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800 साल पुराना शिवलिंग 400 साल पुरानी कत्यूरी शैली में बने मंदिर में स्थापित हुआ

देवभूमि उत्तराखंड मंदिरों के लिए तो प्रसिद्घ है ही लेकिन चार सौ साल के बाद उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में बना यह मंदिर आकर्षण और चर्चा का विषय.

अपडेटेड 30 जून , 2014

उत्तराखंड को देवभूमि भी कहते हैं, यह बात सब जानते हैं और यहां हर पग पर धर्म से जुड़ा कोई न कोई प्रतीक चिन्ह मौजूद है. ऐसा ही कुछ हटकर पौड़ी गढ़वाल के सतपुली में भी हुआ. जहां 800 साल पुराने शिवलिंग को 400 साल पुरानी कत्यूर शैली में बने मंदिर में स्थापित किया गया. राज्य में इस शैली के मंदिर लगभग बनने बंद हो गए थे. लेकिन कमंदेश्वर महादेव मंदिर से नया सूत्रपात हुआ है. खास यह कि इस मंदिर को वहां के स्थानीय पत्थरों (बीड़ा और फटाल) से बनाया गया है और यह पूरी तरह से भूकंपरोधी भी है. वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. यशवंत कठोच कहते हैं, ‘‘इस तरह की कोशिश 17वीं शताब्दी के बाद अब की गई है. उत्तर भारतीय इन मंदिरों के ऊपर काष्ठ की छतरी की वजह से इसे छत्ररेखा शिखर शैली भी कहते हैं.’’
उत्तराखंड में 7वीं से 11वीं शताब्दी में कत्यूर वंश के राजाओं ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया. विशेष आकार और प्रकार की इस शैली को नागर या बाद में कत्यूर शैली कहा गया. इसमें प्रमुख रूप से जोशीमठ में वसुदेव मंदिर, बैजनाथ और बागेश्वर के मंदिर, जागेश्वर में नवदुर्गा और नटराज मंदिर, द्वाराहाट के शिवालय जैसे उत्तराखंड में और भी कई मंदिरों का निर्माण हुआ था. स्कंद पुराण में कहा गया है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान नारद ने की है. कमंदा देवी के समीप प्राचीन शिवलिंग होने की वजह से इस शिवालय को कमंदेश्वर महादेव का नाम दिया गया है.
21 मई को लोकार्पित कमंदेश्वर महादेव का शिवालय सतपुली से 2 किलोमीटर दूर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर पाटीसैण सतपुली के बीच दक्षिणी मौंदाड़स्यूं पट्टी में पूर्वी और पश्चिमी नयार (नदी) के संगम के निकट कमंदा देवी के मंदिर के समीप प्राचीन शिवलिंग के स्थान पर बना है. चौंदकोट परगना क्षेत्र में इसके आसपास कमंदा, नौगांव, मलेठी, धौड़ा, डंडा, पणिया और मौंदाड़ी गांव मौजूद हैं.
कमंदेश्वर मंदिर
(कमंदेश्वर मंदिर का मॉडल)
धौड़ा गांव के भोपाल निवासी कारोबारी विनोद घनसेला ने इस मंदिर को बनाने में भरपूर योगदान दिया है. उन्होंने बताया, ‘‘मेरी मां ने कहा कि बेटा इस शिवलिंग का अगर शिवालय बन जाता तो अच्छा रहता.’’ विनोद ने अपनी मां की इच्छा का सम्मान किया और फिर भव्य शिवालय का काम शुरू हो गया. प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने इस बात को माना कि इस तरह की कला को लुप्त न होने दिया जाए और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. ताकि पारंपरिक शिल्पकला  हमारी धरोहर को समृद्ध बनाती रहे.
इस मंदिर को बनाने में दो साल का समय लगा. इस पूरे समय में लगातार मंदिर निर्माण से जुड़े तीरथ रावत ‘‘राही ने बताया कि भोपाल के वास्तुशिल्पी शैलेष अहरवार और गुराड गांव के वास्तुविद् उदय रावत ने इस मंदिर का आधुनिक स्वरूप तैयार किया. दर्जनों स्थानीय कारीगरों और श्रमिकों ने इस मंदिर निर्माण में योगदान दिया. तीरथ ने जोर देकर बताया कि एक मुख्य बात यह भी है कि प्राचीन पारंपरिक विधि से इस मंदिर को भूकंपरोधी बनाया गया है. शिवलिंग के चारों ओर की लंबाई और चौड़ाई 62 फुट है जबकि गर्भगृह की ऊंचाई 61 फुट है. पीपल के पुराने पेड़ को भी मंदिर के मंडप में ही समाहित किया गया है. जो इसे किसी भी प्राचीन शैली के मंदिर के समकक्ष बनाता है. यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक महत्व का है बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी खास आकर्षण का केंद्र है.

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