अभी क्या करें
ऐसा मानव संसाधन विकास मंत्री नियुक्त करें जो स्कूली शिक्षा की क्वालिटी का (यानी बच्चे ठीक से सीख रहे हैं या नहीं) महत्व समझता हो. आने वाले दशकों में यही बात भारत का भविष्य तय करेगी.
शिक्षा के क्षेत्र में सालाना 100 करोड़ रु. का नेशनल इनोवेशन फंड बनाया जाए जिसके तहत कॉलेजों, शिक्षा-प्रशिक्षण के जिलास्तरीय संस्थानों और कंपनियों के चुनिंदा प्रोजेक्ट्स को अनुदान दिया जाए.
स्कूलों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध करवाई जानी चाहिए.
100 दिन में करें
पंचवर्षीय योजना तैयार करने के लिए स्कूली शिक्षा का राष्ट्रीय स्तर का ब्लू प्रिंट तैयार किया जाए. यह सुनिश्चित किया जाए कि चौथी कक्षा तक का हर बच्चा पढ़ और लिख सके. यह भी देखा जाए कि इस उद्देश्य को पूरा करने में स्कूल, फंडिंग एजेंसियां, एनआरआइ, निजी कंपनियां और जनता किस तरह मदद दे सकते हैं.
छात्रों के वार्षिक आकलन के लिए योजना तैयार करें, जिसके जरिए यह पता लग सके कि बच्चे ठीक से सीख पा रहे हैं या नहीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त रिसर्च, अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आकलन के लिए बने प्रोग्राम में भागीदारी करें और मैथमेटिक्स और साइंस के क्षेत्र के नए चलन से वाकिफ रहें.
ऐसे कानून बनाए जाएं जिसके तहत बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य हो. ऐसा नहीं करने पर उन्हें सामुदायिक सेवा जैसा दंड देने का प्रावधान किया जाए.
एक साल में करें
मानसिकता में बदलाव और जागरूकता लाने के लिए अभियान शुरू करें, जिससे अभिभावक, शिक्षक और समाज शिक्षा के महत्व और रटने की प्रवृत्ति के खराब नतीजों को समझ सकें.
चौथी क्लास में ही राष्ट्रीय स्तर का टैलेंट टेस्ट और वर्कशॉप करवाएं. इससे स्कूल छोडऩे वाले छात्रों की संख्या में कमी होगी.
छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति पर नजर रखने के लिए स्कूलों में बायोमीट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू किया जाए.
शिक्षकों और एकेडमिक सपोर्ट स्टाफ शिक्षा के बारे में कितना जानते हैं, यह जांचने के लिए नियमित तौर पर उनका आकलन करने की व्यवस्था बनाई जाए. इसके जरिए उन क्षेत्रों की पहचान हो सकेगी जिनमें इन लोगों को पेशेवर विकास की जरूरत है.
सभी स्कूलों की अपनी वेबसाइट होनी चाहिए जिस पर स्कूल से संबंधित सारी जानकारी उपलब्ध कराई जाए. निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण नहीं होना चाहिए लेकिन वेबसाइट पर इसका सही-सही जिक्र होना चाहिए, जिस पर अभिभावक और जनता एसएमएस के जरिए भी टिप्पणी कर सके और अपनी बात रख सकें.
तीन साल में पूरा करें
नेशनल साइंस ऑफ लर्निंग सेंटर स्थापित करें जहां पढऩे, एलिमेंटरी मैथेमेटिक्स रिसर्च, इंटेलिजेंट टीचिंग सिस्टम पर रिसर्च के लिए अलग सेंटर हों. इन्हें राष्ट्रीय महत्व का इंस्टीट्यूट घोषित करें ताकि इन सेंटर्स को आइआइटी की तरह ही स्वायत्तता और अनुदान मिल सके.
विभिन्न भारतीय भाषाओं में टीचर ट्रेनिंग कोर्स तैयार करें जो वीडियो के रूप में ऑनलाइन मुफ्त में ही उपलब्ध हों.
स्कूल एजुकेशन बोर्ड, इंस्टीट्यूशन्स और एग्जामिनेशन को आधुनिक बनाएं जिसका सारा फोकस रिसर्च और टेक्नोलॉजी पर होना चाहिए.
