अमेठी
भारत की जंग में उत्तर प्रदेश किस कदर महत्वपूर्ण है, इस बात को अमेठी से समझा जा सकता है. यह 1967 से कांग्रेस का गढ़ रहा है और सत्ता संघर्ष को मापने का पैमाना रहा है. प्रधानमंत्री पद के शीर्ष उम्मीदवार और उनकी बहनों (सगी हों या अन्य) ने मोर्चे पर जमकर प्रचार किया. मतगणना के दिन राहुल की खराब शुरुआत ने इशारा कर दिया था कि आगे क्या नतीजे आने वाले हैं.
किताबों की सुनामी
किताबों की तो जैसे बाढ़-सी आ गई. स्कॉलर, असंतुष्ट अफसरशाह, अनुचर और संशयवादी, हर कोई बहती गंगा में हाथ धोने के लिए तैयार था. नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल समर्थकों ने तो खास तौर से कलम थामी थी.
जानें नरेंद्र मोदी का रहस्य: शुरुआत कॉमिक बुक बाल नरेंद्र से होती है. यह बताती है कि कैसे बीजेपी नेता मोदी बचपन में लोगों को बचाने के लिए मगरमच्छ को काबू में करते थे. आलोचनात्मक नजरिया पढऩे के लिए नीलांजन मुखोपाध्याय की नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स पढ़ें. नरेंद्र मोदी के प्रशासन कौशल के बारे में जानने के लिए उदय माहूरकर की सेंटरस्टेज पढ़ें.

केजरीवाल के बारे में: केजरीवाल की लिखी किताब स्वराज जनता हाथोहाथ खरीद रही है.
टॉम-ऐंड-जेरी का तड़का: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य की मैं, हम ऐंड आप: द मेनी कलर्स ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स पढि़ए और मुख्य नेताओं के कैंपेन स्टाइल के बारे में जानिए.
अगर आप बताना चाहते हैं कि हां, आप भी सियासत के बारे में जानते हैं तो ये पांच किताबें पढ़ें
संजय बारू
द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर
राजनीति में जो दिखता है, उसके भी अंदर की बातें जानने के लिए इसे पढ़ें.
पी.सी. पारेख की
क्रूसेडर ऑर कॉन्सपिरेटर?
राजनीति में अफसरशाहों को किन बातों का सामना करना पड़ता है, जानें.
एस.वाइ. कुरैशी की
अनडॉक्यूमेंटेड वंडर
सियासी पार्टियों के चूहे-बिल्ली के खेल के बारे में जानने के लिए इसे पढ़ें.
शेखर गुप्ता की
एंटीसिपेटिंग इंडिया
पिछले दशक के सत्ता के गलियारे के बारे में पूरी जानकारी के लिए इसे पढ़ें.
सुमंत्र बोस की
ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया
यह जानने के लिए कि भारत को विविधता के लिए गठबंधन की जरूरत क्यों है.
आम आदमी है कौन ?
आम आदमी कौन है? इस पर कोई भी एकमत नहीं. आम आदमी पहली बार आर.के. लक्ष्मण के 1951 के कार्टून में उभरा. यह आम आदमी देश के आम लोगों का प्रतिनिधि था. उसके पास कोई पावर नहीं थी. लेकिन उसमें बड़ी घटनाएं देखने-समझने की क्षमता थी. फिर, 2011 में अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से आम आदमी फिर सामने आया.

उसने अपनी भड़ास निकाली. जनता की ताकत के सामने सरकार घुटनों के बल झुकने को मजबूर हो गई. फिर, दिसंबर 2013 में सबका अपना-सा आदमी दिल्ली का मुख्यमंत्री बना. 2014 के लोकसभा चुनाव में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने देश के सभी आम आदमियों पर राष्ट्रीय स्तर पर बढ़त बनाने की कोशिश की. लेकिन क्या अब वे एक नेता के तौर पर बांहें चढ़ाकर सड़कों पर उतरना छोड़ देंगे? क्या हमें नए आम आदमी की जरूरत होगी?
कामयाबी के परिधान
2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान तीन सबसे शक्तिशाली नेताओं ने अपनी पोशाक के जरिए देश को बताने की कोशिश की थी कि सत्ता की भावी सूरत कैसी होगी.
स्टार राहुल काली जैकेट में सजे राहुल ने स्टार वॉर्स के प्रशंसकों को हैरिसन फोर्ड के निभाए गए किरदार हैन सोलो की याद दिलाई.
केजरीवाल कैप गांधी की सफेद टोपी की वापसी. वह केजरीवाल के सिर पर सजकर स्वतंत्रता संग्राम की याद ताजा कर गई.
मोदी कुर्ता कभी सफेद तो कभी रंगीन. आधे आस्तीन के कुर्ते मोदी के पसंदीदा रहे, जिन्होंने सभी को उनके आत्मविश्वास का एहसास कराया.
अर्थशास्त्रियों का विमर्श
दुनिया के दो मशहूर अर्थशास्त्रियों नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन और जगदीश भगवती के बीच आर्थिक नीतियों पर हुई बहस ने सभी को राष्ट्र के सामने मौजूद गंभीर सवालों से रू-ब-रू कराया.
सेन का मानना है कि सामाजिक एजेंडे में अधिक इन्वेस्ट करके और लोगों की कार्यक्षमता बढ़ाकर विकास तेज करना चाहिए जबकि भगवती मानते हैं कि विकास पर ध्यान देने से सामाजिक योजनाओं पर होने वाला खर्च बढ़ जाएगा.
शब्दों की जंग के साथ विकास बनाम सुधार की बहस के तेवर भी कड़े होने लगे: क्या भारत का लक्ष्य विकास हो, जिससे लोगों की आमदनी बढ़े (मोदी का नजरिया), या असमानता और कुपोषण जैसे सामाजिक मसलों का समाधान हो, जो विकास की राह में बाधा हैं (राहुल का नजरिया)?
पत्नी और प्रेमिकाओं के भी खूब रहे चर्चे
पत्नियों या प्रेमिकाओं के बारे में अतीत के दराजों में छिपाकर रखे गए राज खोद-खोदकर निकाले गए. दिग्विजय सिंह की चार टिप्पणियां उस उतार-चढ़ाव को दिखाती हैं, जो देश में उमड़ते सवालों में मौजूद थे.
मोदी की वैवाहिक स्थिति पर सवाल उठाया
मार्च, 2014 - ''चुनाव के फॉर्म में वे पत्नी के नाम वाला कॉलम खाली क्यों छोड़ देते हैं?”
