आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख प्रवक्ता और रणनीतिकार 50 वर्षीय योगेंद्र यादव का कहना है, ‘‘यह चुनाव हमारे लिए बीज बोने का था, न कि फसल काटने का.’’ वे पंजाब में अपनी अनुभवहीन पार्टी की कामयाबी के जरिए ठोस रणनीति की तैयारी में हैं.
दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन की तर्ज पर पंजाब में पार्टी की सफलता दोहरे सत्ता विरोधी कारकों का सीधा नतीजा है.
25 अप्रैल को राज्य में नरेंद्र मोदी की धुआंधार रैलियां स्पष्ट तौर पर शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी सरकार के खिलाफ नाराजगी खत्म करने में नाकाम साबित हुईं. कांग्रेस को यूपीए सरकार के घोटालों का खामियाजा भुगतना पड़ा.
अरविंद केजरीवाल ने 29 दिसंबर, 2013 को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिन बाद नवंबर, 1984 में सिख विरोधी दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने का फैसला लिया था, जिसकी वजह से पंजाबी और सिख वोटों का झुकाव उनकी पार्टी की ओर हो गया था.
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों में हजारों सिखों को कत्ल कर दिया गया था. तब से एक के बाद एक आने वाली कांग्रेस और बीजेपी सरकारें पीड़ितों को न्याय दिलाने में नाकाम रहीं.

पंजाब में अपनी उपलब्धि और कई सीटें तथा बड़ी संख्या में वोट पाने के बावजूद आप पूरे देश में असर कायम करने में असफल रही. फिर भी दिल्ली में वह 30 फीसदी वोट पाने में सफल रही है. यह बात अलग है कि इतनी बड़ी संख्या में वोट पाने के बावजूद उसे एक भी सीट नहीं मिल पाई.
योगेंद्र यादव इस बात से इनकार करते हैं कि अब आप का भविष्य खत्म हो गया है. वे कहते हैं कि पार्टी की रणनीति अपने सीमित संसाधनों को बढ़ाना और एक के बाद एक विधानसभा चुनावों पर ध्यान देना है. वे कहते हैं, ‘‘हम अगले पांच साल में दिल्ली और पंजाब की तरह कम-से-कम 10 राज्यों में कामयाबी हासिल करने की कोशिश करेंगे.’’
आप अब प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभाने की योजना बना रही है, जिसके लिए वह लोकसभा में अपनी छोटी-सी मौजूदगी और धरना-प्रदर्शनों की अपनी योग्यता का इस्तेमाल करेगी.
दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन की तर्ज पर पंजाब में पार्टी की सफलता दोहरे सत्ता विरोधी कारकों का सीधा नतीजा है.
25 अप्रैल को राज्य में नरेंद्र मोदी की धुआंधार रैलियां स्पष्ट तौर पर शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी सरकार के खिलाफ नाराजगी खत्म करने में नाकाम साबित हुईं. कांग्रेस को यूपीए सरकार के घोटालों का खामियाजा भुगतना पड़ा.
अरविंद केजरीवाल ने 29 दिसंबर, 2013 को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिन बाद नवंबर, 1984 में सिख विरोधी दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने का फैसला लिया था, जिसकी वजह से पंजाबी और सिख वोटों का झुकाव उनकी पार्टी की ओर हो गया था.
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों में हजारों सिखों को कत्ल कर दिया गया था. तब से एक के बाद एक आने वाली कांग्रेस और बीजेपी सरकारें पीड़ितों को न्याय दिलाने में नाकाम रहीं.

पंजाब में अपनी उपलब्धि और कई सीटें तथा बड़ी संख्या में वोट पाने के बावजूद आप पूरे देश में असर कायम करने में असफल रही. फिर भी दिल्ली में वह 30 फीसदी वोट पाने में सफल रही है. यह बात अलग है कि इतनी बड़ी संख्या में वोट पाने के बावजूद उसे एक भी सीट नहीं मिल पाई.
योगेंद्र यादव इस बात से इनकार करते हैं कि अब आप का भविष्य खत्म हो गया है. वे कहते हैं कि पार्टी की रणनीति अपने सीमित संसाधनों को बढ़ाना और एक के बाद एक विधानसभा चुनावों पर ध्यान देना है. वे कहते हैं, ‘‘हम अगले पांच साल में दिल्ली और पंजाब की तरह कम-से-कम 10 राज्यों में कामयाबी हासिल करने की कोशिश करेंगे.’’
आप अब प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभाने की योजना बना रही है, जिसके लिए वह लोकसभा में अपनी छोटी-सी मौजूदगी और धरना-प्रदर्शनों की अपनी योग्यता का इस्तेमाल करेगी.