पांच साल में करें
नतीजे आधारित निजी रिमीडियल सेंटर स्थापित करें.
भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर भारतीय शिक्षा सेवा शुरू करें. इस बीच शैक्षिक विभागों में अफसरशाहों को एक तय अवधि तक काम करना अनिवार्य करें.
प्री-स्कूल को स्कूली प्रणाली में शामिल करें. प्रारंभिक और माध्यमिक स्कूलों को एक कर दें.
स्कूलों को मिला दें. दूर रहने वाले छात्रों को संयुक्त स्कूल तक आने-जाने की मुफ्त सुविधा प्रदान करें. इससे घर के नजदीक के स्कूल में जाने की प्रवृत्ति घटेगी.
निजी स्कूलों में शिक्षा की क्वालिटी की जिम्मेदारी जिला शिक्षा अधिकारियों को दें.
हर साल सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले एक-तिहाई शिक्षकों को लैपटॉप, टैबलेट दें.
क्रिएटिविटी और आन्ट्रेन्योरशिप, गैर-अकादमिक और अन्य क्षेत्रों पर ध्यान दें.
वीडियो, शिक्षण सामग्री और आकलन के सवालों के लिए संसाधन तैयार करें. विभिन्न भारतीय भाषाओं में हाइ क्वालिटी सामग्री को बढ़ावा दें.
कंटेंट या शिक्षा से जुड़ी किसी भी सहायता के लिए आइटी आधारित टीचर सपोर्ट टूल तैयार करने चाहिए. इससे वे अपनी ताकत पहचान सकेंगे, किसी भी टॉपिक में छात्र जो समान गलतियां करते हैं या जिनके बारे में कुछ गलत धाराणाएं उनके मन में हैं, उनके बारे में जानकारी दी जा सकेगी. उस टॉपिक को पढ़ाते हुए शिक्षक के सैंपल वीडियो भी उपलब्ध करवाएं. इस टूल का इस्तेमाल टीचर कभी भी और कहीं भी करने के लिए स्वतंत्र हों.
(लेखक अहमदाबाद के एजुकेशनल इनीशिएटिव्ज प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)
ऐसा मानव संसाधन विकास मंत्री नियुक्त करें जो स्कूली शिक्षा की क्वालिटी का (यानी बच्चे ठीक से सीख रहे हैं या नहीं) महत्व समझता हो. आने वाले दशकों में यही बात भारत का भविष्य तय करेगी.
शिक्षा के क्षेत्र में सालाना 100 करोड़ रु. का नेशनल इनोवेशन फंड बनाया जाए जिसके तहत कॉलेजों, शिक्षा-प्रशिक्षण के जिलास्तरीय संस्थानों और कंपनियों के चुनिंदा प्रोजेक्ट्स को अनुदान दिया जाए.
स्कूलों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध करवाई जानी चाहिए.
100 दिन में करें
पंचवर्षीय योजना तैयार करने के लिए स्कूली शिक्षा का राष्ट्रीय स्तर का ब्लू प्रिंट तैयार किया जाए. यह सुनिश्चित किया जाए कि चौथी कक्षा तक का हर बच्चा पढ़ और लिख सके. यह भी देखा जाए कि इस उद्देश्य को पूरा करने में स्कूल, फंडिंग एजेंसियां, एनआरआइ, निजी कंपनियां और जनता किस तरह मदद दे सकते हैं.
छात्रों के वार्षिक आकलन के लिए योजना तैयार करें, जिसके जरिए यह पता लग सके कि बच्चे ठीक से सीख पा रहे हैं या नहीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त रिसर्च, अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आकलन के लिए बने प्रोग्राम में भागीदारी करें और मैथमेटिक्स और साइंस के क्षेत्र के नए चलन से वाकिफ रहें.
ऐसे कानून बनाए जाएं जिसके तहत बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य हो. ऐसा नहीं करने पर उन्हें सामुदायिक सेवा जैसा दंड देने का प्रावधान किया जाए.
एक साल में करें
मानसिकता में बदलाव और जागरूकता लाने के लिए अभियान शुरू करें, जिससे अभिभावक, शिक्षक और समाज शिक्षा के महत्व और रटने की प्रवृत्ति के खराब नतीजों को समझ सकें.
