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भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए अफसरशाही में सुधार जरूरी

भारत में प्रशासनिक सुधार के लिए लोकपाल का गठन और हर सरकारी एजेंसी के लिए पारदर्शी सिटिजन चार्टर बनाए जाने की जरूरत है.

अपडेटेड 26 मई , 2014
अच्छी नीतियां बनाने का महत्व घटाए बगैर यह कहा जा सकता है कि 5 फीसदी नीति और उस पर 95 फीसदी अमल का नाम ही शासन है. अमल में लाने का सारा काम सचिवालय से लेकर गांव स्तर की प्रशासनिक सेवा की मशीनरी ही करती है. इस प्रशासनिक मशीनरी में सुधार शासन की समूची व्यवस्था को बेहतर बना देगा.

प्रशासनिक सुधार के भीतरी और बाहरी, दोनों पहलू हैं. प्रशासनिक मशीनरी की कुशलता तो बेहतर बनानी ही होगी, बेहतर जन सेवा के लिए भी स्थितियां तैयार करनी होंगी. प्रशासनिक काडर का राजनीतिकरण और निजी राजनैतिक हितों के लिए इस्तेमाल और नीतियों पर अमल में राजनैतिक हस्तक्षेप उसके कामकाज में गिरावट की मुख्य वजहें हैं. अगर निम्न उपायों को राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ अमल में लाया गया तो शासन बेहतर हो जाएगा और लोगों को भरपूर फायदा मिलेगा.

केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों को सख्त संदेश दिया जाए कि उनके आकलन की कसौटी बेहतर कामकाज और कुशलता ही होगी. जवाबदेही तय करने के उपाय करने होंगे. सही कामकाज करने वालों को पूरा समर्थन मिलेगा लेकिन भ्रष्टाचार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इन बड़े फैसलों को प्रभावी बनाने के लिए नई व्यवस्था कायम हो और उसे पूरी तरह कारगर बनाया जाए.

100 दिनों का एजेंडा
अखिल भारतीय सेवा (आचरण) के नियम 3 (3) में संशोधन करके उसमें किसी भी अधिकारी या नेता या कारोबारी के प्रतिनिधि से प्राप्त निर्देशों को दर्ज करने का प्रावधान जोड़ा जाए,  ये चाहे मौखिक, टेलीफोन से या किसी भी रूप में दिए गए हों.

अखिल भारतीय सेवा कार्यकाल नियमों में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के अक्तूबर, 2013 के निर्देशों के मुताबिक केंद्र में हर ‘स्तर’ की बजाए हर श्पद्य की अवधि तय की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश टी.एस.आर. सुब्रह्मण्यम और अन्य की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद दिए थे.

केंद्र और राज्य स्तर पर सिविल सेवा बोर्ड की स्थापना की जाए, जिसमें करीब एक-तिहाई सदस्य अनुभवी (सेवानिवृत्त या प्रतिष्ठित व्यक्ति) हों, ताकि तबादले और नियुक्तियों के लिए राजनैतिक पदाधिकारियों को भेजी जाने वाली सिफारिशें निष्पक्ष और तर्कसंगत हों.

एक साल में करें
लोकपाल का गठन हो. उसमें सभी पद भरे हों, सक्रिय हों और प्रभावी अधिकार हासिल हों.

सीबीआइ में सुधार किया जाए. उसे सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र बनाया जाए और साथ ही उसे पूरी तरह लोकपाल या निष्पक्ष प्रतिष्ठित लोगों की समिति की प्रशासनिक निगरानी में रखा जाए (संसद की निगरानी में न रखा जाए क्योंकि उसके दुष्परिणाम हो सकते हैं).

अखिल भारतीय केंद्रीय सेवाओं में भर्ती की उम्र सीमा घटाई जाए और किसी भी श्रेणी में विशेष छूट न दी जाए. इससे सभी को उच्च पदों पर पहुंचने के समान अवसर मिलेंगे और किसी आरक्षित श्रेणी में कोटा भी नहीं घटेगा.

सेवा विस्तार न देने का सख्त मानदंड कायम किया जाए. कोई भी सेवानिवृत्त अधिकारी दो साल की अंतराल अवधि के पहले दोबारा नियुक्त नहीं किया जाएगा या अल्पावधि या दीर्घावधि के लिए करार पर नहीं रखा जा सकेगा. कोई भी सेवानिवृत्त अधिकारी तीन साल के पहले राज्यपाल, बोर्ड या एजेंसियों के प्रमुख के तौर पर विवेकाधीन नियुक्तियों का हकदार नहीं होगा.