जब मोदी ने अपनी पत्नी जशोदाबेन का नाम पहली बार नामांकन पत्र में भरा
अप्रैल, 2014 - ''नरेंद्र मोदी ने माना कि वे विवाहित हैं. क्या देश उस इंसान पर भरोसा करेगा, जो एक औरत की जासूसी कराता है और अपनी पत्नी को उसके हक से वंचित रखता है?”
एक पत्रकार के साथ अपनी अंतरंग तस्वीरों के नेट पर वायरल होने पर
मई, 2014- ''मुझे अपने रिश्ते को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है... लेकिन मैं निजी जीवन में ताक-झांक करने की निंदा करता हूं.”
उन्होंने मोदी पर जो आरोप लगाया, वही गलती वे भी कर रहे थे: अपने रिश्ते को छिपाना.
मई, 2014 - ''मैं मोदी की तरह अपने रिश्ते को छिपाता नहीं. मैं कायर नहीं हूं, जबकि बदकिस्मती से नरेंद्र मोदी कायर हैं.”
डुबकी मन्नतों वाली
गंगा मैया की लहरों में डुबकी लगाने वाले केजरीवाल ने वाराणसी के माहौल को कुछ पलों के लिए गर्मा दिया
अरविंद केजरीवाल ने हमें कई यादगार पल दिए हैं. लेकिन वाराणसी में लुंगी पहने गंगा में डुबकी लगाते केजरीवाल ने जो झलक दिखाई, उसकी कोई बराबरी नहीं है. उन पर डाली गई स्याही, फेंके गए अंडे और थप्पड़ जडऩे जैसी हर घटना को नजरअंदाज कर केजरीवाल गंगा में डुबकी लगाने चल पड़े, जिसे दिखाने के लिए टेलीविजन कैमरे भी मुस्तैद थे.
जैसे ही दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी शर्ट उतारी और हरी चारखानेदार लुंगी में डुबकी लगाने के लिए तैयार हुए तो टीवी पर टिकी देश की नजरें सहम गईं: कहीं उनकी लुंगी खुल गई तो? खैर, किस्मत ने साथ दिया और केजरीवाल ढंग से नहाकर निकल आए.
हंसी-ठिठोली
जिसने भी खुद को अच्छा बताते हुए दूसरों की बखिया उधेडऩे की कोशिश की, उसका एक मजाकिया वीडियो बनाकर नेट पर पोस्ट कर दिया गया. ये बेनामी वीडियो बेहद थकाऊ और कड़वाहट भरे चुनाव प्रचार अभियान के मौसम में हंसी की फुलझड़ियां बिखेरते रहे
राहुल गांधी-कांग्रेस का विज्ञापन
इस वीडियो में कांग्रेस के प्रचार अभियान के विज्ञापन में दिखाई गई युवा कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता हसीबा अमीन का मजाक उड़ाया गया है. इसमें राहुल गांधी को हाथ में लॉलीपॉप लिए एक बच्चे के रूप में पेश किया गया है.
नायक 2: जाग उठा आम आदमी
इस वीडियो को 2001 में बनी फिल्म नायक की तर्ज पर बनाया गया है. फिल्म में भी आम आदमी के जीवन में चमत्कार होता है और वह एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन जाता है. उस किरदार की तरह इस वीडियो में अरविंद केजरीवाल को भी अपने मन की आवाज के साथ लड़ते दिखाया गया है. इसके लिए वे खुद को मफलर, टोपी और झाड़ू से लैस करते हैं.
द ग्रेट फेकू डिक्टेटर
इस वीडियो में नरेंद्र मोदी को एक ग्लोब के साथ खेलते हुए दिखाया गया है. ठीक उसी अंदाज में जिस तरह द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म में हिटलर और चार्ली चैपलिन करते हैं.
सिंहासन के भाग्य निर्माता
क्या कारोबारी घरानों ने तय कर रखा था कि राजा कौन होगा? धारदार और धुआंधार आरोपों के बीच जनवरी, 2014 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से जारी एक अध्ययन में बताया गया है कि राष्ट्रीय पार्टियों को चंदा देने वालों में सबसे ज्यादा कारोबारी घरानों के लोग हैं.
-बीजेपी ने 1,334 कॉर्पोरेट से लिया गया 192.47 करोड़ रु. का चंदा
- कांग्रेस ने 418 कॉर्पोरेट से लिया गया172.25 करोड़ रु. का चंदा
देखो मेरी उंगली मैंने वोट डाला है
उंगली के इशारे कभी भी शिष्टता के दायरे में नहीं गिने गए, लेकिन इस चुनाव में पहली बार स्याही के निशान से सजी हुई उंगली लोकतांत्रिक कर्तव्य निभाने का गर्व भरा साधन बन गई. उसे कई नाम थमा दिए गए—'फिंगीज,’ 'वोटीज,’ 'वोल्फीज,’ 'एल्फीज’ या 'उंग्लीज.’ स्मार्टफोन से खींची गई ढेरों तस्वीरें फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर छा गईं. दीवानगी कुछ इस कदर बढ़ी कि चुनाव आयोग को एक चेतावनी जारी करनी पड़ी कि अगर किसी ने मतदान बूथ के अंदर या मतदान के दौरान स्याही लगी उंगली की तस्वीर खींची तो उसे जेल भेज दिया जाएगा.
वैचारिक भोजन
इस बार खाना और राजनीति का दस्तरखान साथ-साथ बिछा. बीजेपी ने चाय पे चर्चा स्टॉल के साथ नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले कप में लोगों को नमो चाय पेश की तो कांग्रेस ने राहुल गांधी की तस्वीर वाले प्लास्टिक के कपों में रागा दूध.
इस दौर में खाने का नया रूप लोगों की कल्पना से निकलकर आया:
निर्वाचनी संदेश: छैने से बनी मिठाई, जिसके चौकोर टुकड़ों में चार पार्टियों के चिन्ह दिखाए गए—तृणमूल कांग्रेस के दो फूल, बीजेपी का कमल, सीपीएम का हंसिया-हथौड़ा-तारा और कांग्रेस का हाथ.
नमो थाली: एक खास भगवा रंग के रायते के साथ लज्जतदार थाली.
रागा बास्केट: कांग्रेस के तीन रंगों में बनी इडली, वड़ा और चटनी.
रागा नमकीन: सूखे मेवे डालकर बनी नमकीन.
कमल जलेबी: कमल के आकार की जलेबी.
चपाती: 'अबकी बार मोदी सरकार’ लिखी चपाती.
आम आदमी फास्ट फूड: मुंबई के स्ट्रीट फूड के साथ मिलाकर बनाए गए नाश्ते की प्लेट.
