हैं, ‘‘लोकसभा चुनाव के बाद सपा सरकार ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं बंद कर दीं. सरकार की बदली नीतियों पर भी यह उपचुनाव अपना जनादेश देगा.’’
बिजली संकट और बिगड़ी कानून व्यवस्था के खिलाफ लखनऊ में बीजेपी के 50 सांसदों ने धरना देकर उपचुनाव के मुद्दे तय करने की कोशिश की. सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, ‘‘बीजेपी का असल मुद्दा लव जेहाद के नाम पर उपचुनाव में ध्रुवीकरण कराने का है. बीजेपी दंगे करवाकर उसका चुनावी लाभ लेने की कोशिश कर रही है, जिसे सपा हर हाल में नाकाम करेगी.’’ बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा उपचुनाव में अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन करने वाली बीजेपी के लिए यूपी उपचुनाव के नतीजे नरेंद्र मोदी सरकार की साख पर भी अपनी मुहर लगाएंगे.
बहरहाल उपचुनाव के पहले एक बार फिर चुनावी वादों की रेल निकल पड़ी है. मार्च, 2012 से शुरू हुए विधानसभा के कार्यकाल के तकरीबन आधे रास्ते पर होने जा रहे उपचुनाव 2017 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल हैं. यहां पर मिली सफलता ढाई साल बाद होने वाले महासमर में जीत की बुनियाद रखेगी.
यूपी उपचुनाव: चुनाव तो कमल और साइकिल का है
बीएसपी के चुनाव न लडऩे के कारण यूपी में असल मुकाबला सपा और बीजेपी के बीच की है. मोदी लहर का भी इम्तहान.

अपडेटेड 16 सितंबर , 2014
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