कोई भी अधिकारी सेवानिवृत्ति, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या बरखास्तगी के बाद दो साल तक किसी राजनैतिक दल में शामिल होने का हकदार नहीं होगा.

संवैधानिक और वैधानिक पदों पर चयन के लिए निष्पक्ष समिति बनाने के नियम बनाए जाएं और इन कमेटियों में विशेषज्ञ सदस्य होने चाहिए.

प्रशासनिक सेवा कानून बनाया जाए और ऊपर जिक्र किए गए बिंदुओं के मुताबिक मौजूदा नियमों में संशोधन किया जाए.

तीन साल में करें
हर संस्था, एजेंसी और उनकी गांव/ब्लॉक स्तर की शाखाओं के लिए पारदर्शी और व्यावहारिक सिटिजन चार्टर बनाया जाए. इसका व्यापक प्रचार हो और साफ कर दिया जाए कि इसका पालन न करने पर दंड भुगतना (प्रशानिक कार्रवाई या निगरानी के तहत) होगा.

ब्लॉक/थाना स्तर से ही प्रभावी शिकायत निवारण व्यवस्था को कायम किया जाना चाहिए. इसमें शिकायतों की निगरानी की भी प्रभावी व्यवस्था हो, ताकि उनका निबटारा समय सीमा के भीतर हो. शिकायत निवारण व्यवस्था की निगरानी के लिए निष्पक्ष जांच की भी व्यवस्था बनाई जाए.

सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआइ) में विशेषज्ञों को लाकर उसके विशेषज्ञता वाले आकार को विस्तार दिया जाना चाहिए. जांच की क्वालिटी और क्षमता में लगातार सुधार लाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाए.

भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन किया जाए, ताकि जमीन मालिकों को पर्याप्त या अच्छा-खासा मुआवजा मिल सके. अधिग्रहण को संतुलित और आसान बनाया जाए, ताकि निजी और सार्वजनिक प्रोजेक्ट प्रक्रियाओं के पचड़े में फंसकर लंबित न रहें और जल्द से जल्द से उनका लाभ हर किसी तक पहुंचे (नए कानून बनें, प्रक्रियाओं में बदलाव लाया जाना चाहिए).

विभिन्न मंत्रालय, राज्य सचिवालयों, दूसरी सरकारी एजेंसियों और विभिन्न क्षेत्रों में रिक्तियों पर निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि पदों पर भर्ती की प्रक्रिया को तेजी के साथ अंजाम दिया जा सके. तय प्रक्रियाओं के तहत रिक्तियों को भरने का अधिकार सभी स्तर पर मिलना चाहिए.

कई पदों पर चयन की प्रक्रिया को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के अधिकार से हटाकर यह काम विभागों और संस्थाओं को दिया जाए (आश्वस्त करें कि सभी चयन/प्रोन्नति समितियों में एक-तिहाई सदस्य बाहर के निष्पक्ष लोग हों).

विभागीय जांच अनिवार्य तय समय सीमा में जल्दी कराने की व्यवस्था कायम की जानी चाहिए. नाकाबिल और निकम्मे कर्मचारियों को निकालने की (उचित सुरक्षा व्यवस्था के साथ) प्रणाली को भी आसान बनाया जाए. ज्यादा से ज्यादा जवाबदेही तय की जाए. संविधान के अनुच्छेद 311 में संशोधन किया जाए और उसी के मुताबिक सेवा नियम बदले जाएं.

प्रशासनिक अधिकारियों की सेवा संबंधी शिकायतों के फौरन समाधान की व्यवस्था बनाई जाए. शिकायतों और प्रमोशन न मिलने या प्रतिकूल वार्षिक आकलन से संबंधित अर्जियों पर अनौपचारिक और तत्काल सुनवाई के लिए सेवानिवृत्त अधिकारियों का विभागीय बोर्ड बनाया जाए और यह व्यवस्था की जाए कि कर्मचारी के पक्ष में फैसला होने पर आम तौर पर विभाग उसके खिलाफ अपील नहीं करेगा. इससे केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (कैट) और अदालतों में सेवा संबंधी मामले काफी घट जाएंगे.