मिलती-जुलती शक्ल वाले लोग
देश के चंद सबसे शक्तिशाली चेहरों के हमशक्लों ने भी इस चुनाव के दौरान मशहूर होने का जमकर लुत्फ उठाया.
1. विकास महंते पर जैसे ही मोदी की नजर पड़ी, उन्होंने उन्हें बीजेपी के प्रचार अभियान से जुडऩे के लिए कह दिया था. मुंबई के इस स्टील मैन्युफैक्चरर ने यह काम बखूबी निभाया.
2. सूरत में एक ढाबा है, जहां का चिकन टिक्का मशहूर है. ग्राहक बरबस यहां खिंचे चले आते हैं. वजह है ढाबे का मालिक प्रशांत सेठी, जिनकी शक्ल और बात करने का अंदाज राहुल से मिलते हैं. लोग उन्हें राहुल ही बुलाते हैं.
3. तमिलनाडु में भी राजनैतिक दलों ने बड़ी मुस्तैदी से जयललिता और एम. करुणानिधि जैसे नेताओं के हमशक्लों को ढूंढ निकाला, जिससे जनता के साथ सीधे तौर पर जुड़ा जा सके.
4. तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की हमशक्ल और दिग्गज थिएटर कलाकार रूमा चक्रवर्ती की जबरदस्त मांग है, जो फिल्म और रंगमंच में दीदी के जीवन की कहानी को पेश कर रही हैं.
5. मनमोहन सिंह का भी एक हमशक्ल है. दिल्ली के ट्रांसपोर्टर गुरमीत सिंह सेठी, जिन्होंने दहेज पर एक फिल्म में काम किया है.
6. ऐक्टर सुनील तलवार योग गुरु बाबा रामदेव जैसे दिखते हैं. खासकर अगर वे भगवा कपड़े पहन लें. उन्होंने फिल्म भाई का माल है में यही रूप धारण किया है.
करिश्माई सुंदरियों का भी रहा जलवा
कुछ तो बात है जिसकी वजह से कई सुंदरियों ने 2014 के चुनाव के नायकों के समर्थन में कपड़े उतारे. मेघना पटेल को शायद ही कोई जानता हो, लेकिन कमल की पंखुडिय़ों के बीच उनकी नग्न तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो गई जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी के समर्थन वाला इश्तहार हाथ में ले रखा है. बॉलीवुड का एक और अनजान चेहरा तनिषा सिंह भी कहां पीछे रहने वाली थीं. उन्होंने इंटरनेट पर अपनी तस्वीरें जारी कीं जिनमें उन्होंने कांग्रेस के पोस्टर बदन पर लपेटने के अलावा और कुछ नहीं पहना था. कांग्रेस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन बीजेपी ने इस व्यवहार की 'आलोचना’ करते हुए इस पर कानूनी कार्रवाई की धमकी दी.
नोटा से नाता
भारतीयों को पहली बार नया लोकतांत्रिक विकल्प मिला: ईवीएम में नोटा यानी नन ऑफ द एबव (इनमें से कोई पसंद नहीं) चुनने का मौका. वैसे तो भारत में नोटा की व्यावहारिकता को लेकर कई तरह के मतभेद हैं, लेकिन कोलकाता के एक इलाके की हजारों महिलाओं ने 12 मई को इसका चयन किया. आखिर क्यों? किसी भी नेता ने सोनागाछी रेडलाइट इलाके की पतली गलियों के भीतर जाने की जहमत नहीं उठानी चाही, जहां 11,000 से ज्यादा वोटर रहते हैं.
राजनीति से सामान भी अछूता नहीं रहा
भारतीयों ने अपने राजनैतिक झुकाव को अपनी आस्तीन पर पहनकर दिखाया. राजनैतिक पहचान वाले सामान की बिक्री ने सबको खुश किया. इस आम चुनावी रंग में ट्रेडअस, ईबे, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और मेंतरा जैसे मशहूर ई-रिटेलर्स चाय से लेकर दर्द निवारक बाम, झाड़ू से लेकर मुखौटे, पेपर स्प्रे से लेकर पेन ड्राइव, कॉलर ट्यून से लेकर लैपटॉप कवर और यहां तक कि साड़ी भी ऑनलाइन बेच रहे थे.
पब्लिक इंटेलेक्चुअल
अब एक नया शब्द 'पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ (जन बुद्धिजीवी) प्रचलन में है. 2014 के चुनाव में तमाम ऐसे ज्ञानियों-अर्थशास्त्रियों, संपादकों, समाजविज्ञानियों और नीति विशेषज्ञों का जत्था सामने आया जिन्होंने ट्वीट किए, ब्लॉग लिखे, टीवी पर बहस की, किताबों का विमोचन किया और हर तरह के राजनैतिक मसलों पर जमकर व्याख्यान दिए. इस मामले में करोड़ों की संख्या में बिकने वाले उपन्यासों के लेखक चेतन भगत सबसे आगे रहे. वे धड़ाधड़ अपने विचार बताते और उनके हर कॉलम (या ट्वीट) में कुछ 'राष्ट्र हित’ की बात जरूर होती.

कतार का महत्व
ऐक्टर से नेता बने चिरंजीवी को कतार शब्द का मतलब समझ में आ गया. कांग्रेस के स्टार प्रचारक 58 वर्षीय नेता अपने परिवार के सदस्यों के साथ हैदराबाद के एक मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए गए थे. पर वोटरों की लंबी कतार को छोड़ते हुए जब वे सबसे आगे पहुंच गए तो एक एनआरआइ वोटर ने विरोध किया: ''क्या आपको विशेष सहूलियत चाहिए? आप होंगे केंद्रीय मंत्री, लेकिन आप सीनियर सिटिजन नहीं हैं. अपने परिवार के साथ आपको कतार तोड़कर आगे नहीं आना चाहिए.” चिरंजीवी को पीछे हटना पड़ा और वे लाइन में जाकर खड़े हो गए.
ट्विटर पर 140 अक्षरों की लड़ाई
राजनैतिक विरोधियों का शब्दों की तीखी जंग में उलझ्ना कोई नई बात नहीं है. लेकिन इस बार उनका हथियार हैशटैग बना है. इसने जोर पकड़ा अप्रैल, 2013 में जब राहुल गांधी ने सीआइआइ की समिट में अपना पहला भाषण दिया. हैशटैग की जंग से गाली देने का नया राजनैतिक शब्द सामने आया: 'पप्पू’, जो किसी बचकाने व्यवहार वाले शख्स का मजाक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

इसके कुछ दिनों बाद जब मोदी उद्योग जगत के दूसरे कार्यक्रम में शामिल हुए तो अपमान करने वाले दूसरे शब्द की खोज की गई: 'फेकू’ जिसका मतलब होता है डींगें हाकने वाला. किसी भी राजनैतिक दल ने सोशल मीडिया पर इस तरह के हमले का श्रेय नहीं लिया, लेकिन 140 अक्षरों की यह लड़ाई अब ट्रेंड का रूप अख्तियार कर चुकी है. मसलन उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था, ''हैशटैग की ट्विटर पर चलने वाली यह लड़ाई मुझे पसंद है. 2014 का चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है.”