चौथी क्लास में ही राष्ट्रीय स्तर का टैलेंट टेस्ट और वर्कशॉप करवाएं. इससे स्कूल छोडऩे वाले छात्रों की संख्या में कमी होगी.
छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति पर नजर रखने के लिए स्कूलों में बायोमीट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू किया जाए.
शिक्षकों और एकेडमिक सपोर्ट स्टाफ शिक्षा के बारे में कितना जानते हैं, यह जांचने के लिए नियमित तौर पर उनका आकलन करने की व्यवस्था बनाई जाए. इसके जरिए उन क्षेत्रों की पहचान हो सकेगी जिनमें इन लोगों को पेशेवर विकास की जरूरत है.
सभी स्कूलों की अपनी वेबसाइट होनी चाहिए जिस पर स्कूल से संबंधित सारी जानकारी उपलब्ध कराई जाए. निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण नहीं होना चाहिए लेकिन वेबसाइट पर इसका सही-सही जिक्र होना चाहिए, जिस पर अभिभावक और जनता एसएमएस के जरिए भी टिप्पणी कर सके और अपनी बात रख सकें.
तीन साल में पूरा करें
नेशनल साइंस ऑफ लर्निंग सेंटर स्थापित करें जहां पढऩे, एलिमेंटरी मैथेमेटिक्स रिसर्च, इंटेलिजेंट टीचिंग सिस्टम पर रिसर्च के लिए अलग सेंटर हों. इन्हें राष्ट्रीय महत्व का इंस्टीट्यूट घोषित करें ताकि इन सेंटर्स को आइआइटी की तरह ही स्वायत्तता और अनुदान मिल सके.
विभिन्न भारतीय भाषाओं में टीचर ट्रेनिंग कोर्स तैयार करें जो वीडियो के रूप में ऑनलाइन मुफ्त में ही उपलब्ध हों.
स्कूल एजुकेशन बोर्ड, इंस्टीट्यूशन्स और एग्जामिनेशन को आधुनिक बनाएं जिसका सारा फोकस रिसर्च और टेक्नोलॉजी पर होना चाहिए.
पांच साल में करें
नतीजे आधारित निजी रिमीडियल सेंटर स्थापित करें.
भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर भारतीय शिक्षा सेवा शुरू करें. इस बीच शैक्षिक विभागों में अफसरशाहों को एक तय अवधि तक काम करना अनिवार्य करें.
प्री-स्कूल को स्कूली प्रणाली में शामिल करें. प्रारंभिक और माध्यमिक स्कूलों को एक कर दें.
स्कूलों को मिला दें. दूर रहने वाले छात्रों को संयुक्त स्कूल तक आने-जाने की मुफ्त सुविधा प्रदान करें. इससे घर के नजदीक के स्कूल में जाने की प्रवृत्ति घटेगी.
निजी स्कूलों में शिक्षा की क्वालिटी की जिम्मेदारी जिला शिक्षा अधिकारियों को दें.
हर साल सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले एक-तिहाई शिक्षकों को लैपटॉप, टैबलेट दें.
क्रिएटिविटी और आन्ट्रेन्योरशिप, गैर-अकादमिक और अन्य क्षेत्रों पर ध्यान दें.
वीडियो, शिक्षण सामग्री और आकलन के सवालों के लिए संसाधन तैयार करें. विभिन्न भारतीय भाषाओं में हाइ क्वालिटी सामग्री को बढ़ावा दें.
कंटेंट या शिक्षा से जुड़ी किसी भी सहायता के लिए आइटी आधारित टीचर सपोर्ट टूल तैयार करने चाहिए. इससे वे अपनी ताकत पहचान सकेंगे, किसी भी टॉपिक में छात्र जो समान गलतियां करते हैं या जिनके बारे में कुछ गलत धाराणाएं उनके मन में हैं, उनके बारे में जानकारी दी जा सकेगी. उस टॉपिक को पढ़ाते हुए शिक्षक के सैंपल वीडियो भी उपलब्ध करवाएं. इस टूल का इस्तेमाल टीचर कभी भी और कहीं भी करने के लिए स्वतंत्र हों.
(लेखक अहमदाबाद के एजुकेशनल इनीशिएटिव्ज प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)