पुलिस की कार्यकुशलता बढ़ाने और भ्रष्टाचार कम करने के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस सुधार किए जाएं. कामकाज के कंप्यूटरीकरण और एफआइआर दर्ज होते ही निगरानी की व्यवस्था से पुलिस का प्रदर्शन तेजी से सुधरेगा. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से शुरुआत की जा सकती है. इसके तहत राज्य सुरक्षा आयोग के गठन और पुलिस में जांच तथा कानून-व्यवस्था के लिए अलग-अलग कर्मियों की प्रक्रिया अपनाने को कहा गया है.

पांच साल में करें
जांच एजेंसी सीबीआइ को जवाबदेह बनाने के लिए नए मापदंड स्थापित किए जाएं, जांच की गुणवत्ता, आरोप-पत्र (या मामला बंद करने) दर्ज करने में लगे समय और मुकदमों में कामयाबी की दर के आधार पर कामकाज की निगरानी की व्यवस्था की जाए. मापदंड स्पष्ट किए जाएं और निगरानी की व्यवस्था बनाई जाए.

इसी तरह सीआइडी और राज्य सरकारों के सतर्कता निदेशालय को भी कार्यकुशल बनाने के लिए सुधार किए जाएं.

सभी स्तरों पर प्रशासनिक सेवा के राजनीतिकरण को दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए. इसके लिए अफसरशाही और राजनैतिक पदाधिकारियों दोनों के लिए स्पष्ट कायदे और दिशा-निर्देश कायम किए जाएं, ताकि कामकाज में सुधार हो, प्रोत्साहन मिले, निगरानी और जरूरत पडऩे पर दंड की व्यवस्था कायम की जाए.

कृषि और शहरी जमीन के सभी दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण हो, जिससे लेन-देन आसान हो और जमीन प्रबंधन के मामले में भ्रष्टाचार घट सके.

सभी क्षेत्रों में सरकारी एजेंसियों के ठेकों (केंद्र और राज्य दोनों जगह) में अर्जी से लेकर ठेका पूरा होने तक पक्की समय सीमा की व्यवस्था हो. सभी प्रक्रियाएं कंप्यूटर के जरिए पूरी की जानी चाहिए और आवेदक को इसकी पूरी जानकारी भी दी जानी चाहिए. देरी और बहानेबाजी पर अंकुश लगाने के लिए निगरानी की व्यवस्था हो.

जहां भी संभव हो, विकेंद्रीकरण किया जाए. ग्राम पंचायतों, ब्लॉक, तहसील और जिला समितियों को ऐसे अनेक फैसले लेने का अधिकार मिले जो फिलहाल राज्य सरकारें लेती हैं. इसी तरह केंद्र से राज्यों के अधिकारों का हस्तांतरण हो (इसके लिए 100 दिनों के भीतर आयोग का गठन हो).

फाइलों की जांच-परख की प्रक्रिया तेज करने के लिए अंतर विभागीय टिप्पणियों में कंप्यूटर का इस्तेमाल बढ़े. गलत हस्तक्षेप की रोकथाम के लिए उचित व्यवस्था की जाए.

सचिवालयों में (केंद्र और राज्य, दोनों स्तर पर) विभागों की संख्या काफी हद तक कम की जा सकती है. इससे कार्यकुशलता में इजाफा होगा. (इसके अध्ययन और सिफारिश के लिए एक आयोग बनाया जाए जो साल भर में अपनी रिपोर्ट दे और तीन साल में उस पर पूरा अमल हो.)

नई तकनीक और संचार उपकरणों के इस्तेमाल से केंद्र और राज्य सचिवालयों में (आयोग की रिपोर्ट के आधार पर) कर्मचारियों की संख्या कार्यकुशलता को प्रभावित किए बिना काफी हद तक कम की जा सकती है. संख्या घटाने के लिए सिर्फ छंटनी ही की जा सकती है.

पड़ताल करें कि पांच साल में सभी स्तर पर भ्रष्टाचार घटाने का लक्ष्य हासिल कर लिया गया (पहले साल ही प्रभावी निगरानी व्यवस्था स्थापित करनी होगी). पांच साल में भ्रष्टाचार में 75 फीसदी की कमी का लक्ष्य हासिल किया जाना चाहिए.

(लेखक भारत सरकार के कैबिनेट सचिव रह चुके हैं)
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