नेताओं की सेल्फी का भी रहा जलवा
चेहरा झुकाए, हंसते हुए उंगली की तस्वीर दिखाना: गुल पनाग की यह मुस्कराहट बहुतों को भायी, यहां तक कि नवीन जिंदल और राहुल गांधी ने भी मुस्कराते हुए ऐसी तस्वीरें खिंचवाईं पर कोई भी नरेंद्र मोदी की बराबरी नहीं कर पाया, इस राजनैतिक सितारे की सेल्फी सबसे ज्यादा रिट्वीट की गई, जब उन्होंने 30 अप्रैल को मतदान केंद्र के पास प्लास्टिक के कमल के साथ स्याही लगी अपनी उंगली दिखा कर चुनाव आयोग को नाराज कर दिया था. उन्होंने ट्वीट किया, ''यह है सेल्फी! #selfiewithmodi के साथ सेल्फी शेयर करें और देखिए क्या होता है.” उनकी वेबसाइट पर प्रशंसकों की स्याही लगी उंगली वाली सेल्फी की बाढ़ आ गई.

टि्वटर से चंदा
ट्वीट. जरूरत है. दीजिए. इस चीं-चीं को सुना है? यह 2014 के चुनावों में सोशल मीडिया की एक नई उपलब्धि की आवाज है: ट्विटर से चंदा जुटाना. अप्रैल में आप के अरविंद केजरीवाल ने ऐसी ही शुरुआत की: हैशटैग से फंड जुटाने का अभियान. उन्होंने ट्वीट किया, ''मोदी और राहुल से लडऩे के लिए साफ-सुथरे धन की जरूरत है. अगर आप चंदा देना चाहते हैं तो मुझे 9868069953 पर एसएमएस करें.”
इसके अगले 24 घंटे के भीतर उनके इस अनुरोध को 2,000 से ज्यादा बार रिट्वीट किया गया, भारत और दुनिया भर से चंदे (10 रु. से लेकर 1 लाख रुपए तक) का तूफान आ गया और सिर्फ दो दिन में पार्टी को एक करोड़ रु. से ज्यादा मिल गए. राजनैतिक दलों के लिए चंदा जुटाना हमेशा अनिवार्य बुराई रही है. लेकिन इस बार तो फंड जुटाना मजेदार हो गया.
उभर रहा है शहरी भारत
2014 के चुनाव में 543 सीटों में से 150 से ज्यादा पूरी तरह या आंशिक रूप से शहरी क्षेत्र बन चुकी हैं. थिंकटैंक सीएसडीएस ने चुनाव आयोग के आंकड़ों का विश्लेषण किया जिससे पता चलता है कि शहरी पसंद का ग्रामीण भारत पर भी भारी असर रहा है: चाहे वह दुकानदारों, कारोबारियों की व्यापार संबंधी आवाजाही की वजह से हो या शहरों में पढऩे वाले छात्रों की वजह से.
वाराणसी में ये हमनाम
वाराणसी लोकसभा सीट की मतदाता सूची के विश्लेषण से नामों की लीला सामने आती है:
2,500 लोगों के नाम का पहला शब्द नरेंद्र है.
3,600 अरविंद नाम के लोगों ने वोट डाले.
15 वोटरों का नाम अजय राय था, कांग्रेस उम्मीदवार के हमनाम.
शब्दों की लड़ाई
द्वेषपूर्ण प्रचार, जुबानी मुकाबला और अपमान करने वाले शब्दों ने चुनाव आयोग को भी हैरत में डाल दिया है.
एके-49
जब केजरीवाल ने 49 दिन बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया
आरएसवीपी
कांग्रेस मॉडल (आर-राहुल, एस-सोनिया, वी-वाड्रा, पी-प्रियंका) के लिए जनसभाओं में मोदी का पसंदीदा शब्द.
मोदानी
राहुल का जवाब, गुजरात में गौतम अडानी को सस्ती दरों पर जमीन की बिक्री की ओर संकेत करते हुए.
मोदीसिन
राजनाथ सिंह के अनुसार देश में हर समस्या की दवा मोदी के पास है.
टॉफी मॉडल
गुजरात मॉडल पर राहुल ने मोदी पर मढ़ा कि अपने विकास मॉडल को बढ़ावा देने से पहले उन्होंने 1 रु. प्रति एकड़ दर पर जमीन बेची.
शहजादा
राहुल पर मोदी, यह संकेत करते हुए कि वे मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं.
जीजाजी
मोदी ने रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदों की चर्चा करते समय इस शब्द का इस्तेमाल किया.
मां-बेटे की सरकार
मां और बेटा मिलकर सरकार चला रहे हैं. मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के लोकार्पण के बाद मोदी ने इसे इस्तेमाल करने का मौका नहीं गंवाया.
एक्स फैक्टर
गणना करें: 15 करोड़ युवा मतदाताओं (18 से 23 साल के बीच) ने पहली बार मतदान किया और इस बार 40 फीसदी मतदाता 35 वर्ष से कम उम्र के थे. युवाओं की ताकत ही खास बात है: टेक-सेवी और एक-दूसरे से जुड़ी इस पीढ़ी का नतीजों पर क्या असर होगा.
हर एक वोट जरूरी है
अपनी स्याही लगी उंगली दिखाएं और देश से वोट करने की अपील करें. यह इस साल का 'आइटी’ संदेश है. ऐसे लोगों को छूट की बौछार मिलने लगी जिनकी उंगली में मतदान की स्याही वाला निशान था: मैकडोनाल्ड में मुफ्त डेजर्ट, डॉमिनोज पिज्जा में 20 फीसदी छूट और शंकर आई हॉस्पिटल में मुफ्त लेसिक सर्जरी जांच तक.
जेड-प्लस सुरक्षा
सुरह्ना के नाम पर भी खूब शब्द बाण चले. चाहे केजरीवाल हों, जिन्होंने बार-बार थप्पड़ खाने के बावजूद जेड-प्लस सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया या मोदी के सुरक्षा स्तर को लेकर कांग्रेस-बीजेपी के बीच चले शब्दबाण: क्या उनकी जेड प्लस सुरक्षा का स्तर बढ़ाकर उसे राहुल और सोनिया की तरह एसपीजी में बदल देना चाहिए.
भारत की जंग में उत्तर प्रदेश किस कदर महत्वपूर्ण है, इस बात को अमेठी से समझा जा सकता है. यह 1967 से कांग्रेस का गढ़ रहा है और सत्ता संघर्ष को मापने का पैमाना रहा है. प्रधानमंत्री पद के शीर्ष उम्मीदवार और उनकी बहनों (सगी हों या अन्य) ने मोर्चे पर जमकर प्रचार किया. मतगणना के दिन राहुल की खराब शुरुआत ने इशारा कर दिया था कि आगे क्या नतीजे आने वाले हैं.
किताबों की सुनामी
किताबों की तो जैसे बाढ़-सी आ गई. स्कॉलर, असंतुष्ट अफसरशाह, अनुचर और संशयवादी, हर कोई बहती गंगा में हाथ धोने के लिए तैयार था. नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल समर्थकों ने तो खास तौर से कलम थामी थी.
जानें नरेंद्र मोदी का रहस्य: शुरुआत कॉमिक बुक बाल नरेंद्र से होती है. यह बताती है कि कैसे बीजेपी नेता मोदी बचपन में लोगों को बचाने के लिए मगरमच्छ को काबू में करते थे. आलोचनात्मक नजरिया पढऩे के लिए नीलांजन मुखोपाध्याय की नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स पढ़ें. नरेंद्र मोदी के प्रशासन कौशल के बारे में जानने के लिए उदय माहूरकर की सेंटरस्टेज पढ़ें.

केजरीवाल के बारे में: केजरीवाल की लिखी किताब स्वराज जनता हाथोहाथ खरीद रही है.
टॉम-ऐंड-जेरी का तड़का: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य की मैं, हम ऐंड आप: द मेनी कलर्स ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स पढि़ए और मुख्य नेताओं के कैंपेन स्टाइल के बारे में जानिए.
अगर आप बताना चाहते हैं कि हां, आप भी सियासत के बारे में जानते हैं तो ये पांच किताबें पढ़ें
संजय बारू
द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर
राजनीति में जो दिखता है, उसके भी अंदर की बातें जानने के लिए इसे पढ़ें.
पी.सी. पारेख की
क्रूसेडर ऑर कॉन्सपिरेटर?
राजनीति में अफसरशाहों को किन बातों का सामना करना पड़ता है, जानें.
एस.वाइ. कुरैशी की
अनडॉक्यूमेंटेड वंडर
सियासी पार्टियों के चूहे-बिल्ली के खेल के बारे में जानने के लिए इसे पढ़ें.
शेखर गुप्ता की
एंटीसिपेटिंग इंडिया
पिछले दशक के सत्ता के गलियारे के बारे में पूरी जानकारी के लिए इसे पढ़ें.
सुमंत्र बोस की
ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया
यह जानने के लिए कि भारत को विविधता के लिए गठबंधन की जरूरत क्यों है.
आम आदमी है कौन ?
आम आदमी कौन है? इस पर कोई भी एकमत नहीं. आम आदमी पहली बार आर.के. लक्ष्मण के 1951 के कार्टून में उभरा. यह आम आदमी देश के आम लोगों का प्रतिनिधि था. उसके पास कोई पावर नहीं थी. लेकिन उसमें बड़ी घटनाएं देखने-समझने की क्षमता थी. फिर, 2011 में अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से आम आदमी फिर सामने आया.

उसने अपनी भड़ास निकाली. जनता की ताकत के सामने सरकार घुटनों के बल झुकने को मजबूर हो गई. फिर, दिसंबर 2013 में सबका अपना-सा आदमी दिल्ली का मुख्यमंत्री बना. 2014 के लोकसभा चुनाव में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने देश के सभी आम आदमियों पर राष्ट्रीय स्तर पर बढ़त बनाने की कोशिश की. लेकिन क्या अब वे एक नेता के तौर पर बांहें चढ़ाकर सड़कों पर उतरना छोड़ देंगे? क्या हमें नए आम आदमी की जरूरत होगी?
कामयाबी के परिधान
2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान तीन सबसे शक्तिशाली नेताओं ने अपनी पोशाक के जरिए देश को बताने की कोशिश की थी कि सत्ता की भावी सूरत कैसी होगी.
स्टार राहुल काली जैकेट में सजे राहुल ने स्टार वॉर्स के प्रशंसकों को हैरिसन फोर्ड के निभाए गए किरदार हैन सोलो की याद दिलाई.
केजरीवाल कैप गांधी की सफेद टोपी की वापसी. वह केजरीवाल के सिर पर सजकर स्वतंत्रता संग्राम की याद ताजा कर गई.
मोदी कुर्ता कभी सफेद तो कभी रंगीन. आधे आस्तीन के कुर्ते मोदी के पसंदीदा रहे, जिन्होंने सभी को उनके आत्मविश्वास का एहसास कराया.
अर्थशास्त्रियों का विमर्श
दुनिया के दो मशहूर अर्थशास्त्रियों नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन और जगदीश भगवती के बीच आर्थिक नीतियों पर हुई बहस ने सभी को राष्ट्र के सामने मौजूद गंभीर सवालों से रू-ब-रू कराया.
सेन का मानना है कि सामाजिक एजेंडे में अधिक इन्वेस्ट करके और लोगों की कार्यक्षमता बढ़ाकर विकास तेज करना चाहिए जबकि भगवती मानते हैं कि विकास पर ध्यान देने से सामाजिक योजनाओं पर होने वाला खर्च बढ़ जाएगा.
शब्दों की जंग के साथ विकास बनाम सुधार की बहस के तेवर भी कड़े होने लगे: क्या भारत का लक्ष्य विकास हो, जिससे लोगों की आमदनी बढ़े (मोदी का नजरिया), या असमानता और कुपोषण जैसे सामाजिक मसलों का समाधान हो, जो विकास की राह में बाधा हैं (राहुल का नजरिया)?
पत्नी और प्रेमिकाओं के भी खूब रहे चर्चे
पत्नियों या प्रेमिकाओं के बारे में अतीत के दराजों में छिपाकर रखे गए राज खोद-खोदकर निकाले गए. दिग्विजय सिंह की चार टिप्पणियां उस उतार-चढ़ाव को दिखाती हैं, जो देश में उमड़ते सवालों में मौजूद थे.
मोदी की वैवाहिक स्थिति पर सवाल उठाया
मार्च, 2014 - ''चुनाव के फॉर्म में वे पत्नी के नाम वाला कॉलम खाली क्यों छोड़ देते हैं?”
जब मोदी ने अपनी पत्नी जशोदाबेन का नाम पहली बार नामांकन पत्र में भरा
अप्रैल, 2014 - ''नरेंद्र मोदी ने माना कि वे विवाहित हैं. क्या देश उस इंसान पर भरोसा करेगा, जो एक औरत की जासूसी कराता है और अपनी पत्नी को उसके हक से वंचित रखता है?”
एक पत्रकार के साथ अपनी अंतरंग तस्वीरों के नेट पर वायरल होने पर
मई, 2014- ''मुझे अपने रिश्ते को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है... लेकिन मैं निजी जीवन में ताक-झांक करने की निंदा करता हूं.”
उन्होंने मोदी पर जो आरोप लगाया, वही गलती वे भी कर रहे थे: अपने रिश्ते को छिपाना.
मई, 2014 - ''मैं मोदी की तरह अपने रिश्ते को छिपाता नहीं. मैं कायर नहीं हूं, जबकि बदकिस्मती से नरेंद्र मोदी कायर हैं.”
डुबकी मन्नतों वाली
गंगा मैया की लहरों में डुबकी लगाने वाले केजरीवाल ने वाराणसी के माहौल को कुछ पलों के लिए गर्मा दिया
अरविंद केजरीवाल ने हमें कई यादगार पल दिए हैं. लेकिन वाराणसी में लुंगी पहने गंगा में डुबकी लगाते केजरीवाल ने जो झलक दिखाई, उसकी कोई बराबरी नहीं है. उन पर डाली गई स्याही, फेंके गए अंडे और थप्पड़ जडऩे जैसी हर घटना को नजरअंदाज कर केजरीवाल गंगा में डुबकी लगाने चल पड़े, जिसे दिखाने के लिए टेलीविजन कैमरे भी मुस्तैद थे.
जैसे ही दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी शर्ट उतारी और हरी चारखानेदार लुंगी में डुबकी लगाने के लिए तैयार हुए तो टीवी पर टिकी देश की नजरें सहम गईं: कहीं उनकी लुंगी खुल गई तो? खैर, किस्मत ने साथ दिया और केजरीवाल ढंग से नहाकर निकल आए.
हंसी-ठिठोली
जिसने भी खुद को अच्छा बताते हुए दूसरों की बखिया उधेडऩे की कोशिश की, उसका एक मजाकिया वीडियो बनाकर नेट पर पोस्ट कर दिया गया. ये बेनामी वीडियो बेहद थकाऊ और कड़वाहट भरे चुनाव प्रचार अभियान के मौसम में हंसी की फुलझड़ियां बिखेरते रहे
राहुल गांधी-कांग्रेस का विज्ञापन
इस वीडियो में कांग्रेस के प्रचार अभियान के विज्ञापन में दिखाई गई युवा कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता हसीबा अमीन का मजाक उड़ाया गया है. इसमें राहुल गांधी को हाथ में लॉलीपॉप लिए एक बच्चे के रूप में पेश किया गया है.
नायक 2: जाग उठा आम आदमी
इस वीडियो को 2001 में बनी फिल्म नायक की तर्ज पर बनाया गया है. फिल्म में भी आम आदमी के जीवन में चमत्कार होता है और वह एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन जाता है. उस किरदार की तरह इस वीडियो में अरविंद केजरीवाल को भी अपने मन की आवाज के साथ लड़ते दिखाया गया है. इसके लिए वे खुद को मफलर, टोपी और झाड़ू से लैस करते हैं.
द ग्रेट फेकू डिक्टेटर
इस वीडियो में नरेंद्र मोदी को एक ग्लोब के साथ खेलते हुए दिखाया गया है. ठीक उसी अंदाज में जिस तरह द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म में हिटलर और चार्ली चैपलिन करते हैं.
सिंहासन के भाग्य निर्माता
क्या कारोबारी घरानों ने तय कर रखा था कि राजा कौन होगा? धारदार और धुआंधार आरोपों के बीच जनवरी, 2014 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से जारी एक अध्ययन में बताया गया है कि राष्ट्रीय पार्टियों को चंदा देने वालों में सबसे ज्यादा कारोबारी घरानों के लोग हैं.
-बीजेपी ने 1,334 कॉर्पोरेट से लिया गया 192.47 करोड़ रु. का चंदा
- कांग्रेस ने 418 कॉर्पोरेट से लिया गया172.25 करोड़ रु. का चंदा
देखो मेरी उंगली मैंने वोट डाला है
उंगली के इशारे कभी भी शिष्टता के दायरे में नहीं गिने गए, लेकिन इस चुनाव में पहली बार स्याही के निशान से सजी हुई उंगली लोकतांत्रिक कर्तव्य निभाने का गर्व भरा साधन बन गई. उसे कई नाम थमा दिए गए—'फिंगीज,’ 'वोटीज,’ 'वोल्फीज,’ 'एल्फीज’ या 'उंग्लीज.’ स्मार्टफोन से खींची गई ढेरों तस्वीरें फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर छा गईं. दीवानगी कुछ इस कदर बढ़ी कि चुनाव आयोग को एक चेतावनी जारी करनी पड़ी कि अगर किसी ने मतदान बूथ के अंदर या मतदान के दौरान स्याही लगी उंगली की तस्वीर खींची तो उसे जेल भेज दिया जाएगा.
वैचारिक भोजन
इस बार खाना और राजनीति का दस्तरखान साथ-साथ बिछा. बीजेपी ने चाय पे चर्चा स्टॉल के साथ नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले कप में लोगों को नमो चाय पेश की तो कांग्रेस ने राहुल गांधी की तस्वीर वाले प्लास्टिक के कपों में रागा दूध.
इस दौर में खाने का नया रूप लोगों की कल्पना से निकलकर आया:
निर्वाचनी संदेश: छैने से बनी मिठाई, जिसके चौकोर टुकड़ों में चार पार्टियों के चिन्ह दिखाए गए—तृणमूल कांग्रेस के दो फूल, बीजेपी का कमल, सीपीएम का हंसिया-हथौड़ा-तारा और कांग्रेस का हाथ.
नमो थाली: एक खास भगवा रंग के रायते के साथ लज्जतदार थाली.
रागा बास्केट: कांग्रेस के तीन रंगों में बनी इडली, वड़ा और चटनी.
रागा नमकीन: सूखे मेवे डालकर बनी नमकीन.
कमल जलेबी: कमल के आकार की जलेबी.
चपाती: 'अबकी बार मोदी सरकार’ लिखी चपाती.
आम आदमी फास्ट फूड: मुंबई के स्ट्रीट फूड के साथ मिलाकर बनाए गए नाश्ते की प्लेट.
मिलती-जुलती शक्ल वाले लोग
देश के चंद सबसे शक्तिशाली चेहरों के हमशक्लों ने भी इस चुनाव के दौरान मशहूर होने का जमकर लुत्फ उठाया.
1. विकास महंते पर जैसे ही मोदी की नजर पड़ी, उन्होंने उन्हें बीजेपी के प्रचार अभियान से जुडऩे के लिए कह दिया था. मुंबई के इस स्टील मैन्युफैक्चरर ने यह काम बखूबी निभाया.
2. सूरत में एक ढाबा है, जहां का चिकन टिक्का मशहूर है. ग्राहक बरबस यहां खिंचे चले आते हैं. वजह है ढाबे का मालिक प्रशांत सेठी, जिनकी शक्ल और बात करने का अंदाज राहुल से मिलते हैं. लोग उन्हें राहुल ही बुलाते हैं.
3. तमिलनाडु में भी राजनैतिक दलों ने बड़ी मुस्तैदी से जयललिता और एम. करुणानिधि जैसे नेताओं के हमशक्लों को ढूंढ निकाला, जिससे जनता के साथ सीधे तौर पर जुड़ा जा सके.
4. तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की हमशक्ल और दिग्गज थिएटर कलाकार रूमा चक्रवर्ती की जबरदस्त मांग है, जो फिल्म और रंगमंच में दीदी के जीवन की कहानी को पेश कर रही हैं.
5. मनमोहन सिंह का भी एक हमशक्ल है. दिल्ली के ट्रांसपोर्टर गुरमीत सिंह सेठी, जिन्होंने दहेज पर एक फिल्म में काम किया है.
6. ऐक्टर सुनील तलवार योग गुरु बाबा रामदेव जैसे दिखते हैं. खासकर अगर वे भगवा कपड़े पहन लें. उन्होंने फिल्म भाई का माल है में यही रूप धारण किया है.
करिश्माई सुंदरियों का भी रहा जलवा
कुछ तो बात है जिसकी वजह से कई सुंदरियों ने 2014 के चुनाव के नायकों के समर्थन में कपड़े उतारे. मेघना पटेल को शायद ही कोई जानता हो, लेकिन कमल की पंखुडिय़ों के बीच उनकी नग्न तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो गई जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी के समर्थन वाला इश्तहार हाथ में ले रखा है. बॉलीवुड का एक और अनजान चेहरा तनिषा सिंह भी कहां पीछे रहने वाली थीं. उन्होंने इंटरनेट पर अपनी तस्वीरें जारी कीं जिनमें उन्होंने कांग्रेस के पोस्टर बदन पर लपेटने के अलावा और कुछ नहीं पहना था. कांग्रेस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन बीजेपी ने इस व्यवहार की 'आलोचना’ करते हुए इस पर कानूनी कार्रवाई की धमकी दी.
नोटा से नाता
भारतीयों को पहली बार नया लोकतांत्रिक विकल्प मिला: ईवीएम में नोटा यानी नन ऑफ द एबव (इनमें से कोई पसंद नहीं) चुनने का मौका. वैसे तो भारत में नोटा की व्यावहारिकता को लेकर कई तरह के मतभेद हैं, लेकिन कोलकाता के एक इलाके की हजारों महिलाओं ने 12 मई को इसका चयन किया. आखिर क्यों? किसी भी नेता ने सोनागाछी रेडलाइट इलाके की पतली गलियों के भीतर जाने की जहमत नहीं उठानी चाही, जहां 11,000 से ज्यादा वोटर रहते हैं.
राजनीति से सामान भी अछूता नहीं रहा
भारतीयों ने अपने राजनैतिक झुकाव को अपनी आस्तीन पर पहनकर दिखाया. राजनैतिक पहचान वाले सामान की बिक्री ने सबको खुश किया. इस आम चुनावी रंग में ट्रेडअस, ईबे, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और मेंतरा जैसे मशहूर ई-रिटेलर्स चाय से लेकर दर्द निवारक बाम, झाड़ू से लेकर मुखौटे, पेपर स्प्रे से लेकर पेन ड्राइव, कॉलर ट्यून से लेकर लैपटॉप कवर और यहां तक कि साड़ी भी ऑनलाइन बेच रहे थे.
पब्लिक इंटेलेक्चुअल
अब एक नया शब्द 'पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ (जन बुद्धिजीवी) प्रचलन में है. 2014 के चुनाव में तमाम ऐसे ज्ञानियों-अर्थशास्त्रियों, संपादकों, समाजविज्ञानियों और नीति विशेषज्ञों का जत्था सामने आया जिन्होंने ट्वीट किए, ब्लॉग लिखे, टीवी पर बहस की, किताबों का विमोचन किया और हर तरह के राजनैतिक मसलों पर जमकर व्याख्यान दिए. इस मामले में करोड़ों की संख्या में बिकने वाले उपन्यासों के लेखक चेतन भगत सबसे आगे रहे. वे धड़ाधड़ अपने विचार बताते और उनके हर कॉलम (या ट्वीट) में कुछ 'राष्ट्र हित’ की बात जरूर होती.

कतार का महत्व
ऐक्टर से नेता बने चिरंजीवी को कतार शब्द का मतलब समझ में आ गया. कांग्रेस के स्टार प्रचारक 58 वर्षीय नेता अपने परिवार के सदस्यों के साथ हैदराबाद के एक मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए गए थे. पर वोटरों की लंबी कतार को छोड़ते हुए जब वे सबसे आगे पहुंच गए तो एक एनआरआइ वोटर ने विरोध किया: ''क्या आपको विशेष सहूलियत चाहिए? आप होंगे केंद्रीय मंत्री, लेकिन आप सीनियर सिटिजन नहीं हैं. अपने परिवार के साथ आपको कतार तोड़कर आगे नहीं आना चाहिए.” चिरंजीवी को पीछे हटना पड़ा और वे लाइन में जाकर खड़े हो गए.
ट्विटर पर 140 अक्षरों की लड़ाई
राजनैतिक विरोधियों का शब्दों की तीखी जंग में उलझ्ना कोई नई बात नहीं है. लेकिन इस बार उनका हथियार हैशटैग बना है. इसने जोर पकड़ा अप्रैल, 2013 में जब राहुल गांधी ने सीआइआइ की समिट में अपना पहला भाषण दिया. हैशटैग की जंग से गाली देने का नया राजनैतिक शब्द सामने आया: 'पप्पू’, जो किसी बचकाने व्यवहार वाले शख्स का मजाक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

इसके कुछ दिनों बाद जब मोदी उद्योग जगत के दूसरे कार्यक्रम में शामिल हुए तो अपमान करने वाले दूसरे शब्द की खोज की गई: 'फेकू’ जिसका मतलब होता है डींगें हाकने वाला. किसी भी राजनैतिक दल ने सोशल मीडिया पर इस तरह के हमले का श्रेय नहीं लिया, लेकिन 140 अक्षरों की यह लड़ाई अब ट्रेंड का रूप अख्तियार कर चुकी है. मसलन उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था, ''हैशटैग की ट्विटर पर चलने वाली यह लड़ाई मुझे पसंद है. 2014 का चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है.”
नेताओं की सेल्फी का भी रहा जलवा
चेहरा झुकाए, हंसते हुए उंगली की तस्वीर दिखाना: गुल पनाग की यह मुस्कराहट बहुतों को भायी, यहां तक कि नवीन जिंदल और राहुल गांधी ने भी मुस्कराते हुए ऐसी तस्वीरें खिंचवाईं पर कोई भी नरेंद्र मोदी की बराबरी नहीं कर पाया, इस राजनैतिक सितारे की सेल्फी सबसे ज्यादा रिट्वीट की गई, जब उन्होंने 30 अप्रैल को मतदान केंद्र के पास प्लास्टिक के कमल के साथ स्याही लगी अपनी उंगली दिखा कर चुनाव आयोग को नाराज कर दिया था. उन्होंने ट्वीट किया, ''यह है सेल्फी! #selfiewithmodi के साथ सेल्फी शेयर करें और देखिए क्या होता है.” उनकी वेबसाइट पर प्रशंसकों की स्याही लगी उंगली वाली सेल्फी की बाढ़ आ गई.

टि्वटर से चंदा
ट्वीट. जरूरत है. दीजिए. इस चीं-चीं को सुना है? यह 2014 के चुनावों में सोशल मीडिया की एक नई उपलब्धि की आवाज है: ट्विटर से चंदा जुटाना. अप्रैल में आप के अरविंद केजरीवाल ने ऐसी ही शुरुआत की: हैशटैग से फंड जुटाने का अभियान. उन्होंने ट्वीट किया, ''मोदी और राहुल से लडऩे के लिए साफ-सुथरे धन की जरूरत है. अगर आप चंदा देना चाहते हैं तो मुझे 9868069953 पर एसएमएस करें.”
इसके अगले 24 घंटे के भीतर उनके इस अनुरोध को 2,000 से ज्यादा बार रिट्वीट किया गया, भारत और दुनिया भर से चंदे (10 रु. से लेकर 1 लाख रुपए तक) का तूफान आ गया और सिर्फ दो दिन में पार्टी को एक करोड़ रु. से ज्यादा मिल गए. राजनैतिक दलों के लिए चंदा जुटाना हमेशा अनिवार्य बुराई रही है. लेकिन इस बार तो फंड जुटाना मजेदार हो गया.
उभर रहा है शहरी भारत
2014 के चुनाव में 543 सीटों में से 150 से ज्यादा पूरी तरह या आंशिक रूप से शहरी क्षेत्र बन चुकी हैं. थिंकटैंक सीएसडीएस ने चुनाव आयोग के आंकड़ों का विश्लेषण किया जिससे पता चलता है कि शहरी पसंद का ग्रामीण भारत पर भी भारी असर रहा है: चाहे वह दुकानदारों, कारोबारियों की व्यापार संबंधी आवाजाही की वजह से हो या शहरों में पढऩे वाले छात्रों की वजह से.
वाराणसी में ये हमनाम
वाराणसी लोकसभा सीट की मतदाता सूची के विश्लेषण से नामों की लीला सामने आती है:
2,500 लोगों के नाम का पहला शब्द नरेंद्र है.
3,600 अरविंद नाम के लोगों ने वोट डाले.
15 वोटरों का नाम अजय राय था, कांग्रेस उम्मीदवार के हमनाम.
शब्दों की लड़ाई
द्वेषपूर्ण प्रचार, जुबानी मुकाबला और अपमान करने वाले शब्दों ने चुनाव आयोग को भी हैरत में डाल दिया है.
एके-49
जब केजरीवाल ने 49 दिन बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया
आरएसवीपी
कांग्रेस मॉडल (आर-राहुल, एस-सोनिया, वी-वाड्रा, पी-प्रियंका) के लिए जनसभाओं में मोदी का पसंदीदा शब्द.
मोदानी
राहुल का जवाब, गुजरात में गौतम अडानी को सस्ती दरों पर जमीन की बिक्री की ओर संकेत करते हुए.
मोदीसिन
राजनाथ सिंह के अनुसार देश में हर समस्या की दवा मोदी के पास है.
टॉफी मॉडल
गुजरात मॉडल पर राहुल ने मोदी पर मढ़ा कि अपने विकास मॉडल को बढ़ावा देने से पहले उन्होंने 1 रु. प्रति एकड़ दर पर जमीन बेची.
शहजादा
राहुल पर मोदी, यह संकेत करते हुए कि वे मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं.
जीजाजी
मोदी ने रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदों की चर्चा करते समय इस शब्द का इस्तेमाल किया.
मां-बेटे की सरकार
मां और बेटा मिलकर सरकार चला रहे हैं. मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के लोकार्पण के बाद मोदी ने इसे इस्तेमाल करने का मौका नहीं गंवाया.
एक्स फैक्टर
गणना करें: 15 करोड़ युवा मतदाताओं (18 से 23 साल के बीच) ने पहली बार मतदान किया और इस बार 40 फीसदी मतदाता 35 वर्ष से कम उम्र के थे. युवाओं की ताकत ही खास बात है: टेक-सेवी और एक-दूसरे से जुड़ी इस पीढ़ी का नतीजों पर क्या असर होगा.
हर एक वोट जरूरी है
अपनी स्याही लगी उंगली दिखाएं और देश से वोट करने की अपील करें. यह इस साल का 'आइटी’ संदेश है. ऐसे लोगों को छूट की बौछार मिलने लगी जिनकी उंगली में मतदान की स्याही वाला निशान था: मैकडोनाल्ड में मुफ्त डेजर्ट, डॉमिनोज पिज्जा में 20 फीसदी छूट और शंकर आई हॉस्पिटल में मुफ्त लेसिक सर्जरी जांच तक.
जेड-प्लस सुरक्षा
सुरह्ना के नाम पर भी खूब शब्द बाण चले. चाहे केजरीवाल हों, जिन्होंने बार-बार थप्पड़ खाने के बावजूद जेड-प्लस सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया या मोदी के सुरक्षा स्तर को लेकर कांग्रेस-बीजेपी के बीच चले शब्दबाण: क्या उनकी जेड प्लस सुरक्षा का स्तर बढ़ाकर उसे राहुल और सोनिया की तरह एसपीजी में बदल देना चाहिए.